तेलंगाना: 32 दिन बाद कॉमरेड रासुद्दीन की रिहाई; ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं का दमन बंद करो!

दो साथियों को बेल, दो अभी भी जेल में। आदिवासी समुदायों को जंगल से बेदखल कर वन संसाधनों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों को सौंपने के खिलाफ संघर्ष के साथ ही गिरफ्तारी-दमन होने लगा।

आईएफटीयू के कॉमरेड रासुद्दीन व एक और साथी को 32 दिन की जेल के बाद कल शुक्रवार को बेल मिल गई है। उन्हें तेलंगाना पुलिस द्वारा सेडिशन, यूएपीए व अन्य आरोपों के तहत अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया था। दोनों कॉमरेड और उनकी रिहाई में जुटे सभी साथियों को लाल सलाम!

दो कामरेड अब भी जेल में हैं। उनकी रिहाई के लिए संघर्ष जारी है।

उल्लेखनीय है कि तेलंगाना पुलिस ने कॉमरेड रासुद्दीन और अन्य ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं पर 6 अगस्त, 2015 को भद्राद्री कोठागुडेम जिले के अल्लापल्ली पुलिस थाने के अंतर्गत आने वाले किचेचेनापल्ली गांव में एक वन रेंजर और ग्रामीणों के बीच खेती की जमीन को स्थानांतरित करने की घटना के झूठे आरोप में करीब 7 साल बाद अवैध गिरफ़्तारी हुई।

कॉम. रासुद्दीन को 20 अप्रैल, 2022 को येलंदु शहर में उनके घर से गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था और उन्हें 124ए-राजद्रोह अधिनियम, यूएपीए और अन्य गंभीर आरोपों में फंसाया गया है। पुलिस द्वारा 9 अगस्त 2015 को दर्ज मामले में नामचीन ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं सहित 80 से अधिक लोगों पर विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसमें कॉमरेड रासुद्दीन का नाम नहीं था लेकिन बाद में उनका नाम बदनीयती से जोड़ा गया और तेलंगाना पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।

तेलंगाना में ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं पर झूठे आरोपों के तहत गिरफ्तारी पर मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने 20 मई को एक वक्तव्य जारी कर नींद की और तत्काल रिहाई की माँग की थी।

मासा का वक्तव्य-

कॉमरेड रासुद्दीन और अन्य ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं की अवैध गिरफ्तारी निंदनीय है!

कॉमरेड रासुद्दीन और अन्य ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं को बिना शर्त रिहा करो!

मासा (मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान) कॉमरेड मोहम्मद रासुद्दीन और अन्य ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं की अवैध गिरफ्तारी की कड़ी निंदा करता है। तेलंगाना पुलिस ने रासुद्दीन और अन्य ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं पर झूठे आरोप लगाकर अवैध गिरफ़्तारी की है। कॉम. रासुद्दीन को 20 अप्रैल, 2022 को येलंदु शहर में उनके घर से गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था और उन्हें 124ए-राजद्रोह अधिनियम (जो इसके दुर्भावनापूर्ण उपयोगों के लिए सर्वोच्च न्यायालय के संज्ञान में आया है), यूएपीए और अन्य गंभीर आरोपों में फंसाया गया है।

ये आरोप 6 अगस्त, 2015 को भद्राद्री कोठागुडेम जिले के अल्लापल्ली पुलिस थाने के अंतर्गत आने वाले किचेचेनापल्ली गांव में एक वन रेंजर और ग्रामीणों के बीच खेती की जमीन को स्थानांतरित करने की घटना से जुड़े है। पुलिस ने 9 अगस्त 2015 को मामला दर्ज किया था, जिसमें नामचीन ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं सहित 80 से अधिक लोगों पर भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत मुक़दमे लगाए गए थे। उस समय तक उपरोक्त मामले में कॉमरेड रासुद्दीन का कोई उल्लेख नहीं था लेकिन बाद में उनका नाम बदनीयती से जोड़ा गया और अब तेलंगाना पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया है, और अब अन्य ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं के बाद जिनका नाम प्राथमिकी में था उनके पीछे पड़ी है। यह क्रांतिकारी ट्रेड यूनियन आंदोलन को दबाने का एक स्पष्ट प्रयास है।

कॉमरेड मोहम्मद रासुद्दीन एक क्रांतिकारी ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता और इंडियन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियंस (आईएफटीयू) के मत्वपूर्ण कॉमरेड हैं, जो मासा का एक घटक संगठन भी है। फ़िलहाल वह प्रोग्रेसिव ऑटो एंड मोटर वर्कर्स यूनियन (आईएफटीयू से संबद्ध) के अध्यक्ष और सिंगरेनी कोलियरीज कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन (एससीसीडब्ल्यूयू) के महासचिव के रूप में कार्य कर रहे हैं।

पिछले 45-50 वर्षों से भी अधिक समय से आदिवासी समुदायों के कब्जे में ऐसी पोडु भूमि को पट्टा (प्रमाणपत्र) जारी करने हेतु सरकार पर दबाव डालने के लिए आईएफटीयू के साथियों द्वारा एक लंबा संघर्ष चल रहा है। वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदायों की आजीविका ये जुडी यह बहुत ही बहुत बुनियादी मांग हैं। 2014 में जैसे ही तेलंगाना राज्य का गठन हुआ, राज्य के पहले सीएम श्री के चंद्रशेखर राव ने आश्वासन दिया था कि सरकार आदिवासी समुदायों को ऐसी पोडु भूमि से बेदखल नहीं करेगी और वह जंगल नहीं काटेगी। सरकार ने एक चश्मदीद कार्रवाई के रूप में एक सर्वेक्षण शुरू किया। लेकिन अभी तक इसका कोई अता पता नहीं है।

राज्य सरकार अब आदिवासी समुदायों को जंगल से बेदखल करने और वन संसाधनों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बड़े कॉर्पोरेट घरानों को सौंपने का प्रयास कर रही है। एक बार फिर से संघर्ष तेज होने के साथ ही ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी शुरू हो गई है। राज्य सरकार लगातार पुराने मामले में और कई नए नाम जोड़ रही है और अपने दमनकारी तंत्र से वन क्षेत्रों में दहशत पैदा कर रही है.

मासा ने कॉमरेड रासुद्दीन और अन्य ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं, की तत्काल रिहाई की मांग करता है और सभी झूठे आरोपों को तत्काल वापस लेने, आदिवासी समुदायों को वन भूमि से बेदखल करने और भूमि और प्राकृतिक संसाधनों को बड़े कॉर्पोरेट घरानों को सौंपने सहित उन सभी काले कानूनों को खत्म करने की मांग करता है, जिनका इस्तेमाल ट्रेड यूनियन आंदोलन और जनता के संघर्षों को दबाने के लिए किया जा रहा है।

समन्वय समिति,

मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा)

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