तुर्की के कोयला खदान में विस्फोट; अबतक 40 मज़दूरों की मौत, 17 घायल, 8 गंभीर

मुनाफे की भेंट चढ़ते मज़दूर: इससे पहले पश्चिमी तुर्की के सोमा शहर की खदान में सबसे बड़ा हादसा हुआ था, इसमें आग लगने की वजह से करीब 301 लोगों की मौत हो गई थी।

तुर्की में सरकारी टीटीके अमासरा मुसेसे मुदुर्लुगु कोयला खदान में हुए ब्लास्ट में अबतक 40 लोगों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा भी कई लोगों के फंसे होने की आशंका जताई जा रही है। यह घटना शुक्रवार 14 अक्तूबर की रात में तुर्की के उत्तरी इलाका को काला सागर के किनारे बसे बार्टिन के अमासरा शहर की खदान में हुआ।  

इस धमाके में कम से कम 17 लोग घायल भी हुए हैं। इनमें से आठ गंभीर रूप से जख्मी हैं। देश के गृह मंत्री सुलेमान सोयलू ने जानकारी दी है कि कई लोग अभी भी खदान में फंसे हुए हैं, उन्हें बाहर निकालने के प्रयास किए जा रहे हैं।

बताया जा रहा है कि ये मजदूर 900 फिट की गहराईयों में काम कर रहे थे। उस वक्त 110 मजदूर कार्यरत थे। ऊर्जा मंत्री फातिह डोनमेज ने कहा कि विस्फोट संभवतः कोयला खदानों में पाई जाने वाली ज्वलनशील गैसों के कारण हुआ होगा।

इससे पहले 13 मई 2014 को पश्चिमी तुर्की के सोमा शहर की खदान में सबसे बड़ा हादसा हुआ था, इसमें आग लगने की वजह से करीब 301 लोगों की मौत हो गई थी। सैकड़ों मजदूरों फंसे हुए थे। तुर्की के अंदर हाहाकार मचा हुआ था। लोगों ने मुनाफे की भेंट चढ़े मजदूरों की हत्याओं के खिलाफ सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन किये थे।

उस समय भी रेसेप तईद एर्दोआन की सरकार थी। हत्यारा एर्दोआन ने बड़ी बेशर्मी से कहा था कि ” ऐसी घटनाएँ होना आम बात है”।एर्दोआन सरकार ने सड़कों पर उतरी जनता पर दमन किया था।

तुर्की सहित दुनिया के तमाम देशों के कोयला व अन्य खदानों में दुर्घटनाएं लगातार जारी हैं। जहाँ मज़दूरों की मौत होने से लेकर अंग-भंग होने की घटनाएं आम होती जा रही हैं। बढ़ती इन दुर्घटनाओं का कारण निजीकरण-उदारीकरण व वैश्वीकरण की पूंजीपरस्त नीतियां हैं।

मुनाफे की आंधी हवस में मज़दूरों की सुरक्षा का कोई इंतेजाम नहीं होता अथवा महज खनापूर्ति होती है। आज लगभग सभी उद्योगों में बड़े पैमाने पर ठेकेदारी प्रथा लागू है। ठेका कम्पनियों के लाइ मज़दूरों की सुरक्षा का और कोई मायने नहीं रह जाता है।

ऐसी घटनाएं होती रहती हैं, जिन्हें हादसों का नाम दिया जाता है। ज्यादातर मामले उठते ही नहीं। जो मामले उजागर हो जाते हैं, उसमें कुछ प्रतिरोध से कुछ राहत भले ही मिल जाता हो, लेकिन फिर मामला शांत हो जाता है, तबतक नए हादसों में मज़दूर हताहत होता रहता है।

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