फिल्म परिचय : ज़िंदगी को खुलकर जीने का नाम है फिल्म “102 नॉट आउट”
102 नॉट आउट लीक से हटकर एक ऐसी फिल्म है जो नाप तौल कर जिंदगी जीने के नजरिए पर थोड़ा हल्के फुल्के अंदाज में चोट करती है, जो गुदगुदाती है तो जिंदगी जीने के नजरिए पर कुछ सवाल भी पैदा करती है।…
सार्थक सिनेमा की बात, अजित श्रीवास्तव के साथ- 9
[एक ऐसे समय में जब ज्यादातर फ़िल्में मनोरंजन के नाम पर भद्देपन का प्रदर्शन मात्र रह गई हैं, जब ज़िंदगी की हक़ीक़त से दूर धकेलने, कूपमंडूक बनाने का साधन बन गई हैं। तब कुछ फ़िल्में कला की ख़ूबसूरती के साथ ज़िन्दगी की हकीक़त को बयां करती हैं, उससे जूझने का जज्बा पैदा करती हैं…। मेहनतकश साथियों को हम ऐसी कुछ फिल्मों से परिचित कराने का प्रयास करते रहे हैं। …एक अंतराल के बाद फिर हम इस शृंखला को शुरू कर रहे हैं। -संपादक]
102 नॉट आउट
अक्सर हम इतने डर और आशंकाएं अपने अंदर भरे हुए होते हैं कि जिंदगी को खुल कर जीना बिलकुल भूल चुके होते हैं। हर कदम इतना सोच समझ कर और नाप तौल कर उठाते हैं, कि अक्सर हमें अपनी पसंद नापसंद भी याद नहीं रह जाते। खास तौर पर बढ़ती उम्र के साथ ये डर और सचेतता इतनी बढ़ जाती है कि अपने रोज़मर्रा के काम करते हुए भी हम जैसे कोई जंग लड़ रहे होते हैं।
102 नॉटआउट फिल्म नाप तौल कर जिंदगी जीने के इसी नजरिए पर थोड़ा हल्के फुल्के अंदाज में चोट करती है और दो उम्रदराज बाप बेटों के नजरिए से जिंदगी को देखने का प्रयास करती है।
कई बार किसी कहानी या फिल्म की हर बात आपको पसंद नहीं आती या आप उससे सहमत नहीं होते पर उस कहानी या फिल्म का माहौल और मूलभूत कथानक आपको कुछ सबक दे जाता है या जिंदगी को एक नए नजरिए से देखने की गुंजाइश पैदा कर देता है।
102 नॉटआउट फिल्मभी इसी प्रकार की एक कोशिश है जिसकी हर बात से सहमत होना आपके लिए जरूरी नहीं पर इस फिल्म की जिंदादिली और नाप तौल वाली जिंदगी की जो इसमें खबर ली गई है और इस फिल्म के बुजुर्ग नायक के अंदर जिंदगी को जीने की जो जिजीविषा दिखाई देती है, वह आपके लिए पर्याप्त है कि आप इस फिल्म को देख सकते हैं, अगर अभी तक न देखी हो तो।
फिल्म में 102 साल के दत्तात्रेय वकारिया (अमिताभ बच्चन) अपने “शांति निवास” नामक घर में अपने 75 साल के बेटे बाबूलाल (ऋषि कपूर) के साथ रहते हैं। जहां दत्तात्रेय ज़िंदगी से लबरेज एक ज़िंदादिल शख्स हैं जिनके लिए उम्र सिर्फ एक नंबर है वहीं बाबूलाल के लिए हर आने वाला पल आशंका से भरा हुआ होता है।
हर पल अपनी सेहत की चिंता में डूबे हुए बाबूलाल जहां हर कदम फूँक फूँक कर रखने में विश्वास करते हैं और जिंदगी में किसी भी प्रकार के नएपन से बचना चाहते हैं तथा किसी भी प्रकार का जोखिम लेने से बिलकुल ही बचना चाहते हैं और इस चक्कर में उन्होने अपनी जिंदगी बिलकुल नीरस बना ली है, वहीं दत्तात्रेय 118 साल तक जिंदा रह कर सबसे अधिक समय तक जीने का रिकार्ड अपने नाम करना चाहते हैं और इसके लिए वे चाहते हैं कि उनका बेटा अपनी ज़िंदगी में थोड़ा बदलाव लाये और जिंदगी का थोड़ा खुल कर लुत्फ उठाना शुरू करे।
दत्तात्रेय बाबूलाल को वृद्धाश्रम भेजना चाहते हैं और अब बाबूलाल के पास एक ही रास्ता है वृद्धाश्रम जाने से बचने का और वह ये कि बाबूलाल को दत्तात्रेय की अजीबोगरीब शर्तें माननी होंगी और उनके दिये हुए टास्क पूरे करने होंगे। इस टास्क मे शामिल है बाबूलाल का डाक्टर से मिलना बंद कराना, फालतू सामान से छुटकारा दिलाना, शहर की उन जगहों पर जाने को विवश करना जहां वे जवानी के दिनों में जाया करते थे।
इसके बाद का घटनाक्रम इस बात पर केन्द्रित है कि कैसे दत्तात्रेय अपने बेटे को जीवन के सबक देते हैं, जिंदगी का सामना करना सिखाते हैं और कैसे उनकी ये अजीबोगरीब कोशिश बाबूलाल के जीवन दर्शन को उलट कर रख देती है। इससे ज्यादा कहानी बताना फिल्म का मजा खराब कर देगा अतः जानने के लिए फिल्म देखना पड़ेगा।
फिल्म में एक खास बात और है और वह ये कि पुराने गानों से भरा सारेगामा रेडियो लगभग एक पात्र की हैसियत से फिल्म में मौजूद है और इसे मुख्य पात्रों जितना ही स्क्रीन टाइम और अहमियत दी गई है। पुराने गानों के शौकीन लोगों को इन गीतों के प्रयोग और इन गीतों के जरिये कहानी को गति देने की कोशिश काफी पसंद आती है।
कुल मिला कर 102 नॉट आउट थोड़ी हट कर कहानी वाली एक हल्की फुलकी फिल्म है, जो कि जीवन के बारे में नजरिए पर कुछ सवाल पैदा करती है और कभी गुदगुदाती है तो कभी कुछ गंभीर से सवाल भी आप के सामने पेश करती है।
{102 नॉट आउट हिन्दी भाषा की एक नाट्य फिल्म है, जिसका निर्देशन उमेश शुक्ला ने किया है। निर्माता भूषण कुमार, कृष्ण कुमार और गुलशन कुमार; लेखक सौम्य जोशी तथा संगीतकार सलीम-सुलैमान हैं। मुख्य किरदार निभाया है अमिताभ बच्चन व ऋषि कपूर ने। फिल्म 4 मई 2018 को प्रदर्शित हुई थी।}
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