देश में ईधन से लेकर आटा-तेल तक बेलगाम महँगाई की चपेट में; रुपया रिकार्ड निचले स्तर पर

धार्मिक उन्माद के बीच देश में जहाँ विकराल रूप लेती महँगाई ने आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है, वहीं डॉलर के मुकाबले रुपया अबतक के सबसे निचले स्तर पर है। फिर खामोशी क्यों?

भारत में महंगाई उच्च स्तर बनी हुई हैं। ईंधन और खाने-पीने की बढ़ती कीमतों से लगातार बढ़ रही महंगाई का असर आम आदमी ही नहीं माध्यम वर्ग की थाली पर भी पड़ रहा है। वहीं भारतीय रुपया का हाल यह है कि रुपया लगातार कमजोर होने का रिकार्ड बना रहा है।

एक साल में खाद्य तेल से लेकर आलू और चायपत्ती तक की कीमतें बढ़ी हैं। गेहूं की कीमतों में बढ़ोतरी से आटे के दाम 12 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गए हैं। इससे ब्रेड, बिस्कुट और आटे से बनने वाले उत्पाद भी जल्द महंगे हो जाएंगे।

रिकार्ड बढ़ोतरी के साथ पेट्रोल व डीजल अब तक के सबसे ऊंचे दाम पर है। रसोई गैस सिलिंडर की कीमत में डेढ़ माह में दूसरी बार 50 रुपए की बढ़ोतरी हो गई है। मई की शुरुआत में वाणिज्यिक इस्तेमाल वाले गैस सिलेंडर के दाम में भी 102.50 रुपये की बड़ी बढ़ोतरी हुई थी।

दूसरी ओर भारतीय रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है। खबर लिखने तक एक डॉलर के मुकाबले भारत का रुपया गिरकर 77.39 रुपए तक पहुंच चुका है।

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खुदरा महँगाई उच्च स्तर पर

रायटर्स पोल के मुताबिक, भारत में खुदरा महंगाई अप्रैल में 18 महीने के उच्च स्तर पर रह सकती है। ईंधन और खाने-पीने की बढ़ती कीमतें महंगाई को लगातार बढ़ा रही हैं। लगातार चौथे महीने रिजर्व बैंक की ऊपरी सीमा के ऊपर महंगाई बनी हुई है।

फूड इंफ्लेशन, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) बास्केट का लगभग आधा हिस्सा है, मार्च में यह कई महीनों के उच्च स्तर पर पहुंच गया। वैश्विक स्तर पर सब्जी और खाना पकाने के तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण इसके ऊंचे रहने की उम्मीद है।

एशिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति अप्रैल में 7.5 प्रतिशत पर पहुंचा गया। 45 अर्थशास्त्रियों के 5-9 मई के रॉयटर्स पोल में यह अनुमान जताया गया है।

डीजल-पेट्रोल-रसोई गैस बेहद महँगा; खाद्य पदार्थ की कीमतों में आग

देश में पांच प्रमुख राज्यों में चुनावों की वजह से सरकार ने ईंधन की कीमतों में वृद्धि को रोके रखा था। मार्च के बाद पेट्रोल-डीजल के दाम तेजी से बढ़ाने लगे। इधर रसोई गैस सिलिंडर की कीमत में 50 रुपये की बढ़ोतरी हो चुकी है।

डेढ़ महीने के भीतर 100 रुपए की वृद्धि के साथ रसोई गैस सिलिंडर 1000 रुपए के पार पहुँच गया जो एक हजार 38 रुपए से बढकर अब यह एक हजार 88 रुपए 50 पैसे पर बिक रहा है।

दूसरी ओर, ऊंचे दाम पर पेट्रोल व डीजल का असर चौतरफा पड़ रहा है। डीजल की कीमत में वृद्धि का असर रसोई पर भी पड़ने लगा है। हरी सब्जियों की कीमत भी आसमान छू रही है।

रोजमर्रा की चीजों में बढ़ोतरी के साथ ही परिवहन खर्च भी बढ़ने लगा है। यात्री गाड़ियों के अलावा टैक्सी व किराए के वाहनों में भी भारी बढ़ोतरी हो गई है। इसी के साथ टोल टैक्स ने पलीते में आग का काम किया और सरकारी बस भाड़ा भी लगातार बढ़ता जा रहा है।

गेंहू-आटा 2010 के बाद सबसे महँगा

उपभोक्ता मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल गेहूं की कीमतें अब तक 46 फीसदी तक बढ़ गई हैं। इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2015 रुपये प्रति क्विंटल है। बाजार में इसकी कीमत एमएसपी से 20 फीसदी अधिक है।

इसी तरह, आटे का भाव अप्रैल में 32.38 रुपये प्रति किलोग्राम पहुंच गया था। यह जनवरी, 2010 के बाद सबसे ज्यादा है। गेहूं में तेजी से एफएमसीजी कंपनियां आने वाले समय में आटे से बनने वाले उत्पादों के दाम 15 फीसदी तक बढ़ा सकती हैं।

मोदी सरकार का उपभोक्ता मंत्रालय भी मनाने को बाध्य है कि पिछले एक साल में आम आदमी की थाली की हर चीजें महंगी हो गई हैं।

आंकड़ों के मुताबिक, गेहूं की कीमत शनिवार को बढ़कर 32.78 रुपये प्रति किलो पहुंच गई थी। यह एक साल पहले के 30 रुपये से 9.15 फीसदी ज्यादा है। 156 केंद्रों पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, शनिवार को पोर्ट ब्लेयर में आटे की कीमत सबसे ज्यादा 59 रुपये प्रति किलो थी, जबकि पश्चिम बंगाल में सबसे कम 22 रुपये प्रति किलो थी।

हालत ये हैं कि विकट महँगाई की मार सहती आम जनता बढ़ती बेरोजगारी, घटती नौकरियों और कम होते वेतन से भी त्रस्त है।

महँगाई की मार

उत्पाद9 मई, 20219 मई,2022इजाफा
मसूर दाल84.3496.7714.73 फीसदी
चीनी39.7541.484.35 फीसदी
चायपत्ती265.94284.757.07 फीसदी
आलू17.7622.4626.46 फीसदी
टमाटर17.9338.26113.38 फीसदी
दूध47.8551.387.37 फीसदी
मूंगफली तेल175.73187.116.47 फीसदी
सरसों तेल164.87185.5212.52 फीसदी
वनस्पति तेल130.67163.4525.08 फीसदी
सोया तेल147.74170.3315.29 फीसदी
सूर्यमुखी168192.3414.48 फीसदी
पाम तेल132.94159.5119.98 फीसदी


(सोर्स : उपभोक्ता मंत्रालय, भाव प्रति किलो और लीटर में) ग्राफिक्स अमर उजाला से साभार

डॉलर के मुकाबले रुपया हुआ धड़ाम

साल 2013 में डॉलर के मुकाबले रुपए गिरकर 68 रूपये प्रति डॉलर हो गया था। संघ-भाजपा ने प्रचार किया कि डॉलर के मुकाबले रुपया तभी मजबूत होगा जब देश में मजबूत नेता आएगा।

विराट बहुमत से राजगद्दी पर बैठे मोदी और उनकी सरकार के समय में रुपया और कमजोर होता जा रहा है। 2018, 2019, 2020 और 2021 में रुपया लगातार 2.3 प्रतिशत से लेकर 2.9 प्रतिशत तक कमज़ोर हुआ। चार साल से भारत का रुपया कमजोर होकर सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है। जो खबर लिखने तक एक डॉलर के मुकाबले गिरकर 77.39 रुपए तक पहुंच चुका है।

यह आसानी से समझने वाली बात है कि महँगाई विकराल व बेलगाम होने या डॉलर के मुकाबले रूपये की कमजोर होने की कहानी रूस और यूक्रेन की लड़ाई के बाद ही शुरू नहीं हुई है, बल्कि यह तबसे चली आ रही है जब से नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं।

मोदी मैजिक : भयावह स्थितियाँ; फिर भी खामोशी

सबसे बड़ी बात यह है कि इतनी भयावह स्थितियों के बावजूद सबकुछ सहकार लुटाती-पिसती देश की आम जनता चुप्पी मारे हुए है। यही है मोदी मैजिक!

आरएसएस-भाजपा जहाँ देश दुनिया के बड़े पूँजीपतियों की खुली सेवा में आम जनता को रसातल में धकेलती जा रही है। वहीं देश की जनता को धर्म, जाति, राष्ट्र के उन्माद में उलझने में भी कामयाब है।

देश के हालत और अर्थव्यवस्थ श्रीलंका की राह पर हैं। ऐसे में देश की जनता के सामने उन्माद से बाहर निकालकर भविष्य के बारे में सोचना होगा। देर जितना अधिक होगा, मुश्किलें उतनी ही बढ़ेंगी!

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