रिपोर्ट: मुंडका कारखाना अग्निकांड के पहले भी जलते रहे है दिल्ली में मज़दूर

कलेक्टिव की एक फैक्ट-फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट से ये साफ पता चलता है कि कैसे फैक्ट्री मालिक मजदूरों के सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करता है और सरकार फैक्ट्री मालिकों की तरफ से आंख मूंदे रहती है।

फैक्ट्रियों में और फैक्ट्री के बाहर मजदूरों के साथ होने वाले ऐसे जानलेवा दुर्घटनाओं पर सरकार, फैक्ट्री मालिकों ने घटना होने के बाद सोशल मीडिया पर शोक जताने के अलावा शायद ही कभी कुछ ठोस क़दम लिया हो। बीते 13 मई 2022 को एक ऐसी ही घटना ने 30 मजदूरों की जान ले ली।

दिल्ली के मुंडका में सीसीटीवी और राउटर असेंबलिंग प्लांट में अचानक आग लगने से वहां काम करने वाले 30 मजदूरों ने जान गवां दी और कई मज़दूर बुरी तरह जल गए। जिनका इलाज दिल्ली स्थित संजय गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल में चल रहा। मरने वाले मजदूरों में 22 महिलाएं है (जिसमें लड़कियां भी शमिल है)।

दिल्ली अवस्थित कलेक्टिव नामक छात्र-युवा संगठन ने घटना के बाद घटना के कारणों को जानने के लिए एक फैक्ट-फाइंडिंग टीम का गठन किया। जिसने घटना को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट ‘ईस ऑफ डूइंग वाओलेशन: मुंडका कारखाना अग्निकांड और दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्रों में मालिकों के आपराधिक लापरवाही का इतिहास’ (Ease of Doing Violation: The Mundka factory Fire and a Pattern of Negligence in Delhi’s Industrial Area) नाम से जारी की है।

https://drive.google.com/file/d/1GIDYYU2RcJdODzI6rQQUkDUdurecG777/view
https://drive.google.com/file/d/1GIDYYU2RcJdODzI6rQQUkDUdurecG777/view

मुंडका में क्या हुआ था?

रिपोर्ट को पढ़ने के बाद ये साफ पता चलता है कि कैसे फैक्ट्री मालिक मजदूरों के सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करता है और सरकार फैक्ट्री मालिकों की तरफ से आंख मूंदे रहती है। यानी मजदूरों के जान के साथ खिलवाड़ सरकार और फैक्ट्री मालिकों का गठजोड़ कर रहा है।

कलेक्टिव का रिपोर्ट यह बताता है कि जिन 30 जवान मजदूरों की आग में जल कर मौत हुई वो सभी बिहार, पंजाब और हरियाणा के प्रवासी मजदूर थे जो निम्नतम मजदूरी से भी कम मजदूरी, यानी 6500 से 7500 रुपए महीने के तनख्वाह पर काम कर रहे थे। रिपोर्ट हमे बताती है कि कैसे यह फैक्ट्री मालिक एमसीडी (म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ऑफ दिल्ली) से बिना कोई क्लियरेंस लिए चल रही थी। साथ ही दिल्ली पुलिस द्वारा जरूरी कानूनी प्रक्रिया को भी पूरा नहीं किया गया था।

इन प्रक्रियाओं में फैक्ट्री शुरु करने के पहले सुरक्षात्मक दृष्टि से किए जाने उपायों को पूरा किया गया है कि नही उसे देखा जाता है। लेकिन आग लगने वाली बिल्डिंग में ना ऐसी कोई व्यवस्था की गई थी ना ही कागजी कार्रवाई पूरी गई थी।

सोचने वाली बात तो यह है कि इस पर ना कभी एमसीडी ने ध्यान दिया ना दिल्ली पुलिस ने ना केंद्र सरकार ने और ना ही दिल्ली सरकार ने। घटना के बाद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने और दिल्ली की मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने एक औपचारिकता पूरा करते हुए बस शोक जताते हुए एक ट्वीट कर दिया।

और यह कोई पहली बार नहीं हो रहा। ऐसी किसी भी दुर्घटना के बाद कोई ठोस कदम उठाने के बजाए सरकार बस शोक जताने का ही काम करती है।

मज़दूर कानून उलंघन का लंबा सिलसिला

रिपोर्ट से पता चलता है कि फैक्ट्रियों में घटने वाली ऐसी घटना ना तो पहली है और ना ही आखरी। जिस दिन मुंडका स्थित फैक्ट्री में आग लगी उसी दिन दिल्ली स्थित कीर्ति नगर के तीन बैग फैक्ट्री में आग लगने की घटना घटी।

इस घटना के ठीक दूसरे दिन नरेला इंडस्ट्रियल एरिया में आग लगने की रिपोर्ट दर्ज की गई। इससे पहले दिसम्बर 2019 में दिल्ली के ही अनाज मंडी में आग लगने से 43 मजदूरों की जान चली गई थी।

स्पष्ट है कि मालिक-सरकार व सरकारी अमलों के नापाक गठबंधन से मज़दूर असुरक्षित परिस्थितियों में खटते हुए, मुनाफे की अंधी हवस का भेंट लगातार चढ़ रहे हैं, अपनी रोजी-रोटी के लिए अकाल जान गंवा रहे हैं अंग-भंग के शिकार हो रहे हैं।

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