कोलकाता कन्वेंशन का आह्वान- लेबर कोड्स को रद्द कराने 13 नवंबर को दिल्ली चलो!

कन्वेंशन में मज़दूरों को बंधुआ बनाने वाले 4 लेबर कोड्स का जोरदार प्रतिवाद हुआ और मज़दूर विरोधी कानूनों को समाप्त कर मज़दूरों के हक में नए श्रम कानून बनाने की माँग बुलंद हुई।

कोलकाता। मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) की पूर्वी भारतीय कमेटी की ओर से एकदिवसीय मज़दूर कन्वेंशन काफी गहमागहमी के साथ संपन्न हुआ। मज़दूर विरोधी चारो श्रम संहिताओं को रद्द कराने के लिए दिल्ली कूच और राष्ट्रपति को ज्ञापन देने का ऐलान हुआ।

पूर्वी भारत के कन्वेंशन में मज़दूर विरोधी 4 श्रम संहिताओं को तत्काल रद्द करने के साथ मजदूरों के हित में श्रम सुधार करने तथा श्रम कानूनों को पूरे देश में सख्ती से लागू करने; निजीकरण व ठेकाकरण जैसी नवउदारवादी नीतियों पर तत्काल रोक लगाने, सभी सेक्टरों में स्थाई काम पर स्थाई रोजगार की नीति लागू करने; बेरोजारी, सेना में भी ठेका प्रथा, व समाज के सैन्यीकरण को बढ़ावा देने वाली ‘अग्निपथ’ योजना को तत्काल वापस लेने; भाजपा आरएसएस द्वारा चलाई जा रही नफरत व सांप्रदायिकता की राजनीति तथा अल्पसंख्यकों व विरोध की आवाजों को कुचलने हेतु चल रहे “बुलडोजर राज” पर तत्काल रोक लगाने तथा समस्त आंदोलनकारियों व बेगुनाह जनता की तत्काल रिहाई और सभी दर्ज झूठे मुक़दमे वापस लेने का प्रस्ताव पारित हुए।

मासा के पूर्वी भारत कन्वेंशन में पारित प्रस्ताव

जोरदार कन्वेन्शन में विरोध का स्वर हुआ मुखर

देशभर के जुझारू संघर्षशील ट्रेड यूनियनों व मज़दूर संगठनों के साझा मंच मासा की ओर से 2 जुलाई को सुबर्ण बनिक समाज हॉल, कोलकाता में सम्पन्न मज़दूर कन्वेंशन में पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड आदि पूर्वी भारतीय राज्यों से बड़े पैमाने पर मज़दूरों ने भागीदारी की।

खचाखच भरे हाल और हाल के बाहर तक मौजूद मज़दूरों के बीच आयोजित कन्वेंशन में वक्ताओं ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार देश और दुनिया के पूँजीपतियों के हित में पूरे जोर-शोर से और आक्रामक मूड में मेहनतश जनता पर कहर ढा रही है।

विभिन्न क्षेत्रों से आए मज़दूर प्रतिनिधियों ने कहा कि आज के दौर में जब मज़दूरों के हक में कानूनों को और लचीला और प्रभावकारी बनाया जाना चाहिए, तो मोदी सरकार कॉरपोरेट के हित में लंबे संघर्षों के दौरान हासिल 44 श्रम कानूनों को ही नेस्तनाबूद करके 4 श्रम संहिताओं में बदल दिया है, उसकी नियमावली भी तैयार कर ली है और लागू करने को तैयार है।

मीडिया द्वारा लगातार भ्रमित कर माहौल बनाया जा रहा है कि नए क़ानून मज़दूरों कर्मचारियों को फायदा पहुंचाने वाले हैं। जबकि इसके विपरीत नए क़ानून स्थाई नौकरी की जगह नियत अवधि (फिक्स टर्म एंप्लॉयमेंट) को लागू करेंगे, जैसा कि सेना में भर्ती का क़ानून बना है।

मालिकों द्वारा मनमर्जी रखने-निकालने की खुली छूट देने वाले नए कानून बंदी, छँटनी, लेऑफ के लिए मालिकों के मनमाफिक कानूनी अधिकार देने, ट्रेड यूनियन अधिकारों और हड़ताल व आंदोलन के अधिकारों से वंचित करने, मालिकों को किसी भी प्रकार के अपराध पर भी आपराधिक कार्रवाई ना चलाने और मज़दूरों को गैर कानूनी हड़ताल के नाम पर मुक़दमे, जेल और जुर्माने के प्रवधान हैं।

वक्ताओं ने कहा कि कार्यस्थल व सामाजिक सुरक्षा के पूरे मानदंड को बदल दिया गया है। एक बड़ी आबादी को कर्मकार की परिभाषा से ही बाहर धकेल दिया गया है। आशा, आंगनवाड़ी, मिड डे मील जैसे स्कीम वर्कर से बग़ैर मज़दूरी पूरा काम कराने जैसे फोकट का मज़दूर बनाया गया है। नीम ट्रेनी के नाम पर फोकट के मज़दूरों का धंधा अलग से चल रहा है।

आज एक बड़ी आबादी असंगठित क्षेत्र में धकेल दी गई है, उन्हें और अधिकार विहीन बनाया गया है। संगठित क्षेत्र में भी बड़ी आबादी गैर कानूनी ठेके में काम कर रही है। इन धंधों को ये संहिताएं कानूनी मान्यता दे रही हैं, जोमैटो, स्विग्गी, फ्लिपकार्ट जैसे डिलीवरी बॉय के रूप में काम कर रहे, ओला, उबर जैसी ऑनलाइन टैक्सियों का संचालन करने वाले, घरों में काम करने के लिए ऑनलाइन मज़दूर आपूर्ति जैसे गिग और प्लेटफार्म वर्कर्स आदि एक बड़ी आबादी को कोई भी हक देना तो दूर उन्हें कर्मकार ही नहीं माना गया है। उनकी सामाजिक सुरक्षा तक नहीं है।

वक्ताओं ने कहा कि कथित देशभक्त सरकार ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा देते हुए जनता के खून पसीने से खड़ा हुए तमाम सार्वजनिक उद्योगों, सरकारी संपत्तियों को कौड़ियों के मोल लुटा रही है। कोयला, इस्पात, रेल, टेलीकॉम, विमान, बंदरगाह, बैंक, एलआईसी, रक्षा फैक्ट्री आदि तमाम राष्ट्रीयकृत उद्योगों को चंद मुट्ठी भर बड़े पूंजीपतियों को बेच रही है।

आज पूरे देश में शासन तंत्र का दमन बेलगाम हो गया है, देश को बुलडोजर राज में तब्दील कर दिया गया है। वहीं सरकार की नीतियों के खिलाफ और अपने हक के लिए संघर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं, मज़दूरों आदि के ऊपर फर्जी मुकदमा ठोकने, जेलों में धकेलने और लाठियों गोलियों से कुचलने का काम तेज हो गया है।

वक्ताओं ने कहा कि लुटेरी जमात के हितों को साधने के लिए आरएसएस-भाजपा ने सत्ता का दुरुपयोग करते हुए पूरे देश को सांप्रदायिक उन्माद की आग में धकेल दिया है और मज़दूर के खिलाफ ही मज़दूर को दुश्मन बना दिया है। धर्म, वर्ण, जाति, भाषा आदि के आधार पर हिंसात्मक विभाजन पैदा कर वे अपनी कारस्तानियां जारी रखे है।

ऐसे में जहाँ अडानी-अंबानी जैसे धनपति मालामाल हो रहे हैं वहीं जनता कंगाल हो रही है। फिरकापरस्ती के बीच बेरोजगारी-महँगाई बेलगाम हो चुकी है।

मज़दूर प्रतिनिधियों ने कहा कि ऐसे कठिन स्थितियों में व्यापक और जुझारू आंदोलन को आगे बढ़ाए बगैर कुछ एक सालाना विरोध प्रदर्शनों और साल भर में एक दो हड़तालों की रस्म अदायगी से कुछ भी होने वाला नहीं है। आज किसान आंदोलन से सीख लेते हुए उससे भी बड़े और जुझारू आंदोलन को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है।

मासा ने ऐलान किया कि 13 नवंबर 2022 को देश की राजधानी दिल्ली में देश के सर्वोच्च पद पर आसीन और मज़दूर विरोधी श्रम संहिताओं पर हस्ताक्षर करने वाले देश के राष्ट्रपति भवन मज़दूर कूच करेंगे और चारो श्रम संहिताओं को रद्द करने की मांग बुलंद करेंगे।

सरकार द्वारा मेहनतकशों के खिलाफ जंग के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करने के आह्वान के साथ कन्वेन्शन समाप्त हुआ।

कन्वेंशन को लाल झण्डा मज़दूर यूनियन समन्यवय समिति के सोमेन्दु गांगुली, मज़दूर सहयोग केंद्र के मुकुल, बिहार कोलिएरी मज़दूर यूनियन के हलधर महतो, स्ट्रगलिङ्ग वर्कर्स कोओर्डिनेशन कमेटी (एसडब्लूसीसी) की मुनमुन, जन संघर्ष मंच हरियाणा के पाल सिंह, आइएफटीयू सर्वहारा के कन्हाई बर्नवाल, ग्रामीण मज़दूर यूनियन बिहार के अमित, इन्कलाबी मज़दूर केंद्र के पंकज, मज़दूर सहायता समिति के बिक्रम व टीयूसीआई के हैदर आदि ने संबोधित किया।

अध्यक्ष/संचालक मण्डल में अमिताव भट्टाचार्य, सौजन्य, प्रवाश घोषाल, सुनील पाल और अमित कुमार शामिल थे।

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