काशी यात्रा: अंधेर नगरी चौपट राजा

यह स्थिति है कि मोदी जी के ‘एक देश – एक कानून’ की व्यवस्था को उनके ही लोक सभा क्षेत्र से नकारा जाता है। आखिर सफाई मित्रों के साथ इतनी बड़ी नाइंसाफी क्यों? क्या यही क्योटो का विकास मॉडल है?

जब मैं बिहार से क्योटो आया तो विकास का मॉडल देख कर भईया मैं रह गया दंग। आप जापान वाला क्योटो मत समझ लेना। मैं तो भारत के मोदी जी वाले क्योटो, अर्थात  बनारस की बात कर रहा हूँ। जैसे ही मैं बनारस जंक्शन से बाहर आया, कुव्यवस्था ने अपना रंग दिखलाया। देखा लोग सड़क पार करने के लिए मारामारी कर रहे हैं।

जैसे-तैसे मैंने भी सड़क पार किया। सड़क पार करते ही, सड़क पे ही ऑटो का स्टैंड बना हुआ है। मैंने सोचा शायद जापान में भी ऐसा ही होता होगा। फिर टेम्पू पर बैठ कर आगे बढ़ा तो देखा की स्टेशन से 300-400 मीटर की दूरी पर, सड़क पर ही सब्ज़ी मंडी लगी हुई है। पूरा सड़क जाम है। फिर सोच लिया, ठीक है भाई, यही जापान का मॉडल होगा। नहीं तो मोदी जी ऐसे  थोड़े ही न छोड़ देते। गंगा मईया की कसम खा कर बोले थे, बनारस को क्योटो बना दूंगा। 

 थोड़े समय में मैं पहुँच गया अस्सी, जहां पर मेरे रुकने की जगह थी। वहाँ थोड़ा आराम करने के बाद सोचा चलो अस्सी घाट घूम कर आएं। तो फिर मैं और मेरा दोस्त को निकल पड़े। जैसे ही घाट पर पहुंचे तो देखा लाइन से अलग-अलग नामों का घाट बना हुआ है। कहीं तुलसी घाट, कहीं जानकी घाट, राजा हरिश्चंद्र घाट। ऐसे 4 से 5 किलोमीटर तक घाट ए घाट बना हुआ है।

अस्सी घाट के शुरुआत में सुलभ सौचालय की व्यवस्था थी लेकिन जैसे-जैसे हम अलग-अलग घाट पर जाते रहे देखा  की आगे मल-मूत्र करने की कोई व्यवस्था नहीं थी। कुव्यवस्था का आलम यह था कि लोग कई जगह दीवार की आड़ ले कर पेशाब कर रहे थे। और वही पेशाब नाली से हो के गंगा में मिल रहा था। इतनी कुव्यवस्था के बावजूद गंगा के पानी के प्रति लोगों की आस्था देख कर मैं हैरान रह गया कि प्रत्यक्ष प्रमाण के बावजूद लोगों को एहसास नहीं है की गंगा मैली हो गयी है।

 फिर मुलाकात हो गयी बनारस की सफाई मित्रों से। मोदी जी के नेतृत्व में उन्हें यह मॉडल नाम मिला है। ज़ाहिर सी बात है की मित्र का नाम दिया है तो मित्र अपने काम में ज़्यादा पैसे थोड़े ही न लेंगे! इसलिए सफाई मित्र हैं जिन्हें 8-9 हज़ार रूपए मिलते हैं। संविदा सफाई कर्मचारी क्योंकि मित्र नहीं है तो उसे 20,000 से 22,000 और सरकारी मोहर वाले पक्के कर्मचारियों को 40,000 रूपए मिलते हैं।

यह स्थिति है कि मोदी जी के ‘एक देश – एक कानून’ की व्यवस्था को उनके ही लोक सभा क्षेत्र से नकारा जाता है। आखिर सफाई मित्रों के साथ इतनी बड़ी नाइंसाफी क्यों? क्या यही क्योटो का विकास मॉडल है?

 यदि बनारस की चर्चा हो तो यह बगैर बुनकर मज़दूर की चर्चा किये ख़त्म ही नहीं हो सकती। बुनकर मज़दूर की मज़दूरी आज मनरेगा के मज़दूरों से भी कम है। लगभग 18 साल पहले जो मज़दूरी मिलती थी वही मज़दूरी आज भी मिल रही है।

बनारस शहर की स्थिति देखने के बाद हमें लगा कि बनारस से 30-40 किमी दूर-दराज के गाँव का विकास भी देखा जाए। इसलिए हमने चंदौली के लगभग 25 गांवों का भ्रमण किया। इनमें जिगना, सैदोपुर, बराऊ, कोलपुरवा जैसे गाँव में दलित परिवारों के घर टूटे-फूटे स्थिति में देखने को मिले। कई जगह पानी की गंभीर समस्या नज़र आई जहाँ एक ही नल से कई घरों के लिए पानी ढो के ले जाया जा रहा था। लगभग सभी गाँवों में महिलाएं-बच्चियां शाम के समय में अँधेरा होते ही शौच के लिए सड़क के किनारे खड़ी मिलेंगी।

जहाँ योगी जी जैसे नेता के राज में शौचालय का जो वादा मोदी जी कर रहे थे, कि घर-घर शौचालय उन्होंने दे दिया है, और पूरा दलाल मीडिया जिसकी जवाबदेही बनती है की सच को सामने लाया जाए। वो कॉर्पोरेट के इशारे पर सिर्फ ताली बजवा रही है की बहुत विकास का काम मोदी-योगी राज में हो रहा है।

-सौरभ

‘संघर्षरत मेहनतकश’ अंक-48 (नवम्बर-दिसंबर, 2022) में प्रकाशित

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