24 फरवरी, 1971 : जे.के.सिंथेटिक्स, कोटा का वह नृशंस गोलीकांड जिसमें 8 श्रमिक शहीद हुए थे

गोलीकांड स्थल का दृश्य अत्यधिक डरावना और वीभत्स था। कारखाने के गेट के सामने ताज़ा लहू के निशान, शहादत की गवाही दे रहे थेकोटा के अमर शहीदों को क्रांतिकारी श्रद्धांजलि।

  • महेंद्र नेह

आज कोटा के मेहनतकशों के लिए शोक .संघर्ष और प्रेरणा का दिन। आज के ही दिन 24 फरवरी, 1971 को जे.के.सिंथेटिक्स के नृशंस गोलीकांड में हमारे 8 नौजवान श्रमिक साथी हुए थे शहीद!

आधी सदी बीत गयी, जब कोटा के शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे मजदूरों पर जे.के.सिंथेटिक्स कारखाने के गेट पर डी.आई.जी. गुमानसिंह भाटी ने बेरहमी के साथ फाइरिंग का आदेश दे दिया। फाइरिंग में 8 शहीदों की लाशें बिछ गईं और अनेक श्रमिक घायल हो गए। यह 24 फरवरी, 1971 का काला दिन था, जब मजदूरों का लाल झंडा शहादत के लहू से और अधिक सुर्ख हो गया।

बोनस अध्यादेश के खिलाफ देशव्यापी प्रतिरोध

यह 1971 का साल था, जब श्रीमती इंदिरा गाँधी भारी बहुमत के साथ सत्ता में पहुंची थीं। राष्ट्रपति वी.वी.गिरि ने उन्हें एशिया का सूर्य कहा और अटल बिहारी वाजपेयी ने दुर्गा का अवतार। उनके द्वारा बैंक और बीमा का राष्ट्रीयकरण किये जाने पर भारत के प्रगतिशील संगठन, उन्हीं के नेतृत्व में अपना भविष्य देख रहे थे। किन्तु उन्हीं इंदिरा गाँधी ने सत्ता में आते ही मजदूर विरोधी कानून बनाकर देश के इजारेदार पूंजीपतियों की सेवा शुरू कर दी।

इंदिरा गाँधी के नेतृत्व वाली कोंग्रेस सरकार ने एक अध्यादेश निकाल कर मजदूरों के बोनस की उच्चतम सीमा 20 % तय कर दी। मजदूरों का पक्ष था कि जब मालिकों के मुनाफे की कोई सीमा नहीं तो, मजदूरों के बोनस की सीमा किसलिए? इसी मुद्दे को लेकर सी.आई.टी.यू. ने 24 फरवरी को देशव्यापी प्रतिरोध का आह्वान किया। कोटा के श्रमिक उसी अध्यादेश के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे थे।

वह भयावह दृश्य

मैं तब कोटा के एक भारी उद्योग में सुपरवाइजर के पद पर कार्य करता था। जैसे ही मैंने गोलीकांड की घटना के बारे में सुना, मैं तुरंत वहां पर पहुँच गया। गोलीकांड स्थल का दृश्य अत्यधिक डरावना और वीभत्स था। कारखाने के गेट के सामने ताज़ा लहू के निशान, शहादत की गवाही दे रहे थे। मजदूरों की साइकिलें जला दी गई थीं और उनमें से धुंए का बवंडर उठ रहा था।

आन्दोलन के नायक कामरेड परमेन्द्र नाथ ढंडा को देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए गए थे। इसके बाबजूद कामरेड प्रभा शंकर झा और कामरेड ज्ञानी कर्म सिंह मजदूरों की सभाएं ले रहे थे। कोंग्रेस, जनसंघ, इंटक, बीएमएस के नेता मालिकों के पक्ष में खड़े थे।

फिर भी न तो मजदूरों की एकता को तोड़ा जा सका और न ही उनके हौसलों को। आने वाले वर्षों में मजदूरों ने अपने संघर्षों के बल पर 30 % तक बोनस देने के लिए मालिकों को बाध्य किया और यह क्रम लगातार कई वर्षों तक जारी रहा।

जहाँ बना शहीद स्मारक

जहां गोलीकांड हुआ था, वहां एक भव्य शहीद स्मारक का निर्माण हुआ, जहां आज के दिन श्रमिक साथी लाल झंडे हाथों में लिए अपने प्रिय शहीद साथियों को श्रद्धांजलि देने पहुचते हैं। शहीद स्मारक को कामरेड मोहन पुनमिया और समाजवादी नेता प्रोफ़ेसर केदार ने लोकार्पित किया था।

मुझे 1973 में शहीद स्मारिका के संपादन की जिम्मेदारी सौंपी गयी। पुनः साथी शिवराम के सम्पादन में “अभिव्यक्ति ” का शहीद-विशेषांक 1980 में प्रकाशित किया गया। वर्षों तक शहीद दिवस पर आयोजित कवि सम्मलेन में देश के प्रमुख जनवादी कवि रमेश रंजक, मुकुटबिहारी सरोज आदि आते रहे, भगत सिंह के साथी शिव वर्मा, पंडित किशोरी लाल भी शहीदों को नमन करने कोटा आये थे।

कोटा के अमर शहीद साथियों को क्रांतिकारी श्रद्धांजलि! लाल सलाम!

साथी महेंद्र नेह के फ़ेसबुक वाल से साभार

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