“एक डॉक्टर की मौत” : एक प्रतिभाशाली के दर्द और हताशा को महसूस कराती बेहतरीन फिल्म

आखिर क्यों हमारे देश के नाम कोई महत्वपूर्ण आविष्कार नहीं है? क्यों प्रतिभाओं की तलाश और उनको तराशे जाने की कोई गुंजाइश इस व्यवस्था में नहीं है। फिल्म देखते हुए ये सवाल बार-बार जेहन में आएंगे।

सार्थक सिनेमा की बात, अजित श्रीवास्तव के साथ- 11

एक डॉक्टर की मौत

1990 में आई तपन सिन्हा द्वारा निर्देशित फिल्म “एक डॉक्टर की मौत” उन चुनिन्दा फिल्मों में से एक है, जो हमें सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या सच में इस व्यवस्था के अंदर मानव जाति के लिए कुछ नया खोजा जाना संभव है।

वर्तमान व्यवस्था में प्रतिभाएं अफसरशाही और जोड़ तोड़ का शिकार होकर किस तरह दम तोड़ देती है, फिल्म में इसी मुद्दे की तह में जाने का प्रयास किया गया है।

EK DOCTOR KI MAUT : Sheer Brilliance | Third Vantage Point
राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम द्वारा निर्मित। निर्देशक : तपन सिन्हा; अभिनेता : पंकज कपूर, शबाना आज़मी, इरफ़ान खान, दीपा साही, विजयेन्द्र घटके; संगीत : वनराज भाटिया।

“एक डॉक्टर की मौत” फिल्म डॉक्टर दीपंकर रॉय (पंकज कपूर) की कहानी है, जो अपने सीमित संसाधनों में दिन रात एक करके कुष्ठ रोग का टीका खोजने में लगा है। वह अपने काम के प्रति इतना समर्पित है कि दिन और रात का, यहाँ तक कि खाने पीने का भी उसे कोई खयाल नहीं। आखिरकार वह टीका खोज लेता है और यह बात मीडिया में फैल जाती है। सहकर्मी और सीनीयर इस जूनियर डॉक्टर की ख्याति बर्दाश्त नहीं कर पाते और फिर सिलसिला शुरू होता है इस डॉक्टर को हर संभव तरीके से परेशान करने का।

उसका तबादला शहर से दूर किसी नामालूम से गाँव में कर दिया जाता है, जहां वह शोध तो दूर, अपने रोज़मर्रा के जीवन के लिए भी परेशान हो जाता है। यहाँ तक कि इंग्लैंड के प्रतिष्ठित जॉन एंडरसन फाउंडेशन से डॉक्टर रॉय के लिए आई चिट्ठी भी दबा दी जाती है। अमरीका के दो डाक्टरों को उसी टीके (जिसे डॉक्टर रॉय पहले ही बना चुके हैं) का आविष्कारक घोषित कर दिया जाता है।

डॉक्टर रॉय इन सब के दबाव में टूट जाते हैं और फिर उसी जॉन एंडरसन फाउंडेशन के बुलावे पर ये सोच कर चले जाते हैं कि मानवता की सेवा करना ही तो उनका लक्ष्य है।

Scribbles of Soul – Ek Doctor Ki Maut

यह फिल्म डॉक्टर सुभाष मुखोपध्याय के जीवन पर आधारित है जिन्होंने परखनली शिशु को लेकर पहले ही काफी शोध कर लिया था लेकिन इस व्यवस्था के साथ न देने की वजह से भारत के नाम एक महत्वपूर्ण आविष्कार दर्ज होने से रह गया था। प्रतिभाओं का हनन और प्रतिभाओं का पलायन भारत जैसे भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे देश और कुव्यवस्था के शिकार समाज के लिए नया नहीं है।

हममें से हर कोई इस प्रकार की दो-चार घटनाओं से वाकिफ है। आखिर क्यों हमारे देश के नाम कोई महत्वपूर्ण आविष्कार नहीं है? आखिर क्यों प्रतिभाओं की तलाश और उनको तराशे जाने की कोई गुंजाइश इस व्यवस्था के अंदर नहीं है। फिल्म देखते हुए ये सवाल बार बार आपके जेहन में आएंगे।

Ek Doctor Ki Maut - Silhouette Magazine

यह फिल्म बड़ी गहराई से याद दिलाती है कि हमारे समाज में कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी गई है कि नई प्रतिभाएं पैदा हो सकें। शिक्षा व्यवस्था जो पूरी तरह से बाज़ार में तब्दील हो चुकी है, नौकरशाही जो पूरी तरह निरंकुश और संवेदनहीन है, समाज व्यवस्था जो ऊंच-नीच के भेद पर कायम है और पूरी तरह से भाई भतीजावाद की गिरफ्त में है, किसी भी तरह से नई प्रतिभाओं को उभरने का रास्ता नहीं छोडते।

इन सबके बावजूद अगर कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति अगर अपने दम पर कुछ कर पाने में कामयाब होता दिखता है तो पूरा समाज और पूरी व्यवस्था हाथ धोकर उसके पीछे पड़ जाती है और फिर या तो उसे टूट कर हालात से समझौता कर लेना पड़ता है या फिर पलायन करना पड़ता है। फिल्म इसी हताशा और इसी पलायन की कहानी है।

Ek Doctor Ki Maut - A film by Tapan Sinha - YouTube

इस फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में पंकज कपूर, शबाना आज़मी और इरफान हैं, और इन दिग्गज कलाकारों ने इतनी शिद्दत और गहराई  से अपनी भूमिकाओं को जिया है कि आप उस दर्द और हताशा को महसूस करने लगते हैं और कई बार ये चीज आपके लिए भी असहनीय हो जाती है।

यह देखना भी सुखद है कि इस फिल्म का निर्माण भारत सरकार के फिल्म प्रभाग ने किया है। एक आज का वक़्त है जहां अभिव्यक्ति पर इतनी पाबन्दियाँ हैं कि एक कलाकार या एक कोमेडियन खुल कर अपनी बात तक नहीं रख सकता और एक वह वक़्त भी था कि सरकारी संस्थाएं इस प्रकार खुद अपनी शासन व्यवस्था की आलोचना करने वाली फिल्मों के निर्माण में पैसा लगा रही थीं।

फिल्म यू ट्यूब सहित विभिन्न प्लेटफार्मों पर मौजूद हैं और अगर अभी तक न देखी हो तो जरूर देखी जानी चाहिए।

आइए सार्थक फिल्मों को जानें

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