धारवाड़: शोषण-उत्पीड़न-बर्खास्तगी के खिलाफ दो साल से संघर्षरत हैं टाटा मार्कोपोलो के मज़दूर

मज़दूरों ने कार्यबहाली के लिए धरने-प्रदर्शन के साथ श्रम विभाग में शिकायतें भी लगाईं। अभी मजदूरों ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान एक दिन का प्रदर्शन भी किया।

धारवाड़ (कर्नाटका)। भारत की अग्रणी बस निर्माता कंपनी टाटा मार्कोपोलो के मज़दूरों ने विधानसभा के बाहर प्रदर्शन किया। टाटा मार्कोपोलो क्रांतिकारी कार्मिक यूनियन (TMKKU) के नेतृत्व में मज़दूर पिछले दो सालों से अपनी मांगों को लेकर लगातार धरना प्रदर्शन आंदोलन चला रहे हैं।

साल 2020 से ही वेतन समझौते को लेकर प्रबंधन और यूनियन के बीच संघर्ष तेज है। पिछले एक साल में टाटा मार्कोपोलो के प्रबंधन ने क़रीब 450 स्थाई मज़दूरों को ट्रांसफ़र के बहाने काम पर आने से रोक दिया है। प्रबंधन अपनी तानाशाही से बाज नहीं आ रहा है।

फ़िलहाल कर्नाटक में विधान सभा का शीतकालीन कुछ दिनों के लिए बेलगांव में भी किया जाता है। मज़दूर वहां भी पहुंच कर अपनी मांगों के पक्ष में प्रदर्शन किया।

इस सत्र के दौरान मज़दूरों ने अपनी कार्यबहाली के लिए एक दिन के धरने का आयोजन किया था। पीड़ित मज़दूरों ने विधानसभा सत्र के दौरान बेंगलुरू में विधानसभा के बाहर ही डेरा जमाए रखा।

प्रबंधन की तानाशाही

यूनियन का कहना है कि कंपनी ने दो साल से अधिक समय से 1,200 से अधिक कर्मचारियों के वेतन में संशोधन नहीं किया है। ये कर्मचारी 14 साल से अधिक समय से बस निर्माण संयंत्र में काम कर रहे हैं, लेकिन उनकी औसत मजदूरी ₹18,000 और ₹23,000 के बीच है।

टाटा मार्कोपोलो क्रांतिकारी कार्मिक यूनियन के अनुसार प्रबंधन ने कई दलीलों के बावजूद हमारे वेतन में संशोधन नहीं किया है। श्रमिकों के साथ 79 दौर की बैठक के बावजूद प्रबंधन की हठधर्मिता कायम है। श्रम मंत्री की बैठक में भी वेतन संशोधन पर सहमति नहीं बनी।

इसके विपरीत कंपनी ने सात कर्मचारियों को इस कारण बर्खास्त कर दिया है कि वे यूनियन की गतिविधियों में शामिल थे। लेबर कोर्ट के आदेश के बावजूद कंपनी ने उन्हें बहाल नहीं किया है। महामारी के दौरान काम पर नहीं आने पर कंपनी ने कुछ कर्मचारियों का वेतन घटा दिया है।

यूनियन सदस्य वीरेश पटेल ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि यूनियन ने 2020 में नए माँगपत्र (COD) के तहत 6000 रुपए बढ़ाने का वादा किया था। लेकिन कोरोना महामारी के कारण प्रबंधन ने इस माँग को मानने से मना कर दिया था। इसके बाद यूनियन और प्रबंधन बीच इन दो सालों में 70-80 बैठकें हुईं लेकिन नतीजा सिफर रहा।

उनका आरोप है कि इतनी बड़ी संख्या में आयोजित की गई बैठकों के बाद भी प्रबंधन ने इस संबंध में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। उलटा 450 मज़दूरों को लखनऊ ट्रांसफ़र के बहाने निकाल दिया है और ठेका मज़दूरों को भर्ती कर लिया है।

लगातार आंदोलन जारी

इस दौरान मज़दूरों ने यूनियन के नेतृत्व में 27 मार्च, 2022 को धारवाड़ में रैली निकली और उप श्रमआयुक्त कार्यालय पर जोरदार नारे के साथ प्रदर्शन किया था।

मई 2022 ने जिला कलेक्ट्रेट के सामने 42 दिनों तक क्रमिक भूख हड़ताल भी चलाया था। फैक्ट्री में उत्पादन चालू रहा। मज़दूर अपनी-अपनी शिफ्ट ख़त्म कर के भूख हड़ताल का हिस्सा बनते थे।

आंदोलन के दौरान सरकार ने प्रबंधन को अपने एक आदेश ने कहा था कि मज़दूरों के वेतन में 6000 रुपए की बढ़ोतरी की जानी चाहिए। इस आदेश के बाद यूनियन ने भूख हड़ताल को खत्म कर दिया। इस सरकारी आदेश के बाद मज़दूरों को मात्र एक महीने तक 6000 रुपयों का भुगतान किया गया।

लेकिन जून में धीमा काम (स्लो वर्क) का हवाला देकर इस राशि को देना बंद कर दिया। इसके विरोध में मज़दूरों ने 4-5 जून से कैंटीन के खाने का बहिष्कार कर फैक्ट्री में खाना खान बंद कर दिया था। जिसके बाद प्रबंधन ने कंपनी गेट पर नोटिस चस्पा किया कि केवल वही मज़दूर कंपनी के अंदर काम कर सकते हैं, जो कैंटीन का खाना खाने के लिए तैयार हैं। साथ अंडारटेकिंग भरने को कहा।

मज़दूरों ने इसका विरोध किया। प्रबंधन ने मज़दूरों का गेट बंद कर दिया, जो 78 दिनों तक जारी रही। इस बीच राज्य सरकार के निर्देश पर श्रम अधिकारियों ने टाटा मार्कोपोलो धारवाड़ संयंत्र का दौरा कर स्थायी श्रमिकों को 6,000 रुपये प्रति माह की अंतरिम राहत प्राप्त करने के लिए प्रति शिफ्ट प्रति लाइन 12 या अधिक वाहनों के उत्पादन की बाध्यता लाद दी।

टाटा मार्कोपोलो क्रान्तिकारी कार्मिक यूनियन (टीएमकेकेयू) ने सरकार के आदेश पर आपत्ति जताई और कंपनी हित में दिए गए इस निर्णय के विरोध में आंदोलन का ऐलान कर 12 अगस्त, 2022 को, धारवाड़ में कंपनी परिसर से उपायुक्त कार्यालय तक 14 किलोमीटर का मार्च निकाला था।

स्थाई मज़दूर बाहर, ठेका मज़दूरों की भर्ती

मार्को पोलो मोटर्स कंपनी में कुल 1250 स्थाई श्रमिक और प्रबंधन की जेबी यूनियन के 60 मज़दूर हैं। जब स्थाई मज़दूरों के लिए कंपनी ने गेट बंद कर दिया, तो उस दौरान प्लांट में इस जेबी यूनियन के मज़दूरों के साथ कुछ ठेका मज़दूरों को काम पर रखा गया। इसमें ज़्यादातर मज़दूर प्रवासी थे, जो बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड से आते थे।

गैरकानूनी गेट बंदी के विरोध में स्थाई मज़दूरों ने श्रम विभाग में अपील दायर की जिसका कोई समाधान नहीं हुआ। ऐसे में निष्कासित मज़दूरों ने सितम्बर में विधानसभा का घेराव कर पुनः भूख हड़ताल का एलान किया। इस दौरान यूनियन ने अपनी मांगों का एक पत्र भी श्रम विभाग को सौंपा।

इस दबाव में 21 सितंबर 2022 से प्रबंधन ने सभी मज़दूरों की कार्यबहाली कर दी थी।

400 मज़दूरों का लखनऊ अवैध ट्रांसफ़र, अवैध बर्खास्तगी

22 सितंबर से सभी मज़दूरों ने दोबारा काम शुरू किया, लेकिन एक हफ्ते बाद अचानक प्रबंधन ने 27 मज़दूरों का गेट बंद कर दिया। प्रबंधन ने उन मज़दूरों को काम से निकाला, जो गेट बंदी के संघर्ष में सोशल और डिजिटल मीडिया में अहम् भूमिका निभा रहे थे।

तबसे अब तक लगभग 400 स्थाई मज़दूरों का ट्रांसफर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कर दिया गया है। यह अविधिक है, क्यों कि मामला श्रम विभाग में लंबित है, और श्रम क़ानूनी प्रावधानों के तहत इस दौरान बगैर अनुमति किसी श्रमिक का स्थानांतरण या अन्य कार्यवाही नहीं की जा सकती है। इसलिए कोई भी मज़दूर लखनऊ नहीं गया।

फिलहाल प्रबंधन के गैरक़ानूनी ट्रांसफर के खिलाफ मज़दूर क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। यूनियन के अनुसार 400 में से लगभग 200 मज़दूरों ने अवैध स्थानांतरण के ख़िलाफ़ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

प्रबंधन ने मज़दूरों के स्वास्थ्य संबंधी समस्यों का हवाला देकर लगभग 83 मज़दूरों को काम से निकाल दिया।

मांग पत्र के तहत बाहर निकाले गए मज़दूरों का केस हुबली कोर्ट में चल रहा है। इस मामले पर अगली सुनवाई आगामी 14 जनवरी को है।

निकाले गए मज़दूरों में संरक्षित कर्मकार भी हैं, जिनपर श्रम अधिकारी की अनुमति के बगैर कोई कार्यवाही नहीं हो सकती है।

मज़दूरों का आंदोलन जारी

मज़दूरों ने कार्यबहाली के लिए कई बार धरने-प्रदर्शन भी किये और अपनी मांगों के कई पत्र भी श्रम विभाग में लगाए। इस संबंध में मजदूरों ने बेलगांव में विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान एक दिन का प्रदर्शन भी किया।

मज़दूरों की कार्यबहाली के लिए यूनियन ने तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री से भी मुलाकात की। मज़दूरों को आश्वासन दिया गया कि सभी मज़दूरों की कार्यबहाली कर उनके ट्रांसफर आर्डर को भी निरस्त किया जाएगा, लेकिन अभी तक इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं हुई।

ऐसे में मज़दूरों के पास आंदोलन के अलावा कोई रास्ता नहीं है।

मज़दूरों की माँगें-

यूनियन द्वारा वेतन वृद्धि की माँग प्रमुख है। अन्य मांगों में श्रमिकों के परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य लाभ देना, कारखाने के चारों ओर 60 किमी तक परिवहन सुविधाओं का विस्तार करना, कैंटीन में भोजन की गुणवत्ता और स्वच्छता में सुधार करना और श्रमिकों के उत्पीड़न को रोकना शामिल है।

साभार: वर्कर्स यूनिटी के इनपुट के साथ

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