मुंडका अग्निकांड में राज्य की निष्क्रियता और आपराधिक लापरवाही पर ठोस कार्यवाही हो! -मासा

दिल्ली में ऐसे कांड नरेला, बवाना, सीलमपुर, नांगलोई, उद्योग नगर, पीरागढ़ी, ओखला, नंद नगरी व अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में जारी हैं, जान के नुकसान का यह सिलसिला और बढ़ेगा…

दिल्ली मुंडिका अग्निकांड पर मासा का बयान

देश की राजधानी में सबसे भयंकर मानव निर्मित औद्योगिक आपदाओं में से एक 13 मई को दोपहर करीब 3:30 बजे पश्चिम दिल्ली के मुंडका में एक चार मंजिला इमारत में आग लगने के बाद, 27 श्रमिकों की कथित तौर पर जान चली गई और कई लापता या घायल हो गए। मरने वाले 27 लोगों में से 21 महिला मजदूर थीं और जो 29 लापता हैं उनमें से 24 महिलाएं हैं।

ऐसा अनुमान है कि कोफे इंपेक्स प्राइवेट लिमिटेड – सीसीटीवी कैमरा निर्माण प्लांट – की पहली मंजिल पर आग लगने के समय इमारत में 100 से अधिक कर्मचारी थे। आग ने जल्द ही पूरी इमारत को अपनी चपेट में ले लिया। यह त्रासदी अनौपचारिक प्लांट और फैक्ट्रियों में घातक कामकाजी परिस्थितियों को उजागर करती है।

यह घटना बिल्डिंग मालिक, कारखाने के मालिकों, दिल्ली नगर निगम, पुलिस, श्रम विभाग और सरकार की मिलीभगत और आपराधिक लापरवाही के परिणामस्वरूप पैदा हुई थी क्योंकि:

  • नगर निगम या दिल्ली पुलिस द्वारा बिना किसी निरीक्षण या जांच के औद्योगिक उत्पादन के लिए वाणिज्यिक स्थान का लगातार अवैध उपयोग किया जा रहा था।
  • फैक्ट्री लाइसेंस, अग्निशमन विभाग से प्रमाण पत्र जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों की अनुपस्थिति।
  • अनिवार्य अग्नि सुरक्षा उपायों जैसे होज़ रील, पानी की टंकी, फायर डिटेक्टर और दूसरे निकास का अभाव जिसका वर्णन फैक्ट्री ऐक्ट के सुरक्षा नियमावली में है, और इसके लिए दिल्ली सरकार के कारखाना निरीक्षणालय को दोषी ठहराया जाना चाहिए।
  • सजावटी कठोर कांच का इस्तेमाल जिसमें एक भी खिड़की नहीं थी और जो कि भवन उपनियमों का उल्लंघन था।
  • यातायात पुलिस द्वारा पूरी तरह से खराब प्रबंधन और नागरिक सुरक्षा दल और दमकल विभाग द्वारा बचाव अभियान में 70 मिनट तक की देरी, जिसके कारण आग तेज हो पाई।

उपर्युक्त मानदंडों के अलावा, जिनका बेधड़क उल्लंघन राज्य की लापरवाही के कारण किया गया था, कंपनी को श्रम कानून के तहत बुनियादी नियमों का घोर उल्लंघन करते पाया गया है। ज्यादातर श्रमिक प्रवासी थे जिन्हें ना तो न्यूनतम मजदूरी दी जाती थी (₹6000 प्रति माह पर काम कर रहे थे) और ना ही ओवरटाइम, पीएफ फंड और ईएसआई। सभी श्रमिकों के रिकॉर्ड वाले मस्टर रोल को कभी भी मेन्टेन नहीं किया गया था। इसके अलावा, फैक्ट्री के प्रवेश द्वार पर श्रमिकों को अपने फोन जमा करने की अनुचित जबरदस्ती ने उन्हें अपने दोस्तों और परिवार को आग के बारे में चेताने से वंचित कर दिया था।

दिल्ली में पहले नरेला, बवाना, सीलमपुर, नांगलोई, उद्योग नगर, पीरागढ़ी, ओखला, नंद नगरी और रानी झांसी रोड के औद्योगिक क्षेत्रों में इसी तरह की भयावह घटनाएं देखी गई हैं, फिर भी इन वर्षों में कुछ भी नहीं बदला है।

भारतीय श्रम सांख्यिकी के अनुसार, 1990 से 2014 तक हर साल देश भर में घातक व्यावसायिक चोटों की संख्या में वृद्धि हुई है। दिल्ली में 1529 औद्योगिक दुर्घटनाएँ दर्ज की गईं, जो 2014 और 2017 के बीच देश में सबसे अधिक थीं।

दिल्ली में प्रति 506 कारखानों पर केवल एक कारखाना निरीक्षक है। इस प्रकार, मालिकों द्वारा जरूरी सुरक्षा उपायों की अनुपस्थिति और ढीले प्रशासन द्वारा प्रदान किए गए व्यापक छूट के कारण श्रमिकों का जीवन बर्बाद होता रहता है।

जान का ऐसा नुकसान आने वाले दिनों में और बढ़ेगा, क्योंकि अनुपालन की लागत और सुरक्षा उपायों को किसी कंपनी के मुनाफे को प्रभावित करने वाली बाधाओं से कम नहीं माना जाता है। इसके अलावा, कड़ी मेहनत से पाए गए 44 श्रम कानूनों के स्थान पर चार नए श्रमिक विरोधी श्रम संहिताएं, विशेष रूप से “व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति की संहिता” श्रमिकों के एक बड़े वर्ग को इसके दायरे से बाहर करने की और सुरक्षा और अन्य अनुपालन और श्रम नियमों को कमजोर करने की दिशा में ही एक कदम है।

मासा की माँग-

मासा मुंडका अग्निकांड में राज्य की निष्क्रियता और जानबूझकर लापरवाही की कड़ी निंदा करता है, जिसमें कम से कम 27 श्रमिकों की जान चली गई। इस हत्या के लिए उपरोक्त सभी अधिकारियों और कारखाने/भवन मालिकों की सामूहिक दुर्भावनापूर्ण लापरवाही को पूरी तरह से दोषी ठहराया जाना चाहिए। इस प्रकाश में, मासा राज्य और केंद्र सरकारों को निम्नलिखित तत्काल मांगों पर ध्यान देने के लिए आह्वान करती है:

  • भीषण मुंडका अग्निकांड, हत्या और आपराधिक लापरवाही के लिए जिम्मेदार फैक्ट्री/भवन मालिकों एवं राज्य के अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए!
  • मृतक के परिवारों को अनुकरणीय ₹50 लाख का मुआवजा दिया जाए, जबकि घायल श्रमिकों का 5 लाख रुपये का मुफ्त इलाज किया जाए!
  • मृतक, घायल, लापता और बचाए गए श्रमिकों के सही आंकड़ों का खुलासा करने के लिए तुरंत एक जिम्मेदार जांच समिति का गठन किया जाए!
  • आग की घटना की निष्पक्ष और व्यापक जांच के लिए श्रमिकों और ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधियों के उचित प्रतिनिधित्व वाली एक तथ्य-खोज समिति का तुरंत गठन किया जाए!
  • कोफे इम्पेक्स कंपनी में अप्रैल-मई के महीनों के लिए कर्मचारियों (अनुमानित 250) की लंबित मजदूरी तुरंत जारी की जाए!
  • चार श्रम संहिताओं को निरस्त किया जाए और पूरे देश में सभी श्रम कानूनों का कड़ाई से क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाए!

समन्वय समिति,

मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा)

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