मारुति के अन्यायपूर्ण सजायाफ्ता एक और मज़दूर योगेश को साढ़े नौ साल बाद मिली जमानत

उम्रक़ैद झेलते मारुति के 13 मज़दूर नेताओं में से योगेश से पूर्व संदीप ढिल्लों, सुरेश व रामबिलास को जमानत मिल चुकी है। जबकि पवन दहिया व जिया लाल की दुखद मौत हो चुकी है।

कास्टडी आधार पर चंडीगढ़ उच्च न्यायलय ने दी ज़मानत

गुड़गांव। 9 साल 7 माह से जेल में बंद मारुति सुजुकी मानेसर के एक और संघर्षशील साथी योगेश यादव को आज 8 फरवरी को पंजाब हरियाणा उच्च न्यायलय, चंडीगढ़ से ज़मानत मिल गई। 3 साथियों को इससे पूर्व जमानत मिली थी। अन्यायपूर्ण सजा झेलते 7 मज़दूर अभी भी जेल में हैं। कोर्ट में अगली सुनवाई 21 फरवरी को है।

ज्ञात हो कि अन्यायपूर्ण उम्रक़ैद झेलते 13 मज़दूरों में से दो साथियों पवन दहिया व जिया लाल की बीते साल दुर्भाग्यपूर्ण दुखद मौत हो गई थी। जबकि साथी रामबिलास, संदीप ढिल्लों और सुरेश को बीते नवंबर व जनवरी में जमानत मिली थी। सभी की जमानत कास्टडी आधार पर मिली है।

अभी शेष 7 साथियों की जमानत की कोशिशें जारी हैं। साथ ही उन सभी साथियों की बेगुनाही के लिए भी क़ानूनी लड़ाई जारी है।

10 साल से अन्याय के खिलाफ संघर्ष जारी

मारुति सुजुकी, मनेसर के मज़दूर सन 2011 से संगठित हो संघर्ष कर रहे हैं। 2012 में उन्होंने यूनियन पंजीकृत कराने और ठेका मज़दूरों के भी हक़ की आवाज उठाने के कारण मज़दूर प्रबंधन की आँख की किरकिरी बने हुए थे।

एकजुट संघर्ष से घबराए मारुति सुजुकी, मानेसर के प्रबंधन ने 18 जुलाई, 2012 को प्लांट में साजिशपूर्ण घटना को अंजाम देकर हरियाणा सरकार की मिलीभगत से भारी दमन चक्र चलाया। तब निर्दोष 148 मज़दूरों को जेल के अंदर डाल दिया गया था। उन्हें पुलिस व जेल की यातनाएं सहनी पड़ी।

करीब ढाई हजार स्थाई-अस्थाई मज़दूरों को अवैध रूप से कंपनी से निकाल दिया गया, जिनका संघर्ष आज भी जारी है। इस पूरे प्रकरण में सरकार-मालिक गँठजोड़ खुलकर सामने आया।

दूसरी ओर इलाके और देश के मज़दूरों का एक हिस्सा मारुति मज़दूरों के साथ खड़ा हुआ और बिरादराना एकजुटता दिखलाई, जिससे मालिक के पक्ष में खड़ी सरकार और उसकी पुलिस-प्रशासन के मानमानेपन पर एकहद तक रोक लग सकी।

न्यायपालिका तक जमानत याचिका को खारिज करने का कारण विदेशी पूँजीनिवेश प्रभावित होना बताती रही। यानी पूरा तंत्र मालिकों के पक्ष में खड़ा है। पिछले साढ़े नौ सालों से देश व दुनिया की तमाम यूनियनों द्वारा एक निष्पक्ष न्यायिक जाँच की माँग पूंजीपतियों और सरकार के गठबंधन से दरकिनार होती रही और मज़दूरों का लंबा संघर्ष जारी है।

13 अगुआ मज़दूरों को मिली उम्रक़ैद

18 मार्च 2017 को सेशन कोर्ट गुडगांव द्वारा सुनाए गए फैसले में 117 मज़दूर बरी हुए, नेतृत्वकारी 13 मज़दूर साथियों को आजीवन कारावास की सजा तथा 18 साथियों को आंशिक सजा मिली। करीब 10 साल से 13 मज़दूर जेल की कालकोठरी में अन्यायपूर्ण उम्रक़ैद की सजा भुगत रहे हैं।

इस दौरान किसी भी साथी को कोई कानूनी राहत या जमानत तक नहीं मिली। सजा भुगतते 13 में से दो साथियों साथी पवन दहिया की पैरोल के दौरान घर पर बिजली का करंट लगाने से, जबकि साथी जिया लाल की कैंसर से अकाल दुखद मौत हुई।

संघर्ष में डटे हैं मज़दूर

साढ़े नौ साल कालकोठरी में बिताने के बाद साथी रामबिलस को पिछले साल नवंबर में, साथी संदीप व सुरेश को जनवरी में तथा योगेश को आज जमानत मिल सकी।

अभी भी सात साथियों की जमानत और सभी बचे 11 साथियों की बाइज्जत रिहाई के संघर्ष के साथ क़रीब 2500 स्थाई व स्थाई मज़दूरों की कार्यबहाली का संघर्ष जारी है।

हालांकि मारुति मज़दूरों के वर्गीय भाईचारे ने जेल में बन्द साथियों के संघर्ष को बाल दिया। मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन ने क़ानूनी लड़ाई का दायित्व संभाले रखा है। मारुति सुजुकी मज़दूर संघ से जुड़ी सभी यूनियनों के साथ अन्य प्लांट के मज़दूरों ने अपने भाईचारे का फ़र्ज़ निभाते हुए इनके परिवारों की देखभाल की। इस आंदोलन की अगुवाई करने वाले मारुति सुजुकी प्रोविजनल कमेटी के साथियों ने भी हर स्तर पर अपना महत्वपूर्ण योगदान जारी है।

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मारुति संघर्ष गाथा- 

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