नागालैंड में क्यों मुखर है अफ्स्पा ख़त्म करने की माँग?

दिसंबर में आर्मी द्वारा छः मजदूरों व 8 ग्रामीणों की हत्या के बाद आक्रोश व प्रदर्शन जारी है। हजारों की संख्या में लोग आन्दोलन करते हुए नारे लगाए “अब बहुत हुआ, अफ्स्पा को अब जाना होगा”…

आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पॉवर एक्ट 1958 (अफ्स्पा) को खत्म करने और भारत सरकार द्वारा इसको 6 महिनें बढ़ाने के निर्णय को रद्द करने की माँग के साथ 10 जनवरी को, करीब 200 लोगो ने नागालैंड के दीमापुर से 70 किलोमीटर दूर स्थित राजधानी कोहिमा तक एक शांतिपूर्वक मार्च निकाला।

मार्च के साथ यह माँगें मुखर हिन कि जल्द से जल्द आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पॉवर एक्ट1958 (अफ्स्पा) को खत्म किया जाय और भारत सरकार द्वारा अफ्स्पा कानून को आगे 6 महिनें बढ़ाने के निर्णय को रद्द किया जाए। मार्च लगभग दो दिनों तक चली और नागालैंड के कई राजनीतिक संगठन और आम जनता ने इस मार्च को अपना समर्थन भी दिया।

आम लोगो का कहना है कि सरकार उग्रवाद के नाम पर अपने सुरक्षा बलो के द्वारा हम नागालैंड वासियों का कत्लेआम कर रही है। जिस कारण आज हम अफ्स्पा जैसे कानून को पूर्वोत्तर भारत खासकर नागालैंड में इसे जल्द से जल्द खत्म करने के मांग के साथ शांतिपूर्वक मार्च कर रहे हैं।

पिछले एक महीने में पूरे नागालैंड में और मणिपुर, मिजोरम और पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों में कई सारे विरोध प्रदर्शन हुए जिसमें हजारों की संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया। इसके साथ ही इस क्षेत्र के कई राजनीतिक दलों ने एवम मुख्य नेताओं ने उग्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर आर्म फोर्स के द्वारा जो हत्याएं की गई, उसकी भ्रत्सना की और साथ ही इस क्षेत्र में जो बड़ी संख्या में सुरक्षा के नाम पर सेना को रखा गया है, उसे कम करने की मांग भी रखी है।

क्यों भड़क आक्रोश?

4 दिसंबर 2021 को नागालैंड के मोन जिला के ओटिंग गांव में आर्मी के सुरक्षा बलों ने कोयले खदान से काम कर लौट रहे छः मजदूरों की गोली मारकर हत्या कर दी। गांव वालों ने बताया कि इन छः मजदूरों के अलावा उसी दिन कुछ देर बाद आठ और आम जनता की हत्या सेना के जवानों ने गोली मार कर कर दी। गांव वालों ने घटना की जानकारी देते हुए बताया कि ये छः मजदूर काम कर एक वैन में बैठ कर घर लौट रहे थे। गांव वालों को गोली चलने की आवाज सुनाई दी। लेकिन फिलहाल उन्होंने उसकी अनदेखी कर दी।

शाम को जब कुछ लड़के काम से नहीं लौटे तो गांव वाले उन्हें ढूंढने निकले। लेकिन बीच में ही उन्हें आर्मी की गस्ती गाड़ी (पेट्रोलिंग वैन) मिली जिससे गांव वालों ने उनसे उन लड़कों के बारे में पूछताछ की। पूछताछ के दौरान ही उन्हें शक हुआ और वो आर्मी के उस वैन को देखने लगे। उन्होंने देखा कि प्लास्टिक शीट के नीचे कुछ रखा हुआ है जिस पर आर्मी के कुछ जवान चढ़ कर खड़े हैं।

जब उन्होंने उस शीट को हटा कर देखा तो पाया कि वहां उन छः लड़कों की लाश पड़ी थीं। जिसके बाद लोग अक्रोशित हो उठे और गांव से लड़कों को दूंढने निकले लोगों ने आर्मी के उस गाड़ी को घेर लिया। जिसके बाद सुरक्षा बलों ने गांव वालों पर फिर से गोलियां चलानी शुरू कर दी जिसमें आठ गांव वालों की गोली लगने से मौत हो गई।

जबकि आर्मी के अनुसार उन्हें कुछ उग्रवादियों के होने की सूचना मिली थीं। जिसके बाद वो ऑपरेशन पर निकले थे। इसी दौरान उन्होंने मजदूरों के उस वैन पर उग्रवादी समझ गोली चला दी और उनकी मौत हो गई।

इस घटना के दो-तीन बाद तक माहौल काफी गर्म था और लोग अक्रोशित थे। जिसके बाद उन्होंने इसके खिलाफ आन्दोलन और विरोध प्रदर्शन किया। इस बीच आर्मी के जवानों ने आंदोलनकारियों पर आंसू गैस के गोले चलाए और हवाई फायरिंग भी की।

“अब बहुत हुआ, अफ्स्पा को अब जाना होगा”

जब यह खबर बाहर निकली तो विभिन्न राजनीतिक दलों की काफी सख्त प्रतिक्रिया आई। नागालैंड के कोनयाक ग्रुप और अन्य समुदायों ने चल रहे हॉर्नबिल उत्सव को रोक दिया। साथ ही हॉर्नबिल उत्सव के बहिष्कार का मांग उठाया साथ ही नागालैंड के सभी मुख्य राजनीतिक दलों ने अफ्स्पा जैसे कानून को तुरंत खत्म करने की मांग रखी।

साथ ही साथ सभी गांवों के बाहर और अपने-अपने घरों के बाहर नागालैंड से आर्मी के चले जाने, अफ्स्पा कानून को रद्द करने और मारे गए सभी लोगों को न्याय देने जैसी मांगो के साथ पोस्टर लगाए गए। नागालैंड और आस-पास के राज्य क्षेत्रों में हजारों की संख्या में लोग जमा होकर आन्दोलन करते हुए नारें लगाए “अब बहुत हुआ, अफ्स्पा को अब जाना होगा” (enough is enough, AFSPA has to go)।

कई राजनीतिक दलों ने और नेताओं ने मुख्यमंत्री और सांसदों से कड़े स्वर में यह अपील किया कि देश के संसद में भी इस घटना को मजबूती से उठाया जाए और अफ्स्पा के खिलाफ कदम उठाया जाए।

कोनयाक समुदाय ने घोषणा पत्र निकालते हुए यह माँग की कि 30 दिनों के अंदर इन हत्याओं में शामिल अधिकारियों और सुरक्षा बलों पर करवाई कर इन्हें सेवा मुक्त किया जाए। जिसमें अभी तक कोई करवाई नही की गई है। जिस कारण इस समुदाय ने फिर से सरकार को 15 जनवरी से 25 जनवरी 2022 तक समय दिया।

साथ ही यह मांग कर रहें हैं कि ओटिग गांव में आर्मी के इस कुकृत्य को दिखाते/ चिन्हित करते हुए एक नरसंहार पार्क बनाया जाए।

अमित शाह के बयान से लोगों में आक्रोश और बढ़ा

वहीं गृह मंत्री अमित शाह ने संसद के शीत कालीन सत्र में इस घटना का जिक्र करते हुए कहा कि ये दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। लेकिन फिर उन्होंने इस एक्ट और सेना के इस कुकृत्य का बचाव करते हुए यह बयान दिया कि सेना के जवानों ने आ रहे मजदूरों के वैन को रोकने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने गाड़ी नहीं रोकी जिससे उन्हें मजबूरी में गोली चलानी पड़ी।

जबकि गांव वालों का कहना है कि गोली सामने से चलाई गईं। जिससे वैन के सामने के शीशे पर गोलियों के निशान है। गृह मंत्री अमित शाह के इस बयान ने नागालैंड के लोगों में और भी आक्रोश भर दिया।

अफ्स्पाः कथित शांतिबहाली के बहाने आर्मी को खुली छूट

अफ्स्पा कानून सबसे पहले नागालैंड और फिर धीरे-धीरे पूर्वोत्तर के सात बहन कही जाने वाली सातों राज्यों और कश्मीर में लागू किया गया। जिसमें आर्मी को इन राज्यों में तथाकथित शांति बहाल करने के नाम पर शक्ति प्रयोग करने की खुली छूट दी गई है।

जिसके परिणाम स्वरूप सेना के जवानों द्वारा तथाकथित अलग राज्यों की मांग करने वाले विद्रोहियों को रोकने के नाम पर आम नागरिकों की हत्या, महिलाओं के साथ बलात्कार, हिरासत में मौत, प्रताड़ना जैसी खबरें आम हैं। इन राज्यों में जाकर मानवाधिकार जैसे शब्द बईमानी लगने लगते हैं।

न्याय की हर आवाज़ कुचलने का हथियार

अफ्स्पा जैसे कानून वहां की पुलिस और उस राज्य में रखे गए सेना को कानून के दुरुपयोग की खुली छूट देता है। उनके द्वारा की गई करवाई को सिविल कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है और ना की सरकार के आदेश के बिना आरोपी या दोषी अधिकारियों पर मुकदमा चलाया जा सकता है।

यह एक्ट सेना को शक के बिना पर किसी को गोली मारने, बगैर वारंट के तलाशी लेने और गिरफ्तार करने जैसे अधिकार देता है। हालांकि भारतीय दंड संहिता सैन्य और असैन्य न्याय प्रणाली के तहत आरोपी सशस्त्र बल कर्मियों पर मुकदमा चलाने की अनुमति देता है। लेकिन अफ्स्पा में सशस्त्र बलों पर असैन्य अभियोजन चलाने के पहले केंद्र सरकार की अनुमति की जरूरत होती है।

परंतु ये अनुमति सरकार शायद ही कभी देती हो। साथ ही साथ अगर असैन्य न्यायलय में सैन्य अधिकारियों और जवानों पर चलने वाली मामले को सैन्य हिरासत में स्थांतरित कर कोर्ट मार्शल द्वारा सुनवाई हो सकती है। जिसमें सैन्य कोर्ट अपने अधिकारियों को क्लीन चिट दे कर मामले से बरी कर दे सकती है।

ऐसा हमेशा ही देखा गया है कि ऐसी किसी भी घटना के बाद सरकार का एक सीधा सा रवैया रहता है कि वह मामले की छानबीन के लिए एक कमिटी गठित करेगी और फिर जांच के बाद दोषी अधिकारियों को बचाने के लिए मुकदमा दायर करने जैसी आदेश ही नहीं देती।

“ह्यूमन राइट वॉच” एक रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2018 में रक्षा मंत्रालय ने संसद को सूचना देते हुए बताया कि उसने सैनिकों के असैन्य अभियोजन संबंधी जम्मू और कश्मीर सरकार के साल 2001 के बाद भेजे गए सभी 50 अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया।

भारत सरकार द्वारा अलग-अलग समय में अफ्स्पा पर कई अलग-अलग आयोग बनाई जिसने अफ्स्पा की आलोचना करते हुए इसे रद्द करने की सिफारिश की है। लेकिन सरकार इन सिफारिशों पर हमेशा चुप्पी साधे रही है।

खनिजों की लूट के विरोध में उठ रहे आवाजों को दबाने का काम

नागालैंड वासियों का कहना है कि यदपि यह कानून राज्य में शांति बहाल करने के नाम पर लाया गया था। लेकिन कभी यह महसूस ही नही हुआ कि यह यहां शांति बहाल करने की दिशा में काम किया हो। बल्कि इस एक्ट का प्रोयोग हमारे राज्य में उपल्ब्ध खनिजों की हो रही लूट के विरोध में उठ रहे आवाजों को हमेशा दबाने के लिए किया गया।

इन आठ गांव वालों और छः मजदूरों की हत्या के बाद राज्य में चल रहे हॉर्न बिल उत्सव को रोकने के फैसले पर वहां के रहवासियों का कहना है कि सरकार हमे हमेशा देश दुनियां के सामने एक दिखावटी चीज के रुप में प्रस्तुत करती है। लोग बाहर से आते हैं घूमते हैं हमे और हमारे प्रदेश को देखते हैं। लेकिन कोई भी हमारे पीड़ा को ना ही देखता है, ना ही समझता है और ना ही कुछ बोलता है।

‘संघर्षरत मेहनतकश’ अंक-46 (जनवरी-मार्च, 2022) में प्रकाशित

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