उत्तराखंड पुलिस की बर्बरता; विधानसभा के बाहर धरनारत महिलाओं सहित कर्मचारियों का किया दमन

पुलिस ने बल प्रयोग कर महिला प्रदर्शनकारियों को भी गिरफ्तार कर लिया। बर्खास्त कर्मचारियों ने किया सवाल, सभी नियुक्तियां अवैध हैं तो कुछ कर्मचारियों ही बर्खास्त क्यों?
देहरादून। उत्तराखंड सरकार का एकबार फिर दमनकारी चेहरा सामने आया है। विधानसभा से बर्खास्त कर्मचारियों का विधानसभा के बाहर चल रहे धरना पर बुधवार को पुलिस का कहर बरपा हुआ। पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों को विधानसभा से जबरन उठाया गया। इस दौरान महिलाओं के साथ भी पुलिस ने बदसलूकी की।
पुलिस के द्वारा बल प्रयोग करते हुए प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया और एकता विहार छोड़ा गया। बताया गया कि जिला प्रशासन के आदेश के बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को जबरन उठाया।
228 कर्मचारियों की बर्खास्तगी: क्या है पूरा मामला?
उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय में 2016 से 2021 तक की बैकडोर से की गईं कुल 228 नियुक्तियां को रद्द कर कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया था। इस तरह से किन्हीं अन्य गलतियों का शिकार ये कर्मचारी बने और एक झटके में सड़क पर आ गए। तबसे ये कर्मचारी संघर्षरत हैं और क़ानूनी व जमीनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
दरअसल विधानसभा में बैकडोर से भर्तियां करने का मामला इस साल अगस्त महीने में सामने आया। हंगामा होने पर उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने 3 सितंबर 2022 को पूर्व आईएएस अधिकारी डीके कोटिया की अध्यक्षता में तीन सदस्य विशेषज्ञ जांच समिति का गठन किया था।
जांच समिति ने राज्य गठन से 2021 तक तदर्थ आधार पर की गईं नियुक्तियों की जांच कर 20 दिन के भीतर 22 सितंबर 2022 को विधानसभा अध्यक्ष को रिपोर्ट सौंपी, जिसमें बताया गया कि तदर्थ आधार पर नियुक्तियां नियम विरुद्ध की गई हैं।
समिति की रिपोर्ट पर विधानसभा अध्यक्ष ने 23 सितंबर को तत्काल प्रभाव से 2016 से 2021 तक की गईं कुल 228 नियुक्तियां को रद्द कर कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट से कर्मचारियों को मिली हार
इस फैसले के खिलाफ कर्मचारी हाईकोर्ट गए। जहाँ एकल पीठ ने कर्मचारियों को राहत देते हुए बर्खास्तगी आदेश पर रोक लगा दी। विधानसभा सचिवालय ने इस फैसले के खिलाफ डबल बेंच में अपील दायर कर दी। 24 नवंबर को बर्खास्तगी के फैसले को खंडपीठ ने सही ठहराया।
खंडपीठ के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुग्रह याचिका (एसएलपी) दायर की। जिसे 15 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया और कर्मचारियों को हार का सामान्य करना पड़ा।
सवाल यह है कि ये नियुक्तियाँ अवैध थीं तो इन नियुक्तियों को करने वाले बड़े मदारियों पर कार्यवाही क्यों नहीं? आनन-फानन में हुई बर्खास्तगी के बहाने आखिर सरकार किसे बचा रही है?
बर्खास्त कर्मचारियों का विधानसभा के बाहर धरना
अंततः कर्मचारियों ने विधान सभा के बाहर धरना-प्रदर्शन चालू कर दिया। इस बीच पुलिस मंगलवार को दो बार कर्मचारियों को धरनास्थल से उठाने पहुंची, लेकिन कर्मचारियों के विरोध के चलते वह उन्हें नहीं उठा पाई। पुलिस ने धरने पर बैठे कर्मचारियों से कहा कि बुधवार से यहां धरने पर नहीं बैठने दिया जाएगा। इससे पहले कर्मचारियों ने स्थानीय प्रशासन के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा।
बुधवार को कर्मचारियों को पुलिसिया दमन का सामना करना पड़ा। विधानसभा के बाहर धरने पर बैठे बर्खास्त कर्मचारियों को पुलिस धरने से जबरन उठाने लगी तो कर्मचारी विरोध करने लगे और उनकी पुलिस से तीखी झड़प हो गई। इस दौरान पुलिस ने दो महिला कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया।
सब नियुक्तियां अवैध हैं तो कार्रवाई कुछ कर्मचारियों पर ही क्यों
धरने पर बैठे कर्मचारियों ने विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी पर भेदभावपूर्ण कार्रवाई का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि जब सब नियुक्तियां अवैध हैं तो कार्रवाई कुछ कर्मचारियों पर ही क्यों की गई।
बर्खास्त कर्मचारियों ने कहा कि विधानसभा सचिवालय में वर्ष 2001 से लेकर 2021 तक की सभी नियुक्तियां एक ही पैटर्न पर की गई हैं। हाईकोर्ट में दिए अपने शपथ पत्र में विधानसभा अध्यक्ष ने बताया है कि राज्य निर्माण के बाद से अब तक की सभी नियुक्तियां अवैध हैं, लेकिन उनकी ओर से कार्रवाई केवल 2016 के बाद नियुक्त कर्मचारियों पर ही की गई है।
कर्मचारियों ने कहा कि कोटिया कमेटी की महज 20 दिन की जांच के बाद 2016 के बाद नियुक्त कर्मचारियों की नियुक्तियां रद्द कर दी गईं, जबकि इससे पहले के कर्मचारियों को विधिक राय के नाम पर क्लीन चिट दे दी गई।
कर्मचारियों ने अन्य विभागों में हुई नियुक्तियों पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2003 के शासनादेश के बाद विधानसभा ही नहीं बल्कि अन्य विभागों में भी हजारों कर्मचारी तदर्थ, संविदा, नियत वेतनमान और दैनिक वेतन पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। सवाल यह है कि जब विधानसभा कर्मचारियों की नियुक्तियां अवैध हैं तो अन्य विभागों में इसी तरह की नियुक्तियां कैसे वैध हो गईं।
कर्मचारियों ने कहा कि पांच दिन के भीतर यदि कोई सकारात्मक कार्रवाई न हुई तो इसके विरोध में आंदोलन तेज करने को बाध्य होंगे।
कार्यवाही संदेहास्पद
यह पूरा मामला जिस तरीके से उठा, जितनी जल्दी कमेटी बनी, महज 20 दिन में इतने बड़े मामले की रिपोर्ट आई और कर्मचारी बर्खास्त कर दिए गए, उससे पूरा मामला ही संदिग्ध बन गया है। यही नहीं, महज तीन महीने के भीतर उच्च न्यायालय के ऐंगल व डबल बेंच के सहित सर्वोच्च न्यायालय तक के फैसले आ गए।
जबकि एनएच घोटाले से लेकर बीज घोटाले तक तमाम बड़े मामले आजतक ठंडे बस्ते में पड़े हैं। एनएच घोटाले मामले में तो तीन संलिप्त आईएएस अधिकारी निलंबित होकर बहाल भी हो गए और छोटे कर्मचारियों पर गाज गिराकर पूरा प्रकरण ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
सवाल यह भी है कि ये नियुक्तियाँ अवैध थीं तो इन नियुक्तियों को करने वाले मगरमक्षों पर कार्यवाही क्यों नहीं? आनन-फानन में हुई बर्खास्तगी के बहाने आखिर सरकार किसे बचा रही है?