असम: चाय बागान की जमीन पर एयरपोर्ट बनाने के विरोध में उतरे मजदूर

सिलचर के पास नया ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट बनाने के लिए डोलू चाय बागान की 870 जमीन एकड़ जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ चाय बागान के दो हजार से ज्यादा मजदूर आंदोलन की राह पर हैं।

असम सरकार ने बागान प्रबंधन और तीन प्रमुख मजदूर यूनियनों के साथ समझौता कर लिया है. लेकिन मजदूरों का कहना है कि इससे उनकी आजीविका छिन जाएगी और उनके सामने भुखमरी का खतरा पैदा हो जाएगा. असम मजदूरी श्रमिक यूनियन की ओर से घटित ‘बागान बचाओ’ समिति के बैनर तले आंदोलन करने वाले मजदूरों का कहना है कि बागान की जमीन अधिग्रहण करने के फैसले से पहले उनकी कोई राय नहीं ली गई.

सरकार ने इन मजदूरों के पुनर्वास और मुआवजे का भरोसा दिया है. लेकिन मजदूरों को उसके वादों पर भरोसा नहीं है. उनका कहना है कि इस चाय बागान के आस-पास काफी सरकारी जमीन खाली पड़ी है. इसके अलावा कई ऐसे बागान हैं जहां उत्पादन नहीं होता. वहां आसानी से एयरपोर्ट बनाया जा सकता है. समिति ने प्रमुख मजदूर संगठनों पर मजदूरों को धोखे में रखने और बागान प्रबंधन से डील करने का आरोप लगाया है. अब फोरम फॉर सोशल हार्मनी और असम टी ट्राइब्स स्टूडेंट्स एसोसिएशन समेत कई अन्य संगठन भी मजदूरों के समर्थन में सामने आ गए हैं. नतीजतन दबाव में आते हुए प्रशासन ने इस मुद्दे पर 29 अप्रैल को जनसुनवाई का फैसला किया है.

असम की बराक घाटी में बांग्लादेश की सीमा से लगे सिलचर में पहले से ही एक एयरपोर्ट है. अब सरकार ने वहां कछार जिले में एक ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट बनाने का फैसला किया है. इसके लिए जिन तीन स्थानों की प्राथमिक तौर पर पहचान की गई थी उनमें से डोलू चाय बागान पर ही मुहर लगाई गई. इसके तहत बीते महीने सरकार ने मजदूरों से कोई बातचीत किए बिना बागान प्रबंधन और तीन प्रमुख मजदूर यूनियनों–बराक चाय श्रमिक यूनियन (बीसीएसयू), अखिल भारतीय चाय मजदूर संघ और बराक वैली चाय मजदूर संघ के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर कर लिया.

लेकिन इस मामले का पता चलने के बाद मजदूर विरोध पर उतर आए. उनकी दलील है कि जिस इलाके में प्रस्तावित एयरपोर्ट बनना है वहां चाय की अच्छी पैदावार होती है. उसके नष्ट हो जाने से दो हजार से ज्यादा मजदूरों की रोजी-रोटी छिन जाएगी. सरकार का दावा है कि मजदूरों के समुचित पुनर्वास और उनकी नौकरियों की गारंटी का प्रावधान है. लेकिन बावजूद इसके मजदूर किसी भी हालत में इस समझौते को मानने को तैयार नहीं हैं.

असम श्रमिक मजदूर यूनियन के कछार जिला सचिव धारित्री शर्मा का दावा है कि बागान प्रबंधन ने मजदूरों को सूचित किए बिना ही सरकार को एयरपोर्ट के लिए जमीन देने का फैसला कर लिया. वह कहते हैं, “इस परियोजना के लागू होने की स्थिति में दो हजार से ज्यादा मजदूरों की नौकरियां छिन जाएंगी. चाय बागान प्रबंधन ने मजदूरों को वैकल्पिक रोजगार मुहैया कराने का भरोसा जरूर दिया है. लेकिन यह संभव और व्यावहारिक नहीं है.”

यूनियन के कछार जिला समिति के अध्यक्ष मृणाल कांति सोम कहते हैं, “बागान प्रबंधन  झूठे वादों के जरिए मजदूरों का समर्थन हासिल करने का प्रयास कर रहा है. लेकिन मजदूरों के उनका हक छीनने के किसी भी प्रयास को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.”

इस बीच, आल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (एआईयूटीयूसी) की कछार जिला समिति ने कहा है कि राज्य सरतार को इस परियोजना पर आगे बढ़ने से पहले मजदूरों के रोजगार और दूसरे अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए. मजदूरों की चिंता की वजह यह है कि उनको अपनी नौकरी के बारे में सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस भरोसा नहीं मिला है.

बीते सप्ताह भारी सुरक्षा के साथ प्रशासन के लोग जब जमीन की माप-जोख के लिए मौके पर पहुंचे तो मजदूरों के विरोध की वजह से उनको खाली हाथ ही लौटना पड़ा था. अब आसपास के दूसरे चाय बागानों के मजदूर भी डोली बागान के मजदूरों के समर्थन में उतर आए हैं.

असम टी ट्राइब्स स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एटीटीएसए) ने बागान की जमीन पर ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा स्थापित करने के सरकार के कदम के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन की धमकी दी है. एसोसिएशन का कहना है कि डोलू चाय बागान में करीब 15 हजार स्थायी और ठेका मजदूर हैं और कम से कम 30 हजार लोगों की रोजी-रोटी पूरी तरह से इस चाय बागान पर निर्भर है. सरकार ने बड़े मजदूर समुदाय के हितों की पूरी तरह अनदेखी की है.

इस बीच, राज्य सरकार ने कहा है कि सरकार मजदूरों के रोजगार और पुनर्वास की समुचित व्यवस्था करेगी. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि किसी भी मजदूर की नौकरी नहीं जाएगी. सरकार उनको दूसरी जगह बसाने और वैकल्पिक रोजगार मुहैया कराने की योजना बना रही है. लेकिन बावजूद इसके इस परियोजना के खिलाफ मजदूरों का आंदोलन की धार लगातार तेज हो रही है.

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