गोवा में वेदांता की मनमानी, पर्यावरण क़ानूनों की धज्जियां और सरकार

पड़ताल बताती है कि वेदांता के लौह अयस्क से कच्चा लोहा बनाने वाले दो संयंत्रों के संचालन में कई पर्यावरणीय क़ानूनों का उल्लंघन किया गया है.

नई दिल्ली: भारत में पर्यावरण की रक्षा के लिए दर्जनों नियम और कानून हैं, साथ ही एक पर्यावरण मंत्रालय, केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पर्यावरण मामलों के लिए एक विशेष अदालत, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल भी हैं. फिर भी एक अरब डॉलर की कंपनी को एक दशक तक प्रदूषण को नियंत्रित करने में विफल रहने और गलत रिपोर्ट देने के बावजूद उसके लौह निर्माण के काम का विस्तार करने की मंजूरी मिली है.

गोवा की राजधानी पणजी से लगभग 25 किमी दूर अमोना और नवेलिम दो एक जैसे गांव हैं. दोनों में वेदांता द्वारा संचालित एक पिग-आयरन निर्माण संयंत्र है. लौह अयस्क को कच्चे लोहे या पिग आयरन में ढालने के लिए संयंत्रों में दिनभर जलती टॉवरिंग ब्लास्ट फर्नेस (भट्टी) इसे लोहे में परिष्कृत करती है.

वेदांता खुद को 80,000 टन की मासिक क्षमता के साथ ‘भारत में पिग आयरन का सबसे बड़ा उत्पादक’ बताता है. साल 2018 से यह अपना विस्तार करते हुए करीब 701 करोड़ रुपये की एक विस्तार योजना पर काम कर रहा है. द रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा जांचे गए दस्तावेजों से पता चलता है कि जनवरी 2022 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने प्रतिकूल पर्यावरणीय ऑडिट और रिपोर्ट के बावजूद कंपनी को इन संयंत्रों के परिचालन में तेजी लाने के लिए मंजूरी दी है.

मंत्रालय ने खुद अपनी निरीक्षण रिपोर्ट ने संयंत्रों से खतरनाक ग्रेफाइट उत्सर्जन की पुष्टि की है. गोवा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पाया है कि संयंत्र लगातार स्वीकृत सीमा से आगे जाकर पर्यावरण प्रदूषित कर रहे हैं. पिछले दो वर्षों में ही बोर्ड और मंत्रालय ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए संयंत्रों को दो कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं. दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि मंत्रालय ने जिन उल्लंघनों और चेतावनियों को नजरअंदाज किया, वे लगभग एक दशक से अधिक समय से मौजूद हैं. वेदांता के संयंत्रों से निकलने वाले प्रदूषकों में ग्रेफाइट कणों की मौजूदगी को साल 2008 से दर्ज किया जा रहा है और बताया गया है कि ये इन संयंत्रों के आसपास की हवा में सांस लेने वालों के लिए हानिकारक हैं.

फिर भी ये संयंत्र आज 14 साल बाद भी ग्रेफाइट उगल रहे हैं. ग्रेफाइट कार्बन का एक अपररूप (एलोट्रोप) है, जो त्वचा और आंखों में जलन पैदा कर सकता है, सांस संबंधी रोगों का कारण बन सकता है और शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को प्रभावित कर सकता है. वेदांता का मामला इस बात का उदाहरण है कि भारत के पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करने के बावजूद इतनी सारी कंपनियां सजा से क्यों बच जाती हैं. पिछले तीन वर्षों में भारत में पर्यावरण कानूनों के तहत दर्ज किए गए 1,737 आपराधिक मामलों में से 39 लोगों को दोषी ठहराया गया है. सरकार अपराधियों को सजा में ढील दे रही है और वित्तीय दंड लगाने को प्राथमिकता दी जा रही है. ऐसा करना विकास के नाम पर उद्योगों को ‘प्रदूषण के लिए पैसे भरने’ के रवैये को प्रोत्साहित कर रहा है.

‘एक यूनिट या दो’?

जब वेदांता ने अपना दूसरा संयंत्र स्थापित किया तब उसने कानूनों की कोई खास परवाह नहीं की. महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या वेदांता के यह दो संयंत्र एक ही इकाई हैं- जहां एक संयंत्र दूसरे का विस्तार भर है या दो अलग-अलग परियोजनाएं. यह सवाल इसलिए मायने रखता है क्योंकि जवाब के आधार पर वेदांता को दूसरे संयंत्र की मंजूरी पाने के लिए और अधिक कड़े नियमों का पालन करना होता, साथ ही खर्च भी अधिक होता. विशेष तौर पर जब एक संयंत्र अपने काम का विस्तार कर रहा होता, तब स्थितियां ज्यादा कठिन होतीं. दस्तावेजों के अनुसार, अमोना और नवेलिम ब्लास्ट फर्नेस के बीच की दूरी 2.5 किलोमीटर है. लेकिन वेदांता का कहना है कि पिछले संयंत्र से जुड़ी कुछ अन्य सुविधाएं, नए संयंत्र के करीब हैं. जून 2009 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने सेसा इंडस्ट्रीज लिमिटेड (अब वेदांता) को नवेलिम गांव में एक पिग-आयरन प्लांट स्थापित करने के लिए पर्यावरण मंजूरी दी. यह अमोना गांव में 1992 में स्थापित पिग-आयरन प्लांट, जिसे गोवा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मंजूरी मिली हुई थी, के नजदीक बनाया जाना था.

लेकिन अमोना संयंत्र के उलट नवेलिम संयंत्र को पहले पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) से गुजरना पड़ा, क्योंकि सरकार ने 2006 में नए नियमों को अधिसूचित किया था. ईआईए अधिसूचना पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत आने वाला कानून है. ईआईए प्रक्रिया में सार्वजनिक परामर्श बेहद महत्वपूर्ण है, जिसमें एक सार्वजनिक सुनवाई भी शामिल होती है जहां इससे प्रभावित होने वाले समुदायों के सदस्य परियोजना पर आपत्ति दर्ज करा सकते हैं. लेकिन सेसा और पर्यावरण मंत्रालय का कहना था कि मंजूरी पुराने अमोना संयंत्र के विस्तार के लिए थी, न कि पूरी तरह से नई परियोजना के लिए. अमोना निवासी और मंजूरी के खिलाफ अदालत पहुंचे एक याचिकाकर्ता प्रवीर फड़ते बताते हैं, ‘कंपनी ने नवेलिम में एक नई परियोजना के लिए मंजूरी ली. चूंकि नवेलिम एक औद्योगिक क्षेत्र में है, इसलिए इसे सार्वजनिक सुनवाई से छूट दी गई थी. लेकिन बाद में इसे अमोना संयंत्र का विस्तार कहा गया. प्रदूषण के बारे में स्थानीय समुदायों की आपत्तियां कभी नहीं सुनी गईं, क्योंकि उद्योग लगातार बढ़ रहा था.’

2009 की मंजूरी के बाद के वर्षों में फड़ते और इससे प्रभावित अन्य स्थानीय लोगों ने दो अदालतों में इस मंजूरी को चुनौती दी, हालांकि साल 2016 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इसका संज्ञान लिया. याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि सरकार ने मंजूरी देने से पहले बढ़ते प्रदूषणकारी उद्योगों से पड़ने वाले प्रभावों के बारे में गौर नहीं किया, साथ ही सार्वजनिक सुनवाई के बिना यह मंजूरी दोषपूर्ण थी. 2017 में एनजीटी ने फैसला सुनाया कि दोनों इकाइयां स्पष्ट रूप से अलग थीं और ‘ईआईए अधिसूचना 2006 में इस्तेमाल किए गए ‘विस्तार’ शब्द के दायरे में नहीं आती थीं.’ इसने पर्यावरण मंत्रालय को निर्देश दिया कि परियोजना प्रस्ताव पर पर्यावरणीय मंजूरी के लिए यदि किसी अतिरिक्त शर्त लगाने की जरूरत है, तो वह उसकी ‘जांच’ करे. 4 दिसंबर, 2017 को एनजीटी के आदेश में कहा गया कि अमोना और नवेलिम में वेदांता के संयंत्र स्पष्ट रूप से दो अलग इकाइयां हैं.

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के साथ एक पर्यावरण-नीति शोधकर्ता के तौर पर काम करने वाली कांची कोहली कहती हैं, ‘यदि यह विस्तार नहीं था, तो मंत्रालय द्वारा एक नई मंजूरी प्रक्रिया और पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन शुरू किया जाना चाहिए था. एक सार्वजनिक परामर्श होना चाहिए था, जिससे वेदांता की गतिविधियों के प्रभावों को इससे प्रभावित होने वाले लोगों के सामने रखा जाता.’ पर्यावरण मंत्रालय और गोवा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एनजीटी के फैसले के बाद 2020 में संयंत्र का निरीक्षण किया था. मंत्रालय ने निष्कर्ष निकाला कि नवेलिम और अमोना में इकाइयां ओवरहेड कन्वेयर के माध्यम से जुड़ी हुई थीं, उनके पास समान स्वामित्व, वित्तीय रिटर्न और आपूर्ति सुविधाएं थीं और इस प्रकार वे ‘वास्तव में एकल इकाई’ थीं.

सितंबर 2019 में मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति ने कहा कि अमोना और नवेलिम संयंत्र वास्तव में एकल इकाई हैं. हालांकि, मंत्रालय के आधिकारिक रिकॉर्ड से पता चलता है कि वेदांता ने क्षमता वृद्धि के लिए मंजूरी मांगते हुए नवेलिम और अमोना में ब्लास्ट फर्नेस को अलग-अलग इकाइयों के रूप में दिखाया था.कई मौकों पर अमोना संयंत्र के विस्तार के लिए वेदांता के प्रस्तावों का मूल्यांकन करते हुए मंत्रालय ने इसे इन इकाइयों को एकीकृत करने के लिए कहा है, जिससे इसके प्रभाव मूल्यांकन (Impact Assessment) में समग्र रूप से उनके पर्यावरणीय प्रभाव का निर्धारण किया जा सके. प्रभाव मूल्यांकन एक कठिन बाधा है क्योंकि इसमें पर्यावरण पर पड़ने वाले कुल प्रभाव को निर्धारित करने से पहले किसी एक आगामी परियोजना के साथ-साथ अन्य सुविधाओं या क्षेत्र के अन्य उद्योगों की भी गणना शामिल होती है. इसलिए सुविधाओं को अलग इकाइयों के तौर पर दिखाने से पर्यावरणीय प्रभाव गणना कम करने में मदद मिल सकती है.

इकाइयों को अलग-अलग दिखाने से कंपनी को आसान टर्म्स ऑफ रेफेरेंस (शर्तें) मिलते हैं, जो पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने के लिए दिशा निर्देश हैं और जो मंत्रालय को मंजूरी पर विचार-विमर्श करने से पहले परियोजना का आकलन करने में मदद करते हैं. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर मूल्यांकन में इकाइयों को एक माना जाता है, तब कंपनी को इसकी फैक्ट्रियों से हुई गंदगी को साफ करने के लिए बहुत कम पैसा अलग रखना होगा. वेदांता के विस्तार के मामले में कंपनी ने सबसे पहले 35 करोड़ रुपये की पर्यावरण प्रबंधन योजना तैयार की. मंत्रालय ने इसे अपर्याप्त पाया, इसलिए कंपनी ने पर्यावरणीय नुकसान को कम करने के लिए अपनी लागत बढ़ाकर 90.68 करोड़ रुपये कर दी.

इस तरह वेदांता ने पर्यावरण नियमों को दरकिनार करने की कोशिश की. 2016 में वेदांता ने मंजूरी के लिए पर्यावरण मंत्रालय के समक्ष दो प्रस्ताव प्रस्तुत किए: अपने उत्पाद को बदलने का, और अमोना में अपनी ब्लास्ट फर्नेस की क्षमता बढ़ाने का. (इस तरह के परिवर्तनों का पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है, जिसकी मंजूरी से पहले जांच की जानी चाहिए, ताकि उनसे निपटने के उपाय भी मजबूत हों.)

मंत्रालय ने बदले में कंपनी के सामने दो शर्तें रखीं. वेदांता ने बाद में इन शर्तों में से एक में संशोधन की मांग की- वह ये कि कंपनी अब नवेलिम में भी ब्लास्ट फर्नेस की क्षमता बढ़ाना चाहती थी. दिसंबर 2018 में विशेषज्ञ समिति की एक बैठक में मंत्रालय ने वेदांता को यह प्रस्ताव ठुकराते हुए कहा कि उसने कंपनी को दो शर्तें भेजी थीं क्योंकि उसने अपनी इकाइयों को अलग होने की बात कही थी. अब, उसने वेदांता को एक संयुक्त प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए कहा ताकि वह ईआईए के लिए व्यापक शर्तें लागू कर सके. कोहली बताती हैं, ‘2016 तक एकीकृत परियोजनाओं के आधिकारिक नियम अच्छी तरह स्पष्ट हो चुके थे. अगर किसी उद्योग में एक साथ जुड़ी सुविधाएं हैं, तो उन्हें एक एकीकृत प्रस्ताव ही पेश करना होगा, भले ही मंत्रालय की विभिन्न क्षेत्रीय समितियों द्वारा मंजूरी दी जाए.’

वेदांता ने 10 दिनों के बाद एक नया ‘एकीकृत’ प्रस्ताव पेश किया. बदले में, इसे मार्च 2019 में शर्तें मिलीं और इस साल जनवरी में प्रस्ताव को मंजूरी दी गई. इस विस्तार के लिए कंपनी ने पिछले साल मार्च में एक जनसुनवाई की थी, जिसमें अधिकांश लोगों ने आपत्ति जताई थी. अगस्त 2021 में नए ‘एकीकृत’ प्रस्ताव का मूल्यांकन करते हुए मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति ने कंपनी को दो इकाइयों को अपने ईआईए में एक एकीकृत इकाई के रूप में नहीं मानने की बात कही थी. नतीजतन, कंपनी के ईआईए में पर्यावरण पर प्रभाव को काफी कम करके आंका गया. समिति ने  विशेष रूप से कहा कि वेदांता ने 2009 में पर्यावरण मंजूरी प्राप्त की थी, लेकिन ‘उक्त इकाइयों को आज तक एकीकृत नहीं किया’, साथ ही यह कि कंपनी ने मंजूरी के लिए आवेदन करते समय ‘अपूर्ण/गलत और असंगत जानकारी’ पेश की थी.

समिति ने निष्कर्ष निकाला, ‘सभी इकाइयों को एकीकृत करके ईआईए रिपोर्ट को संशोधित करने की आवश्यकता है और प्रभाव मूल्यांकन की भी जरूरत है.’ मंत्रालय ने यह भी बताया कि पर्यावरणीय नुकसान को कम करने के लिए वेदांता की योजना केवल 35 करोड़ रुपये की थी- इसके कुल परियोजना मूल्य 701 करोड़ रुपये का केवल 5%. (वेदांता ने बाद में मंजूरी मिलने पर इसे बढ़ाकर 90.68 करोड़ रुपये कर दिया था.) ईआईए अधिसूचना 2006 के तहत भ्रामक जानकारी प्रस्तुत करना मंत्रालय के लिए किसी प्रस्ताव को अस्वीकार करने और यहां तक ​​कि उस जानकारी के आधार पर दी गई मंजूरी को रद्द करने के लिए पर्याप्त आधार है. लेकिन यहां मंत्रालय ने वेदांता को बस झिड़की देकर छोड़ दिया और दोहराया कि कंपनी को अपनी सुविधाओं को एकीकृत करना चाहिए और प्रभाव का आकलन करना चाहिए.

हालांकि, क्योंकि वेदांता ने पहले मार्च 2021 में सार्वजनिक सुनवाई की थी, इसने निर्णय लिया कि यह प्रभावित समुदायों के सामने उनकी आपत्तियों के लिए संशोधित प्रभाव मूल्यांकन पेश नहीं करेगा. कोहली बताती हैं, ‘कई मामलों में सार्वजनिक परामर्श एक अलग पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट के लिए होता है. तो असल परियोजना कभी भी इससे प्रभावित होने वाले लोगों के सामने नहीं आती है. इस मामले में भी संशोधित ईआईए लोगों के सामने पेश नहीं किया गया.’ पर्यावरण मंत्रालय ने वेदांता की फाइल सिर्फ इसलिए नहीं लौटाई क्योंकि कंपनी ने अपनी दोनों फैक्ट्रियों को देखते हुए प्रभाव का सही आकलन नहीं किया था, मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति के पास वेदांता के प्रदूषण मानदंडों के अनुपालन पर गोवा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट भी थी- यानी कि क्या वेदांता पर्यावरण सुरक्षा के लिए पहले से मौजूद शर्तों को पूरा कर रहा था या नहीं.

इस रिपोर्ट में उल्लंघनों की सूची बनाई गई थी, जिनमें से कुछ गंभीर थे. इनमें कारखाने के पानी का आस-पास के जल निकायों में डाला जाना, वायु-गुणवत्ता निगरानी उपकरणों पर चमकने वाले उत्सर्जित कणों की मौजूदगी, ऐतिहासिक स्थलों की रक्षा करने वाली एजेंसी की स्वीकृति न होना, सेकेंडरी उत्सर्जन नियंत्रण न होना, परिवहन के लिए ब्लैक-टॉप वाली सड़कों और कोई ग्रीन बेल्ट न होना शामिल थे. मंत्रालय ने वेदांता के प्रस्ताव को वापस कर दिया और पिछले साल अगस्त में कंपनी को रिपोर्ट में उठाए गए मुद्दों पर प्रतिक्रिया देने के लिए उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया.

अक्टूबर 2021 में गोवा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ बेंगलुरु में मंत्रालय के एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालय (आईआरओ) ने संयंत्रों का निरीक्षण किया और वेदांता को उस पर लगे आरोपों से बरी क़रार दे दिया. अगस्त 2021 में पर्यावरण मंत्रालय ने वेदांता को कारण बताओ नोटिस भेजा. निरीक्षण रिपोर्ट में कहा गया था कि वेदांता का अनुपालन ‘संतोषजनक’ था, हालांकि पहले प्रदूषण नियंत्रण में सूचीबद्ध प्रमुख उल्लंघन अब भी अनसुलझे थे. ग्रेफाइट के कण अब भी आस-पास के क्षेत्रों में गिर रहे थे, सड़कें काली नहीं थीं और ब्लास्ट फर्नेस स्लैग (ब्लास्ट फर्नेस में तरल लोहे के ऊपर से निकाले गए अपशिष्ट ) का निपटान और/या उपयोग सही से नहीं हो रहा था.

अनुपालन ठीक न होने के बावजूद आईआरओ द्वारा वेदांता को क्लीन चिट दी गई. मंत्रालय ने वेदांता को अनुपालन के लिए और समय भी दिया. मंत्रालय की चिंताओं को दूर करने के बाद वेदांता ने दिसंबर 2021 में एक नई रिपोर्ट के साथ फिर से आवेदन किया. इस रिपोर्ट और कंपनी की प्रतिक्रियाओं के आधार पर विशेषज्ञ समिति ने दिसंबर 2021 में मंजूरी के लिए मंत्रालय को वेदांता के नए प्रस्ताव की सिफारिश की, साथ ही मंत्रालय ने अपना कारण बताओ नोटिस भी रद्द कर दिया.

हालांकि, मंत्रालय की फाइल नोटिंग से पता चलता है कि मंत्रालय के अधिकारियों ने गोवा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट की अवहेलना की. इसकी वजह थी कि रिपोर्ट 2018 में यानी तीन साल पहले हुए एक निरीक्षण पर आधारित थी. अधिकारियों ने कहा कि कंपनी ‘संभवतः’ इन तीन वर्षों में- आईआरओ और राज्य प्रदूषण नियंत्रण द्वारा निरीक्षण के समय तक- इन शर्तों का अनुपालन कर लिया होगा. वेदांता को कारण बताओ नोटिस से पहले पर्यावरण मंत्रालय का आंतरिक पत्राचार.

इस प्रक्रिया में अधिकारियों ने प्रदूषण फैलाने की स्पष्ट रिपोर्ट और अगस्त 2021 में बोर्ड द्वारा एक पर्यावरण ऑडिट के निष्कर्षों की अनदेखी की. ऑडिट कमेटी में पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति के सदस्य जेएस काम्योत्रा भी शामिल हैं. ऑडिट में कहा गया था कि वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों को अपग्रेड की जरूरत है और मेसर्स गडार्क लैब्स द्वारा उपकरणों का प्रदर्शन मूल्यांकन (परफॉरमेंस इवैल्यूएशन) अधूरा था. ऑडिट रिपोर्ट में जोड़ा गया था कि मूल्यांकन रिपोर्ट ‘अनुपालन के उद्देश्य के लिए ही तैयार की गई लगती है.’

गोवा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा एक पर्यावरण ऑडिट में कई ऐसे मुद्दे उठाए गए, जिन्हें आईआरओ ने दरकिनार कर दिया था. ऑडिट में अपशिष्ट पानी के निकास, उत्सर्जित हो रहे कणों को नियंत्रित करने के अपर्याप्त उपाय और वेदांता ने पर्यावरण मानदंडों का पालन दिखाने के लिए डेटा को कैसे जमा किया जैसी कई समस्याओं को भी उठाया गया था. गौरतलब है कि वेदांता के अनुपालन को ‘संतोषजनक’ पाने वाले आईआरओ निरीक्षण में इनमें से कुछ मुद्दों का जिक्र भी नहीं था. कोहली कहती हैं, ‘मंत्रालय को इस ऑडिट की अनदेखी नहीं करनी चाहिए थी, क्योंकि उनका एक सदस्य आधिकारिक तौर पर इसका हिस्सा था. उन्हें मंजूरी देने से पहले अपने स्तर पर हर जानकारी पर विचार करना चाहिए.’

रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने पर्यावरण मंत्रालय और वेदांता के प्रतिनिधियों को विस्तृत प्रश्नावली भेजी है. पर्यावरण मंत्री के कार्यालय ने सवालों को अन्य अधिकारियों को भेज दिया है, लेकिन अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. वेदांता से भी कोई जवाब नहीं आया है. सभी का जवाब आने पर रिपोर्ट में जोड़ा जाएगा. प्रदूषण के बारे में गंभीर चिंताओं, खासकर एक दशक से अधिक समय से जारी ग्रेफाइट उत्सर्जन के बावजूद वेदांता को चलते रहने देने और विस्तार करने की अनुमति दी गई है. वेदांता ने भी इस बारे में तब तक कुछ नहीं किया था जब तक कि उसे इस साल जनवरी में ग्रेफाइट उत्सर्जन की जांच के लिए मार्च 2022 की समय सीमा के साथ अतिरिक्त समय नहीं दिया गया. गोवा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने फरवरी और मार्च 2020 में ‘परिवेशीय वायु गुणवत्ता पर अंतरिम अध्ययन’ में पाया कि अमोना संयंत्र के आसपास प्रदूषक पीएम 10 और पीएम 2.5 की तयशुदा सीमा से अधिक है. ये श्वसन प्रणाली के लिए हानिकारक माने जाते हैं.

गोवा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्ययन में अमोना संयंत्र के आसपास पीएम 10 और पीएम 2.5 के खतरनाक स्तर पाए गए. अप्रैल 2020 में एक रहवासी ने ‘खतरनाक गंध’ आने की शिकायत की, वहीं, दोनों इकाइयों के आसपास के क्षेत्र में ग्रेफाइट के कण छतों और पेड़ों के पत्तों पर नजर आने लगे. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मई 2020 में इकाइयों की करीब छह साइट का निरीक्षण किया और उनमें से पांच में ‘चमकदार कणों’, जो असल में वेदांता संयंत्रों से उत्सर्जित हो रहे ग्रेफाइट कण थे, की मौजूदगी पाई गई. 14 साल पीछे जाते हैं- गोवा में बॉम्बे हाईकोर्ट की पीठ के सामने दायर एक याचिका के बाद राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (एनईईआरआई) ने ग्रेफाइट उत्सर्जन और मानव स्वास्थ्य के लिए इसके परिणामों पर एक त्वरित ईआईए करवाया. यह रिपोर्ट दिसंबर 2008 में प्रकाशित हुई थी. अदालत ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि ग्रेफाइट प्रदूषण के लिए सेसा इंडस्ट्रीज की गतिविधियां जिम्मेदार थीं. इसने आदेश दिया कि कंपनी एनईईआरआई की सिफारिशों को लागू करे, साथ ही बोर्ड को क्षेत्र में वायु गुणवत्ता और ग्रेफाइट प्रदूषण की लगातार निगरानी करने को कहा. बॉम्बे उच्च न्यायालय की गोवा पीठ ने 2008 में कहा था कि अमोना में ग्रेफाइट प्रदूषण सेसा के संचालन के कारण हुआ.

अमोना निवासी प्रवीण फड़ते कहते हैं, ‘वेदांता प्रदूषण की समस्या की पर रोक लगाने में विफल रहा है. इसने प्रदूषण की जांच के लिए एनईईआरआई की सिफारिशों को भी लागू नहीं किया है.’ फड़ते ने साल 2017 में उसी हाईकोर्ट में ‘अदालत की अवमानना’ का मामला दायर किया था, लेकिन यह तब से ही लंबित है. वो बताते हैं, ‘चमकदार ग्रेफाइट कण कुओं, रसोई, खेतों में रह जाते हैं. यहां कई लोग अस्थमा और फेफड़ों के कैंसर जैसी सांस की समस्याओं से पीड़ित हैं और डॉक्टरों का कहना है कि यह बीमारी वेदांता की गतिविधियों के कारण हुई हैं.’ रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने स्वतंत्र रूप से इस बात की पुष्टि नहीं की है कि क्या वेदांता की इकाइयां ही क्षेत्र के स्वास्थ्य संबंधी मसलों के लिए जिम्मेदार थीं.

अवमानना के मामले की सुनवाई के दौरान गोवा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एक बार फिर दो इकाइयों के आसपास के क्षेत्र का निरीक्षण किया और बताया कि अन्य स्थानों के साथ सार्वजनिक कुओं में ‘चमकदार कण’ पाए गए हैं. जोनल कृषि कार्यालय ने जून 2022 में एक और निरीक्षण किया और खेतों में गिरने वाले ‘चमकदार कणों’, जो फसलों की कम उपज के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं, को जांचा. क्षेत्रीय कृषि कार्यालय ने बताया कि खेतों में पाए गए ‘चमकदार’ कणों के कारण उपज में कमी आ सकती है. पिछले साल मार्च में हुई जनसुनवाई में स्थानीय समुदाय ने वेदांता के विस्तार करने का पुरजोर विरोध किया था. पिछले साल अगस्त में वेदांता ने तब इन बातों का कोई जिक्र नहीं किया, जब पर्यावरण मंत्रालय इसकी ईआईए रिपोर्ट पर विचार कर रही थी.

वेदांता के कारण पैदा हुई समस्याएं एक दशक से अधिक समय से स्थानीय लोगों की चिंताएं बढ़ा रही हैं. लेकिन जैसे-जैसे कंपनी क्षेत्र में  विस्तार करेगी, इसके नतीजे वेदांता के बजाय यहां के रहवासियों को ही भुगतने होंगे.

(द वायर से साभार- लेखक द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की सदस्य हैं.)

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