माइक्रोमैक्स, इंटरार्क, जयडस, हिटाची के संघर्षरत मज़दूर कैसे मनाएं दीपावली की खुशियां?

त्योहार की खुशियों में व्यस्त मेहनतकश साथियों को जरा रुककर अपने उन मज़दूर भाइयों के भी बारे में सोचना चाहिए, जिन्हें न वेतन मिल रहा, न बोनस और वे संघर्ष के मैदान में हैं!

हर तरफ शोर है, बाजार में भागदौड़ है, धनतेरस पर धन धनपतियों की ओर भाग रहा है। इधर मज़दूर कहीं बोनस पा रहे हैं तो कहीं बोनस के बगैर मायूस हैं फिर भी त्योहार मनाने में जुटे हैं। कई जगह तो मज़दूरों को मिठाईयां भी नसीब नहीं हुईं। फिर भी धनतेरस में कुछ खरीदना ही है, दीवाली को तो मानना ही है!

दूसरी तरफ वे मज़दूर हैं, जिनके पास न वेतन है, ना बोनस। चाहे वह उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले के 46 महीने से संघर्षरत भगवती माइक्रोमैक्स के मज़दूर हों, चाहे 4 साल से संघर्ष कर रहे इंटरार्क पंतनगर व किच्छा प्लांट के मज़दूर हों, अथवा बंदी के खिलाफ 4 महीने से संघर्षरत जयडस मज़दूर हों, या फिर प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात के कार्यबहाली के लिए संघर्षरत हिटाची मज़दूर।

इसी तरह दो पहिया वाहन निर्माता इंडिया यामाहा मोटर्स, श्रीपेरंबुदूर, चेन्नई के श्रमिक 11 अक्टूबर से हड़ताल पर हैं और ऐसे ही हालत में संघर्षरत हैं। नीमराना में गुड़गांव क्षेत्र में हिताची मेटल इंडिया, बेलसोनिका, सनबीम आदि के ठेका मज़दूर भी संघर्षरत हैं। नीमराना में डाइडो, डाईकिन के मज़दूर भी दमन के शिकार बन संघर्षरत हैं।

इन मज़दूर साथियों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब घर की दो वक्त की रोटी भी नहीं चल पा रही है तो इस भयानक महंगाई के समय में वे त्योहार की खुशियां कैसे मनाएंगे? इन मज़दूर साथियों के सामने भी बच्चों की फीस, रोजमर्रा की दवाइयों तक की किल्लत है।

त्योहार की खुशियों में व्यस्त मेहनतकश साथी जरा रुककर अपने इन मज़दूर भाइयों के भी बारे में सोचें!

46 माह से कार्यबहाली के लिए संघर्षरत माइक्रोमैक्स मज़दूर

भगवती प्रोडक्ट्स लिमिटेड (माइक्रोमैक्स) सिडकुल, पंतनगर के मज़दूर गैर कानूनी छँटनी के खिलाफ 46 महीने से संघर्षरत हैं। औद्योगिक न्यायाधिकरण से लेकर उच्च न्यायालय नैनीताल तक उन्होंने जीते हासिल की। सुप्रीम कोर्ट ने प्रबंधन को 5 करोड़ रुपए जमा करने का निर्देश दे दिया। इन सबके बावजूद इन मज़दूरों की चौथी दिवाली काली हो गई है।

यह सोचा जा सकता है कि 46 महीने से एक भी रुपए ना पाने वाले ये मज़दूर जिंदगी कैसे जी रहे होंगे। त्योहार की खुशियां तो मुनाफे की भेंट चढ़ गई है। फिलहाल श्रम भवन में इन साथियों का धरना जारी है।

4 साल से न्याय की गुहार लगते इंटरार्क के जुझारू मज़दूर

इंटरार्क पंतनगर और इंटरार्क किच्छा के मजदूर दो हजार अट्ठारह से वेतन वृद्धि और बर्खास्त व निलंबित मज़दूरों की कार्यबहाली के लिए संघर्षरत हैं। अभी पिछले 14 महीने से दोनों कंपनी के गेटों पर उनका विकट और जुझारू आंदोलन चल रहा है। दमन के तौर पर अबतक प्रबंधन ने 100 से ज्यादा मज़दूरों को निलंबित या बर्खास्त कर रखा है।

दोनों प्लांट के मज़दूरों को प्रबंधन ने वेतन तो दूर रही बोनस भी नहीं दिया और गैर कानूनी रूप से ठेका मज़दूरों से प्लांट में काम कराते हुए अपने पुराने स्थाई मज़दूरों को छोड़कर ठेका मज़दूरों के साथ बेहयाई के साथ दीपावली मनाकर मजदूरों को और उकसाने का ही काम किया है। इन मज़दूर साथियों का परिवार किसी तरह गुजर-बसर कर रहा है, ऐसे में दीपावली भला यह कैसे मनाएं?

इंटरार्क किच्छा गेट पर 4 अक्टूबर की मज़दूर-किसान महापंचयत के निर्णय के तहत इंटरार्क मज़दूर 18 नवंबर 2022 को किच्छा में होने वाले मज़दूर किसान महापंचायत की तैयारियों में जुटे हैं।

अवैध बंदी के खिलाफ संघर्षरत जयडस के मज़दूर

जयडस वेलनेस  सिडकुल, सितारगंज के 1300 स्थाई-अस्थाई मज़दूर गैरकानूनी बंदी के खिलाफ चार महीने से संघर्षरत हैं। कंपनी गेट पर उनका धरना जारी है। ना कोई वेतन है ना कोई बोनस। यह मजदूर भला कैसे दीपावली की खुशियां मिले मनाएं।

फिलहाल मज़दूरों का कंपनी गेट पर धरना जारी है। मामला औद्योगिक न्यायाधिकरण हल्द्वानी को संदर्भित हो चुका है।

हिटाची हाई रेल पॉवर के मज़दूर दमन के खिलाफ संघर्षरत

देश के प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात के सानंद, अहमदाबाद के वोल विलेज स्थित हिटाची हाई रेल पॉवर इलेक्ट्रॉनिक्स के मज़दूर यूनियन बनाने व माँगपत्र देने के कारण प्रबंधन का प्रतिशोध और दमन झेल रहे हैं। 8 मजदूरों की गैरकानूनी बर्खास्तगी व एक मजदूर के अवैध निलंबन और 30 ठेका मज़दूरों की गेट बंदी के खिलाफ मज़दूरों का संघर्ष पिछले डेढ़ महीने से जारी है।

सभी स्थाई और ठेका मज़दूर हड़ताल पर हैं और कंपनी के बाहर धरना चल रहे हैं। ऐसे में यह संकट उनके सामने भी है कि आखिर दीवाली की खुशियां कैसे मनाएं?

लड़ेंगे, जीतेंगे; सच्चे अर्थों में खुशियां मनाएंगे!

यह तो महज चंद कारखानों के संघर्षरत मज़दूरों की पीड़ा यहां दर्ज हो रही है। देश के अलग-अलग हिस्सों में तमाम जगहों पर मज़दूरों के ऐसे ही हालात हैं, जहां प्रबंधन की दमनकारी नीतियों, शासन प्रशासन और सरकार की मिलीभगत मज़दूरों के लिए कयामत बनी हुई है।

इन मज़दूर साथियों के सामने जिंदा सवाल है कि आखिर दशहरा हो या दीवाली, ईद हो या बकरीद – त्योहार की खुशियों को कैसे मनाएं? वैसे भी कोई भी त्यौहार, पर्व और खुशियां मनाने के लिए इस पूंजीवादी निजाम में पैसा चाहिए। बाजार की शक्तियां जितनी जगमग होती हैं मज़दूरों के पॉकेट से उतनी ही कटौती होती है। मज़दूर किसी न किसी रूप में खुशियां मनाने का जुगत भिड़ाते रहते हैं।

हकीकत यह है की पूंजीवादी इस व्यवस्था में खाते-पीते व पैसों पर ऐश करते समूहों के लिए त्योहार की खुशियां असल में मौजूद रहती हैं। और मेहनत-मज़दूरी करने वाले मज़दूर ऐसे ही संकटों से घिरे होते हैं। यह संकट किसी के सामने कम, किसी के सामने थोड़ा ज्यादा और दमन के खिलाफ संघर्षरत मज़दूरों के सामने विकट होता है।

कठिन हालात में भी मज़दूर अपना संघर्ष लगातार जीवित रखते हैं, इस उम्मीद के साथ कि असल में उन्हें जीत मिलेगी और तब वे अपने त्योहारों की खुशियां बच्चों के साथ, परिवार के साथ खुले दिल से मना सकेंगे!

स्पष्ट है कि यह अंधेरा ऐसे ही कायम नहीं रहेगा! यह वर्ग संघर्ष है और मज़दूरों के मुक्तिकमी संघर्ष का हिस्सा है। जो लड़ रहे हैं वह जीतेंगे और अपनी खुशियां सच्चे अर्थों में मनाएंगे!

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