ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दो साल: ‘राजभवन चलो’ -देशभर में किसान उतरे सड़क पर

एसकेएम ने राष्ट्रपति से अपील किया- केंद्र सरकार को किसानों से किया वादा याद दिलाएं। सरकार वादाखिलाफी करेगी तो आंदोलन को तेज करने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचेगा।
तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दो साल पूरे होने के मौके पर शनिवार को संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर देश भर में राजभवनों तक मार्च निकला और राज्यपाल के माध्यम से देश के राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन दिया गया। वहीं लखनऊ व देहरादून में किसान महापंचयत आयोजित हुआ।
किसान नेताओं ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार का अपने वादों को पूरा करने का कोई इरादा नहीं है और एक बड़े आंदोलन की जरूरत है। सरकार ने उन्हें लिखित में आश्वासन दिया था कि वह चर्चा करके फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए एक कानून लाएगी, लेकिन अब तक कुछ नहीं किया गया। किसानों का कहना था कि मोदी सरकार ने हमारे साथ धोखा किया है।
किसान लखीमपुर खीरी के हत्यारों को फांसी दो, हत्यारी सरकार मुर्दाबाद, आरोपी केंद्रीय मंत्री को बर्खास्त कर गिरफ्तार किया जाए, बिजली संशोधन बिल वापस लो, अडानी-अंबानी मुर्दाबाद आदि नारे लगा रहे थे। किसान कह रहे थे कि हम केद्र सरकार से एमएसपी तो लेकर रहेंगे। साथ ही किसानों की संपूर्ण कर्जामुक्ति चाहिए।

देशभर में प्रदर्शन, राष्ट्रपति को ज्ञापन
संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के राष्ट्रव्यापी”राजभवन चलो” कार्यक्रम के आह्वान पर किसानों ने राज्यों की राजधानियों, जिला मुख्यालयों और कई तहसील मुख्यालयों पर विरोध सभाएँ आयोजित की। अनुमान है कि पूरे भारत में 3000 से अधिक विरोध प्रदर्शन हुए।
किसान विरोधी भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने और किसानों की मांगों का ज्ञापन सौंपने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा के ‘राजभवन चलो’ आह्वान में शामिल होने के लिए 5 लाख से अधिक किसान और नागरिक सड़कों पर उतरे।
संयुक्त मोर्चा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि राज्यपालों के माध्यम से भारत के राष्ट्रपति को, केंद्र में सत्ताधारी दल की किसान विरोधी गतिविधियों में हस्तक्षेप करने और रोकने के लिए किसानों ने अपनी मांगों का ज्ञापन दिया।
चंडीगढ़, लखनऊ, पटना, कोलकाता, त्रिवेंद्रम, चेन्नई हैदराबाद, भोपाल, जयपुर, रायपुर, भोपाल, रांची, देहरादून और कई अन्य राज्यों की राजधानियों में लाखों लोगों का भारी जमावड़ा देखा गया। संयुक्त किसान मोर्चा का अनुमान है कि 5 लाख से अधिक किसान, एक सामूहिक शक्ति का बड़े पैमाने पर प्रदर्शन और किसानों की सभी मांगों के पूरा होने तक संघर्ष जारी रखने के संकल्प के साथ, सड़कों पर उतरे।

13 महीने का आंदोलन, सरकार के वायदे के बाद धरना समाप्त
ज्ञात हो कि किसानों ने जनविरोधी कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर 13 महीने तक दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले रहे और विभिन्न तरीके से विरोध प्रदर्शन किया। जुझारू आंदोलन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल नवंबर में तीनों कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की थी। उसके बाद धरना समाप्त किया गया था।
संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के नेता ने कहा, ‘‘उन्होंने हमें लिखित में आश्वासन दिया था और हमारी कई मांगों पर सहमति जतायी थी, लेकिन कुछ भी नहीं किया गया।’’
किसान नेताओं ने कहा कि सरकार ने साबित कर दिया है कि वह धोखेबाज है जिसने देश के किसानों को धोखा दिया है। वे कॉरपोरेट की रक्षा कर रहे हैं। उन्होंने साबित कर दिया है कि हमारी मांगों को पूरा करने का उनका कोई इरादा नहीं है। आंदोलन की अगुआई करने वाले ‘एसकेएम’ ने आंदोलन की आगे की रणनीति तय करने के लिए 8 दिसंबर को एक बैठक बुलाई है।

26 नवंबर संविधान दिवस
संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि भारत में 26 नवंबर की तारीख का विशेष महत्व है। यह संविधान दिवस है, जब हमारे संविधान पर हस्ताक्षर किए गए जो बाद में देश के कानूनों की नींव बनी।
26 नवंबर 2020 को ही एसकेएम ने ऐतिहासिक “दिल्ली चलो” आंदोलन शुरू किया था, जो दुनिया का सबसे लंबा और सबसे बड़ा किसान आंदोलन बन गया, और किसानों को उनकी जमीन और आजीविका से बेदखल करने के लिए कॉर्पोरेट-राजनीतिक गठजोड़ के खिलाफ किसानों की आश्चर्यजनक जीत हुई।
26 नवंबर को राष्ट्रव्यापी “राजभवन मार्च” किसानों के विरोध के अगले चरण की शुरुआत का प्रतीक है।

प्रदर्शन की कुछ झलकियां
लखनऊ में विशाल किसान महापंचायत
संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में शनिवार को ईको गार्डन में करीब 15 हजारों किसान प्रदेशभर से पहुंचे हैं। किसानों का कहना है कि सरकार ने जो वादा किया था, वह जल्द से जल्द पूरा करे। राजभवन की तरफ किसानों ने कूच नहीं किया और महापंचायत की समाप्ति की घोषणा कर दी गई।

रैली में किसान नेता राकेश टिकैत, पूर्व सांसद हन्नान मोल्लाह, मुकुट सिंह समेत कई तमाम नेताओं और भारी संख्या में किसानों ने आवाज बुलंद की। इको गार्डन में भारतीय किसान यूनियन, उ.प्र किसान सभा समेत 50 से ज्यादा छोटे-बड़े संगठन शामिल हुए।
इस दौरान नेताओं ने किसानों से आह्वान किया कि बड़ी लड़ाई की तैयारी करो और संगठन को और मजबूत करो। जल्द ही सरकार से दो-दो हाथ करने हैं क्योंकि सरकार ने कागजों पर लिखकर वादा करने के बावजूद उनका पालन नहीं किया है। टिकैत ने किसानों से ट्रैक्टर और ट्विटर दोनों ही चलाना सीखने की अपील की है।
पंजाब:
पंजाब की 33 किसान जत्थेबंदियों के नेताओं और उनके साथ मोहाली पहुंचे सूबे के हजारों किसानों को शनिवार को चंडीगढ़ में राजभवन तक मार्च करने से रोक गया। पूरे पंजाब के सैकड़ों किसानों ने गुरुद्वारा श्रीअंब साहिब के सामने मैदान में एक बड़ी रैली निकाली और रैली के बाद राजभवन चंडीगढ़ की ओर कूच किया। चंडीगढ़ प्रशासन ने मोहाली की सीमा पर बैरिकेडिंग करके किसानों का शहर में प्रवेश रोक दिया। इसके बाद किसानों द्वारा वाईपीएस चौक पर धरना दिया गया और राज्यपाल के एडीसी ने मोहाली-चंडीगढ़ सीमा पर पहुंचकर किसानों से ज्ञापन प्राप्त किया।

अधिकारियों ने किसान जत्थेबंदियों के नेताओं को भरोसा दिलाया कि उन्हें राज्यपाल के साथ बैठक में शामिल होने के लिए जल्द बुलाया जाएगा। इस मौके पर किसान नेताओं का 31 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मिलने के लिए रवाना हुआ।इसके बाद 33 जत्थेबंदियों ने मोहाली-चंडीगढ़ सीमा पर इस आंदोलन को शांतिपूर्वक समाप्त कर दिया। हालांकि जत्थेबंदियों ने अब आठ दिसंबर को एक बैठक बुलाने का फैसला लिया है, जिसमें अगली रणनीति तैयार की जाएगी।
हरियाणा:
हरियाणा के किसानों ने एक बार फिर सड़क पर उतर कर हुंकार भारी। पंचकूला की सड़कों पर उतरे पूरे हरियाणा से आए किसानों ने मोदी सरकार को धोखेबाज करार दिया। सरकार को चेतावनी देते हुए किसानों ने कहा कि एक बार फिर बड़े आंदोलन से पहले यह किसानों का एक रिहर्सल है। राज्य में पंचायत चुनावों के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में आए किसानों को देख प्रशासन का भी दम फूल गया।

छत्तीसगढ़:
शनिवार को संयुक्त किसान मोर्चा और छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ से संबद्ध संगठनों ने रायपुर में प्रदर्शन किया। किसानों ने घड़ी चौक से राजभवन तक मार्च कर नारेबाजी की। राजभवन पहुंचे किसानों ने राज्यपाल के सचिवालय को राष्ट्रपति को संबोधित एक मांगपत्र भी सौंपा।
राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपकर आग्रह किया है, केंद्र सरकार अपने वादे के मुताबिक किसानों की मांगों को पूरा करने के लिए तुरंत ठोस कदम उठाये।

राजस्थान:
संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर राजस्थान के किसान मांगों को लेकर शनिवार को जयपुर में एक बार फिर सडक़ पर उतरे। किसानों ने पेंशन, एमएसपी, बिजली संशोधन विधेयक 2022 को वापस लेने और उनके खिलाफ दर्ज सभी झूठे मामलों सहित अन्य मांगों को पूरा करने के लिए शहर में विरोध मार्च निकाला।

इस दौरान उनकी पुलिस के साथ जमकर धक्का मुक्की भी हुई। इसके बाद आपनी मांगों के समर्थन में नारेबाजी करते हुए किसानों ने राजभवन की ओर कूच किया। सिविल लाइंस फाटक के पास पुलिस ने उन्हें रोका और उनकी समझाइश की जिसके बाद पांच सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल राजभवन जाकर ज्ञापन देने के लिए तैयार हुआ। किसानों के इस मार्च को केन्द्रीय श्रमिक संगठनों का भी समर्थन मिला है।
मध्यप्रदेश:
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में संयुक्त किसान मोर्चा, मध्य प्रदेश से संबद्ध किसान संगठनों से जुड़े हजारों किसानों ने यादगारे शाहजहानी पार्क में सभा कर राजभवन की ओर मार्च शुरू किया जिसे नीलम पार्क पर पुलिस द्वारा रोका गया। किसानों का कहना था कि किसान संघ के किसानों से मुख्यमंत्री मिल सकते है तो किसान संगठनों से क्यों नहीं?

झारखंड:
रांची में किसान संघर्ष समन्वय समिति एवं श्रमिक संगठनों की ओर से मार्च निकाला गया। किसान आंदोलन के एक साल पूरे होने के मौके पर किसानों ने कहा, अभी हमारी कई मांगे बाकि हैं। रांची के जिला स्कूल से यह मार्च निकला जो राजभवन तक गया। यहां लोगों ने अपनी बात रखी।

उत्तराखंड:
पूर्व ऐलान के तहत किसानों ने 26 नवंबर को देहरादून में महापंचायत की। शनिवार को देहरादून में अलग-अलग संगठनों के पहुंचे हजारों किसानों ने अपनी मुख्य मांगे रखी। महापंचायत के अंत में सिटी मजिस्ट्रेट को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा।

किसानों की प्रमुख माँगें-
- स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के आधार पर सभी फसलों के लिए सी-2+ 50% के फार्मूला से MSP की गारंटी का कानून बनाया जाए। केन्द्र सरकार ने MSPपर जो समिति बनाई है वह और उसका घोषित एजेंडा दोनों किसान संगठनों की मांग के खिलाफ है। इस समिति को रद्द कर, MSP पर सभी फसलों की कानूनी गारंटी के लिए, किसानों के उचित प्रतिनिधित्व के साथ नई समिति का गठन किया जाए।
- खेती में बढ़ रही लागत और फसलों का लाभकारी मूल्य नहीं मिलने के कारण 80% से अधिक किसान भारी कर्ज में फंस गए हैं। ऐसे में, सभी किसानों के सभी प्रकार के कर्ज माफ किए जाएं।
- बिजली संशोधन विधेयक- 2022 को वापस लिया जाए। केंद्र सरकार ने 9 दिसंबर 2021 को संयुक्त किसान मोर्चा को लिखे पत्र में यह लिखित आश्वासन दिया था कि, “मोर्चा से चर्चा होने के बाद ही बिल संसद में पेश किया जाएगा।” इसके बावजूद, केंद्र सरकार ने बिना कोई विमर्श के यह विधेयक संसद में पेश किया।
- लखीमपुर खीरी जिला के तिकोनिया में चार किसानों और एक पत्रकार की हत्या के मुख्य साजिशकर्ता केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाए और गिरफ्तार करके जेल भेजा जाए। वहीं उस मामले में जो निर्दोष किसान जेल में कैद हैं, उनको तुरन्त रिहा किया जाए और उनके ऊपर दर्ज फर्जी मामले तुरन्त वापस लिए जाएं।
- सूखा, बाढ़, अतिवृष्टि, फसल संबंधी बीमारी, आदि तमाम कारणों से होने वाले नुकसान की पूर्ति के लिए सरकार सभी फसलों के लिए व्यापक एवं प्रभावी फसल बीमा लागू करे।
- सभी मध्यम, छोटे और सीमांत किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए पांच हजार रुपए प्रति महीने की किसान पेंशन दिया जाए।
- किसान आन्दोलन के दौरान भाजपा शासित प्रदेशों व अन्य राज्यों में किसानों के ऊपर जो फर्जी मुकदमे दर्ज किये गये हैं, उन्हें तुरंत वापस लिया जाए।
- किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए सभी किसानों के परिवारों को मुआवजे का भुगतान और उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाए। शहीद किसानों के लिए सिंघु मोर्चा पर स्मारक बनाने के लिए भूमि का आवंटन किया जाए।

सरकार को आंदोलन तेज करने की दी गई चेतावनी
किसान संगठनों ने अपने मांगपत्र के साथ यह भी साफ कर दिया है कि वे इस मामले को लेकर शांत नहीं बैठने वाले। संयुक्त किसान मोर्चा ने राष्ट्रपति को संबोधित कर कहा है कि वे केंद्र सरकार को किसानों से किया वादा याद दिलाएं। अगर सरकार वादाखिलाफी करती है तो किसानों के पास आंदोलन को तेज करने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचेगा।