परिचर्चा में साझे संघर्ष पर जोर: 13 नवंबर को दिल्ली में मज़दूर आक्रोश रैली को सफल बनाओ!

देशभर के जुझारू व संग्रामी संगठनों को मज़दूर वर्ग के मुकम्मल संघर्ष की दिशा में साझे तौर पर आगे बढ़ना होगा! मज़दूरों की आवाज़ को देश के राष्ट्रपति तक पहुंचाना होगा!
दिल्ली। मज़दूर आंदोलन की चुनौतियों पर मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने बुधवार को दिल्ली के गांधी पीस फाउंडेशन में एक परिचर्चा आयोजित की। इसमें मासा के घटक संगठनों के प्रतिनिधि, विरादर संगठन और प्रगतिशील तबके के साथी उपस्थित रहे। मासा की पहल का स्वागत किया।
परिचर्चा में यह बात उभरकर आई कि आज के दौर में मज़दूर वर्ग पर बड़े हमले के खिलाफ जिस व्यापक संघर्ष की जरूरत है वह किसी रस्मी कवायद से नहीं हो सकता, बल्कि मज़दूर आंदोलन को निरंतर, जुझारू और निर्णायक संघर्ष की दिशा में ले जाना पड़ेगा।
इसी कड़ी में आगामी 13 नवंबर को मासा के आह्वान पर दिल्ली में “मज़दूर आक्रोश रैली’ के तहत रामलीला मैदान से राष्ट्रपति भवन कूच के कार्यक्रम को सफल बनाने पर आम सहमति बनी। मज़दूर विरोधी चार लेबर कोड रद्द करने, निजीकरण पर लगाम लगाने और मज़दूर हक को हासिल करने के लिए साझे संघर्ष को तेज करने पर बल दिया गया।

मासा की ओर से मज़दूर सहयोग केंद्र के कॉमरेड अमित ने मासा के गठन और उसकी अबतक की संग्रामी यात्रा की चर्चा कर कहा कि देशभर के मज़दूर आंदोलन के जुझारू संगठनों ने 2016 में मासा का गठन किया। मासा ने 3 मार्च 2019 को दिल्ली के रामलीला मैदान से संसद भवन तक एक बड़ी रैली करके अपनी आवाज बुलंद की थी।
कोविड-पाबंदियों के दौर में जब मोदी सरकार के हमले तेज हो रहे थे, संघर्षों को रोकने के लिए तमाम अवरोध खड़े हो रहे थे, तब भी मासा ने अपनी आवाज निरंतरता में जारी रखी। और अब 13 नवंबर को राजधानी में मज़दूरों की आवाज़ बुलंद होगी।
एसडब्लूसीसी, पश्चिम बंगाल के अमिताभ भट्टाचार्य ने मज़दूर आंदोलन की वर्तमान चुनौतियों की चर्चा करते हुए कहा कि स्थापित केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें अपनी कमजोरी, समझौतापरस्त नीति के चलते मज़दूरों के ऊपर बढ़ते दमन और छिनते अधिकारों के बीच साल भर में एक या दो हड़तालों की कुछ रस्में पूरी करने तक आंदोलन को सीमित कर दिया। जिसने मज़दूरों में निराशा भी बढ़ाई।
ऐसे में देशभर के जुझारू व संग्रामी संगठनों को मुकम्मल संघर्ष की दिशा में साझे तौर पर आगे बढ़ाना होगा। उसी दिशा में साझी पहल के साथ मासा का गठन मज़दूर आंदोलन के लिए आज के दौर की अहम जरूरत की देन है।
न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव (NTUI) के गौतम मोदी ने मासा की पहल का स्वागत करते हुए आज साझे संघर्ष की जरूरत को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि पूंजीपतियों की कोशिश है कि स्थाई और ठेका मजदूरों को एक नहीं होने दिया जाए। उन्होंने बताया कि कैसे नए लेबर कोड मज़दूरों के लिए खतरनाक हैं। इसके विरोध में देशव्यापी मज़दूर आंदोलन खड़ा करने की जरूरत आज पहले से काफी ज्यादा है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सरोज गिरी ने कहा कि आज के समय में समाज में मज़दूरों की गलत छवि बनाने में मीडिया व पूँजीपति वर्ग बेहद सक्रिय है। उन्होंने अस्मितवादी राजनीति के खिलाफ वर्गीय राजनीति को स्थापित कर आगे बढ़ने की जरूरत पर जोर दिया।





ग्रामीण मजदूर यूनियन के कॉमरेड संतोष ने कहा कि मासा का मानना है कि आज के इस कठिन चुनौतीपूर्ण दौर में सभी तबके के मेहनतकशों को गोलबंद करके एक सशक्त आंदोलन को खड़ा करना होगा। मासा न केवल संगठित क्षेत्र में बल्कि असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले ग्रामीण मज़दूर, नरेगा, निर्माण मज़दूर और गैर-कृषि काम में लगे मज़दूरों की भी आवाज बना है।
इंकलाबी मज़दूर केंद्र के श्याम वीर ने कहा कि यह दौर चाहें कितना भी कठिन है लेकिन मज़दूर आबादी छँटनी, बंदी, रोजगार, महँगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि के खिलाफ लगातार संघर्षों में डटी हुई है। मारुति-होंडा-प्रिकोल-एलाइड निप्पन, भगवती-माइक्रोमैक्स, इंटरार्क, बेलेसोनिक, सनबीम से लेकर बेंगलुरु में गारमेंट मज़दूरों, केरल के चाय बागान मज़दूरों, आर्डिनेंस-खदान श्रमिकों, आशा-आंगनवाड़ी कर्मियों, प्लेटफ़ॉर्म और गिग मज़दूरों का जुझारू संघर्ष जारी है।
मजदूर एकता केंद्र के कॉमरेड दिनेश ने असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की दशा को रखा। उन्होंने बताया कि समाज की सबसे बड़ी आबादी होने के बावजूद वह सबसे उत्पीड़ित, दमित है, जिनको संगठित करने की जितनी ज्यादा जरूरत है, चुनौतियाँ भी उतनी अधिक है।
क्रांतिकारी मजदूर मोर्चा के कॉमरेड सत्यवीर ने मज़दूर आंदोलन की चुनौतियों को रेखांकित करते हुए कहा कि मज़दूरों के रहने की जो जगहें हैं, बस्ती-झुग्गी-झोपड़ियाँ हैं, उसको फोकस करके काम करने की जरूरत है। उन्होंने मासा की पहल को दिशा के हिसाब से सही बताते हुए उसका समर्थन किया।
जन संघर्ष मंच हरियाणा के कॉमरेड रघुवीर सिंह ने जाति व धर्म के नाम पर नफ़रत के जुनूनी माहौल की चर्चा करते हुए कहा कि मज़दूरों को राजनीतिक रूप से सचेत करके क्रांतिकारी दिशा में आगे ले जाने की जरूरत है और इसके लिए व्यापक कार्यभार तय करने पर बल दिया।
मोर्चा पत्रिका से कॉमरेड अर्जुन प्रसाद सिंह ने वैचारिक जरूरत को रेखांकित करके कहा कि विचारधारा पर केंद्रित करके मज़दूर आंदोलन को वास्तव में आगे बढ़ाया जा सकता है, जुझारू अर्थवाद से लड़ाई को वास्तविक संघर्ष में नहीं बदला जा सकता है। उन्होंने मजदूरों को एक मजबूत संगठन बनाने के लिए जागृत करने की आवश्यकता को चिन्हित किया।
परिचर्चा के अंत में मासा की ओर से आइएफटीयू के कॉमरेड सिद्धांत ने कहा कि अब जब मोदी सरकार लेबर कोड लागू करने के लिए पूरी मुस्तैद है, तब मासा ने 13 नवंबर को मज़दूर आक्रोश रैली का आह्वान किया है। जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से मज़दूरों की भागीदारी होगी और मज़दूरों के हक़ की आवाज़ देश के सर्वोच्च पद पर आसीन राष्ट्रपति महोदय के कानों तक पहुंचाई जाएगी।
13 नवंबर की रैली को सफल बनाने के तेवर के साथ कहा कि मासा का स्पष्ट मत सिर्फ चार लेबर कोड को वापस करने का नहीं है बल्कि मज़दूरों के हित में श्रम कानूनों में परिवर्तन, छँटनी-बंदी पर क़ानूनन रोक, नीम ट्रेनी-फिक्स्डटर्म जैसे अस्थाई और संविदा आधारित रोजगार पर प्रतिबंध, हर हाथ को सम्मानजनक काम, स्थाई-अस्थाई हर तबके के मज़दूरों को सम्मानजनक वेतन, सामाजिक और कार्यस्थल की सुरक्षा मिले। सरकारी-सार्वजनिक संपत्तियों-उद्योगों को बेचने पर लगाम लगे।