जयपुर किसान संसद में काले कृषि क़ानून रद्द; महाराष्ट्र में किसान-मज़दूर रैली आयोजित

जयपुर के बाद अब प्रत्येक जिले में किसान संसद आयोजित करने का निर्णय, चंपारण में किसान सम्मेलन हुआ, बंगलुरु में संयुक्त बैठक; 27 सितंबर को भारत बंद की तैयारी जोरों पर है।

किसान आंदोलन का पूरे देश में नया उभार; 27 को जबरदस्त होगा भारत बंद

किसान आंदोलन का उभार अब पूरे देश में दिखलाई दे रहा है। आज महाराष्ट्र के धुले में एक बड़ी किसान-मजदूर रैली का आयोजन हुआ। जयपुर में किसान संसद का आयोजन किया गया जिसमें कई एसकेएम नेताओं ने भाग लिया। बिहार के चंपारण में किसान कन्वेंशन का आयोजन किया गया।

27 सितंबर को भारत बंद सफल बनाने के लिए कर्नाटक में राज्य स्तरीय योजना को अंतिम रूप देने के लिए एक बैठक आज बैंगलोर के फ्रीडम पार्क में हुई। बैठक में कृषि संघों के अलावा, लगभग 80 संगठनों के 120 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिनमें ट्रांसपोर्टर एसोसिएशन के प्रतिनिधि, श्रमिक और ट्रेड यूनियन, महिला संगठन, छात्र संगठन, डॉक्टर एसोसिएशन, बैंक कर्मचारी संघ आदि शामिल थे।

गुजरात से किसानों का एक दल आज गाजीपुर मोर्चा पर पहुंचा, जबकि प्रहार किसान संगठन का साइकिल मार्च आज ग्वालियर पहुंची।

जयपुर : किसान संसद में तीनों कृषि कानूनों को रद करने का प्रस्ताव पारित

अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस पर राजस्थान की राजधानी जयपुर में बुधवार को तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संसद हुई। संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जयपुर के बिड़ला सभागार में हुई किसान संसद में केंद्र सरकार द्वारा लागू तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया।

किसान संसद में सातवें वेतनमान की तरह ही एमएसपी को लागू करने की मांग की। जयपुर के बाद अब प्रत्येक जिले में किसान संसद आयोजित करने का निर्णय लिया गया। इस दौरान महंगाई, निजीकरण और किसान हित के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई। 

Jaipur Kisan Sansad Debates On New Union Farm Law - किसान संसद में उठ रहे  कृषि कानूनों सहित अन्य गर्माए मुद्दे, देशभर से पहुंचे हुए हैं 'किसान सांसद'  | Patrika News

किसान संसद के दौरान किसान सांसदों ने कहा कि बिना चर्चा किए संसद में किसानों के खिलाफ काला कानून पास कर दिए गए। देश का किसान केंद्र सरकार के कृषि कानूनों को नहीं मानता है। किसान संसद में कृषि कानूनों को रद कर दिया गया। देश का किसान यह बता रहा है कि संसद कैसे चलती है और नियम कायदे क्या हैं। तीनों काले कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर हम हर ज़िले और गांव तक इस किसान संसद को लेकर जाएंगे।

किसान संसद में लोकसभा और राज्यसभा की तर्ज पर प्रश्नकाल और शून्यकाल हुआ। प्रश्नकाल में कृषि कानूनों सहित विभिन्न मुद्दों पर सवाल-जवाब हुए। शून्यकाल में कृषि कानूनों से होने वाले नुकसान की चर्चा की गई। संसद में तीनों कृषि कानूनों को रद करने का प्रस्ताव पारित किया गया।

कई राज्यों के किसान नेता हुए किसान संसद में शामिल

किसान संसद में कई राज्यों के प्रतिनिधि शामिल हुए। किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाला, गुरनाम सिंह चढूनी, जोगिंदर सिंह, बूटा सिंह बुर्जगिल, डा. दर्शनपाल सिंह, सुरेश खोत, हिम्मत सिंह, मोहन डगर, अभिमन्यु कोहाड़, सुरजीत सिंह फूल, रणजीत सिंह राजू, नरेंद्र सिंह पाटीदार, संजय रैबारी, रणजीत सिंह, महेंद्र पाटीदार आदि ने किसानों को संबोधित किया।

सरकार शरारत से व्यापक लागत की परिभाषा को बदलने की कोशिश कर रही है

8 सितंबर 2021 को पीआईबी प्रेस विज्ञप्ति में, केंद्र सरकार ने विपणन सीजन 2022-23 के लिए रबी फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा करते हुए एमएसपी तय करने के लिए उपयोग की जाने वाली उत्पादन लागत को “कुल लागत” के रूप में वर्णित किया था। एमएसपी तय करने की भाषा में कुल लागत अवधारणा को सी2 के रूप में संदर्भित किया जाता है, और एमएसपी घोषणा का आधार बनाने के लिए किसान इसी की बात करते रहे हैं, मतलब एमएसपी फॉर्मूले के रूप में सी2+50% का इस्तेमाल। जबकि एसकेएम ने एमएसपी तय करने के लिए ए2+एफ एल लागत अवधारणा का उपयोग जारी रखने में सरकार के हठ का विरोध किया था, जो बात अत्यधिक आपत्तिजनक है वह पीआईबी प्रेस विज्ञप्ति द्वारा प्रयास किया गया पीआर स्टंट है, जिसने ए2+एफ एल को कुल लागत या सी2 के बराबर दिखाया है।

इस बीच, सीएसीपी द्वारा जारी “रबी फसलों के लिए मूल्य नीति रिपोर्ट, विपणन सीजन 2022-23” से पता चलता है कि सरकार द्वारा उपयोग की जाने वाली उत्पादन लागत वास्तव में ए2+एफ एल लागत है।  सी ए सी पी  दस्तावेज़ में यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ’व्यापक लागत’ सी2 लागत है, जैसा कि पहले था। “सरकार शरारत से व्यापक लागत की परिभाषा को बदलने की कोशिश कर रही है। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि पीआईबी प्रेस विज्ञप्ति में ए2+एफ एल लागत को व्यापक लागत के रूप में संदर्भित करके किसानों को गुमराह भी कर रही है। पीआईबी को अच्छी तरह से स्थापित लागत अवधारणाओं को और विकृत किए बिना इस पर तुरंत सुधार  कर प्रकाशित करना चाहिए।”

कॉरपोरेट के पक्ष में सरकारी मंडियों के कमजोर करने का आख्यान

एनएसओ के 77वें दौर के सर्वेक्षण में मोदी शासन के तहत मंडियों के कमजोर किए जाने पर और अधिक तथ्य सामने आए हैं, जो बदले में कृषि घरानों की वास्तविक कृषि आय में गिरावट से संबंधित हो सकते हैं। एनएसओ की रिपोर्ट से पता चलता है कि 2013 (70वें दौर) और 2019 (77वें दौर) के बीच सरकारी मंडियों में अपनी उपज बेचने वाले किसानों का प्रतिशत काफी कम हो गया है।

यह वह समयावधि है जो मोदी सरकार के एडीए-1 शासन के साथ मेल खाती है। अधिकांश कृषि घराने सरकार द्वारा घोषित एमएसपी से अनजान थे, और एपीएमसी मंडियों में फसल बेचने में सक्षम नहीं होने के लिए बुनियादी ढांचे की कमी (यानी मंडियों या खरीदारों की अनुपलब्धता) को जिम्मेदार ठहराया। उल्लेखनीय यह है कि इन दो दौर के सर्वेक्षणों के बीच एमएसपी और मंडी प्रणाली की स्थिति खराब हो गई है। ये तथ्य कॉरपोरेट के पक्ष में सरकारी मंडियों के कमजोर किए जाने के बड़े आख्यान में फिट होते हैं, और तीन कृषि कानूनों के वास्तविक उद्देश्य को प्रत्यक्ष करते हैं।

दिल्ली मोर्चे हो रहे हैं मजबूत

इस बीच, फसल काटने के मौसम के बीच भी दिल्ली में मोर्चा मजबूत हो रहा है, जिसमें देश भर से किसान शामिल हो रहे हैं। आज गुजरात से बड़ी संख्या में किसान गाजीपुर मोर्चा पहुंचे। प्रहार किसान संगठन का साइकिल मार्च आज ग्वालियर पहुंची और जो 20 सितंबर को सिंघू मोर्चा पर किसानों से जुड़ेगी।

संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस विज्ञप्ति (293वां दिन, 15 सितंबर 2021) के साथ

जारीकर्ता – बलबीर सिंह राजेवाल, डॉ दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढूनी, हन्नान मोल्ला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उगराहां, शिवकुमार शर्मा (कक्का जी), युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव।

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