सावित्रीबाई जन्मोत्सव सबरंग मेला: “ये दुनिया दहक रही है, सावित्री तेरे सपने उम्मीदें बन रही हैं!”

रचनात्मक कार्यशालाओं से तैयार कत्थक नृत्य, नाटक, गीत की मनमोहक प्रस्तुतियों के साथ चमड़े पर अनूठी कलाकृतियों व पोस्टरों ने मेला में खूबसूरत समा बाँधी व प्रेरणा दी।
गुड़गांव। 2018 से प्रतिवर्ष गुडगाँव में सावित्रीबाई और उनकी सहेली फातिमा शेख की याद में शिक्षा के साथी और सावित्रीबाई जन्मोत्सव समिति द्वारा 3 जनवरी को सावित्रीबाई फुले जन्मोत्सव मनाया जाता है। सबरंग मेला होता है, जिसमें नृत्य, गीत, नाटक आदि सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के साथ लेखन, चित्रकला, हस्तशिल्प आदि के द्वारा बच्चों के विविध रंग निखरकर सामने आते हैं।
हर साल की तरह इस साल 3 जनवरी, 2023 को सावित्रीबाई फुले जन्मोत्सव पर सबरंग मेला में बच्चों व युवाओं ने विविध रचनात्मक प्रस्तुतियों से अपनी क्रियाशीलता प्रदर्शित की। आयोजन की तैयारी में विभिन्न कार्यशालाएंआयोजित हुईं।

कला कार्यशालाओं में बच्चों की निखरी प्रतिभा
चमड़े पर अनूठी कलाकृतियाँ
इस वर्ष, प्रतिभागियों ने चित्रकारों सुदीप और संगीता के साथ कोलाज कला और चमड़े की कला पर केंद्रित एक कला कार्यशाला में भाग लिया। चमड़े पर कलाकृति कठिन है, लेकिन बच्चों ने सीखा और साकार प्रस्तुति दी। कार्यशाला के भीतर की कृतियों ने पूरे कार्यक्रम में हजारों रंग भर दिए।



कत्थक नृत्य
हर साल की तरह, इस साल भी कई डांस पीस पेश किए गए, जिनमें नर्तकी – अभिनेता श्रुति द्वारा कोरियोग्राफ किया गया और सिखाया गया एक छोटा लेकिन खूबसूरत कत्थक नृत्य प्रस्तुति ने सबका मन मोह लिया। वहीं ‘माजा’ नृत्य की प्रस्तुति ने भी समा बांधा।



नाटक व नृत्य-नाट्य प्रस्तुतियाँ
प्रतिभागियों ने दो थिएटर प्रोडक्शन भी तैयार किए। उनमें से एक ‘खुशबू और बदबू’ नामक दो दोस्तों की कहानी पर आधारित एक समकालीन परी-कथा थी।
स्वभाव नाटक दल द्वारा लिखित, छोटे बच्चों द्वारा प्रस्तुत इस छोटी सी नृत्य-नाटिका ने ‘गंदगी’ और ‘दुर्गंध’ के प्रति भेदभावपूर्ण सामाजिक रवैये पर सीधा सवाल उठाया। यह मुद्दा झुग्गी में रहने वाले बच्चों के जीवन में हिंसक तनाव का एक निरंतर स्रोत रहता है जिसे नाटक के माध्यम से संबोधित किया गया।


“ये दुनिया दहक रही है, सावित्री तेरे सपने उम्मीदें बन रही हैं!”
दूसरे नाटक की अवधारणा और निर्माण पिछले कुछ वर्षों से ‘शिक्षा के साथी’ के साथ काम कर रहे दलित मज़दूर वर्ग के युवाओं के एक समूह द्वारा किया गया था। लेबर चौक में दैनिक श्रमिकों की रोजमर्रा की बातचीत से बने नाटक ‘अब और नहीं’ ने न केवल समाज, कॉर्पोरेट और राज्य द्वारा प्रदत्त श्रमिकों के सामने आने वाली कठिनाइयों के बारे में बताया, बल्कि आशा और सामूहिकता की छवि भी प्रस्तुत की।


इसके अलावा पंजाब से आए बच्चों ने नाटक ‘कैसी आज़ादी आ गई’ की प्रस्तुति दी और गीत गाए।


गीत-भाषण-कविताओं के विविध रंग
अन्य कार्यक्रमों में छात्रों, कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों के गीत, भाषण और कविताएँ शामिल थीं। ‘हम मेहनतकश जग वालों से’ गीत से शुरू कार्यक्रम में बच्चों ने कई कविताएं, गीत, निबंध प्रस्तुत किए। तो हरियाणवी रागिनी की भी प्रस्तुति हुई।
कुछ बच्चों ने कविताओं के माध्यम से आज के समय का सजीव चित्रण किया तो कुछ ने सस्वर पाठ और भाषण-निबंध द्वारा सावित्री-फातिमा की विरासत और आज के हालत को रेखांकित किया।
एक युवा महिला छात्रा द्वारा लिखी और सुनाई गई और दूसरी द्वारा प्रस्तुत की गई कविता अभिनय के साथ एक संदेश दिया। लड़कियों को शिक्षित करने का आह्वान करने वाली इस सशक्त कविता को किरण व मुस्कान की प्रस्तुति ने दर्शकों को सावित्रीबाई के स्वयं के लेखन की याद दिला दी।



इसके साथ ही बच्चों द्वारा निर्मित पोस्टर, चित्र व कार्टून से सज्जित कार्यक्रम जहाँ सावित्री व फातिमा की परंपरा की जीवंतता को प्रदर्शित कर रहे थे, वहीं गरीब घरों से आए बच्चों की प्रतिभा का सजीव प्रमाण प्रस्तुत कर रहे थे।
कार्यक्रम में झुग्गी-बस्ती-स्कूल के बच्चों, युवाओं, अभिभावकों व शिक्षक-शिक्षिकाओं ने भावनाओं के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अंत में आयोजक ‘शिक्षा के साथी’ और ‘सावित्रीबाई जन्मोत्सव समिति’ द्वारा प्रतिभागी बच्चों को प्रमाणपत्र व ‘सावित्री-फातिमा डायरी’ दिया गया।



भेदभाव और हिंसा से पीड़ित बच्चों को समर्पित
इस बार का कार्यक्रम भारत के उन दलित बच्चों को समर्पित था जो शैक्षणिक संस्थानों में कई तरह के भेदभाव और हिंसा का सामना करने के बावजूद शिक्षा और विभिन्न रचनात्मक अभ्यासों के माध्यम से अपनी खुद की आवाज़ ढूँढने के लिए संघर्षरत हैं।
यही संघर्ष मुस्लिम बच्चों द्वारा भी किया जा रहा है। दलित व मुस्लिम, दोनों ही समुदायों के बच्चे आज भारत में जातिवादी, पितृसत्तात्मक, धार्मिक भेदभाव और हिंसा के मासूम शिकार बन रहे हैं।
मुख्य रूप से दलित युवा और बच्चे, जो अब इस वार्षिक उत्सव का चेहरा बन गए हैं वे भी इस हिंसा के विभिन्न रूपों से परिचित हैं। सामान्य रूप से स्कूल और समाज में भाषा, कपड़े, जीवन स्तर आदि के आधार पर होने वाले भेदभाव से लेकर, कुछ निजी स्कूलों द्वारा शुल्क का भुगतान करने में असमर्थता के कारण टीसी ना दिए जाने के कारण सरकारी या अन्य स्कूल में भर्ती ना हो पाने तक।
अपारदर्शी प्रवेश प्रक्रियाओं व पढ़ाने की प्रक्रिया में उचित ध्यान ना पाने से ले कर पढ़ाई के अतिरिक्त सांस्कृतिक गतिविधियाँ में शामिल होने का मौका ना पाने और कम उम्र से कमाई या जल्दी शादी करने के दबाव में आ जाने तक – इनके सामने भी शिक्षा के लिए सौ बाधाएँ हैं जिनका सामना ये युवा और बच्चे बहुत कम उम्र से करते हैं।
यह ध्यान में रखना ज़रूरी है की यूपी, राजस्थान और मध्य प्रदेश से दलित और मुसलमान बच्चों के साथ शैक्षिक संस्थानों में होने वाली जानलेवा हिंसा की घटनाएं इन्हीं संरचनात्मक हिंसा की धारावाहिकता से पैदा होती हैं।
इस प्रकार, इन युवाओं और बच्चों को रचनात्मक अभ्यासों के साथ प्रति वर्ष और गहराई से जुड़ते हुए और विभिन्न पृष्ठभूमियों और उम्र के दर्शकों को घंटों तक अपने कार्यक्रम में बांधकर रखते हुए देखना बेहद प्रेरणादायक है।

कला संघर्ष, प्रतिरोध और सशक्तिकरण का साधन
सावित्री बाई जन्मोत्सव का यह वार्षिक उत्सव कई दूरियों और संघर्षों को पाटने का एक क्रियाशील प्रयास बन कर उभरा है, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि कला कैसे कई तरीकों से संघर्ष, प्रतिरोध और सशक्तिकरण का साधन बन सकती है।
इस प्रक्रिया में 2023 का वार्षिक उत्सव एक आगे का कदम बन कर संपन्न हुआ। सावित्री और फातिमा के सपनों को मंजिल तक पहुंचाने के नारों ने कार्यक्रम में शामिल सभी लोगों के बीच सावित्री-फातिमा के आदर्श शिक्षा और समाज को साकार करने के लिए उर्जा को और बुलंद किया।