13 नवंबर को दिल्ली में मज़दूर आक्रोश रैली; देशभर से दिल्ली पहुँच रहे हैं हजारों मज़दूर

मज़दूर विरोधी नए लेबर कोड, निजीकरण व जनविरोधी नीतियों के विरोध और मज़दूर अधिकारों की आवाज़ सरकार के बहरे कानों तक पहुँचने के लिए यह देशव्यापी प्रदर्शन व रैली हो रही है।

दिल्ली। मज़दूर विरोधी नए लेबर कोड, निजीकरण और मज़दूर अधिकारों के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करने हेतु देश भर के मज़दूर 13 नवंबर को राजधानी दिल्ली पहुँचने लगे हैं। मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने ‘मज़दूर आक्रोश रैली’ का आह्वान किया है। रविवार को दिल्ली के रामलीला मैदान से राष्ट्रपति भवन तक मज़दूरों की आवाज़ बुलंद होगी।

रैली में शामिल होने के लिए दिल्ली एनसीआर के साथ उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान, बिहार, बंगाल, असम, छत्तीसगढ़ से लेकर कर्नाटका, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात आदि राज्यों से मज़दूर पहुँच रहे हैं।

इससे पूर्व इस मुहिम के तहत कोलकाता, हैदराबाद व दिल्ली में तीन कन्वेन्शन हुए; देश के विभिन्न हिस्सों में मासा के घटक संगठनों द्वारा और संयुक्त रूप से फैक्ट्री गेटों, मज़दूर बस्तियों और खेतों-खदानों आदि में व्यापक प्रचार अभियान चलाया गया। इसी के साथ सोशल मीडिया पर भी लगातार प्रचार के साथ माहौल बनाने का काम काफी आवेग और ऊर्जा के साथ हुआ।

ज्ञात हो कि मोदी सरकार द्वारा लंबे संघर्षों के दौरान हासिल 44 श्रम क़ानूनों को खत्म करके मनमाने तरीके से मालिकों के हित में 4 लेबर कोड बनाए गए हैं, उसकी नियमावलियाँ भी असंवैधानिक रूप से पारित हो चुकी हैं। देश के तमाम राज्यों ने भी इसकी तैयारी पूरी कर ली है।

इसी के साथ जनता के खून-पसीने से खड़े सरकारी-सार्वजनिक उद्योगों-संपत्तियों को मोदी सरकार तेजी से बेच रही है। महँगाई, बेरोजगारी बेलगाम हो चुकी है। आम जनता के जीने के साधन भी छिन रहे हैं और अदानियों-अंबानियों सहित देशी-विदेशी पूँजीपतियों की दौलत बेहिसाब बढ़ती जा रही है।

ऐसे में सरकार के बहरे कानों तक अपनी आवाज़ पहुँचने के लिए ‘मज़दूर आक्रोश रैली’ हो रही है।

देश के 16 संग्रामी मज़दूर संगठनों के साझा मंच मासा का मानना है कि आज के दौर में मज़दूर वर्ग पर बड़े हमले के खिलाफ जिस व्यापक संघर्ष की जरूरत है वह किसी रस्मी कवायद से पूरी नहीं हो सकती, बल्कि मज़दूर आंदोलन को निरंतर, जुझारू और निर्णायक संघर्ष की दिशा में ले जाना पड़ेगा।

मासा की माँग सिर्फ चार लेबर कोड को वापस कराने का नहीं है बल्कि उसका स्पष्ट मत है कि मज़दूरों के हित में श्रम कानूनों में परिवर्तन, छँटनी-बंदी पर क़ानूनन रोक, नीम ट्रेनी-फिक्स्डटर्म जैसे अस्थाई और संविदा आधारित रोजगार पर प्रतिबंध, हर हाथ को सम्मानजनक काम, स्थाई-अस्थाई हर तबके के मज़दूरों को सम्मानजनक वेतन, सामाजिक और कार्यस्थल की सुरक्षा मिले। सरकारी-सार्वजनिक संपत्तियों-उद्योगों को बेचने पर लगाम लगे।

मासा की केन्द्रीय माँगें-

  1. मज़दूर विरोधी चार श्रम संहिताएं तत्काल रद्द करो! श्रम कानूनों में मज़दूर-पक्षीय सुधार करो!
  2. बैंक, बीमा, कोयला, गैस-तेल, परिवहन, रक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि समस्त सार्वजनिक क्षेत्र-उद्योगों-संपत्तियों का किसी भी तरह का निजीकरण बंद करो!
  3. बिना शर्त सभी श्रमिकों को यूनियन गठन व हड़ताल-प्रदर्शन का मौलिक व जनवादी अधिकार दो! छटनी-बंदी-ले ऑफ गैरकानूनी घोषित करो!
  4. ठेका प्रथा ख़त्म करो, फिक्स्ड टर्म-नीम ट्रेनी आदि संविदा आधारित रोजगार बंद करो – सभी मज़दूरों के लिए 60 साल तक स्थायी नौकरी, पेंशन-मातृत्व अवकाश सहित सभी सामाजिक सुरक्षा और कार्यस्थल पर सुरक्षा की गारंटी दो! गिग-प्लेटफ़ॉर्म वर्कर, आशा-आंगनवाड़ी-मिड डे मिल आदि स्कीम वर्कर, आई टी, घरेलू कामगार आदि को ‘कर्मकार’ का दर्जा व समस्त अधिकार दो!
  5. देश के सभी मज़दूरों के लिए दैनिक न्यूनतम मजदूरी ₹1000 (मासिक ₹26000) और बेरोजगारी भत्ता महीने में ₹15000 लागू करो!
  6. समस्त ग्रामीण मज़दूरों को पूरे साल कार्य की उपलब्धता की गारंटी दो! प्रवासी व ग्रामीण मज़दूर सहित सभी मज़दूरों के लिए कार्य स्थल से नजदीक पक्का आवास-पानी-शिक्षा-स्वास्थ्य-क्रेच की सुविधा और सार्वजनिक राशन सुविधा सुनिश्चित करो!
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