मज़दूर-विरोधी लेबर कोड और निजीकरण के खिलाफ मज़दूर कन्वेंशन 28 अगस्त को दिल्ली में

13 नवंबर दिल्ली चलो आह्वान के साथ पूर्वी भारत के कोलकाता और दक्षिण भारत के हैदराबाद कन्वेन्शन के बाद मासा का उत्तर भारत कन्वेन्शन मज़दूर हक़ के संघर्ष को तेज करने के लिए है।
मज़दूर-विरोधी चार लेबर कोड तत्काल रद्द करने, सार्वजनिक उद्योगों-संपत्तियों का निजीकरण बंद करने सहित विभिन्न माँगों को लेकर मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) रस्मअदायगी नहीं, मज़दूर वर्ग का निरंतर, जुझारू और निर्णायक संघर्ष तेज करने का ऐलान किया है। 13 नवंबर को राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान से राष्ट्रपति भवन तक मार्च का आह्वान किया है।
आंदोलन नई ऊंचाई पर लाने के इस क्रम में मासा ने पिछले दिनों 2 जुलाई पूर्वी भारत का कोलकाता में और 31 जुलाई को दक्षिण भारत का हैदराबाद में कन्वेन्शन कर चुका है। अब मासा का उत्तर भारत कन्वेन्शन 28 अगस्त, 2022 को राजा राम मोहन रॉय हॉल, आईटीओ, नई दिल्ली में होगा।
उल्लेखनीय है कि देशभर की जुझारू ट्रेड यूनियनों, मज़दूर संगठनों के साझा मंच मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) का पहला सम्मेलन 6 साल पहले 28 अगस्त, 2016 को दिल्ली में ही हुआ था। तबसे यह मंच अपनी निरंतर यात्रा को आगे बढ़ा रहा है।
28 अगस्त, 2022 कन्वेन्शन के लिए मासा द्वारा जारी पर्चा-
मज़दूर-विरोधी चार लेबर कोड तत्काल रद्द करो!
सार्वजनिक उद्योगों-संपत्तियों का निजीकरण बंद करो!
बिना शर्त यूनियन गठन-हड़ताल-प्रदर्शन का अधिकार, ठेकाप्रथा-फिक्स्ड टर्म-नीम ट्रेनी ख़त्म करके स्थायी काम पर स्थायी रोजगार, समान काम का समान वेतन, दैनिक न्यूनतम मजदूरी ₹1000, पूरा साल कार्य नहीं तो महीने में ₹15000 बेरोजगारी भत्ता, सामाजिक सुरक्षा, कार्यस्थल पर सुरक्षा, श्रम कानूनों की सुरक्षा, आवास-शिक्षा-स्वास्थ्य व खाद्य सुरक्षा – सुनिश्चित करो!
जाति, धर्म-सम्प्रदाय, क्षेत्र, लिंग के आधार पर मज़दूरों में बंटवारा, गैरबराबरी और नफ़रत की राजनीति बंद करो! महंगाई पर रोक लगाओ!
साथियों,
पूंजीपति वर्ग ने अपनी वफ़ादार मोदी सरकार के ज़रिए आज पूरे देश के मज़दूर वर्ग और मेहनतकश जनता पर 1947 के बाद से सबसे बड़ा हमला बोल दिया है। देशी-विदेशी पूंजीपतियों के इशारे पर केंद्र सरकार द्वारा पुराने श्रम कानूनों को ख़त्म करके चार नई श्रम संहिताएं पारित की गयी हैं, जिनको जल्द ही देश भर में लागू करने की तैयारी चल रही है। सदियों से संघर्ष करके, हजारों मज़दूरों की कुर्बानी के बाद मज़दूर वर्ग ने जिन अधिकारों को हासिल किया था – स्थायी काम पर स्थायी रोज़गार, आठ घंटा काम, यूनियन बनाने और हड़ताल करने का अधिकार, नौकरी की सुरक्षा व सामाजिक सुरक्षा, जायज न्यूनतम मजदूरी का अधिकार आदि – आज इन सब को छीना जा रहा है। ये श्रम संहिताएं असल में मज़दूरों के मूलभूत अधिकारों को छीनकर बंधुआ मज़दूर बनाने की साजिश हैं।
साथ में मोदी सरकार आज तमाम सार्वजनिक संपत्तियों जैसे रेल, हवाई अड्डा, बंदरगाह, तेल, टेलिकॉम, बिजली, कोयला, बीमा, रक्षा आदि सब पूंजीपतियों के हवाले कर देश बेच रही है। अडानी आज सरकारी संपत्ति खरीद कर दुनिया का चौथा सबसे अमीर आदमी बन गया है, वहीं हमारा देश भुखमरी सूचकांक में 118 देशों में 101वें स्थान पर, और गरीबी में अफ़्रीकी देश नाइजीरिया से भी नीचे चला गया है। पूंजीपतियों को भरपूर टैक्स छूट दी जा रही है, हजारों करोड़ का बैंक लोन माफ़ किया जा रहा है और मेहनतकश जनता की बुनियादी ज़रूरतों के सामान व आटा, दूध, सब्जी आदि खाद्य वस्तुओं पर भी जीएसटी लगाया जा रहा है। कोरोना काल में सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था का जो संकट सामने आया, उसको हल करने के बदले स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन जैसे बुनियादी क्षेत्रों को निजीकरण की तरफ यानी मेहनतकश जनता की पहुँच के बाहर और तेजी से धकेला जा रहा है।
अम्बानी-अडानी और तमाम देशी-विदेशी पूंजीपतियों के इशारे पर जहां मोदी सरकार और राज्य सरकारें मेहनतकश जनता पर चौतरफा हमला कर रही हैं, वहीं किसी भी प्रतिवाद को कुचलने के लिए दमन और ‘फूट डालो राज करो’ की नीति को अपनाया जा रहा है। धार्मिक कट्टरता और अंध-राष्ट्रवाद का माहौल बनाकर मेहनतकश जनता को धर्म, जात, क्षेत्र के आधार पर बांटा जा रहा है, राजनीतिक मकसद से नफ़रत का माहौल पैदा किया जा रहा है, प्रतिवाद करने पर ‘देशद्रोही’ का ठप्पा लगाया जा रहा है, भारी संख्या में सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को लगातार जेलों में डाला जा रहा है।

देशी-विदेशी कॉर्पोरेट पूंजी और फासीवादी ताकतों के इन हमलों और साजिशों को मज़दूर-वर्गीय एकता और मेहनतकश जनता का जुझारू संघर्ष ही नाकाम कर सकता है। मगर पिछले कई दशकों में देश और दुनिया में एक वर्ग के आधार पर मजदूरों की एकजुटता और उनका संघर्ष कमजोर हुआ है। उत्पादन में बदलाव के साथ मज़दूर वर्ग को अपने ही अंदर अलग-अलग श्रेणियों में बांट दिया गया। मज़दूर आंदोलन में क्रांतिकारी तेवर के बदले समझौतापरस्त और पूंजीपरस्त प्रवृत्तियों के हावी होने से शासक वर्ग आज और भी हमलावर बना गया है। भारत में नई श्रम संहिताएं मज़दूर वर्ग पर फासीवादी हमलों का ही एक रूप बन कर आयी हैं, जिसके पीछे देशी-विदेशी बड़ी पूंजी का प्रत्यक्ष हाथ है।
स्थापित केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें अपनी कमजोरी, समझौतापरस्त नीति और ‘आंदोलन’ की रस्म-अदायगी के चलते नई श्रम संहिताओं के खिलाफ देश भर में मज़दूर वर्ग के एक निरंतर, जुझारू और निर्णायक संघर्ष को दिशा देने में नाकाम साबित हुई हैं। किसान आंदोलन ने कॉर्पोरेट-पक्षीय कृषि कानूनों के खिलाफ निरंतर जुझारू आंदोलन चलाकर आज उदाहरण पेश किया है कि यदि मज़दूर वर्ग भी पूंजीपति वर्ग की प्रबंधक सरकारों द्वारा बनाए गए मज़दूर विरोधी नीतियों व मौजूदा शोषणमूलक दमनकारी व्यवस्था के खिलाफ निरंतर जुझारू संघर्ष चलाए तो वह भी सफलता हासिल कर सकता है।
नई श्रम संहिताओं के खिलाफ देश के पैमाने पर ऐसा मज़दूर आंदोलन अभी तक नहीं बन पाया है। मगर देश भर में बीते कुछ समय में कई जुझारू मज़दूर संघर्ष हमने देखे हैं जो हमारे अंदर उम्मीद जगाते है। मारुति-होंडा-प्रिकोल-एलाइड-निप्पन आदि सैंकड़ों कारखानों में मज़दूरों का जुझारू संघर्ष, बेंगलुरु में गारमेंट मज़दूरों का संघर्ष, केरल के चाय बागान मज़दूरों का संघर्ष, आर्डिनेंस-खदान सहित कई सेक्टरगत संघर्ष, असंगठित क्षेत्र में आशा-आंगनवाड़ी महिला मज़दूरों का संघर्ष, प्लेटफ़ॉर्म और गिग मज़दूरों का संघर्ष जारी रहा है। इन संघर्षों का दायरा स्थानीय या सेक्टरगत ही रहा, मगर नव-उदारवादी नीतियों के खिलाफ एक जुझारू संघर्ष की अंतर्वस्तु भी इन संघर्षों में हमें देखने को मिली।
मज़दूर विरोधी श्रम संहिताओं को रद्द करके मज़दूर-पक्षीय श्रम कानून बनाने, निजीकरण के जरिये देश बेचने की प्रक्रिया को रद्द करके सभी बुनियादी उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करने, व संगठित-असंगठित क्षेत्र के सभी मज़दूरों के सम्मानजनक स्थायी रोजगार और जायज अधिकारों के लिए संघर्ष को एक निरंतर, जुझारू और निर्णायक दिशा देना आज बेहद जरूरी बन गया है, जिसको असल में इस शोषण पर टिकी दमनकारी व्यवस्था को ही बदलने के संघर्ष में तब्दील करना पड़ेगा।

मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) देश भर के जुझारू मज़दूर यूनियनों/संगठनों का एक तालमेल है, जो इसी दिशा में मज़दूर वर्ग के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। उपरोक्त मुख्य मांगों के साथ मासा देश भर में प्रचार आंदोलन चला रहा है। इस कड़ी में पूर्व व दक्षिण भारत के बाद दिल्ली में 28 अगस्त 2022 को उत्तर भारत का मज़दूर कन्वेंशन आयोजित किया जा रहा है जिसको सफ़ल बनाने का हम आह्वान करते हैं।
आगामी 13 नवंबर 2022 को देश भर के संघर्षशील मज़दूर साथी इन्हीं मांगों को हासिल करने के लिए दिल्ली की सड़कों पर विशाल मज़दूर रैली निकाल कर राष्ट्रपति भवन चलेंगे। इस संघर्ष में हर सचेत मज़दूर साथी की सक्रिय भागीदारी की ज़रूरत है। इस पर्चे के जरिये हम अपील करते हैं कि आप मासा से जुड़ें और अपने इलाका/कार्यस्थल में इस संघर्ष को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाएं। हमारी वर्गीय एकता ही निर्णायक जीत दिला सकती है!
मज़दूर वर्ग के पास खोने के लिए अपनी बेड़ियों को छोड़कर और कुछ नहीं है, जीतने के लिए है पूरी दुनिया!
मासा की केंद्रीय मांगें :
- मज़दूर विरोधी चार श्रम संहिताएं तत्काल रद्द करो! श्रम कानूनों में मज़दूर-पक्षीय सुधार करो!
- बैंक, बीमा, कोयला, गैस-तेल, परिवहन, रक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि समस्त सार्वजनिक क्षेत्र-उद्योगों-संपत्तियों का किसी भी तरह का निजीकरण बंद करो!
- बिना शर्त सभी श्रमिकों को यूनियन गठन व हड़ताल-प्रदर्शन का मौलिक व जनवादी अधिकार दो! छटनी-बंदी-ले ऑफ गैरकानूनी घोषित करो!
- ठेका प्रथा ख़त्म करो, फिक्स्ड टर्म-नीम ट्रेनी आदि संविदा आधारित रोजगार बंद करो – सभी मज़दूरों के लिए 60 साल तक स्थायी नौकरी, पेंशन-मातृत्व अवकाश सहित सभी सामाजिक सुरक्षा और कार्यस्थल पर सुरक्षा की गारंटी दो! गिग-प्लेटफ़ॉर्म वर्कर, आशा-आंगनवाड़ी-मिड डे मिल आदि स्कीम वर्कर, आई टी, घरेलू कामगार आदि को ‘कर्मकार’ का दर्जा व समस्त अधिकार दो!
- देश के सभी मज़दूरों के लिए दैनिक न्यूनतम मजदूरी ₹1000 (मासिक ₹26000) और बेरोजगारी भत्ता महीने में ₹15000 लागू करो!
- समस्त ग्रामीण मज़दूरों को पूरे साल कार्य की उपलब्धता की गारंटी दो! प्रवासी व ग्रामीण मज़दूर सहित सभी मज़दूरों के लिए कार्य स्थल से नजदीक पक्का आवास-पानी-शिक्षा-स्वास्थ्य-क्रेच की सुविधा और सार्वजनिक राशन सुविधा सुनिश्चित करो!
उत्तर भारत का मज़दूर कन्वेंशन, 28 अगस्त 2022, सुबह 10 बजे से राजा राम मोहन रॉय हॉल, आईटीओ, नई दिल्ली में होगा।

मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा)
