शिक्षा को आत्मबल, ज्ञान व सामजिक परिवर्तन का ज़रिया बनाना सावित्रीबाई का मूल उद्देश्य था

3 जनवरी: सावित्रीबाई फुले जन्मोत्सव सबरंग मेला गुड़गांव में: लड़कियों, दलित व पिछड़े समुदाय के लिए पहला स्कूल खोलने वाली सावित्रीबाई फुले, फातिमा शेख और उनके साथी…
3 जनवरी देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले का जन्मदिवस है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी 3 जनवरी 2023 को गुड़गांव में सावित्रीबाई फुले जन्मोत्सव पर सबरंग मेला आयोजित हो रहा है।
भारत में लड़कियों, दलित व पिछड़े समुदाय के लिए पहला स्कूल खोलने वाली सावित्रीबाई फुले, फातिमा शेख और उनके साथियों को याद करते हुए…
- आम लोगों के हांथ से बाहर जाती ज्ञान-विज्ञान-कला-साहित्य और शिक्षा को जनता के बीच बचाने-बढ़ाने के लिए…!
- नफरत-हिंसा-बटवारे के माहौल को दूर भगा कर सबके बीच दोस्ती और एकता, तालमेल और साझेदारी की भावना फैलाने के लिए…!
सावित्रीबाई फुले जन्मोत्सव पर सबरंग मेला, 3 जनवरी 2023

ज्ञानज्योति सावित्रीबाई और फातिमा शेख की विरासत
भारत की पहली महिला अध्यापक और महान शिक्षिका सावित्री बाई का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। कम उम्र में ही ज्योतिबा फुले से शादी कर दिए जाने के बावजूद वह उनकी मदद से शिक्षा पाने में सफल रहीं। यह उस वक्त की बात है जब शिक्षा सिर्फ ऊंची जाति के पुरुषों के लिए ही थी और नीची जाति के लोगों के साथ छुआ-छूत किया जाता था।
फूले दंपति ने भारत में पहला लड़कियों का स्कूल खोलने के लिए समाज की कई कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और एक ही छत के नीचे सभी जातियों की शिक्षा को बढ़ावा दिया ताकि समाज में एक वैज्ञानिक और समानतापूर्ण सोच विकसित हो सके।
जब फुले के पिता ने दोनों को उनके जाति-विरोधी कामों के कारण घर से निकाल दिया, तब फातिमा शेख और उनके भाई उस्मान ने उनका साथ दिया। सावित्री और फातिमा ने मिलकर समाज की कई कुप्रथाओं के ख़िलाफ़ काम किया और विधवाओं के लिए घर, महिलाओं के लिए प्रशिक्षण केंद्र और लड़कियों के लिए स्कूल खोले।
उन्होंने विवाह, काम और शिक्षा तक, विभिन्न क्षेत्रों के अन्दर जाति आधारित बटवारे को चुनौती दी। दोनों ने मिलकर हिंदू और मुसलमान दोनों बिरादरियों के भीतर की बुराइयों से लड़ते हुए एक-दूसरे का समर्थन किया और आने वाली सभी पीढ़ियों के लिए समाज परिवर्तन के संघर्ष की मिसाल कायम की।
जाति के कारण स्कूल में मारे गए इन्दर मेघवाल के नाम
सावित्रीबाई फुले का जन्मोत्सव मनाने की सबसे बड़ी एहमियत उनके विचारों और संघर्षों को आज के समय में जिंदा रखने में है। शिक्षा को जनता के लिए आत्मबल, ज्ञान और सामजिक परिवर्तन का ज़रिया बनाना सावित्रीबाई और उनके साथियों का मूल उद्देश्य था।
लेकिन आज, उनके समय से 200 सालों बाद भी, हमारे देश में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कुछ धनी लोगों की जागीर, और व्यापार की एक वस्तु बन कर रह गयी है। स्कूलों में जाति आधारित भेदभाव ना केवल जारी है, बल्कि बच्चों के लिए और बर्बर और जानलेवा रूप ले रहा है।
13 अगस्त को जालौर (राजस्थान) के 9 साल के बच्चे इन्दर मेघवाल की स्कूल मास्टर की पिटाई के कारण मौत हो गयी। इसके बाद ऐसी कई अन्य घटनाएं सामने आईं। जातिवादी मानसिकता हमारे समाज में हिंसा और पिछड़ेपन की मूल जड़ों में से एक है।
कहने को अब देश में जातिगत भेदभाव कानून और संविधान के ख़िलाफ़ है। लेकिन आज समाज में नफरत की राजनीति, निजीकरण और मज़दूरों का शोषण लोगों के बीच उंच-नीच को बढ़ावा दे कर इस मानसिकता को और मज़बूत ही कर रहा है।
आज़ादी मिलने के समय नयी सरकार पर ये दबाव था की देश की पूरी जनता को शिक्षित किया जाए। कई संघर्षों से सरकारी स्कूलों का फैलाव, उच्च शिक्षा में आरक्षण, स्कूल के पाठ्यक्रम में सुधार, लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा इत्यादि कदम लिए गए। इससे पिछली दो पीढ़ियों में देश की जनता में साक्षरता का महत्वपूर्ण विकास हुआ।
यह संघर्ष अधूरा ही था की ‘90 की दशक से निजीकरण का दौर सरकारी शिक्षा ख़तम करके लोगों को निजी स्कूलों में धकेलने लगा। वर्तमान सरकार और करोना काल ने इस काम को और तेज़ी दी है।
सरकार ने हर तरीके से आम जनता के हितों की ज़िम्मेदारी से मुंह फेर लिया है। हर चीज़ बाज़ार पर छोड़ देने से जनता की मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करना भी असंभव हो गया है। बच्चों की शिक्षा भी सरकार के इस रवैय्ये का शिकार रही है। सरकारी स्कूलों पर खर्च और ध्यान घटा कर और प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा देने की निति आज गरीब-मज़दूर आबादी के सामने बच्चों को महंगे निजी स्कूलों में डालने के सिवा कोई विकल्प नहीं छोड़ा है।
करोना महामारी से आये संकट ने निजी शिक्षा और निजी स्वास्थ्य व्यवस्था की सीमाओं को सबके सामने खोल कर रख दिया। हरियाणा में 2.5 लाख से अधिक बच्चे प्राइवेट स्कूल छोड़ कर सरकारी स्कूलों में आए। लेकिन सरकार की ओर से छात्रों की संख्या में इस बढ़ोतरी के हिस्साब से स्कूलों और टीचरों की संख्या बढ़ाने का कोई कदम नहीं उठाया गया है।
एक आरटीआई के मुताबिक 2014 से 2022 में हरियाणा सरकार ने 8 स्कूल खोले हैं, और 301 स्कूल बंद किए हैं! 20,000 टीचर के पद ख़तम किए गए हैं व 38,000 पद खाली पड़े हैं।
इसका असर हम हर जगह देख सकते हैं, जहां स्कूल की कमी के कारण अलग अलग कागज़ मांग कर बच्चों को दाखिला नहीं मिल रहा है। बच्चों के स्कूल का वक्त बदल कर 12 से 6 कर दिया गया है। अचानक हिंदी मीडियम की पढ़ाई बंद कर दी जा रही है। एक गाँव का स्कूल बंद कर के बच्चों को दूसरे गाँव भेजा जा रहा है। आखिर आटा-चावल-दाल पर टैक्स लगा रही सरकार इस टैक्स को किसपे खर्च कर रही है?
हर बच्चे के लिए शिक्षा पाने का, अपनी सोच, समझदारी और क्षमता को विकसित करने का अवसर तैयार करना सरकार की ज़िम्मेदारी है। जातिवादी मानसिकता हमेशा से मज़दूर-दलित आबादी को शिक्षा से दूर रखती आई है। यह अज्ञान मेहनतकश – गरीब जनता को कमज़ोर करने का सबसे बड़ा हथियार है। इसलिए ही सावित्रीबाई फुले और उनके साथियों ने शिक्षा के काम को अपनी पहल के केंद्र में रखा।
आज ज़रुरत है की आम जनता ज्ञान और शिक्षा के इस हथियार-औजार-अधिकार पर अपनी पकड़ और मज़बूत करे। शिक्षा को सस्ता, सम्मानजनक, सार्वजनिक और वैज्ञानिक बनने का जो काम सावित्रीबाई और उनके साथियों ने शुरू किया था उसे आगे ले जाया जाए!




सावित्रीबाई फुले जन्मोत्सव समिति व शिक्षा के साथी द्वारा जारी पर्चा/फ़ोल्डर से