हाईकोर्ट से भी जीते माइक्रोमैक्स के छँटनीग्रस्त मज़दूर; क्या अब प्रशासन कार्यबहाली कराएगा?

41 महीने का संघर्ष: ट्रिब्यूनल से जीत के बाद श्रम और प्रशासनिक अधिकारी कार्यबहाली कराने की जगह मामला उलझाते रहे। अब उच्च न्यायालय ने भी श्रमिकों के हक़ में स्पष्ट फैसला दे दिया है…

रुद्रपुर (उत्तराखंड)। पिछले 41 महीने से गैर कानूनी छँटनी के खिलाफ संघर्षरत माइक्रोमैक्स उत्पाद निर्माता भगवती प्रोडक्ट्स लिमिटेड के मज़दूरों को उच्च न्यायालय नैनीताल से बड़ी कामयाबी हासिल हुई है। प्रबंधन की याचिकाओं को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने औद्योगिक न्यायाधिकरण के फैसले को सही ठहराते हुए छँटनी को अवैध करार दिया है।

ज्ञात हो कि भगवती प्रबंधन ने 27 दिसंबर 2018 से महिला व पुरुष 303 श्रमिकों की गैरकानूनी छँटनी कर दी थी। साथ ही प्रबंधन में शेष बचे श्रमिकों में से यूनियन अध्यक्ष सूरज सिंह बिष्ट को निलंबित और बाद में बर्खास्त कर दिया था और बाकी 47 मज़दूरों को गैरकानूनी ले ऑफ के तहत बाहर बैठा दिया।

पुलिस प्रशासन के फर्जी मुकदमों को झेलते हुए विगत 41 महीने से मज़दूर कंपनी गेट पर जमीनी लड़ाई के साथ न्यायाधिकरण से लेकर हाईकोर्ट तक कानूनी लड़ाई लड़ते रहे हैं। न्यायाधिकरण से से श्रमिकों के हित में फैसला आया था, जिसने छँटनी अवैध घोषित कर दी थी। अब उच्च न्यायालय ने भी और व्याख्या के साथ उसी फैसले पर मुहर लगा दी है।

अधिवक्ता एम सी पंत मज़दूरों के साथ उच्च न्यायालय, नैनीताल में

उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने तीन अलग-अलग याचिकाओं का निस्तारण करते हुए यह स्पष्ट किया कि औद्योगिक न्यायाधिकरण हल्द्वानी का फैसला सही है, समस्त 303 श्रमिकों की हुई छँटनी अवैध है और समस्त श्रमिक कार्यबहाली के साथ छँटनी के दिन से सभी प्रकार के लाभ को पाने के हकदार हैं।

प्रबंधन द्वारा अलग-अलग तिकड़म की गवाह इन याचिकाओं में कभी न्यायाधिकरण के फैसले को, कभी 303 श्रमिकों की वैधता को चुनौती दी गई, तो कभी श्रम अधिकारियों की मिलीभगत से 151 श्रमिकों द्वारा हिसाब ले लेने के बहाने 152 श्रमिकों को ही लाभार्थी बनाने के मामले को उछाला गया था।

श्रम अधिकारी-प्रशासन उलझाते रहे मामला

इस पूरे मामले में शुरू से ही श्रम अधिकारी, प्रशासन, शासन और सरकार मालिकों के पक्ष में खड़ी रही। मज़दूरों पर फ़र्जी मुक़दमें लगाए। श्रम विभाग ने एक भी वार्ता कराये बगैर मामले को लटकाने के लिए छँटनी का विवाद औद्योगिक न्यायाधिकरण भेज दिया। ले ऑफ के मामले में श्रम विभाग ने अपने ही पूर्ववर्ती आदेश का पालन नहीं कराया और आज भी 47 मज़दूर गैरकानूनी लेऑफ के कारण सड़क पर हैं।

साल 2019 में श्रमिकों की अपील पर उच्च न्यायालय नैनीताल ने प्रमुख सचिव श्रम को 40 दिन में विवाद निस्तारित करने का आदेश दिया था। लेकिन सारे तथ्यों को गोल करते हुए श्रम सचिव ने एकतरफा रूप से मालिकों के पक्ष में आदेश पारित कर दिया था। इसके बाद उच्च न्यायालय, नैनीताल द्वारा न्यायाधिकरण को 90 दिन के भीतर मामले के निस्तारण का आदेश दिया था। जिसके कारण लगातार और जल्दी जल्दी सुनवाई हुई और अंततः आदेश पारित हुआ।

न्यायाधिकरण से मज़दूर जीत गए और उच्च न्यायालय ने भी इस आदेश के परिपालन के आदेश दिए। उसके बावजूद श्रम अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारी श्रमिकों की कार्यबहाली कराने की जगह उसे उलझाने का प्रयास करते रहे। कभी हिसाब लेने की बात, तो कभी हिसाब ले चुके 151 मज़दूरों को छोड़कर 152 मजदूरों के लिए राज्य से बाहर दूसरे प्लांट में जाने का प्रस्ताव। हालांकि प्रबंधन कोर्ट सहित सभी जगह यही कहता रहा कि पंतनगर प्लांट उसे चलाना है।

और जब कुछ नहीं मिला तो अंत में सहायक श्रमआयुक्त ने स्पष्ट आदेश के बावजूद न्यायाधिकरण के आदेश की व्याख्या के बहाने गलत तरीके से प्रकरण को औद्योगिक न्यायाधिकरण में भेज दिया था।

इन कठिन परिस्थितियों में भगवती-माइक्रोमैक्स के मज़दूर पिछले 41 महीने से जमीनी लड़ाई के साथ कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने तमाम संकटों को झेलते हुए भी इस लड़ाई को जारी रखा है और हर कदम पर लड़कर लगातार जीत हासिल की है।

औद्योगिक न्यायाधिकरण में प्रबंधन की दलीलें खारिज

न्यायाधिकरण में प्रबंधन पक्ष ने लगातार छँटनी पूरी तरह सही साबित करने की कोशिश की, लेकिन श्रमिक पक्ष की ओर से उच्च न्यायालय से पैरवी के लिए आने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एमसी पंत ने जोरदार तर्कों को प्रस्तुत किया और यह साबित किया कि प्रबंधन ने छँटनी के लिए केंद्रीय औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 का अनुपालन नहीं किया।

जबकि प्रबंधन पक्ष का कथन था कि उसने उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के प्रावधानों के तहत प्रक्रिया पूरी की है जिसके तहत अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।

श्रमिक पक्ष ने सर्वोच्च न्यायालय की नजीर प्रस्तुत करते हुए बताया कि उत्तरांचल फॉरेस्ट डेवलपमेंट कारपोरेशन एंड अदर्स वर्सेस जबर सिंह एंड अदर्स 2007 मामले में सर्वोच्च अदालत ने आदेशित किया था कि केंद्रीय औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 25 एन के अनुसार ही छँटनी की जा सकती है। जिसका अनुपालन प्रबंधन ने नहीं किया।

उन्होंने यह भी कहा कि प्रबंधन ने 27 दिसंबर को कंपनी में अवकाश घोषित किया और 29 दिसंबर को जब मज़दूर काम पर पहुँचे तो 27 दिसंबर की छँटनी दिखा दी। यह छलनियोजन है।

न्यायाधिकरण ने छँटनी बताया था अवैध

न्यायाधिकरण ने प्रबंधन द्वारा प्रस्तुत की गई नज़ीरों को अस्वीकार करते हुए जबर सिंह मामले में दिए गए फैसले को नजीर माना और 02/03/2020 के अपने अभीनिर्णय में श्रमिकों के पक्ष में फैसला सुनाया।

“विपक्षी सेवायोजक द्वारा की गई वर्तमान अभिनिर्णय वाद में अंतरवर्णित श्रमिकों की छँटनी अवैध एवं अनुचित है एवं वर्तमान अभीनिर्णय वाद में अन्तरवर्णीत श्रमिकगण वे सभी हित लाभ पाने के अधिकारी हैंजो उन्हें दिए गए होते यदि उपरोक्त प्रकार से छँटनी ना की गई होती।” -न्यायाधिकरण

पीठासीन अधिकारी ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह आदेश समस्त 303 श्रमिकों के ऊपर लागू होगा। प्रबंधन ने जिन 144 श्रमिकों को हिसाब लिया जाना बताया था, उन्हें भी सबके समान लाभ मिलेगा।

उच्च न्यायालय का स्पष्ट आदेश

न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी कि एकल पीठ ने प्रबंधन द्वारा औद्योगिक न्यायाधिकरण के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका के साथ श्रमिक पक्ष की ओर से श्रम अधिकारी द्वारा फैसले की व्याख्या हेतु न्यायाधिकरण को भेजने के खिलाफ याचिका और 152 श्रमिकों के मामले पर सहायक श्रमआयुक्त के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की और बीते 5 अप्रैल को फैसला सुनाया।

पीठ ने श्रमिक पक्ष द्वारा प्रस्तुत सर्वोच्च न्यायालय की नजीर उत्तरांचल फॉरेस्ट डेवलपमेंट कारपोरेशन एंड अदर्स वर्सेस जबर सिंह एंड अदर्स 2007 को सही मानते हुए स्पष्ट किया कि केंद्रीय औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 25 एन के अनुसार ही छँटनी की जा सकती है, जिसका अनुपालन प्रबंधन ने नहीं किया।

न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ प्रबंधन की याचिका पर पीठ ने कहा कि बेशक, छंटनी का आदेश देने से पहले नियोक्ता द्वारा उपयुक्त सरकार की पूर्व अनुमति नहीं मांगी गई थी, इसलिए, सभी 303 कामगारों की छंटनी उस तारीख से अवैध मानी जाएगी, जिस दिन कामगारों को छंटनी का नोटिस दिया गया था।

दूसरे शब्दों में, औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (केंद्रीय) की धारा 25 एन के तहत निर्धारित अनिवार्य प्रक्रिया से उपयुक्त सरकार की अनुमति के बिना छंटनी शून्य होगी, इसलिए, भले ही कुछ कामगार छंटनी के बाद छंटनी मुआवजा स्वीकार कर लिए हों, छंटनी को वैधता नहीं देगा, और यह अवैध है।

श्रमिक पक्ष की याचिका पर पीठ ने कहा कि सभी 303 कामगारों की छंटनी की वैधता के न्यायनिर्णयन के लिए संदर्भादेश दिनांक 01.01.2021 दिनांक 14.02.2019 के आदेश के विपरीत है, जिसका फैसला कर्मकार के पक्ष में दिया गया था। आक्षेपित संदर्भादेश दिनांक 01.01.2021 टिकाऊ नहीं है, क्योंकि उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 11-बी(1) इस मामले में लागू नहीं होता है।

इसी के साथ पीठ ने कंपनी की उस याचिका को भी खारिज कर दिया, जो सहायक श्रमआयुक्त के 152 श्रमिकों के लिए न्यायाधिकरण के आदेश के परिपालन संबंधी आदेश को चुनौती संबंधी थी।

प्रबंधन ने 144 श्रमिकों को हिसाब लिया जाना बताया था, लेकिन न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह आदेश समस्त 303 श्रमिकों के ऊपर लागू होगा। यह न्याय की जीत है।

सभी आदेश 24 से 26 मई को प्रकाशित हुए।

छँटनी-बन्दी का मुख्य कारण राज्य से पलायन

आज कंपनियों का यह धंधा बन गया है कि एक राज्य से सब्सिडी और विभिन्न सरकारी रियायतों का लाभ व मुनाफा बटोरकर व मज़दूरों के पेट पर लात मारकर एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन कर जाते हैं।

भगवती प्रबंधन की भी यही चाहत थी। इसीलिए कभी 5000 मज़दूरों वाले इस कारखाने से प्रबन्धन धीरे-धीरे मशीनें और तमाम मज़दूरों को हटाता रहा, और अंततः बाकी मज़दूरों के ऊपर उसने गाज गिरा दी थी।

दूसरे, इस कम्पनी का यह भी धंधा है कि मज़दूरों से 3-4 साल काम कराओ फिर उन्हें निकालकर नये मज़दूर भर्ती करो। 2007-08 में कम्पनी ने जिन मज़दूरों की भर्ती की, उन्हें 2011 में निकाल दिया। पुनः 2012-13 में नई भर्ती की, जिन्हें 2018 में निकाल दिया।

तीसरे, 2017 में जब प्रबन्धन ने मज़दूरों की छँटनी और पन्तनगर प्लांट के मुनाफे से खड़ा हुये दूसरे प्लांटों (भिवाड़ी व हैदराबाद) में भेजना शुरू किया तो मज़दूरों ने अपने को संगठित किया और भगवती श्रमिक संगठन नाम से यूनियन बनाई। 12 दिसम्बर, 2018 को श्रम विभाग द्वारा यूनियन का वेरीफिकेशन हुआ।

ऐसे में प्रबंधन को झटका लगा और उसने साजिश के तहत अवकाश घोषित किया, मशीनें शिफ्ट कीं, इसी बीच 27 दिसंबर, 2018 से अवैध छँटनी और गैरकानूनी ले ऑफ का हथकण्डा अपनाया।

अदालतों के फैसले न्याय के पक्ष में

भगवती श्रमिक संगठन ने बताया कि पूरे मामले में उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एम सी पन्त ने न्यायाधिकरण से लेकर उच्च न्यायालय तक श्रमिक पक्ष से शानदार पैरवी की। जिसके बाद न्यायाधिकरण ने छंटनी को अवैध घोषित किया और सभी देयकों को पाने का अधिकारी बताया। उच्च न्यायालय ने भी सारी दलीलें सुनने के बाद इसी फैसले पर मुहर लगा दी।

अब मज़दूरों की निगाहें एकबार फिर श्रम अधिकारियों और प्रशासन पर टिकी हैं। श्रमिक नेताओं का कहना है कि इस स्पष्ट फैसले के बाद अधिकारी न्यायालय के आदेश का परिपालन कराते हुए समस्त श्रमिकों की सवेतन कार्यबहाली कराते हैं या फिर उलझाने का काम करते हैं?

जुझारू संघर्ष, सहयोग-समर्थन व कुशल पैरवी की जीत है

इस बड़ी जीत के बाद मज़दूरों में खुशी की लहर दौड़ गई। भगवती श्रमिक संगठन ने बताया कि हमने एक और बड़ा मोर्चा जीता है। अब हमें अपनी इस जंग को पूर्ण जीत में तब्दील करना है। अपने पूरे वेतन के साथ कंपनी में अपनी कार्यबहाली करानी है। इसलिए अपनी जुझारू एकता के साथ आगे बढ़ना है।

संगठन ने इस जीत के लिए भगवती मज़दूरों के एकताबद्ध लंबे जुझारू संघर्ष, श्रमिक संयुक्त मोर्चा व स्थानीय व देश की अन्य यूनियनों एवं मज़दूरों के सतत सहयोग व समर्थन, मज़दूर सहयोग केंद्र के विशिष्ट सहयोग तथा वरिष्ठ अधिवक्ता श्री एमसी पंत की शानदार व कुशल पैरवी को बताते हुए आभार जताया और धन्यवाद दिया है।

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