राजस्थान सरकार की दबंगई: ग्रामीणों के बिजली काटने, गिरफ्तारियाँ और फर्जी मुक़दमें निंदनीय

दमन की जमीनी रिपोर्ट : बिजली बिलों की मनमानी, निजीकरण आदि जन मुद्दों पर जनभागीदारी से आंदोलन चला रहा बिजली उपभोक्ता संघर्ष समिति सरकार-प्रशासन के निशाने पर है।

हनुमानगढ़ (राजस्थान)। बिजली आंदोलन के गढ़ नेठराना में 28 मई को प्रशासन बहुत बड़े जाप्ते के साथ आया और सैंकड़ों लोगों के बिजली कनेक्शन काट दिए। गांव में एकाएक काटे गए सैंकड़ों कनेक्शनों से अंधेरा हो गया और पूरा गांव रात होते-होते अंधेरे में डूब गया।

ग्रामीण जनता ने प्रशासन के इस कदम का कड़ा विरोध किया। उधर पुलिसिया दमन तेज हो गया। आंदोलन में कानूनी सलाह देने आए राजस्थान उच्च न्यायालय के वकील श्री सुमित कुमार और सामाजिक कार्यकर्ता जोहाना को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। साथ ही प्रशासन ने बिजली उपभोक्ता संघर्ष समिति के साथी शैलेंद्र और संदीप को भी गिरफ्तार कर लिया।

आम जनता ने थाने का घेराव कर दिया और सामूहिक गिरफ्तारी की मांग की तब जाकर रात 8:30 बजे वकील श्री सुमित कुमार और सामाजिक कार्यकर्ता जोहाना को मुक्त किया लेकिन संघर्ष समिति के साथियों को फर्जी, निराधार और गैर कानूनी मुकदमों में बंद रखा है।

दरअसल मनमाने बिजली बिलों, सरचार्ज, निजीकरण और नवाउदारवादी नीतियों के खिलाफ बिजली उपभोक्ता संघर्ष समिति के नेतृत्व में चल रहा आंदोलन का केंद्रनेठराना गांव था, जो दमन का केंद्र बना।

असल में क्या हुआ? -एक कार्यकर्ता की नजर में

(ये रिपोर्ट सामाजिक कार्यकर्ता और ‘मेहनतकश’ प्रतिनिधि के बिजली आंदोलन के अब तक के अनुभव, समझ और दमन वाले दिन (28 मई) उनके आँखों देखे हाल पर आधारित है।)

राजस्थान के भादरा में पिछले ढाई साल से चले आ रहे बिजली उपभोक्ता संघर्ष समिति के बिजली आंदोलन ने तीखा मोड़ लिया। 28 मई को हनुमानगढ़ जिले की पुलिस फोर्स, बिजली विभाग और पूरे प्रशासनिक अमले ने साथ मे मिल कर आंदोलन का केंद्र माने जाने वाले नेठराना गाँव पर बड़ा प्रशासनिक हमला बोल कर आंदोलन को कुचलने की कोशिश की।

गाँव के लोगों को अपने ही गाँव में स्वतंत्र रूप से घूमने से रोका गया। भारी पुलिस दस्ते के साथ बिजली विभाग गाँव के अंदर बिजली कनेक्शन काटने के लिए पहुँच गया।

पूरा गाँव पुलिस छावनी में तब्दील

उस दिन गाँव के अंदर बड़ी संख्या में पुलिस बल ने कब्जा जमा लिया, पुलिस लाठियों, बंदूकों और आँसू गैस के गोलों से लेस थी। कॉमबेट वाहिकल भी तैनात थे। बिजली महकमे के तमाम अधिकारियों, कर्मचारियों के साथ तमाम प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी 9 पुलिस थानों की टीम सहित सैकड़ों जवानों का जाब्ता मौजूद रहा।

गाँव के लोग भारी संख्या में मौजूद थे और विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। फिर ग्रामवासी एकजुट होकर गाँव भर में से जुलूस निकाला। एक गली में आकर पुलिस ने गाँव वासियों को रोक लिया। गाँव के लोगों को गाँव के अंदर ही घूमने और जुलूस निकालने की मनाही कर दी गई।

गाँव के लोग इकट्ठा होकर पुलिसिया कार्यवाही का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे, और आखिर पुलिस को पीछे हटना पड़ा। भारी पुलिस दस्ते के साथ बिजली विभाग ने गाँव के अंदर कई टुकड़ियाँ बना कर कनेक्शन काटने का काम शुरू कर दिया।

बिजली विभाग के लोगों के कनेक्शन काटने के साथ साथ कनेक्शन के तार और मीटर भी गाड़ी में भरने लगे। इस पर लोगों ने विरोध जताया कि इन सब के उन्होंने पैसे दिए हैं पर बिजली विभाग की कार्यवाही चलती रही।

पुलिस दो लोगों को गाड़ी में बिठाने लगी। पूछने पर कोई कारण नहीं बताया। पुलिस उन्हें अज्ञात स्थान पर ले गई, किसी को उनके बाबत सूचना नहीं दी गई। गिरफ़्तारी के बाद थाने में उनके परिवार की पूरी सूचना तो उनसे ली गई पर उनके परिवारों को सूचना नहीं दी गई।

इधर गाँव में लोगों ने इस बात पर भारी विरोध प्रदर्शन किया और फिर आगे की रणनीति तय करने के लिए आमसभा की और फैसला किया कि वो जुलूस निकालते हुए उस जगह जाएंगे जहां कनेक्शन काटे जा रहे हैं और वहाँ धरना देंगे।

स्पष्ट है कि प्रदर्शन में हिंसा की कोई भी गुंजाइश नहीं थी। यदि प्रशासन सचमुच बस शांति व्यवस्था बनाए रखते हुए कनेक्शन काटना चाहता था तो इस फैसले को सुन कर प्रशासन को ग्रामवासियों को ऐसा करने देना चाहिए था लेकिन प्रशसन ने ठीक उलटा किया।

गिरफ्तारियाँ और दमन किसके इशारे पर?

जुलूस को बीच में रोक दिया गया, और लोगों को भड़काने की कोशिश की गई। फिर भी मार्च आगे बढ़ते रहा। फिर पुलिस ने शैलेन्द्र, संदीप और अमनदीप, तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया, प्रदर्शन मे काम ली जा रही  गाड़ी जप्त कर ली। देर शाम तक कनेक्शन काटना और विरोध प्रदर्शन चलता रहा। थाने में गिरफ्तार लोगों को पीटा गया। पीटने वाले पुलिस वाले कहते नजर आए कि, “बहुत अच्छा लड़का है पर क्या करें ऊपर से प्रेशर है।”

पुलिस लगातार ये कहती हुई पाई गई कि उन पर विधायक का प्रेशर है। हालंकि आंदोलन में मुश्किल से नजर आने वाले भाकपा विधायक बलवान पुनिया के लोग आज प्रदर्शन के केंद्र में उपस्थित थे, गिरफ़्तारी के तुरंत बाद गोगामेड़ी थाने में विधायक के लोग पुलिस के साथ चाय पीते नजर आए। विधायक के ये लोग राजनैतिक कैदियों से पुलिस की तरह पूछताछ करते और “विधायक जी का आदेश” सुनाते हुए नजर आए।

विधायक पुनिया के पहले के और अभी के बयानों को देखें तो भी ऐसा लगता है जैसे उन्होंने बिजली कंपनियों के लिए अपने इलाके के लोगों का बिल भरवाने और कनेक्शन काटने का ठेका ले रखा है। उनके लोग पुलिस के मुखबिर की तरह काम करते हुए नजर आए। एक ऐसी पार्टी जो कहती है कि एक भी विरोध का स्वर महत्वपूर्ण है – सीपीआइएम – ने इस मामले में अभी तक कोई भी बयान नहीं दिया है।

काँग्रेस पार्टी समर्थक नेठराना सरपंच राजेन्द्र कुमार ने भी भादरा विधायाक पर इस पूरे दमन का आरोप लगाया है। राजस्थान में उनकी पार्टी काँग्रेस की सरकार है।

आंदोलनकारियों पर फर्जी मुक़दमें

21 लोगों को शांति भंग करने का अंदेशा बताते हुए पाबंद किया गया, नेतृत्वकारी चार लोगों को गिरफ्तार करके राजनैतिक कैदी बनाया गया, 12 लोगों पर झूठे मुकदमे लगाए गए और “30-40 अन्य” का एफआईआर में ज़िक्र कर के ये डर फैलाने की कोशिश कि गई कि अगर लोगों ने अन्याय का विरोध किया तो पुलिस किसी को भी, कभी भी उठा सकती है।

हनुमानगढ़ के नेठराना गांव में बिजली कनेक्शन के दौरान मौजूद पुलिस जाप्ता।

एक राजनैतिक जनसंघर्ष के असल मुद्दों से भटकाने की कोशिश

आंदोलन के पूरे नेत्तृत्व तथा आंदोलन में संघर्षरत हर जागरूक जुझारू व्यक्ति को अहंकारी चिंतनहीन भीड़ करार करने की कोशिश की गई है। आंदोलन की तमाम मांगों और इतिहास को मिटाने की कोशिश की गई – ऐसा दिखाने की कोशिश की गई कि ये सिर्फ एक पूर्णतः कानून एवं व्यवस्था और नागरिक दायित्व से जुड़ा हुआ मुद्दा है जिसमें लोग, “तीन साल से बिल नहीं भर रहे तो उनके कनेक्शन तो कटेंगे ही”।

लेकिन इस बात को बिल्कुल भुला देने की कोशिश की गई कि ये जनहित और जन अधिकार से जुड़ा राजस्थान का एक महत्वरपूर्ण राजनैतिक जन संघर्ष है।

निजीकरण, ठेकाप्रथा, नाजायज़ कर, नाजायज शुल्कों के खिलाफ मांगों के साथ-साथ इस संघर्ष के हर मंच से लगातार आम गरीब लोगों के हितों की बात उठाई गई है और राजस्थान सरकार और केंद्र सरकार की उदारवादी जनविरोधी नीतियों के विरोध के साथ-साथ बिजली कंपनियों की मनमानी लूट का भी लगातार विरोध किया गया।

जनता की सामूहिक चेतना और जन-भागीदारी का आंदोलन

ऐसे समय मे जब सरकारें नव उदारवादी नीतियों को धड़ल्ले से लागू कर रही है, मज़दूर विरोधी श्रम संहिता, किसान विरोधी कृषि कानून, निजीकरण आदि जनविरोधी नीतियों का बोलबाला है। और जब आम जनता नेतृत्व के अभाव में व राज्य के दमन के डर में शोषण के जंजीरों मे जकड़े हुए है।

ऐसे दौर मे बिजली उपभोक्ता संघर्ष समिति ने इस संघर्ष में जनता को मुख्य धारा की चुनावी पार्टियों और नेताओं के बिना जाति, धर्म, परिवार से ऊपर उठकर जनता की सामूहिक चेतना का विकास करते हुये असली जन-भागीदारी आदोंलन के महत्व व ताकत का आभास करवाया।

इसका ही परिणाम है की बार बार दमन और कार्यवाहियों के बावजूद ढाई सालों से आंदोलन लगातार चलता आ रहा है। यही वो असली कारण है जिसके डर से 28 मई को पूरा जिला प्रशासन इस कारवाही को अंजाम देने उतर गया।

आन्दोलन लगातार जारी है….

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