रेलवे 1-4 वर्ष के बच्चों के लिए भी वसूल रहा है पूरा किराया, बर्थ न लेने का कोई विकल्प नहीं

पहले 5-11 वर्ष के बच्चों का आधा रेल किराया था, 2015 से बर्थ लेने पर पूरा किराया लगने लगा। साल 2020 से आवेदन में नाम भरते ही 1-4 वर्ष के बच्चों का भी पूरा किराया वसूला जाने लगा।

मोदी सरकार आम जनता की जेब पर हर तरीके से डकैती डालने में मुस्तैदी से जुटी हुई है। चाहें जीएसटी से लगातार बढ़ते टैक्स हों, चाहें बैंक, यात्रा, ईधन आदि पर वसूली हो। रेल महकमें ने वरिष्ठ नागरिकों की रियायत खत्म करने के बाद अब आम रेल यात्रियों को एक और तगड़ा झटका दिया है।

अभी तक रेलवे में पांच साल तक के बच्चे मुफ्त सफर करते थे। लेकिन अब 5 साल से कम उम्र के बच्चों को भी पूरा किराया देना होगा। हालांकि यह व्यवस्था वैकल्पिक है। अब 1 साल के बच्चे के लिए भी अलग सीट मांगने पर पूरा किराया देना होगा।

ज्ञात हो कि रेलवे को निजी मुनाफाखोरों को सौंपने के क्रम में रेल महकमा सारे जुगत में भिड़ा है। तमाम ट्रेनों में चुपके से स्लीपर कोच कम करके एसी कोच बढ़ाने को गति दे दिया है। रेलवे ने हाल ही में कुछ ट्रेनों में बेबी बर्थ को शामिल किया है। तमाम और तरीके से किराये में वृद्धि जारी है।

इस गोरखधंधे पर गौर करें

जानकारी के मुताबिक रेलवे का यह नियम था कि अगर किसी बच्चे की उम्र 1 से 4 वर्ष तक है तो उसका ट्रेन टिकट लेने की आवश्यकता नहीं होती रही है। 5 से 12 साल तक की उम्र के बच्चों के लिए महज आधा किराया लगता था।

मोदी युग में नियम बदल गया।  रेलवे ने साल 2015 में सर्कुलर जारी किया, जिसमे बताया गया था कि पांच से 12 साल का टिकट आधा लगेगा। अगर बच्चे के लिए सीट बुक करते हैं तो पूरा किराया देना होगा

इसके तहत टिकट पहले से बुक नही है तो आरक्षित टिकट के साथ उस बच्चे का मात्र आधा किराया चुकाने पर पहले से जारी आरक्षित टिकट के पीएनआर के साथ हाफ टिकट जारी होने लगा। इससे रेलवे की बम्पर कमाई हुई।

इसके तहत 5-11 वर्ष के बच्चों के टिकट रेल आरक्षण केंद्र के काउंटरों और आइआरसीटीसी की वेबसाइट पर बनने लगे। इन बच्चों का टिकट बनाते समय विकल्प देना होता है। बर्थ लेने पर इन बच्चों का पूरा किराया पड़ता है। जबकि बर्थ न लेने पर किराया आधा ही देना होता है।

अब रेलवे ने एक से चार वर्ष की उम्र के बच्चों के लिए भी टिकट बुकिंग शुरू कर दी है। पैसेंजर रिजर्वेशन सिस्टम ने एक से चार वर्ष तक की उम्र के बच्चों के नाम भरने के बाद बर्थ न लेने का कोई विकल्प ही नहीं रखा है। ऐसे में आवेदन फार्म में नाम भरते ही पूरा किराया लेकर रेलवे एक से चार साल की उम्र तक के बच्चों का भी टिकट जारी कर दे रहा है।

बच्चों से किराया वसूली का मामला

यात्री आरक्षण प्रणाली ने एक से चार साल की उम्र के बच्चों के नाम भरने के बाद बच्चे की बर्थ न लेने का कोई विकल्प नहीं रखा है। इसका मतलब ये है कि अब अगर रिजर्वेशन कराते वक्त बच्चे जिसकी उम्र 1-4 साल के बीच है, उसकी भी टिकट लेनी होगी। रेलवे या फिर आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर यह विकल्प हटा लिया गया जिसमें 1-4 साल तक के बच्चे मुफ्त यात्रा कर सकते थे।

आईआरसीटीसी वेबसाइट पर रेलवे के नए नियम पर गौर करें तो अब सिर्फ 0 से 1 साल तक के बच्चे ही पूरी तरह से फ्री में सफर कर सकेंगे।

दरअसल मयंक नामक यात्री ने 13 अगस्त को राजकोट से सोमनाथ तक ओखा-सोमनाथ एक्सप्रेस की एसी फर्स्ट बोगी में एक साल के बच्चे सहित परिवार के चार लोगों का रिजर्वेशन कराया था। यह मामला तेजी से इंटरनेट मीडिया पर फैला।

रेलवे द्वारा इसका संज्ञान लेकर सफाई में कहा गया कि बच्चे का रिजर्वेशन कराने पर उनका पूरा किराया लेकर सीट देने का आदेश वर्ष 2020 के मार्च महीने का है।  

भारतीय रेलवे द्वारा 06.03.2020 को जारी सर्कुलर संख्या 12 के अनुसार, 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यात्रा के लिए आरक्षण की आवश्यकता नहीं है और वे बिना टिकट के ट्रेन में यात्रा कर सकते हैं। हालांकि, अगर बर्थ की जरूरत है, तो टिकट बुक करके पूरे वयस्क किराए का भुगतान करना होगा। इसके अलावा, एक रिपोर्ट में एक साल के बच्चे का ट्रेन टिकट लगने की भी जानकारी दी गई है

समाचार एजेंसी पीटीआइ ने रेलवे के हवाले से कहा है कि किसी यात्री को यदि उसके पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए बर्थ या सीट की आवश्यकता है तो उस स्थिति में सीट बुकिंग का पूरा वयस्क किराया लिया जाएगा। पीआईबी फैक्ट चैक ने कहा कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए ट्रेन टिकट खरीदना पूरी तरह वैकल्पिक सुविधा है।

पूँजीपतियों की चाहत के अनुसार मोदी सरकार की योजनाएं

एक साल के बच्चे से भी किराया वसूली की यह तो महज शुरुआत है। कुछ समय बाद यह “वैकल्पिक” भी हट जाएगा। क्योंकि पूँजीपतियों की चाहत के अनुसार मोदी सरकार की यही योजना है। 5-11 साल के बच्चों से किराया वसूली का मामला सामने है।

यह गौरतलब है कि मोदी युग में जनता से वसूली के ऐसे तमाम धंधे अगर-मगर और वैकल्पिक शुरू होकर स्थाई रूप ले लेते हैं। वरिष्ठ नागरिकों, खिलाड़ियों आदि को रेल किराये में मिलने वाली रियायतें कोविड के बहाने स्थगित हुईं और अब पूर्णतः बंद हो गईं।

रसोई गैस हो या राशन, ‘सब्सिडी की रकम बैंक खाते में आएगा’ को देख सकते हैं। किस तरह ये जनता से छिनती गईं। कैसे पूर्व में मिलने वाली तमाम सुविधाएं क्रमशः बाजार के हवाले हो चुकी हैं।

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