अमर उजाला की ख़बर पर ख़बर लेगा नागर समाज; माफी नहीं मांगी तो छिड़ेगा बहिष्कार अभियान

विरोध का असर: आज़मगढ़ के खिरिया बाग आंदोलन को लेकर अमर उजाला में छपी बेबुनियाद ख़बर पर नागर समाज की कड़ी आपत्ति का असर दिखा। अब अमर उजाला के सुर बदले दिखे।
बीते दिनों अमर उजाला अखबार में ख़बर छपी थी जिसमें बिना किसी सबूत के खिरिया बाग आंदोलन का अर्बन नक्सल से रिश्ता जोड़ा गया था। इस ख़बर के ख़िलाफ़ 19 जनवरी 2023 को नागर समाज की ओर से साझा बयान जारी हुआ था। बयान का व्यापक प्रसार हुआ, चौतरफ़ा अख़बार की निंदा हुई। इसके अलावा कल बीएचयू में उस ख़बर के ख़िलाफ़ छात्र-छात्राओं ने प्रदर्शन किया।
उस ख़बर से ठीक उलट आज 20 जनवरी को छपी सकारात्मक ख़बर के ज़रिये अमर उजाला ने अपनी गलती मान ली।

सजगता और सामूहिकता ने इसे संभव बनाया।
नागर समाज की ओर से साझा बयान
लखनऊ, 19 जनवरी 2023 को नागर समाज की ओर से जारी साझा बयान-
अमर उजाला की ख़बर पर ख़बर लेगा नागर समाज
माफी नहीं मांगी तो छिड़ेगा अमर उजाला के बहिष्कार का अभियान, होगी कानूनी कार्रवाई
अमर उजाला ने यह ठीक नहीं किया। आज़मगढ़ के खिरिया बाग आंदोलन में कोई मतलब की चीज़ हाथ नहीं लगी तो अर्बन नक्सली का हवाई पेंच पेश कर दिया। यह आरोप सनसनी फैलाने, आंदोलन को बदनाम करने और जनता की आवाज़ को दबाने की साज़िश है।
अर्बन नक्सली का आरोप सरकार या सरकारी अमले की तरफ से लगता तो बात और थी। लेकिन यहां तो एक अख़बार ने आंदोलन को कटघरे में खड़ा करने का ठेका ले लिया। किसी लोकतांत्रिक आंदोलन को चित कर देने का आसान नुस्खा है कि उस पर अर्बन नक्सली का ठप्पा लगा दिया जाए। यह अपने यशस्वी प्रधानमंत्री जी की खोजी और आज़माई हुई बात है। लेकिन वही शब्दावली अगर अख़बार भी बोलने लगें तो समझ लेना चाहिए कि दाल में बहुत काला है।
खिरिया बाग गोया शाहीनबाग होता जा रहा है। एयरपोर्ट के नाम पर 40 हज़ार की आबादी को उजाड़ देने की सरकारी परियोजना के ख़िलाफ़ आज़मगढ़ में ज़मीन मकान बचाओ संयुक्त मोर्चा के बैनर तले आंदोलन जारी है। आंदोलन में दो तिहाई महिलाओं की भागीदारी है।
लोग हवाई सपनों के झांसे में आने को तैयार नहीं, अपनी एक इंच भी ज़मीन देने को तैयार नहीं। सरकार विकास करने की ज़िद पर अड़ी है और लोग अपना घर दुआर छोड़ने को तैयार नहीं। लोग चाहते हैं कि हवाई अड्डे का मास्टर प्लान रद्द किया जाए, उन्हें चैन से रहने दिया जाए। हवाई अड्डा बनाने की मांग आजमगढ़ ने तो नहीं की थी? और फिर बनारस के बावतपुर हवाई अड्डे से आज़मगढ़ की सीमा बस 45 किलोमीटर दूर है। मुट्ठी भर लोगों के लिए हज़ारों को दोराहे पर खड़ा कर देने का क्या तुक?
अमर उजाला में छपी ख़बर बकवास का पुलिंदा है। ख़बर से आंदोलन का पक्ष गायब है और गढ़े गये आरोप का सबूत भी नदारद है। तो क्यों ना कहा जाए कि इस ख़बर की मंशा सरकार और प्रशासन के हाथ में दमन और उत्पीड़न का बहाना थमाने की थी। इसे पत्रकारिता नहीं कहते।
हम कड़े शब्दों में ऐसी गैर ज़िम्मेदार पत्रकारिता की निंदा करते हैं। इस अनर्गल ख़बर के छपने को लेकर अमर उजाला प्रबंधन से माफी मांगने और पत्रकार पर कड़ी कार्रवाई करने की मांग करते हैं।
अगर ऐसा नहीं होता तो हम अमर उजाला के बहिष्कार की अपील करने और उसके ख़िलाफ़ कानूनी कार्रवाई करने को बाध्य होंगे।
साझा बयान के हस्ताक्षरकर्ता-
- असद हयात (मानवाधिकारवादी अधिवक्ता)
- मोहम्मद शोऐब (अध्यक्ष रिहाई मंच)
- ओपी सिन्हा (ऑल इंडिया वर्कर्स कौंसिल)
- वीरेंद्र त्रिपाठी (पीपुल्स यूनिटी फोरम)
- अरुण खोटे (जस्टिस न्यूज़)
- मुकुल (मज़दूर सहयोग केंद्र)
- शम्सुल इस्लाम (संस्कृतिकर्मी, इतिहासकार)
- राकेश (इप्टा)
- नवीन जोशी (लेखक, पत्रकार)
- रूपेश कुमार (अधिवक्ता, सामाजिक कार्यकर्ता)
- नीलिमा शर्मा (रंगकर्मी)
- स्वदेश सिन्हा (लेखक)
- कलीम खान (मीडियाकर्मी)
- जावेद रसूल (अंग्रेज़ी कवि)
- तुहीन देव (क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच)
- राजीव ध्यानी (व्यंग्यकार)
- इमरान अहमद (अधिवक्ता, सामाजिक कार्यकर्ता)
- फरज़ाना मेंहदी (लेखक, संस्कृतिकर्मी)
- चंद्रेश्वर (कवि-गद्यकार)
- तस्वीर ज़ोहरा नकवी (लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता)
- किरण सिंह (लेखिका)
- अजीत बहादुर (रंग निर्देशक)
- अमिताभ मिश्र (पत्रकार)
- आलोक अनवर (लेखक, पत्रकार)
- नाइश हसन (लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता)
- रूबीना मुर्तज़ा (लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता)
- शिवा जी राय (किसान नेता)
- सादिया काज़िम (सामाजिक कार्यकर्ता)
- सुनीला राज (सामुदायिक पत्रकार)
- फ़ैज़ान मुसन्ना (उर्दू पत्रकार)
- डा ब्रजेश यादव (लोक गायक, गीतकार)
- धर्मेंद्र कुमार (कला गुरू)
- सृजनयोगी आदियोग (इंसानी बिरादरी)