उत्तराखंड : देहरादून और रामनगर में प्रगतिशील भोजन माता संगठन का प्रदर्शन

सरकार भोजन माता, आशा वर्कर, आंगनबाड़ी कार्यकत्री, शिक्षा मित्र इत्यादि का अतिशय शोषण कर रही है। संविदा, ठेका एवं मानदेय पर आधारित बहुत कम वेतन वाले रोजगार को बढ़ावा दे रही है।

देहरादून: शिक्षा अधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन

9 जनवरी को भोजनमताओं ने अपनी मांगों को लेकर जिला देहरादून शिक्षा अधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन किया।

प्रदर्शन में भोजनमाता मंजू भंडारी ने कहा कि हम भोजनमाताएं पिछले 20-21 वर्षो से विद्यालयो में भोजन बनाने का कार्य कर रही है। जिसका हमे मात्र 3000 रुपए प्रति माह मानदेय मिलता है। जो इस समय सुरसा के मुंह के समान बढ़ती मंहगाई में ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित हो रही है। हम में से कई भोजनमाताओं का पूरा परिवार इसी में गुजारा करने को मजबूर है।

विद्यालयों में हमसे भोजन बनाने, बच्चो को भोजन वितरण करने, किचन की सफाई करने के अलावा चुतर्थ श्रेणी कर्मचारी, माली, सफाई कर्मचारी, का कार्य भी करवाया जा रहा है। जिसका हमें कोई भुगतान नहीं किया जाता है।

भोजन माता बसंती ने कहा कि उत्तराखंड में लगभग 25 हजार भोजनमाताएं है। जिनको उत्तराखंड सरकार ने “माता” (भोजनमाता) शब्द से नवाजा है। माता को सम्मान मिलना चाहिए। लेकिन हमारी इतनी मेहनत का मात्र 3 हजार रूपए प्रति माह मानदेय देकर इस शब्द का भी अपमानित किया जा रहा है। उस पर भी हमें स्कूलों में अतिरिक्त काम करने से मना करने, स्कूल में बच्चे कम होने या छोटी सी भी गलती होने पर स्कूल से निकालने की धमकी दी जाती है।

भोजन माता संगठन की कोषाध्यक्ष नीता ने कहा कि उत्तराखंड सरकार मिड डे मील योजना को गैर सरकारी संस्था अक्षय पात्र फांऊडेशन को सौप रही है जिससे हमारे रोजगार पर भी संकट बढ़ता जा रहा है। इस तरह हमारा मानसिक उत्पीड़न बढ़ रहा है।

वर्ष 2022 में उत्तराखंड के शिक्षा सचिव ने भोजनमाताओं का पांच हजार रुपए मानदेय करने का प्रस्ताव सरकार को भेजा था। परन्तु उस प्रस्ताव पर अभी तक अमल नहीं किया गया है। हमारी मांगों पर तत्काल कार्यवाही की जाए। अन्यथा हम भोजनमाताएं संघर्ष को विवश होंगी।

रामनगर: भोजनमाताओं ने निकाला जुलूस, किया घेराव

9 जनवरी को क्षेत्र के विभिन्न स्कूलों की भोजनमातायें रामनगर के शहीद पार्क में एकत्रित हुईं। तदुपरांत उन्होंने प्रगतिशील भोजनमाता संगठन के बैनर तले नगर में जुलूस निकाला और मानदेय के नाम पर बेगारी कराये जाने के विरुद्ध जमकर नारे लगाये। भोजन माताओं का जुलूस नगर की विभिन्न गलियों-सड़कों से होता हुआ अंततः उप शिक्षा अधिकारी के कार्यालय पर पहुंचा जहां जोरदार विरोध-प्रदर्शन के साथ कार्यालय का घेराव कर सभा की गई।

भोजनमाताओं के संघर्ष के समर्थन में विभिन्न सामाजिक-प्रगतिशील संगठन भी मौजूद थे जिहोंने सभा को संबोधित करते हुये कहा कि सरकार स्वयं द्वारा घोषित कानूनों को ख़ुद ही तोड़ रही है। आज चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारी का न्यूनतम वेतन बीस हजार रु महीना से अधिक है और निजी संस्थानों में भी न्यूनतम वेतन नौ हजार रु महीना से अधिक है लेकिन सरकार भोजनमाताओं से महज तीन हजार रु महीना पर काम करवा रही है। वक्ताओं ने सवाल किया कि आज की महंगाई में भला तीन हजार रु महीना में किसका गुजारा संभव है?

वक्ताओं ने कहा कि आज सरकार सभी स्कीम वर्कर्स – भोजन माता, आशा वर्कर, आंगनबाड़ी कार्यकत्री, शिक्षा मित्र इत्यादि का अतिशय शोषण कर रही है।

मोदी सरकार निजीकरण-उदारीकरण की जन विरोधी नीतियों को तेज गति से आगे बढ़ाते हुये ज्यादातर सरकारी और स्थायी रोजगार खत्म कर रही है और संविदा, ठेका एवं मानदेय पर आधारित बहुत कम वेतन वाले रोजगार को बढ़ावा दे रही है। हालांकि देश में बेरोजगारी इतनी भयावह हो चुकी है कि ऐसा रोजगार भी सबको नहीं मिल पा रहा है।

प्रगतिशील भोजन माता संगठन द्वारा आयोजित इस जुलूस – सभा और ज्ञापन के कार्यक्रम में इंकलाबी मजदूर केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, आइसा, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, ऐक्टु, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी और देव भूमि व्यापार मंडल के प्रतिनिधि शामिल रहे।

प्रदर्शन और सभा के बाद मुख्यमंत्री के लिए ज्ञापन प्रेषित किया जिसमें न्यूनतम वेतन लागू करने, भोजनमाताओं को स्थाई करने, शिक्षा सचिव द्वारा भेजे  गए 5000 रुपए के प्रस्ताव को तत्काल लागू करने, भोजनमाताओं से अतिरिक्त कार्य करवाना बंद करवाने, भोजनमाताओं को बोनस और ड्रेस समय पर देने, भोजनमाताओं का हर माह का मानदेय नियमित समय पर देने, हर स्कूल में गैस चूल्हे का बंदोबस्त कर भोजनमाताओं को धुएं से मुक्त करने,अक्षय पात्र फाउंडेशन पर रोक लगाने तथा ईएसआई, पीएफ, पेंशन, प्रसूति अवकाश जैसी सुविधाएं लागू करने की मांग की गई।

भूली-बिसरी ख़बरे

%d bloggers like this: