ऐतिहासिक जीत के साथ किसान आंदोलन स्थगित, 11 को विजय जुलूस के साथ मोर्चों से होगी वापसी

एक साल से ज्यादा समय से जारी इस व्यापक आंदोलन के दौरान सरकारों ने भारी दमन का सहारा लिया, 715 किसानों ने शहादतें दीं। लेकिन यह फैलता गया और कामयाबी हासिल हुई।

संयुक्त किसान मोर्चा ने साफ किया कि आंदोलन को खत्म नहीं किया जा रहा है, इसे अभी स्थगित किया गया है। 15 जनवरी को संयुक्त किसान मोर्चा की फिर बैठक होगी, जिसमें समीक्षा होगी। अगर सरकार दाएं-बाएं होती है तो आंदोलन फिर शुरू करने का फैसला लिया जा सकता है।

जीत के जज्बे के साथ बहुत कुछ सिखा गया ऐतिहासिक किसान आंदोलन

दिल्ली की सीमाओं पर बीते 378 दिन से चल रहा किसान आंदोलन जीत का परचम लहराकर स्थगित हो गया। कल 11 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाएगा। दिल्ली की सीमा पर डटे सभी मोर्चों से ऐतिहासिक जीत के साथ वापसी होगी। 11 दिसंबर को दिल्ली से पंजाब के लिए फतेह मार्च होगा। वहीं गाजीपुर मोर्चे से उत्तरप्रदेश-उत्तराखंड के किसान जज्बे के साथ लौटेंगे।

संयुक्त किसान मोर्चा की मैराथान बैठकों की दौर के बाद आखिर किसानों के चेहरे पर खुशी दिखाई दी। लंबित मांगों को माने जाने के प्रस्ताव को सुधार के साथ सरकार ने बुधवार को मोर्चा की कमेटी के पास भेजा था। कमेटी ने प्रस्ताव के सभी बिंदुओं पर मोर्चा की सिंघु बॉर्डर पर चली बैठक में रखा, जिस पर सभी किसान नेताओं ने हामी भर दी।

एसकेएम की 5 सदस्यीय कमेटी के सदस्यों गुरनाम सिंह चढूनी, शिवकुमार कक्का, युद्धवीर सिंह, बलबीर सिंह राजेवाल व अशोक धवले ने पत्रकारवार्ता कर इसकी जानकारी दी।

अहंकारी सरकार झुकी, करारों की होगी लगातार समीक्षा

किसान नेता बलबीर राजेवाल ने कहा कि हम एक बड़ी जीत लेकर जा रहे हैं, एक अहंकारी सरकार को झुकाकर जा रहे हैं। हालांकि, यह मोर्चे का अंत नहीं है। हमने इसे स्थगित किया है। 15 जनवरी को फिर संयुक्त किसान मोर्चा की फिर मीटिंग होगी। जिसमें आंदोलन की समीक्षा करेंगे।

गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा कि हम इस आंदोलन के दौरान सरकार से हुए करारों की समीक्षा करते रहेंगे। यदि सरकार अपनी ओर से किए वादों से पीछे हटती है तो फिर से आंदोलन शुरू किया जा सकता है। 15 जनवरी को दिल्ली में संयुक्त किसान मोर्चा की समीक्षा बैठक होगी।

चढ़ूनी ने एलान किया कि अब किसी भी पार्टी या उद्योग का बहिष्कार नहीं किया जाएगा। किसान आंदोलन में बंद पड़े टोल भी खोल दिए जाएंगे।

11 दिसंबर को विजय दिवस के साथ वापसी

11 दिसंबर को विजय जुलूस के साथ सभी मोर्चों से किसान एक साथ अपने- अपने इलाकों की ओर प्रस्थान करेंगे।

आंदोलन की अगुआई करने वाले पंजाब के 32 किसान संगठनों ने अपना कार्यक्रम भी बना लिया है। जिसमें 11 दिसंबर को फतेह मार्च निकलते हुए किसान एक साथ पंजाब के लिए वापस जाएंगे। सिंघु और टिकरी से किसान एक साथ पंजाब के लिए रवाना होंगे। 13 दिसंबर को पंजाब के 32 संगठनों के नेता अमृतसर स्थित श्री दरबार साहिब में मत्था टेकेंगे। उसके बाद 15 दिसंबर को पंजाब में करीब 116 जगहों पर लगे मोर्चे खत्म कर दिए जाएंगे।

हरियाणा के 28 किसान संगठन भी अलग से रणनीति बना चुके हैं। गाजीपुर, शाहजहाँपुर सहित अन्य मोर्चों से भी एक साथ आंदोलनकारी किसान मजबूत हौसले के साथ वापसी करेंगे।

नेताओं ने कहा कि पहले 10 तारीख से ही करना चाह रहे थे, लेकिन कल जो दुर्घटना हुई है, इसलिए हमने 11 तारीख से विजय मनाने का फैसला लिया है।

ऐसे बनी सहमति

केंद्र सरकार ने इस बार सीधे संयुक्त किसान मोर्चा की 5 सदस्ययी हाईपावर कमेटी से मीटिंग की। कमेटी के सदस्य बलबीर राजेवाल, गुरनाम चढ़ूनी, अशोक धावले, युद्धवीर सिंह और शिवकुमार कक्का नई दिल्ली स्थित ऑल इंडिया किसान सभा के ऑफिस पहुंचे, जहां वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के अफसर भी जुड़े। सबसे बड़ा पेंच केस पर फंसा था, जिसे तत्काल वापस लेने पर केंद्र राजी हो गया।

आज सुबह मिला सरकार से आधिकारिक पत्र, तब हुआ फैसला

किसान नेताओं ने बताया कि 19 नवंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया था। हमने 21 नवंबर को अपनी 6 मांगों के साथ एक चिट्ठी लिखी थी। दो हफ्ते तक उस पर कोई जवाब नहीं आया। परसों (7 दिसंबर) सरकार की ओर से एक प्रस्ताव आया था जिसपर हमने कुछ संशोधन प्रस्तावित किए थे।

उसके बाद कल (8 दिसंबर) फिर एक प्रस्ताव आया और आज केंद्र सरकार के कृषि सचिव संजय अग्रवाल की ओर से चिट्ठी आई है, जिसके बाद हमने आंदोलन को स्थगित करने का फैसला लिया है।

किसान आंदोलन स्थगित करने का मतलब क्या?

नेताओं ने बताया कि आंदोलन अभी खत्म नहीं हुआ है। सरकार ने कई वादे किए हैं, केस वापसी की बात कही है, मुआवजा देने की बात कही है, लेकिन अभी केस वापस तो नहीं हो गए, मुआवजा तो नहीं मिल गया। कहा कि सरकार अपने वादे पूरे कर दे, हम अपने वादे पूरे कर देंगे।

पिछले साल 26 नवंबर से दिल्ली की बॉर्डर पर डटे हैं किसान

सरकार ने पिछले साल सितंबर में तीन कृषि कानूनों को पास किया था। इसके खिलाफ पंजाब के किसानों ने पहले मोर्चा संभाला। धीरे-धीरे आंदोलन फैलता गया और दिल्ली कूच का ऐलान हुआ। पिछले साल 25-26 नवम्बर को दिल्ली की ओर बढ़ रहे किसानों को भारी दमन के साथ दिल्ली सीमाओं पर रोक दिया गया।

इसके विरोध में पिछले साल 26 नवंबर से दिल्ली की सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर किसान किसान तीनों कृषि कानूनों की वापसी की माँग के साथ डटे हुए थे। इस दौरान केंद्र व राज्य सरकारों ने भारी दमन का सहारा लिया, 715 किसानों ने शहादतें दीं। भाजपा और आरएसएस ने कई तरह से बदनाम करने, तोड़ने के सतत प्रयास किए। लेकिन आंदोलन लगातार विस्तारित होता गया। इस देशव्यापी आंदोलन को दुनियाभर से भारी समर्थन मिला।

जब सारी तिकड़में फेल हो गईं तो इसी साल 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान किया था। अब तमाम उतार-चढ़ाव के बाद सहमति बनी और एक शानदार ऐतिहासिक जीत हासिल हुई।

इन मुद्दों पर बनी सहमति

एमएसपी केंद्र सरकार कमेटी बनाएगी, जिसमें संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधि लिए जाएंगे। अभी जिन फसलों पर एमएसपी मिल रही है, वह जारी रहेगी। एमएसपी पर जितनी खरीद होती है, उसे भी कम नहीं किया जाएगा।

केस वापसी : हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकार केस वापसी पर सहमत हो गई है। दिल्ली और अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के साथ रेलवे द्वारा दर्ज केस भी तत्काल वापस होंगे।

मुआवजा : मुआवजे पर भी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में सहमति बन गई है। पंजाब सरकार की तरह ही यहां भी 5 लाख का मुआवजा दिया जाएगा। किसान आंदोलन में 700 से ज्यादा किसानों की मौत हुई है।

बिजली बिल : बिजली संशोधन बिल को सरकार सीधे संसद में नहीं ले जाएगी। पहले उस पर किसानों के अलावा सभी संबंधित पक्षों से चर्चा होगी।

प्रदूषण कानून : प्रदूषण कानून को लेकर किसानों को सेक्शन 15 से आपत्ति थी। जिसमें किसानों को कैद नहीं, लेकिन जुर्माने का प्रावधान है। इसे केंद्र सरकार हटाएगी।

सरकार की मांग पर किसानों ने लखीमपुर मामले में केंद्रीय मंत्री की बर्खास्तगी से संबंधित मांग को प्रस्ताव से हटा लिया था।

ऐतिहासिक जीत के ऐतिहासिक सबक

एक बेहद कठिन समय में देश के किसानों ने शानदार जज्बा दिखलाया। एक ऐसी तानाशाह व फासिस्ट सरकार को चुनौती दी, जो कॉरपोरेट व संघ की नीतियों को एकसाथ बेरोकटोक तेजी से लागू करने में जुटी है।

इस पूरे दौर में संयुक्त किसान मोर्चा ने कुशल नेतृत्वकारी भूमिका निभाई और कठिन से कठिन समय में राह निकाली और सतत व लंबे संघर्ष को चलाने की काबलियत प्रदर्शित की।

किसान आंदोलन ने जहाँ यह दिखलाया कि किसी भी कठिन समय में मजबूत से मजबूत सरकार को झुकाया जा सकता है, वहीं यह भी स्थापित किया कि सही मुद्दे पर लड़ाई में जाति-धर्म या संप्रदाय के खतरनाक विभाजनकारी दौर में भी इन बंटवारे की दीवारों को तोड़कर व्यापक एकता बनाई जा सकती है।

यह आंदोलन और जीत देश की मेहनतकश जनता के लिए अहम सबक देता है।

लंबे जुझारू संघर्ष के साथ जीत के लिए देश की मेहनतकश जनता की ओर से संयुक्त किसान मोर्चा और आंदोलनकारी किसानों को बधाई!

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