बीएसएनएल के साथ किए गए भेदभावपूर्ण व्यवहार; पिछले पांच वर्षों से लंबित है वेतन संशोधन

बीएसएनएल और एमटीएनएल के 92,000 से अधिक कर्मचारियों को 31 जनवरी, 2020 को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) के तहत नौकरी से सेवानिवृत्त कर दिया गया था।

कोलकाता: 1 अक्टूबर 2000 को भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के निगम बनने के बाद से कर्मचारियों और पेंशनधारियों के लिए कठिनाइयां बनी हुई हैं। प्रबंधन और केंद्र वेतन संशोधन पर ख़ामोश है जो 1 जनवरी 2017 से बकाया है।

यदि वेतन संशोधित किया गया होता, तो बीएसएनएल में शामिल दूरसंचार विभाग (डीओटी) के पेंशनधारियों को भी लाभ होता। मृत पेंशनधारियों के परिजन इस बात को लेकर संशय में हैं कि वे संशोधित पेंशन से लाभान्वित होंगे और इससे लाभान्वित होंगे भी कि नहीं।

बड़े पैमाने पर नुक़सान के बाद कंपनी को समय के साथ व्यवहार्य बनाने के लिए लक्षित योजना के हिस्से के रूप में सबसे ज़्यादा स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) के तहत बीएसएनएल और महानगर टेलीफ़ोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) के 92,000 से अधिक कर्मचारियों को 31 जनवरी, 2020 को नौकरी से सेवानिवृत्त कर दिया गया था।

वर्तमान में, कंपनी के पास लगभग 62,000 कार्यकारी और गैर-कार्यकारी कर्मचारी हैं, जिनमें एमटीएनएल में कुछ ही हज़ार शामिल हैं, जिसका प्रबंधन बीएसएनएल द्वारा विलय के लंबित होने के कारण किया जा रहा है।

सार्वजनिक उपक्रम विभाग (डीपीई) द्वारा 3 अगस्त, 2017 को जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार वेतन संशोधन एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है, जो पिछले तीन वर्षों में लाभ अर्जित करने के हिसाब से वेतन संशोधन जुड़ा है। डीपीई का कहना है कि दूरसंचार विभाग को केंद्रीय मंत्रिमंडल से बीएसएनएल के लिए छूट मिलनी चाहिए और कैबिनेट नोट जारी करके प्रक्रिया को गति देनी चाहिए।

दिलचस्प बात यह है कि तत्कालीन डीओटी सचिव अरुणा सुंदरराजन ने 20 मार्च, 2018 को डीपीई को जवाब दिया था जिसमें कहा गया था कि बीएसएनएल एक रणनीतिक सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई होने के कारण सामर्थ्य खंड को आकर्षित नहीं करेगी और इसलिए डीपीई को वेतन संशोधन प्रस्ताव को मंज़ूरी देनी चाहिए। हालांकि, डीपीई का विचार डीओटी से अलग है और इसका कहना है कि दिशानिर्देशों का खंड 3.2.7 (V) बीएसएनएल पर लागू नहीं होगा।

भारतीय टेलकम एम्पलाई यूनियन (बीटीईयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीवीएस सत्यनारायण द्वारा 28 अक्टूबर को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को लिखे गए एक पत्र से पता चलता है कि डीओटी ने चौंकाने वाला क़दम उठाते हुए 27 अप्रैल 2018 को बीएसएनएल को मान्यता प्राप्त यूनियनों से जुड़े ग़ैर-कार्यकारी कर्मचारियों के लिए वेतन पर बातचीत शुरू करने के लिए एक पत्र में सहमति दी थी।

बीएसएनएल के तत्कालीन अध्यक्ष अनुपम श्रीवास्तव ने सितंबर 2018 में दूरसंचार विभाग को प्रबंधन की वेतन में संशोधन करने की इच्छा के बारे में जानकारी दी थी। हालांकि, कंपनी-यूनियनों की वार्ता 17 नवंबर, 2021 तक के लिए अचानक स्थगित कर दी गई थी।

सत्यनारायण का यूनियन भारतीय मज़दूर संघ (बीएमएस) से संबद्ध है। उन्होंने सीतारमण को बताया कि बीएसएनएल ने 18 नवंबर, 2021 को फिर से बातचीत शुरू की जिसमें यह उल्लेख किया गया था कि ग़ैर-अधिकारियों के लिए वेतन संशोधन अधिकारियों के वेतन संशोधन के साथ “अंतर्संबंधित” है और “केंद्रीय मंत्रिमंडल से केस-स्पेसिफिक अप्रूवल जरूरी है”।

रिकॉर्ड के लिए, यह उल्लेख किया जा सकता है कि मान्यता प्राप्त और ग़ैर-मान्यता प्राप्त यूनियनों ने वेतन संशोधन में 15% फिटमेंट की मांग की है। एक स्तर पर, तत्कालीन संचार राज्य मंत्री और वर्तमान जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने 0% फिटमेंट का सुझाव दिया, जिसके तहत अंतिम लाभ बहुत कम होगा। यूनियनों ने सिन्हा से लिखित में अपना प्रस्ताव देने का अनुरोध किया लेकिन नहीं मिला।

बीएसएनएल कर्मचारी यूनियन (बीएसएनएलईयू) के अध्यक्ष अनिमेष मित्रा का कहना है कि वेतन संशोधन पिछले पांच वर्षों से लंबित है, लेकिन “केंद्र गंभीर नहीं है। यह घाटे के लिए कर्मचारियों को दोष देने में अधिक रुचि रखता है लेकिन बीएसएनएल के साथ किए गए भेदभावपूर्ण व्यवहार पर पूरी तरह से चुप है।

मित्रा का आरोप है कि “केंद्र निजी कंपनियों को बढ़ावा देना चाहता है। बीएसएनएल को 4जी स्पेक्ट्रम से वंचित कर दिया गया और इसकी सुविधाओं के बेहतरी के लिए इसके कई टेंडर को डीओटी के कहने पर रद्द करना पड़ा। रूरल टेलीफोनी और दूरसंचार विभाग को दी जाने वाली सेवाओं के लिए वायबिलिटी गैप फंडिंग सहित बड़ी रकम महीनों तक जारी नहीं की गई थी।”

बीटीईयू के महासचिव आरसी पांडे द्वारा केंद्रीय संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव को 18 सितंबर 2021 को लिखे गए एक पत्र में उल्लेख किया गया है कि दूरसंचार विभाग द्वारा बीएसएनएल पर बकाया 13 आइटम का लगभग 30,000 करोड़ रुपये है। 2014-15 से रूरल टेलीफोनी के लिए वायबिलिटी गैप फंडिंग के लिए 13,789 करोड़ रुपये सबसे ज़्यादा है; सरेंडर किए गए वाईमैक्स स्पेक्ट्रम के लिए ब्याज के रूप में 5,850 करोड़ रुपये; सीडीएमए स्पेक्ट्रम के सरेंडर के लिए 2,472 करोड़ रुपये; अधिक भुगतान किए गए पेंशन अंशदान की वापसी के लिए 1,996 करोड़ रुपये; भारत नेट परियोजना के लिए 1,051 करोड़ रुपये; और 2,998 करोड़ रुपये बीएसएनएल द्वारा शामिल किए गए डीओटी कर्मचारियों की लीव इनकैशमेंट की प्रतिपूर्ति के लिए है।

बीएसएनएलईयू के पूर्व वरिष्ठ पदाधिकारी स्वपन चक्रवर्ती कहते हैं, “जब रोज़मर्रा के ख़र्च में तेज़ी से वृद्धि हुई है और रुपया काफ़ी कमज़ोर हो गया है, तो वेतन संशोधन और पेंशनधारियों के लिए परिणामी लाभ पर अपनी चुप्पी के असर को केंद्र महसूस नहीं कर रहा है।”

चक्रवर्ती ने आरोप लगाया, “25 सितंबर, 2000 को दूरसंचार मंत्रालय द्वारा अधिसूचित पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ के बारे में तत्कालीन सरकार की अधिसूचना का केंद्र चुपके से उल्लंघन कर रहा है”।

अधिसूचना के अनुसार, कर्मचारी बीएसएनएल में शामिल होने के बाद भी सरकार की पेंशन/पारिवारिक पेंशन की योजना के हकदार होंगे। पेंशन का भुगतान सरकार करेगी। सरकार के पास जमा किए जाने वाले पीएसयू [बीएसएनएल] से पेंशन अंशदान प्राप्त करने की व्यवस्था की जाएगी। भारत के संविधान के अनुच्छेद 309 के तहत शक्तियों का उपयोग करते हुए नियम 37 में संशोधन करके पेंशन ढांचे को सीसीएस पेंशन नियमों का हिस्सा बनाया गया है।

वरिष्ठ बीटीईयू नेता घोष दस्तीदार कहते हैं, “दूरसंचार कर्मचारियों में काफ़ी असंतोष है। सरकार को उनकी वास्तविक मांगों को निपटाने के स्पष्ट इरादे के साथ बातचीत फिर से शुरू करनी चाहिए।”

न्यूजक्लिक से साभार

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