अपनी तबाही की छोड़ो, देश के विकास की दीपावली मनाओ! अनंत शुभकामनाएं!

शुभकामनाओं के लिए तो बहुत कुछ है! विकास के रथ पर सवार इंडिया सरपट दौड़ रहा है! पैसे की चमक है, बाजार की धमक है, गरीबी बढ़ रही है तो क्या हम विश्व गुरु बन रहे हैं! कुछ कष्ट तो सहना ही पड़ेगा!

ये क्या सड़ी-गली बात लेकर बैठ गए जनाब! दीया कैसे जलाएं तेल तो ₹190 लीटर हो गया है! मोमबत्ती भी महंगी है! फिर वही घिसी-पिटी बात, पकवान क्या बनाएं आटा महंगा है, दूध पनीर मिठाई सब महंगी! अरे भाई कुछ आगे की देखो, कितना जगमग है हमारा भारत नहीं-नहीं- इंडिया!

भाई इतनी माथापच्ची क्यों? देश तो विकास कर रहा है और विकास के रथ पर सवार इंडिया सरपट दौड़ रहा है! हम विश्व गुरु बन रहे हैं! तो देश की खातिर आम जनता को कुछ कष्ट तो सहना ही पड़ेगा!

समुद्र मंथन चल रहा है! अमृत निकल रहा है! भले ही अमृत अडानियों-अंबानियों और मोदी जमात के हिस्से जा रहा है! वही तो देश हैं! सदियों से जनता विषपान करती आ रही है तो विष ही हिस्से आएगा! और इस समुद्र मंथन से निकलती खुराक अंधभक्त बना रही है तो बुराई क्या है! मोदी जी परंपरा ही तो आगे बढ़ा रहे हैं!

फिर शुभकामनाओं के लिए तो बहुत कुछ है! देश आगे बढ़ रहा है, पैसे की चमक है, बाजार की धमक है, धनपति हैं तो मुनाफा ही मुनाफा है, महल पर महल खड़े हो रहे हैं! पाकिस्तान तबाह होने वाला है, कश्मीर का गुरूर टूट चुका है!

और फिर विकास के लिए तो गंदगी हटानी ही पड़ती है, झुग्गी-बस्तियां उजाड़नी ही पड़ती है! विकास का आनंद लेना है तो रोजगार की मत सोचना! गरीबी बढ़ रही है, रुपया गिर रहा है तो क्या यह कम बड़ी बात है कि देश के चंद पूँजीपति अमीरों की सूची में पूरी दुनिया में ऊपर जा रहे हैं!

क्या कहा, फैक्ट्रियों में दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं जहाँ मज़दूर मर रहे हैं, अंग-भंग के शिकार हो रहे हैं! भाई क्या यह खुशी की बात नहीं है कि देश के शीर्ष उद्योगपति श्रीमान मुकेश अंबानी को देश की सर्वोच्च सुरक्षा जेड प्लस मिली है! देश का यह विकास ही तो है कि एक व्यक्ति की सुरक्षा पर 45-50 लाख रुपए महीने खर्च हो रहे हैं!

फिर वही रोना! सब्जियों के भाव आसमान छू रहे हैं! देखो पूरी अयोध्या नगरी लाखों दियो से जगमग कर रही है! अठारह लाख दीप, 2500 टन फूल, 35000 लीटर सरसो का तेल जय श्रीराम! ऐसे में क्या मज़दूर को घर में दीया जलाने के लिए भोजन की कटौती करना गलत है! कुछ कुर्बानी तो करनी ही पड़ेगी! सो शुभकामनाएं तो बनती हैं!

पॉकेट में पैसा नहीं है तो क्या हुआ उधार ले लेंगे! उधार नहीं चुका पाएंगे तो मकान बेचेंगे! मकान नहीं है तो आत्महत्या कर लेंगे! लेकिन बाजार की खुशियों के लिए सब जायज है!

अब देखिए, दीपावली है तो पटाखों का कारोबार है। बाजार है तो पटाखा बिकेगा ही! पटाखों से भले ही प्रदूषण तबाह हो, पटाखा बनाते कारखानों में पुरुष मज़दूर ही नहीं, महिलाएं और बच्चे भी मर रहे हों, दम तोड़ रहे हों, लेकिन बाजार तो चमक रहा है, कारोबार तो चल रहा है!

बाजार की महिमा अपरंपार है! मिठाइयों में मिलावट हो लेकिन त्योहार की खातिर खरीदना तो पड़ेगा ही! पॉकेट में पैसा नहीं है तो क्या हुआ उधार ले लेंगे! उधार नहीं चुका पाएंगे तो मकान बेचेंगे! मकान नहीं है तो आत्महत्या कर लेंगे! लेकिन बाजार की खुशियों के लिए यह सब कुछ जायज है, क्योंकि देश विकास कर रहा है!

ऐसे विकास में दिवाला होती मेहनतकश जनता को दीवाली में क्या शामिल नहीं होना चाहिए- चाहें अपने तन पर बचे हुए कपड़ों को जला कर ही सही- चाहें अपने खून के कतरे को सुखाकर ही सही!

About Post Author

भूली-बिसरी ख़बरे