सावित्री बाई फुले के जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर रामनगर में सभा का आयोजन

आज यदि हमारे देश में लड़कियों को भी पढ़ने का अधिकार है तो उसके पीछे सावित्री बाई फुले जैसी जीवट और निर्भयी महिला का बहुत बड़ा योगदान है।

रामनगर, नैनीताल। देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले के जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर आज 2 जनवरी को प्रगतिशील महिला एकता केंद्र द्वारा ग्राम वीरपुर लच्छी, हल्दुआ (रामनगर) में एक सभा का आयोजन किया गया।

सभा में वक्ताओं ने कहा कि सावित्री बाई फुले ने उस जमाने में दलित-पिछड़ी जातियों और वंचित वर्ग की महिलाओं को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया था जबकि समाज में सिर्फ सवर्ण जाति के पुरुषों को ही पढ़ने का अधिकार था।

सावित्री बाई फुले ने तमाम सामाजिक बाधाओं के बावजूद अपने मिशन को नहीं छोड़ा और ब्राह्मणवादी मठाधीशों को चुनौती देते हुये महाराष्ट्र में महिलाओं के लिये कई स्कूल खोले और उन्हें संचालित किया। आज यदि हमारे देश में लड़कियों को भी पढ़ने का अधिकार है तो उसके पीछे सावित्री बाई फुले जैसी जीवट और निर्भयी महिला का बहुत बड़ा योगदान है।

सभा में हमारे समाज में महिलाओं के साथ बढ़ रही यौन हिंसा की घटनाओं पर भी चिंता व्यक्त की गई। वक्ताओं ने कहा कि आज हमारे देश में पूंजीवादी अपसंस्कृति के प्रभाव में छोटी-छोटी बच्चियों से लेकर युवा लड़कियों-महिलाओं एवं बुजुर्ग महिलाओं तक के साथ बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। हमारा भारतीय समाज महिलाओं के लिए बहुत असुरक्षित होता जा रहा है। कोख में ही बच्चियों को मार देने के मामले रुकने के बजाय लगातार बढ़ रहे हैं।

महिलाओं के विरुद्ध ये हिंसा का यह वातावरण उनके शिक्षा हासिल करने, रोजगार करने और आगे बढ़ने में बाधा बन रहा है। अंकिता भंडारी हत्याकांड जैसे अपराध लगातार बढ़ रहे हैं जिनमें खुद सत्ता में बैठे लोग ही सीधे शामिल हैं।

लड़कियों-महिलाओं के विरुद्ध ऐसी आपराधिक घटनाओं के विरुद्ध छात्राओं-महिलाओं को एकजुट होकर आगे आना होगा और पुरुषों को भी कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष में उनका साथ देना होगा।

वक्ताओं ने कहा कि आज हमारे देश की सत्ता पर बैठी फासीवादी ताकतों के महिलाओं के संबंध में विचार एकदम पुरातनपंथी हैं। जातिवाद और वर्णव्यवस्था की समर्थक इन ताकतों से भी महिलाओं – पुरुषों को लड़ना होगा जो कि एक ओर एकदम नग्न होकर कॉर्पोरेट पूंजीपतियों के हितों को आगे बढ़ा रही हैं तो वहीं दूसरी ओर महिलाओं के विरुद्ध मध्य युगीन पुरुषवादी मूल्यों को बढ़ावा दे रही हैं।

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