2021 : किसानों के शानदार संघर्षों, ऐतिहासिक जीत और किसान-मज़दूर एकजुटता का साल रहा

पूरा किसान आंदोलन, धर्म-क्षेत्र-जाति की फिरकापरस्त दीवारों कों ढहाकर देश के मज़दूर-मेहनतकश किसानों के अटूट संघर्ष का साझीदार बनते हुए संग्रामी एकता का भी गवाह बना।

जनविरोधी कृषि क़ानूनों के खिलाफ़ चले ऐतिहासिक आंदोलन के दौरान साल 2021 के पहले दिन किसान नेताओं ने कहा था, ‘‘सरकार जब तक हमारी मांगें नहीं मान लेती, तब तक हमारे लिए कोई नया साल नहीं है।”

और यही वह जज्बा था जिसने इस साल के खत्म होने के पहले तानाशाह मोदी सरकार को झुकाने और ऐतिहासिक जीत हासिल करने में देश के किसान कामयाब रहे। इसमें संयुक्त किसान मोर्चा ने शानदार और कुशल नेतृत्व की भूमिका निभाई।

26 जनवरी : संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर आयोजित किसान ट्रैक्टर परेड पर भाजपा-आरएसएस और उसके पूरे तंत्र का षड्यन्त्र एक महत्वपूर्ण मुक़ाम था। इस साजिशाना घटना और दमनपूर्ण कार्रवाइयों के बाद आन्दोलन नए मोड़ पर था।

सरकार की नियत, मंत्रियों व आरएसएस-भाजपा नेताओं, मंत्रियों, सत्ता पोषित मीडिया के घटिया बयानों व दुष्प्रचारों के बीच प्रतिरोध के स्वर नए तेवर लेने लगे। देश भर में किसान महापंचायतों के लगातार आयोजनों तथा विविध और नए-नए तरीके से क्रियात्मक प्रयोगों व तौर-तरीकों से आंदोलन फैलता गया और देशव्यापी बन गया।

इसी के साथ धर्म-क्षेत्र-जाति की फिरकापरस्त दीवारों कों ढहाकर संग्रामी एकजुटता के साथ देश का समस्त श्रमजीवी वर्ग, छात्र-नौजवान, महिलायें और न्यायप्रिय जनता ने शानदार संग्रामी एकता की मिसाल कायम की।

किसान आंदोलन के पूरे दौर में महिलाओं की भूमिका बेहद शानदार रही और हर मोर्चे पर उन्होंने बेजोड़ भूमिका निभाई। 8 मार्च को ‘महिला किसान दिवस’ से लेकर ‘महिला किसान संसद’ जैसे आंदोलनों से महिलाओं की नेतृत्वकारी भूमिका भी उभरकर सामने आई।

किसान-मज़दूर एकता की मिसाल : कुछ बानगी

किसान आंदोलन के दौरान किसान-मज़दूर एकता भी लगातार मजबूत होती गई। देश के अलग-अलग हिस्सों से मज़दूरों और ट्रेड यूनियनों ने शानदार एकजुटता के साथ किसान-मज़दूर एकता का प्रदर्शन किया। संयुक्त किसान मोर्चा के हर आह्वान पर मज़दूरों ने कंधे-से-कंधा मिलाया।

दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन के केंद्रों/मोर्चों पर मज़दूर जत्थे भी पहुंचते रहे। मारुति सुजुकी मज़दूर संघ से जुड़ी यूनियनें व ट्रेड यूनियन कौंसिल गुड़गांव-रेवाड़ी ने धारूहेड़ा के निकट किसानों के धरने पर जाकर समर्थन के साथ खाने पीने का समान दिया।

यह सिलसिला लगातार आगे बढ़ता रहा। उत्तराखंड के रुद्रपुर में श्रमिक संयुक्त मोर्चा के बैनर तले समर्थन में मज़दूरों ने बाइक रैली निकाली।

13 जनवरी: गुड़गांव मानेसर में पचास हजार से ज्यादा मज़दूरों ने सरकार की मज़दूर, किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ काले बिल्ले लगाकर विरोध किया। वहीं हरियाणा, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेश सहित देश के विभिन जगहों पर लोहडी की आग में जनविरोधी 3 कृषि क़ानूनों व 4 लेबर कोड की प्रतियाँ जलाई गईं।

13 मार्च को जनविरोधी कृषि कानूनों और मज़दूर विरोधी 4 श्रम संहिताओं के ख़िलाफ़ टिकरी बॉर्डर पर मज़दूर-किसान एकजुटता का प्रदर्शन हुआ और किसान संगठनों के साथ मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने मंच साझा किया।

16 मार्च को देशभर में किसान-मज़दूर भागीदारी के साथ ‘निजीकरण विरोधी’ व ‘महँगाई विरोधी’ दिवस मनाया गया। 26 मार्च को सयुंक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर किसान-मज़दूर एकजुटता के साथ पूरे देश में भारत बंद का जबरदस्त असर रहा।

1 मई : कोरोना पाबंदियों के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर “मजदूर किसान एकता दिवस” के तौर पर मई दिवस मनाया गया। 26 मई को काला दिवस मना।

अगस्त क्रांति दिवस (9 अगस्त) को किसान-मज़दूर एकजुट प्रदर्शन हुआ, तो 15 अगस्त को किसान-मज़दूर आजादी संग्राम दिवस मनाया गया। 26-27 अगस्त को किसान आंदोलन के नौ महीने पूरे होने पर संयुक्त किसान मोर्चा का पहला अखिल भारतीय सम्मेलन हुआ, जिसमे लाखों किसानों के साथ ट्रेड यूनियनों और मज़दूरों, महिलाओं, छात्रों-नौजवानों ने भी भागीदारी निभाई।  

27 सितंबर देशव्यापी बंद व 26 नवम्बर को एक साल पूरा होने पर दिल्ली मोर्चों के साथ देशभर में लाखों किसानों के प्रदर्शन में मज़दूरों ने सक्रिय एकजुटता का प्रदर्शन किया।

14 नवंबर को लघु सचिवालय गुड़गांव में बेलसोनिका ऑटो कंपोनेंट इंडिया इम्पालाइज यूनियन, मानेसर द्वारा मजदूर-किसान पंचायत का आयोजन हुआ। जिसमें औद्योगिक क्षेत्र के मजदूर संगठनों एवं यूनियन प्रतिनिधियों के साथ संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने भी भागीदारी की।

26 नवम्बर: दिल्ली की सीमाओं पर ऐतिहासिक किसान आंदोलन के एक साल पूरे होने पर टिकरी, सिंघू, ग़ाज़ीपुर और शाहजहांपुर मोर्चों पर दसियों हजार किसानों के साथ मज़दूर-मेहनतकश पहुंचे और आंदोलन को मुकम्मल जीत तक जारी रखने का संदेश दिया।

28 नवम्बर को संयुक्त शेतकारी कामगार मोर्चा (एसएसकेएम) के बैनर तले मुंबई के आजाद मैदान में विशाल किसान-मजदूर महापंचायत का आयोजन हुआ, जिसमें 100 से ज़्यादा संगठनों के नेतृत्व में महाराष्ट्र के किसान, मजदूर, खेतिहर मजदूर, महिलाएं, युवा और छात्र-छात्राएं शामिल हुए।

किसान-मज़दूर एकता को मजबूत करने के साथ मारुति के तीन प्रमुख प्लांटों की यूनियनों ने मिलकर टिकरी बॉर्डर मोर्चे पर भारतीय किसान यूनियन एकता उगरहां को 51,000 रुपये का आर्थिक सहयोग दिया।

इस प्रकार पूरा किसान आंदोलन, जिसका केंद्र 2020 से शुरू होने के बावजूद मुख्यतः 2021 रहा, किसानों के अटूट संघर्ष के साथ मज़दूर-मेहनतकश आवाम की संग्रामी एकता का भी गवाह बना।

उम्मीद की जानी चाहिए कि नए साल में मज़दूरों-किसानों की वर्गीय व जाति-धर्म के बँटवारों के खिलाफ यह संग्रामी एकता बरकरार रहेगी और फिरकापरस्त व आम जनविरोधी मोदी सरकार को शिकस्त देने का सिलसिला आगे बढ़ेगा। कॉरपोरेटपरस्त सभी सरकारों को पटकनी देने के जज्बे के साथ पूँजी के किले पर प्रहार और विकट होगा।

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