141 दिनी अनशन व व्यापक विरोध के बाद फ़िलिस्तीनी बंदी हिशाम की रिहाई का रास्ता साफ

इज़रायल की दादागिरी : प्रशासनिक नज़रबंदी के तहत इज़रायल अवैध रूप से फ़िलिस्तीनियों को बिना किसी आरोप या मुकदमे के अनिश्चित काल के लिए हिरासत में ले सकता है।

इस्राइल की अवैध प्रशासनिक हिरासत के खिलाफ 141 दिनों की लगातार भूख हड़ताल, व्यापक विरोध और अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बाद इज़राइली अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि अबू हव्वाश को फ़रवरी में रिहा कर दिया जायेगा। इस ख़बर के आते ही फ़िलिस्तीन के लोग झूम उठे।

इज़राइली अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि फ़िलिस्तीनी बंदी हिशाम अबू हव्वाश की प्रशासनिक हिरासत आदेश को और आगे नहीं बढ़ाया जायेगा और उन्हें फ़रवरी में निश्चित रूप से रिहा कर दिया जायेगा। इस घोषणा के बाद हिशाम अबू हौवाश ने अपनी भूख हड़ताल ख़त्म कर दी।

अबू हव्वाश पिछले 141 दिनों से इस्राइल की अवैध प्रशासनिक हिरासत में थे और इस हिरासत के विरोध और अपनी पूरी रिहाई की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर थे।

ग़ौरतलब है कि फ़िलिस्तीन के लोग हिशाम अबू हव्वाश के साथ एकजुटता दिखाते हुए सोमवार, 3 जनवरी को प्रदर्शनों और एकजुटता रैलियों में भाग लिया था, और सभी प्रशासनिक बंदियों की रिहाई के लिए व्यापक संघर्ष के साथ-साथ महीनों से उनकी रिहाई के लिए आंदोलन कर रहे थे।

प्रशासनिक नज़रबंदी इज़रायल का खतरनाक दमनकारी हथियार

प्रशासनिक नज़रबंदी के तहत इज़रायल अवैध रूप से फ़िलिस्तीनियों को बिना किसी आरोप या मुकदमे के अनिश्चित काल के लिए गोपनीय साक्ष्य के आधार पर हिरासत में ले सकता है। अधिकारी हर 4 से 6 महीने में प्रशासनिक हिरासत के आदेशों को फिर से नवीनीकरण कर सकते हैं।

अनुमान है कि इस समय इज़राइल में कुल 4,600 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी क़ैद में हैं,जिनमें से प्रशासनिक हिरासत में 5,50 फ़िलिस्तीनी हैं।

पिछले हफ़्ते हव्वाश के ख़िलाफ़ प्रशासनिक हिरासत के आदेश को रद्द किये जाने के बजाय इज़रायली जेल अधिकारियों ने इस हिरासत को स्थायी करने का फ़ैसला कर लिया था, यानी कि प्रभावी तौर पर उनकी रिहाई के लिहाज़ से उन्हें सीमित कर दिया गया था और किसी भी वक़्त उनकी नज़रबंदी के नवीनीकरण या उसे बढ़ाने का विकल्प खुला छोड़ दिया गया था।

141 दिनों से जारी थी हव्वाश की भूख हड़ताल

हव्वाश ने 17 अगस्त, 2021 को अपनी भूख हड़ताल शुरू कर दी थी। उन्होंने छह महीने की प्रशासनिक हिरासत के दो फ़रमानों को पूरा करने के बाद और अपने ख़िलाफ़ एक और नज़रबंदी के फ़रमान के जारी होने के बाद अपनी हड़ताल शुरू की थी। आख़िरी नज़रबंदी को बाद में घटाकर छह से चार महीने कर दिया गया था।

वे पहले से ही बिना भोजन या पानी के 135 दिन बीता चुके थे। लिहाज़ा कई तरह की गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं से गुज़रने और शारीरिक स्थिति के लगातार बिगड़ते जाने चलते उन्हें अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया था, इसके बावजूद उन्होंने अपनी भूख हड़ताल को जारी रखने का फ़ैसला किया था।

हव्वाश को अपनी भूख हड़ताल के दौरान गंभीर और कमज़ोर कर देने वाली कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा है। इन स्वास्थ्य समस्याओं में शामिल हैं- आंखों से कम दिखायी देना, कम सुनाई देना, बोलने में कमज़ोरी, वज़न का बहुत घट जाना, लगातार थकान होना, दर्द होना, चक्कर आना, माइग्रेन, छाती की धड़कन का तेज़ होना, ख़ून से जुड़ी कई समस्यायें और मांसपेशियों में टूट-फूट होना आदि। उन्हें अपने किडनी, लीवर और दिल को स्थायी नुक़सान पहुंचने के जोखिम का भी सामना करना पड़ रहा था।

लगातार बढ़ते विरोध प्रदर्शन से बना दबाव

3 जनवरी को हव्वाश के पैतृक गांव ड्यूरा, रामल्लाह और बेथलहम और यरुशलम स्थित उस असफ़ हारोफ़ेह अस्पताल के सामने रैलियाँ आयोजित की गयीं, जहां उनका इस समय इलाज चल रहा है। साथ ही साथ फ़िलिस्तीनी-बहुल शहर उम्म में भी रैलियां निकाली गयीं। इज़रायली सुरक्षा बलों ने अल-फ़हम में हिंसा के दम पर प्रदर्शन को दबा दिया, लोगों पर हमले किये और प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार कर लिया।

वेस्ट बैंक और इज़राइल दोनों ही के कई दूसरे शहरों और क़स्बों में हव्वाश के साथ एकजुटता में रैलियां निकलती देखी गयीं। रामल्लाह की बिर्ज़िट यूनिवर्सिटी और नाक़ेबंदी वाले शहर गाज़ा के हज़ारों छात्रों ने एकजुटता रैलियां और जुलूस निकाले। इन रैलियों और जुलूस में हिस्सा लेने वालों ने हव्वाश के नाम से नारे लगाये और उनके हाथ में ऐसे पोस्टर और तख़्तियां थीं, जिन पर लिखा हुआ था- “हम सब आपके साथ हैं” और “आप अकेले नहीं हैं हाशिम”।

उनकी तत्काल और बिना शर्त रिहाई के साथ-साथ इज़रायली जेलों में अन्य प्रशासनिक बंदियों की रिहाई की भी मांग की जा रही थी।

वैश्विक स्तर पर हुई रिहाई की माँग

इस हफ़्ते के आख़िर में प्रीज़नर्स राइट्स एंड मेडिकल चैरिटीज़ ने हव्वाश के स्वास्थ्य और उनकी बेहद गंभीर होती शारीरिक स्थिति के चलते उनकी मौत के ज़बरदस्त जोखिम को लेकर अपनी चिंतायें जतायी थीं।

इसी तरह, इंटरनेशनल कमिटी ऑफ़ द रेड क्रॉस (ICRC) ने रविवार को ट्वीट किया था: “आईसीआरसी मिस्टर हिशाम इस्माइल अहमद अबू हव्वाश पर लगातार नज़र बनाये हुई है और उनके बिगड़ते स्वास्थ्य को लेकर गंभीर रूप से चिंतित है। चिकित्सकीय नज़रिये से 138 दिनों की भूख हड़ताल के बाद वह गंभीर स्थिति में है, जिसके लिए उपचार से जुड़े विशेषज्ञों की निगरानी की ज़रूरत है। उनकी सेहत को किसी तरह से स्थायी क्षति नहीं पहुंचे और उनकी ज़िंदगी बची रहे, इसके लिए एक हल तक पहुंचाने को लेकर हर चंद कोशिश की जानी चाहिए…हर एक बंदी के साथ मानवीय और सम्मान के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए।”

फ़िलिस्तीनी बंदियों और पूर्व-बंदियों के मामलों के आयोग (Palestinian Commission of Detainees’ and ex-Detainees’ Affairs) ने भी सोमवार को इस बात का ख़ुलासा किया कि हव्वाश कोमा में चले गये थे और उनकी सेहत बहुत तेज़ी से बिगड़ रही थी। यह भी कहा गया था कि उनके साथ अचानक होने वाली मौत का जोखिम बहुत ज़्यादा है। बंदी मामलों की समिति के प्रमुख क़ादरी अबू बेकर के मुताबिक़, हव्वाश तक़रीबन ‘क्लिनिकल डेथ’ के कगार पर थे।

अबू बेकर ने भी रविवार को कहा था कि हव्वाश की ज़िंदगी को बचाने के लिए ज़रूरी उनकी रिहाई के सिलसिले में ज़बरदस्त कोशिश की जा रही थी। उन्होंने आगे बताया कि मिस्र और क़तर दोनों ने इज़रायल के पास इस उम्मीद में अपने-अपने मध्यस्थ भेजे थे कि इज़रायली सरकार को हव्वाश की प्रशासनिक नज़रबंदी को ख़त्म करने के लिए मानाया जा  सके।

इसके अलावे, फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण (PA) के विदेश मंत्रालय के साथ-साथ पीए के प्रधान मंत्री मोहम्मद शतयेह ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से हव्वाश को रिहा कराने के लिए इज़राइल पर दबाव बनाने का आग्रह किया था। पीए मंत्रालय ने कहा था कि इस सिलसिले में सभी प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय और संयुक्त राष्ट्र संस्थानों से संपर्क साधा गया है और हव्वाश की रिहाई को सुरक्षित करने और उनकी ज़िंदगी को बचाने के लिए सभी तरह की कोशिशें की जा रही थीं।

प्रशासनिक हिरासत के ख़िलाफ़ संघर्ष जारी

अबू हव्ववाश की रिहाई के साथ-साथ प्रशासनिक हिरासत के ख़िलाफ़ भी संघर्ष जारी है। 4 जनवरी को “बर्बर, नस्लवादी साधन में भाग लेने से इनकार करते हुए प्रशासनिक हिरासत में 5,00 फ़िलिस्तीनियों ने इज़रायल की उस सैन्य अदालतों का बहिष्कार शुरू कर दिया, जिसने प्रशासनिक नज़रबंदी के बैनर तले हमारे लोगों की ज़िंदगी के सैकड़ों साल बर्बाद कर दिये हैं।”

न्यूजक्लिक से साभार

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