योगी सरकार का फरमान: उत्तरप्रदेश में 50 साल से अधिक उम्र के सरकारी कर्मी होंगे रिटायर

उत्तर प्रदेश के सभी विभागों में 31 मार्च, 2022 तक 50 वर्ष की आयु पूरी कर चुके कर्मचारियों की स्क्रीनिंग करने का काम 31 जुलाई तक पूरा करने का शासनादेश जारी हो गया है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने फैसला किया है कि वह अपने उन कर्मचारियों को रिटायर कर देगी जो पचास साल की उम्र पार कर चुके हैं। यह नियम सभी कर्मचारियों पर लागू नहीं होगा बल्कि इसके लिए उन कर्मचारियों की पहचान की जाएगी जो काम करने लायक नहीं हैं या फिर उन पर भ्रष्टाचार जैसे आरोप हैं।

मोदी सरकार ने पहले ही जारी किया था यह फरमान

उल्लेखनीय है कि केंद्र की मोदी सरकार ने 2019 में ही ऐसा आदेश पारित किया था, जिसके तहत 30 साल की नौकरी या 50 साल उम्र पार अधिकारियों को जबरिया निकालने (आवश्यक रिटायरमेंट) का खेल शुरू हुआ था। प्रचंड बहुमत के बाद दूसरे कार्यकाल में इसे केंद्र के समस्त कर्मचारियों पर भी लागू कर दिया।

जिसके बाद राज्य सरकारों ने भी यही राह पकड़ी। योगी सरकार तो इस मामले में और तेज दौड़ रही है। पूर्व में भी उसने यह प्रक्रिया शुरू की थी। अब तो नया शासनदेश भी जारी हो गया।

योगी सरकार के शासनदेश में क्या है?

राज्य के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने मंगलवार को सभी विभागों में 50 वर्ष की आयु पूरी कर चुके कर्मचारियों की स्क्रीनिंग करने का काम 31 जुलाई तक पूरा करने का शासनादेश जारी किया है। इसके तहत जिन कर्मचारियों ने 31 मार्च, 2022 तक 50 साल की उम्र पूरी कर ली हो, वो स्क्रीनिंग के दायरे में आएंगे। स्क्रीनिंग में कर्मचारियों का एसीआर यानी एनुअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट भी देखा जाता है।

शासनादेश में कहा गया है कि राजकीय सेवा नियमावली के तहत नियुक्ति अधिकारी किसी भी समय किसी भी कार्मिक को पचास वर्ष की आयु पूरी करने के बाद बिना कोई कारण बताए तीन महीने का नोटिस देकर अनिवार्य रूप से रिटायर कर सकता है। मुख्य सचिव ने अनिवार्य रूप से रिटायर किए गए कर्मचारियों की सूचना 15 अगस्त तक कार्मिक विभाग को प्रस्तुत करने के निर्देश दिए है।

शासनादेश में यह भी कहा गया है कि स्क्रीनिंग कमेटी यदि किसी कर्मचारी को बहाल रखने का फैसला करती है तो उस कर्मचारी को दोबारा स्क्रीनिंग से नहीं गुजरना होगा।

दो साल से स्क्रीनिंग बंद थी

स्क्रीनिंग का काम पहले भी चल रहा था लेकिन दो साल से कोविड संक्रमण की वजह से बंद था। साल 2018 से अब तक यूपी में 450 से ज्यादा कर्मचारियों को अनिवार्य रिटायरमेंट दिया जा चुका है। इनमें राजपत्रित अधिकारी भी शामिल हैं।

पिछले साल मार्च में तीन आईपीएस अधिकारियों को भी अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई थी जिनमें अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक स्तर के चर्चित अधिकारी अमिताभ ठाकुर भी शामिल थे। उनके अलावा राजेश कृष्णा और राकेश शंकर को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई थी। अब तक कोई आईएएस अधिकारी इस दायरे में शामिल नहीं हुआ है।

पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर इस शासनादेश को ही गैरकानूनी मानते हैं और कहते हैं कि कोर्ट के सामने यह टिक नहीं पाएगा। डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा कि अपने मामले में भी वो कोर्ट में गए हैं और कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं।

वहीं राज्य कर्मचारियों के संगठनों ने सरकार के इस फैसले पर सख्त नाराजगी दिखाई है और इसके खिलाफ आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं।

आंदोलन की तैयारी में कर्मचारी

यूपी राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के महामंत्री अतुल मिश्र ने डीडब्ल्यू को बताया, “सरकार कर्मचारियों का उत्पीड़न कर रही है और कुछ नहीं। अपने हिसाब से ये अधिकारी तय करेंगे कि किसे निकालना है किसे नहीं। जो कर्मचारी पचास साल के ऊपर का हो गया है, खतरनाक जगहों पर काम नहीं कर सकता है तो क्या उसे निकाल दिया जाएगा? सरकार कर्मचारियों को बड़े आंदोलन की ओर धकेल रही है।

मुख्य सचिव खुद तो रिटायरमेंट के बाद एक साल के एक्सटेंशन पर हैं और दूसरे कर्मचारियों को पचास से ज्यादा की उम्र पर रिटायर करने का आदेश जारी कर रहे हैं। क्या उनके अलावा और कर्मचारी अपना काम करने में सक्षम नहीं हैं?”

अतुल मिश्र कहते हैं कि अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने का शासनादेश जारी करना सरकार की कुटिल नीति का परिचायक है और कर्मचारियों को परेशान करने और उनका शोषण करने का तरीका है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के विकल्प से तो कर्मचारियों को आर्थिक नुकसान नहीं होता था लेकिन अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करेंगे तो उस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाएंगे या फिर अक्षम बताएंगे जिससे कर्मचारियों को आर्थिक रूप से तो नुकसान उठाना ही पड़ेगा उन पर आरोप अलग लगेंगे।

किस आधार पर नौकरी से निकाला जायेगा

उत्तर प्रदेश में विभिन्न श्रेणियों में करीब 28 लाख सरकारी कर्मचारी हैं और ऐसे कर्मचारियों की संख्या काफी ज्यादा है जिनकी उम्र पचास साल से ज्यादा हो गई है। आईपीएस अधिकारी रहे अमिताभ ठाकुर कहते हैं कि किसी को भी अनिवार्य रूप से रिटायर करने का विधिक प्रावधान यह है कि यदि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से अक्षम हो और काम करना ना तो उसके हित में हो और ना ही सरकार के हित में हो, ऐसी स्थिति में ही किसी को निकाला जा सकता है।

उनके मुताबिक, “इसके लिए ना तो कोई मापदंड है और न ही कोई अर्हता तय की गई है, सिर्फ जनहित में किसी को निकाला जा सकता है। भ्रष्टाचार का या अक्षमता का आरोप लगाकर अपनी नापसंद वाले लोगों को बाहर करने का एक तरीका भर है और नौकरशाही को हावी कर रहे हैं। यही नहीं, यह तो भ्रष्टाचार का नया जरिया भी बनेगा। सूची में शामिल करने और न करने के नाम पर लूट-खसोट होगी। कुल मिलाकर, मनमाने ढंग से उन लोगों को लोगों को निकालने का उपक्रम हो रहा है जो उनकी पसंद नहीं हैं।”

अमिताभ ठाकुर कहते हैं कि सरकार को यह पता है कि इसके खिलाफ कर्मचारी न सिर्फ आंदोलन करेंगे बल्कि कोर्ट में जाएंगे, फिर भी वह ऐसा आदेश जारी करके लोगों को परेशान करना चाह रही है। वो कहते हैं, “तमाम मामलों में कोर्ट में चैलेंज हो चुका है, यह भी होगा। मैंने भी अपने वीआरएस को चुनौती दी है। लेकिन ये मनमानी कर रहे हैं। ये मनमाना तरीका अपना रहे हैं। जिसको चाहेंगे उसे हटा देंगे।”

इससे पहले पुलिस विभाग में ऐसे कर्मचारियों की स्क्रीनिंग करने को कहा गया था जिनकी उम्र पचास साल के ऊपर है। स्क्रीनिंग की अवधि कई बार बढ़ाई गई लेकिन अब तक इसकी फाइनल रिपोर्ट नहीं पेश की गई है।

वेबदुनिया से साभार संपादित

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