मोदी सरकार के “विकास” का सच: रिकार्ड 25% से ज्यादा दिहाड़ी मज़दूर खुदकुशी को बेबस

घटते रोजगार, गिरती मज़दूरी व विकराल रूप लेती महँगाई के बीच निचले पायदान पर खड़े देश में दिहाड़ी मजदूरों की जिंदगी सबसे भयावह है और खुदकुशी करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।

जिस दरमियान देश में अडानियों-अंबनियों की संपत्तियाँ रोज नए रिकार्ड गति से बढ़ रही हों, उसी दौर में आम मज़दूर, विशेष रूप से दिहाड़ी मज़दूर रसातल में जा रहा है। इसकी एक बानगी एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट पेश करती है। साल 2021 में कुल आत्महत्या करने वालों में अकेले दिहाड़ी मजदूरों की संख्या एक चौथाई है, जो अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के रिपोर्ट के मुताबिक 2014 के बाद से देश में खुदकुशी से मरने वालों में दिहाड़ी मज़दूरों की हिस्सेदारी पहली बार तिमाही के आंकड़े को पार कर गई है। 2021 के दौरान दर्ज किए गए 1,64,033 आत्महत्या पीड़ितों में से चार में से एक दैनिक वेतन भोगी था।

“एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड्स इन इंडिया” की रिपोर्ट से पता चलता है कि 2021 में आत्महत्या पीड़ितों के बीच दैनिक वेतन भोगी सबसे बड़ा कामकाज-वार समूह रहा, जिसका आंकड़ा 42,004 आत्महत्याओं (यानी 25.6 प्रतिशत) है।

2020 में देश में दर्ज की गई 1,53,052 आत्महत्याओं में से 37,666 (24.6 प्रतिशत) के साथ, दैनिक वेतन भोगियों की हिस्सेदारी सबसे अधिक थी। 2019 में, कोविड के प्रकोप से पहले, दैनिक वेतन भोगियों की हिस्सेदारी दर्ज की गई 1,39,123 आत्महत्याओं में से 23.4 प्रतिशत (32,563) थी।

नवीनतम रिपोर्ट से पता चलता है कि 2021 के दौरान आत्महत्या पीड़ितों के बीच दैनिक वेतन भोगियों की हिस्सेदारी न केवल बढ़ी, बल्कि राष्ट्रीय औसत की तुलना में यह संख्या तेजी से बढ़ी। राष्ट्रीय स्तर पर, आत्महत्याओं की संख्या में वर्ष 2020 से 2021 तक 7.17 प्रतिशत की वृद्धि हुई। हालांकि, इस अवधि के दौरान दैनिक वेतन भोगी समूह में आत्महत्याओं की संख्या में 11.52 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

दिहाड़ी मज़दूरों की खुदकुशी के बढ़ती घटनाएं

घटते रोजगार, गिरती मज़दूरी व विकराल रूप लेती महँगाई के बीच सबसे निचले पायदान पर खड़े देश में दिहाड़ी मजदूरों की जिंदगी सबसे भयावह है और खुदकुशी करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।

2019 के आंकड़े में आत्महत्या से मरने वालों की कुल संख्या 1,39,123 में से 32,559 दिहाड़ी मज़दूर थे जो 23.4 फीसदी था। यानी दो साल पहले मौत को चुनने वाला हर चौथा दिहाड़ी मजदूर था, जो दर अब बढ़कर उससे ज्यादा हो गया है। 2020 में दिहाड़ी मजदूरों की खुदकुशी की संख्या 37,666 यानी 24.6 फीसदी हो गई थी।

यह साल 2015 में 23,779 यानी 17 फीसदी, वर्ष 2016 में बढ़कर 21,902 यानि 19 फीसदी, 2017 में 28,737 यानी 22.1 फीसदी और 2018 में 30,124 यानी 22.4 फीसदी हो गया था। आंकड़ों से स्पष्ट है कि खुदखुशी करने वाले दिहाड़ी मज़दूरों की संख्या हर वर्ष बढ़ रही हैं। इनमें पुरुषों की संख्या अधिक है।

खेतिहर मज़दूरों की बढ़ती आत्महत्याएं

इससे पहले राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की आत्महत्या 2019 की वार्षिक रिपोर्ट में भी ये खुलासा हुआ था कि किसानों की आत्महत्या में हल्की गिरावट आई है लेकिन दिहाड़ी मज़दूरों की आत्महत्या का प्रतिशत पिछले आठ वर्षों में 12 प्रतिशत बढ़ा है।

रिपोर्ट में खेतिहर मजदूरों की दैनिक मजदूरी संख्या को अलग से सूचीबद्ध किया गया है, जिन्हें “कृषि क्षेत्र में लगे व्यक्तियों” की श्रेणी के तहत एक उप-श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में “कृषि क्षेत्र में लगे व्यक्तियों” वाले समूह में 10,881 आत्महत्याएं दर्ज की गईं, जिनमें 5,318 “किसान / खेतिहर” और 5,563 “कृषि मजदूर” शामिल हैं।

नोटबंदी, जीएसटी से लेकर कोरोना पाबंदियों का कहर

कुल मिलाकर देखें तो मोदी राज के 8 सालों में मज़दूरों के हालत लगातार बुरे होते गए हैं और हालत से तंग आकार खुद को समाप्त करने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। नोटबंदी, जीएसटी से लेकर कोरोना पाबंदियों के दौर और तेजी से बढ़ती महँगाई और कर्ज के उलझाव में आमजन की तबाही बढ़ी है।

साल 2014 में दिहाड़ मजदूरों की आत्महत्या दर कुल खुदकुशी की 12 प्रतिशत हुआ करती जो मोदी सरकार के आठ साल के शासनकाल में बढ़ाकर 25 फीसदी से ज्यादा हो गई है।

%d bloggers like this: