क्या दीवाली की खुशी घरेलु कामगारों के साथ भी मनाई गयी?

घरों में काम करने वाली श्रमिकों को दीवाली पर सम्मानजनक बोनस की माँग पर संग्रामी घरेलू कामगार यूनियन द्वारा दक्षिण दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में चलाए गए प्रचार अभियान में विभिन्न तरीके के अनुभव मिले।

आम तौर पर लोगों के घरों में काम करने वाली कामगारों के सामने तरह-तरह की समस्याएं हैं। यहाँ तक कि सम्मान का भी संकट है। इनको न तो कामगार का दर्ज प्राप्त है, न ही उचित वेतन और न ही किसी प्रकार की सामाजिक व कार्यस्थल की सुरक्षा।

श्रमिकों को प्राप्त बोनस का अधिकार भी इन्हें नहीं है। प्रायः इन कामगारों को त्योहार में मिठाई या मिठाई का डब्बा और ज्यादा से ज्यादा कोई पुराना कपड़ा देकर मालिक/मालकिन पीठ थपथपा लेते हैं। जबकि नकद बोनस इनकी जरूरत भी है और हक़ भी।

शहरों में दिखने वाली ऊंची-ऊंची इमारतों और चमकते शीशे के कार्यालय दूर-दराज गावों और इलाकों व समाज में हाशिए से आई इन्ही कामगारों की मेहनत व श्रम से चमक रही हैं, वरना गंदगी से बजबजती नजर आएगी।

एसजीयू ने चलाया प्रचार अभियान

ऐसी स्थिति में दक्षिणी दिल्ली के विभिन्न हिस्सों व अलग-अलग अपार्टमेंट में संग्रामी घरेलू-कामगार यूनियन (एसजीयू) के बैनर तले घरेलू कामगारों ने सम्मानजनक बोनस के अधिकार के लिए एक प्रचार अभियान चलाया। इस अभियान के माध्यम से घरेलू कामगारों को दीवाली से पहले मिलने वाले बोनस को नकद रूप में दिए जाने की मांग उठाई गई।

यूनियन के साथ जुड़ी कामगार महिलाओं ने अपने काम पर जाने से पहले अपार्टमेंट के गेटों पर एक एक घंटा खड़े होकर प्रचार चलाया, कोई काम से पहले एक घंटा प्रचार करती या कुछ काम से लौट कर।

यूनियन की माँग

इस प्रचार अभियान के दौरान यूनियन ने एक पर्चा निकाला था, जिसमें लिखा है-

  • घरेलू कामगारों को ‘श्रमिक’ का दर्जा और उनके अधिकारों को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (संयुक्त राष्ट्र का हिस्सा) सम्मेलन -189 द्वारा मान्यता प्राप्त है। भारत भी इसमे हस्ताक्षरकर्ता है।
  • जब कोई व्यक्ति साल के ज्यादातर दिन किसी कम्पनी या व्यक्ति के लिए काम कर रहा हो, तब बोनस मिलना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी सम्मानजनक रोजगार का हिस्सा माना जाता है। भारतीय श्रम कानून भी यह कहता है।
  • नकद मे बोनस देना, किसी भी तरह से मालिक और घरेलू कामगार के आपसी सम्बन्ध को कम नहीं करता है। बल्कि जब मालिक द्वारा यह पहचाना जाए कि घरेलू कामगार अपना बोनस अपनी  इच्छा अनुसार खर्च कर सकते है, तब यह रिश्ता और भी सम्मानजनक बनता है। कामगार इसे अपने मर्जी और जरूरत अनुसार खर्च कर सकते हैं- जैसे बच्चों की फीस देना, ऋण की अदायगी, चिकित्सा के लिए, इत्यादी।
  • इस बार एक सम्मानजनक बोनस, नकद में! अपने घरेलू कामगरों का सम्मान करें, उसके अधिकार का सम्मान करें!

जीतोड़ काम तो बोनस क्यों नहीं?

घरेलु कामगारों को हफ्ते में एक भी दिन छुट्टी नहीं मिलती है| मालिक के घर का खाना-बर्तन-झाड़ू-पोछा का काम करके वापस आकार खुद का घर का खाना-बर्तन-झाड़ू-पोछा और बच्चे पालने का काम सुबह से शाम तक करना पड़ता है।

दिवाली से पहले घरों मे सफाई का काम बढ़ जाता है। जहाँ आम तौर पर वे सुबह 7 बजे से दोपहर के 12 बजे तक काम करती हैं, वहीं दिवाली पूर्व दोपहर 2-3 बजे तक काम करना पड़ता है, या शाम को 2-3 घंटे अतिरिक्त काम।

अभियान के कुछ खट्टे-मीठे अनुभव

काफी सारे घरेलू कामगारों ने जब अपने मकान मालिकों को पर्चे दिये, कुछ मालिकों ने तो समर्थन किया और नगद में बोनस दे दी, कुछ ने तो पिछले बार से अच्छा रकम भी दिया। लेकिन कुछ मालिकों ने पढ़कर उसे फाड़ कर फेक दिया, यह कहते हुए कि यह सब यूनियन वगैरह कुछ नहीं होता हैं।

कुछ अपार्टमेंट के गेट पर, मालिकों द्वारा सेक्युरिटी से कहा गया कि गेट पर अवैध प्रचार चल रहा है जिसे बंद किया जाए। कुछ सेक्युरिटी गार्ड ने प्रचार करती हुयी महिलाओं से कहा कि यह आप जो पर्चे पर लिखी है उससे हमारा भी फायेदा है, हमें भी ठीक से बोनस नहीं मिलता।

कुछ पाने के लिए शुरुआत तो करनी ही पड़ेगी

घरेलू कामगारों का कहना रहा कि ठीकठाक नकद बोनस मिलना ज्यादातर कामगार के लिए कल्पना के भी बहार है, जो भी 100-200 रुपए या मिठाई मिले, वही बहुत है।

यूनियन के साथ जुड़ी कामगार सदस्यों का मानना रहा है कि लगातार इस विषय पर प्रचार करने से ही चीज़े बदलेंगी। उन्हें पता है कि ज्यादातर घरों से सम्मानजनक बोनस मिलना मुश्किल है, पर बात को कभी तो शुरू करनी पड़ेगी। इस इरादे के साथ ही कामगार महिलाओं ने पहल लिया।

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