मंगोलिया, बांगलादेश से ईरान तक प्रदर्शन तेज; जनता का आक्रोश सड़कों पर

मंगोलिया में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोग सड़कों पर उतरे हैं तो बांग्लादेश में भी शेख हसीना सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं। वहीं, ईरान में महीनों से जबरन हिजाब पहनाने के खिलाफ प्रदर्शन जारी है।

भयावह संकट से जूझ रही पूरी दुनिया में जनता सड़कों पर उतार रही है। अलग-अलग मुल्क़ों की सरकार के खिलाफ जनता का प्रतिरोध बढ़ रहा है। अरब के ट्यूनीशिया में मोहम्मद बउज़ीज़ी के आत्मदाह के साथ जो विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, उसने मध्य पूर्व के कई देशों में सत्ता बदल दी। श्रीलंका में जन प्रतिरोध के सामने राष्ट्रपति को देश छोड़कर भागना पड़ा था।

इस वक्त भी दुनिया के अलग-अलग मुल्क़ों में सरकार के खिलाफ जनता का आक्रोश देखने को मिल रहा है। इटली की राजधानी रोम में मज़दूरों का विशाल प्रदराह्न हुआ। अभी मंगोलिया में भ्रष्टाचार के खिलाफ सैंकड़ो लोग सड़कों पर उतरे हैं तो भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में भी शेख हसीना की सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं। वहीं, ईरान में तो महीनों से जबरन हिजाब पहनाने के खिलाफ प्रदर्शन जारी है।

मंगोलिया में भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शन

मंगोलिया के उलानबटार के सुखबातर स्क्वायर में भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शन लगातार जारी है। आज 14 दिसंबर को प्रदर्शन का 10वां दिन है। 5 दिसंबर को शुरू हुए प्रदर्शन -30 डिग्री सेल्सियस तक जमा देने वाले तापमान के बावजूद लगातार जारी हैं। तख्तियों, बैनरों, नारों के साथ प्रदर्शनकारी मांग कर रहे हैं कि प्रधान मंत्री ओयुन-एर्डीन लवसनमसराय की सरकार “कोयला माफियाओं” का खुलासा करें।

यह आंदोलन 1991 के बाद से मंगोलिया के दूसरे सबसे बड़े आंदोलनों में से एक है। युवा लगातार प्रधानमंत्री और न्याय मंत्रालय पर अपनी मांगों को लेकर दबाव बना रहे हैं। विरोध प्रदर्शन आगे बढ़ने के साथ जन समर्थन भी बढ़ता जा रहा है और जन मुद्दे भी जुडते जा रहे हैं।

अब कोयला माफियाओं के नामों का खुलासा करने के अलावा भी कई मुद्दे और शिकायतें विरोध प्रदर्शन का हिस्सा बन गए हैं। इनमें वायु प्रदूषण, उच्च कर, नौकरी के अवसरों की कमी, कोयले की कमी, भ्रष्टाचार और असमानता जैसे मुद्दे शामिल हैं।

जन आक्रोश के जवाब में, मंगोलियाई कैबिनेट ने कोयला उद्योग भ्रष्टाचार के कारण राज्य के स्वामित्व वाली खनन कंपनी एर्डेन्स तवन टोल्गोई (ईटीटी) द्वारा कार्यान्वित नौ परियोजनाओं को अवर्गीकृत करने के लिए एक आपातकालीन प्रस्ताव पारित किया।

जहां तक प्रदर्शनकारियों की कोयला माफियाओं के नाम को उजागर करने की मांग है, तो उसपर सरकार के न्याय मंत्रालय का कहना है कि हमारे पास मध्यम और उच्च-स्तरीय ‘चोरों’ के नाम बताने का कानूनी अधिकार नहीं है। हमारा काम और सिद्धांत मंगोलिया की कानूनी, न्याय प्रणाली को मजबूत करना है।

इससे प्रदर्शनकारियों में आक्रोश और बढ़ रहा है। वे सीधी कार्रवाई की माँग कर रहे हैं।

फेसबुक लाइव पर Zuv.mn के साथ साक्षात्कार में, एक युवा महिला पर्दर्शनकारी ने कहा कि वर्तमान सरकार की कार्रवाई पर्याप्त नहीं होगी। यह मंगोलिया के भ्रष्टाचार का वास्तविक समाधान नहीं है।

प्रदर्शनकारी ने देश की सरकार से पूछा कि वह और उसके साथी अपनी उच्च शिक्षा और विदेशी भाषा कौशल के बावजूद आज के मंगोलिया में रहने के लिए संघर्ष क्यों कर रहे हैं? क्या उसे एक बेचैन जीवन जीने के लिए उसकी सरकार द्वारा छोड़ दिया गया है? एक ऐसे देश में जहां अन्य लोग लाखों की चोरी और भ्रष्टाचार कर रहे हैं।

मंगोलिया के लोग चाहते हैं कि ओयुन-एर्डीन प्रशासन उस भ्रष्ट प्रणाली को खत्म करे जिसने इन खनन समूहों, विशेष रूप से राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों को संरक्षण दे रखा है। मंगोलिया के लोग राजनीतिक बयानबाजी नहीं सुनना चाहते, वे न्याय मंत्रालय और देश के प्रधानमंत्री से भ्रष्टाचार के खिलाफ स्पष्ट कार्रवाई चाहते हैं।

बांग्लादेश में सरकार विरोधी विशाल प्रदर्शन

मंगोलिया की तरह ही बांग्लादेश में भी प्रदर्शन जारी है। बीते शनिवार,10 दिसंबर को ढाका में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की एक विशाल रैली हुई। यहां विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के नेतृत्व में शेख हसीना की सरकार के खिलाफ लाखों लोगों का प्रदर्शन हुआ। इससे साल 2009 के बाद पहली बार शेख हसीना बैकफुट पर आ गई हैं।

बीएनपी सत्ताधारी अवामी लीग के बजाय एक कार्यवाहक सरकार के तहत नए सिरे से चुनाव कराने के लिए प्रधानमंत्री हसीना के इस्तीफे की मांग कर रही है। पार्टी ने संदेह जताया है कि शेख हसीना प्रशासन चुनाव में धांधली कर सकता है। बांग्लादेश में अगले आम चुनाव 2024 में होने हैं।

बीएनपी की ढाका रैली से पहले पार्टी के आक्रोशित कार्यकर्ताओं के साथ पुलिस की झड़प हो गई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हुई और कई अन्य घायल हो गए। दो दिन बाद बीएनपी के नेताओं को भी गिरफ्तार कर लिया गया। कुल मिलाकर वहां अभी भी हालात बेकाबू हैं।

यह विशाल प्रदर्शन ऐसे समय पर हुआ है, जब बांग्‍लादेश की अर्थव्‍यवस्‍था के हालात लगातार खराब होते जा रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से तेल की कीमतें काफी बढ़ गई हैं। रोजमर्रा के जीवन में इस्‍तेमाल होने वाले सामानों की कीमतें भी बेलगाम हैं। यही वजह है कि बीएनपी के विरोध प्रदर्शन में देशभर से प्रदर्शनकारी पहुंचे।

बांग्‍लादेश में इस तनावपूर्ण हालात के बीच विशेषज्ञों ने भारत को अलर्ट रहने की सलाह दी है।

जहां एक तरफ पीएम शेख हसीना ने प्रदर्शनकारियों से आगाह किया है कि वे बीएनपी को सत्‍ता में न आने दें। वहीं पुलिस ने बीएनपी के कई वरिष्‍ठ नेताओं को अरेस्‍ट कर लिया है। इन लोगों के खिलाफ कई तरह के आरोप लगाए गए हैं। इससे पहले बुधवार को पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प में एक व्‍यक्ति की मौत हो गई थी।

इधर मानवाधिकार गुटों ने शेख हसीना की कार्रवाई का कड़ा विरोध किया है। बांग्‍लादेश में अमेरिका के राजदूत ने भी इस कार्रवाई पर चिंता जताई है। उन्‍होंने प्रशासन से पूरे मामले की जांच की मांग की है।

ईरान में हिजाब विरोधी प्रदर्शन

ईरान में हिजाब के खिलाफ बीते कई महीनों से संघर्ष जारी है। इसी विवाद में शामिल होने पर ईरान की सरकार ने एक और प्रदर्शनकारी, 23 साल के माजिद रेजा रेनवार्ड को गिरफ्तारी के महज 23 दिनों बाद ही फांसी दे दी।

यह पूरा विवाद शुरू हुआ 22 साल की ईरानी लड़की महसा की मौत से। दरअसल, ईरान की पुलिस ने महसा को इसलिए हिरासत में लिया क्योंकि उसने ठीक तरह से हिजाब नहीं पहना था। महसा की पुलिस कस्टडी में ही रहस्यमय तरीके से मौत हो गई। इसके बाद पूरे ईरान में महिलाओं का गुस्सा फूट पड़ा। सड़कों पर प्रदर्शन शुरू हुए और देखते ही देखते यह एक बड़े आंदोलन में तब्दील हो गया।

इस आंदोलन में दुनिया भर की महिलाओं ने सोशल मीडिया के माध्यम से भी हिस्सा लिया। ईरान की महिलाओं ने सड़कों पर सरेआम अपने हिजाब जलाए और इस घुटन से आजादी की मांग की। आंदोलन अभी भी ईरान में चल रहा है।

दुनियाभर में बदलाव के नए संकेत

दुनिया भर में सत्ताधारियों की निरंकुशता, बेरोजगारी, महँगाई, भ्रष्टाचार आदि से त्रस्त आम जनता लगातार संघर्षों में उतर रही है। जनता का आक्रोश नवउदारवादी नीतियों से धनपतियों की बढ़ती ऐश और जनता की बढ़ती तबाही के कारण फूट रहा है।

हालांकि स्वतःस्फूर्त फूट रहे आंदोलनों की एक सीमा है। संकट पूंजीवादी बेलगाम लूट के कारण व्यवस्थागत है, इसलिए एक सुसंगत योजना के साथ इसे व्यवस्था विरोधी परिवर्तनकामी संघर्ष में बदलने की जरूरत है। तभी इन संघर्षों को सही परिणाम तक पहुंचाया जा सकता है।

हालांकि ये आंदोलन भी सत्ता की निरंकुशता पर एक हद तक लगाम लगाने में कामयाब हो रहे हैं, जो बदलाव के नए संकेत दे रहे हैं।

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