बिहार : सरकार नियुक्ति की तिथि बताये, वरना जारी रहेगा महाआन्दोलन

बिहार विधान सभा के शीतकालीन सत्र के पहले दिन 29 नवम्बर से राज्य के 34 हज़ार चयनित महिला-पुरुष शिक्षक अभ्यर्थी नियुक्ति की मांग को लेकर आन्दोलनरत हैं।

एक बार फिर से बिहार के चयनित शिक्षक अभ्यर्थी राजधानी में सड़कों पर आंदोलनरत हैं। जो बिहार सरकार और शिक्षा मंत्री द्वारा उनकी नियुक्ति को लेकर निरंतर किये जा रहे टाल मटोल और आश्वासनों से क्षुब्ध हो कर माहान्दोलन में उतरे हुए हैं। राजधानी के गर्दनीबाग़ धरना स्थल पर अनिश्चित कालीन धरना दे रहे इन अभ्यर्थियों का बस एक सूत्री मांग है- सरकार उनकी नियुक्ति की तिथि बताये, वरना जारी रहेगा अनिश्चितकालीन महाआन्दोलन।

 29 नवम्बर से शुरू हुए बिहार विधान सभा के शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन से ही राज्य के 34 हज़ार चयनित शिक्षक अभ्यर्थियों की नियुक्ति की मांग को लेकर सैकड़ों महिला-पुरुष शिक्षक अभ्यर्थी आन्दोलनरत हैं । जो इस ठंड के मौसम में भी खुले आसमान के नीचे प्रदेश के विभिन्न इलाकों से पहुंचकर धरना पर बैठे हुए हैं और इस बार किसी भी सूरत में टलने के मूड में नहीं दीख रहें हैं।

शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन से विपक्षी दल राजद, भाकपा माले,सीपीआई तथा सीपीएम के सभी विधायकों ने सदन के बाहर इकठ्ठे होकर आन्दोलनकारी शिक्षक अभ्यर्थियों की मांगों के साथ हर साल 19 लाख रोज़गार देने के वायदे को पूरा करने की मांग को लेकर पोस्टर प्रदर्शन किये। राज्य के सभी विश्वविद्यालयों में चौपट हो चुकी उच्च शिक्षा व्यवस्था के सवालों  के भी पोस्टर लहराए लेकिन सरकार पर कोई असर नहीं होता दीखता है।

विधान सभा की पिछले कई सत्रों में प्रदेश की चौपट हो चुकी शिक्षा व्यवस्था और राज्य के युवाओं के रोज़गार के सवाल को लगातार उठाने वाले इनौस के राष्ट्रिय अध्यक्ष व माले विधायक मनोज मंजिल ने इस बार भी शून्य काल में सरकार व सदन का ध्यान आकृष्ट कराया।

प्रदेश में लाखों पद खाली रहने के बावजूद नियुक्तियां नहीं होने और बेरोज़गारी के चरम पर होने का सवाल उठाते हुए कहा- नीति आयोग की हाल ही में जारी हुई रिपोर्ट ने एनडीए की डबल इंजन वाली नितीश कुमार सरकार के 15 साल के कुशासन की पोल खोलकर रख दी है। जिसमें आंकड़ों के साथ दिखलाया गया है कि किस तरह से स्कूली शिक्षा व्यवस्था मामले में बिहार सबसे निचले स्तर पर है। जो यह साबित कर रहा है कि पूरे देश में बिहार सबसे पिछड़ा प्रदेश है, जहाँ कि स्कूली शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से गर्त में जा चुकी है। लेकिन तब भी सरकार हजारों हज़ार चयनित शिक्षकों की मांगों को नहीं मानकर उनकी नियुक्ति नहीं कर रही है।   

आन्दोलनकारी शिक्षक अभ्यर्थियों के सवालों के साथ साथ सदन में रोज़गार के सवालों पर सरकार व मंत्री द्वारा संतोषजनक उत्तर नहीं दिए जाने के कारण विपक्षी विधायकों द्वारा कई बार हंगामा किया चुका है।

मीडिया और सदन में बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री द्वारा शिक्षकों की नियुक्ति में देरी का कारण राज्य में पंचायत चुनाव आदर्श अचार संहिता लागू रहने का कारण बताये जाने पर भी आन्दोलनकारी शिक्षकों में काफी क्षोभ है। हर दिन वे अपने आन्दोलन स्थल से मीडिया को दिए वक्तव्यों में वे मंत्री जी के हर बयान को खारिज कर सरकार की मंशा पर ही सवाल उठाते हुए आरोप लगा रहें हैं कि वह लम्बी अवधी तक टालना चाहती है। 

कई महिला शिक्षक अभ्यर्थी जो अपने छोटे बच्चों के साथ आन्दोलन में शामिल हैं, स्थानीय चैनलों को दिए उनके भावुक वक्तव्य भी खूब वायरल हो रहें हैं, जिनमें वे कह रहीं हैं कि-पिछले कई महीनों से हम सब प्रदेश के शिक्षा मंत्री और विभाग के चक्कर लगा लगाकर थक चुके है। सर्टिफिकेट जांच के नाम पर हमारे सारे ओरिजिनल सर्टिफिकेट भी ले लिए गए हैं। इस कारण जीवकोपार्जन के लिए हम किसी निजी स्कूल में भी नौकरी के लिए नहीं जा पा रहें हैं।  

ये सही है कि चंद दिनों पहले ही जब इसी गठबंधन वाली केंद्र की सरकार द्वारा गठित नीति आयोग ने देश के सभी राज्य की स्थितियों की रिपोर्ट जारी करते हुए बिहार को शिक्षा-स्वास्थय समेत कई अन्य महत्वपूर्ण मामलों में सबसे फिसड्डी राज्य बताया है। जिसे लेकर अभी के शीतकालीन सत्र में सदन के अन्दर और बाहर तक पूरा विपक्ष सरकार को सवालों के कठघरे में खड़ा किये हुए है। जिसका कोई संतोषजनक उत्तर देने व अपनी नाकामी स्वीकारने की बजाय सरकार के मंत्रियों और सत्ता पक्ष के नेताओं प्रवक्ताओं द्वारा निति आयोग की रिपोर्ट को ही खारिज करते हुए कहा जा रहा है – निति आयोग की रिपोर्ट हम नहीं जानते लेकिन बिहार का विकास हुआ है, विपक्ष को दीखता नहीं हम क्या करें। 

 उस पर से ये भी सरकार का दुर्योग ही कहा जाएगा कि जब मौजूदा शीतकालीन सत्र के दौरान खुद मुख्यमंत्री राज्य में पूर्ण शराबबंदी कराने का ढोल पिटते हुए गर्व के साथ बताते है कि कैसे उन्होंने सारे अमले अफसर और कर्मचारियों को शराब ना पीने की शपथ दिलाकर शराब बंदी अभियान को प्रदेश का सर्वप्रमुख मुद्दा बना दिया है। लेकिन इसी चालू सत्र के दौरान जब विधान सभा परिसर में ही बिखरी शराब की खाली बोतलें पाए जाने का वायरल वीडियो उनके दावों पोल की पोल खोल देता है तो उनके नेता विपक्ष की साजिश करार देते हैं। बाद में मुख्यमंत्री के आनन फानन निर्देश पर राज्य के पुलिस आईजी जाकर उन शराब की खाली बोतलों का सूक्ष्म मुआयना भी कर आते हैं।

बहरहाल, बिहार के 34 हज़ार चयनित शिक्षक अभ्यर्थियों का महाआन्दोलन जारी है। सैकड़ों आन्दोलनकारी शिक्षक रात दिन धरना स्थल पर डटे हुए है। वहीँ ज़मीन पर खाना खा रहें हैं और खुले आसमान के नीचे रात गुजार रहें हैं। इस गहरी पीड़ा के साथ कि जिन प्रतिभाशाली शिक्षकों को आज स्कूलों में छात्रों को पढ़ाते हुए नज़र आना चाहिए था, आज वे नौकरी की हर अहर्ता में सफल चयनित होने के बावजूद नियुक्ति के लिए धरना दे रहें हैं।

एक ताज़ा खबर यह भी है कि बिहार सरकार द्वारा दरोगा बहाली की प्रारम्भिक, मुख्य और शारीरिक परीक्षा में सफल हुए 286 उम्मीदवारों को मेरिट लिस्ट से बाहर किये जाने पर हाई कोर्ट ने तत्काल रोक लगाते हुए सरकार से जवाब माँगा है।

वहीँ बीपीएससी द्वारा 2017 में निकाली गयी असिस्टेंट इंजीनियरों की वेकेंसी प्रतियोगिता के सफल अभ्यर्थी भी अभी तक नियुक्ति नहीं होने के खिलाफ आन्दोलन की तैयारी में हैं।

देखने की बात है कि बिहार में विकास को लेकर निति आयोग की रिपोर्टों को सरकार आखिरकार कब स्वीकार करती है ।

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