श्रम संहिताएँ रद्द कराने के लिए निर्णायक संघर्ष तेज़ करें! 23 सितंबर काला दिवस के रूप में मनाएं!!

23 सितंबर 2020 को मोदी सरकार ने मजदूर विरोधी श्रम संहिताएं पारित कीं, इसलिए यह काला दिवस है। साथ ही किसान आंदोलन के समर्थन में 25 सितंबर को भारत बंद को सफल बनाना होगा!

कोरोना पाबंदियों के बीच 23 सितंबर 2020 को नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा अडाणी-अम्बानी जैसे एकाधिकारी पूँजीपतियों के इशारों पर मजदूर विरोधी तीन श्रम संहिताओं को पारित कराकर मजदूर वर्ग पर भीषण हमला बोला गया था। सक संहिता पहले ही पारित हो गईं थीं। ये संहिताएं लंबे संघर्षों के दौरान हासिल क़ानूनी अधिकारों को खत्म करके मजदूरों को पंगु बना देंगी। इसलिए देश के मज़दूर वर्ग द्वारा 23 सितंबर को इसके विरोध में आगे आने के आह्वान के साथ मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने पर्चा जारी किया है।

मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) द्वारा जारी पर्चा-

पूँजीपतियों द्वारा गुलाम बनाने की साजिश के खिलाफ निर्णायक संघर्ष करें!

23 सितंबर 2020 का दिन भारत के मजदूरों द्वारा हमेशा काले दिवस के रूप में याद किया जायेगा। 23 सितंबर 2020 को नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा आजाद भारत की संसद में अडाणी -अम्बानी जैसे एकाधिकारी पूंजीपतियों के इशारों पर मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को पारित कराकर मजदूर वर्ग पर भीषण हमला बोला गया। मोदी सरकार द्वारा उक्त श्रम संहिताओं में तमाम बंदिशें लगाकर मजदूरों से हड़ताल करने व संगठित होने का अधिकार एक तरह से छीन लिया गया है। उक्त चारों श्रम संहिताओं के लागू होने पर यूनियन गठित करना टेढ़ी खीर हो जायेगी।

एक ओर जहां हड़ताल करने पर मजदूरों को भारी जुर्माने व जेल की सजा देने का बंदोबस्त किया गया है, वहीं मालिकों को अब  गिरफ्तारी और जेल की सजा से औपचारिक और कानूनी तौर पर भी मुक्ति मिल जायेगी। छोटी छोटी कमियां निकालकर यूनियन का पंजीकरण तक निरस्त किया जा सकता है। ठेका प्रथा को भी पहले से अधिक बेलगाम बना दिया गया है।

मजदूरों को स्थाई नौकरियो  को खत्म कर फिक्स टर्म, नीम ट्रेनिंग ,अप्रेंटिस आदि के नाम पर मालिकों के सामने  परोसकर जीवन भर खटने का बंदोबस्त कर दिया गया है। इसकी एक झलकी वॉलमार्ट ,विशाल मेगा मार्ट, अमेजॉन, फ्लिपकार्ट जैसी देशी विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के शॉपिंग मॉल व ऑनलाईन सर्विस में कार्यरत मजदूरों की स्थिति को देखकर सहज ही देखने को  मिल जाती है कि चमचमाते मॉलों में कार्यरत मजदूरों को मोदी राज में अंबानी-अडाणी के नये भारत में बमुश्किल न्यूनतम वेतन पर खटकर व अभावग्रस्त जीवन जीने को किस तरह से विवश होना होगा ।अब मालिकों  को एक तरह से मजदूरों की मनचाही छंटनी करने, मिलबन्दी करने , मनचाहा ओवर टाइम कराने  का अधिकार दे दिया गया है।

इस लेबर कोड  में प्रबंधन द्वारा पंजीकृत यूनियन को बाईपास करते हुए किसी भी व्यक्तिगत कर्मचारी या कर्मचारी समूह के  साथ  समझौता करने  के प्रावधान के जरिये ट्रेड यूनियन के सामूहिक मोलतोल (collective bargaining) के आधार को ख़तम करने का प्रयास किया गया है।

महिला मजदूरों को रात्रि पाली में व खतरनाक उद्योगों में कार्य कराने की मनचाही छूट बिना सुरक्षा मानको का पालन किये मालिकों को दे दी गई है। कुल मिलाकर इन चारों श्रम संहिताओं में मजदूरों के लिये काला ही काला है और मालिकों के लिये उजाला ही उजाला है।

मोदी सरकार पर श्रम संहिताओं को पारित कराने के लिए पूंजीपतियों का इतना अधिक दबाव था कि  उक्त श्रम संहिताओं को पारित कराते समय मोदी सरकार द्वारा अपने चहेते पूंजीपतियों के इशारों पर पूंजीवादी लोकतांत्रिक व संसदीय प्रणाली के नियम कायदों तक को ताक पर रख दिया गया। मजदूरों के कल्याण के नाम का जुमला उछालने वाली मोदी सरकार ने इन श्रम संहिताओं में अंबानी-अडाणी जैसे पूंजीपतियों व उनके सी.आई.आई, फिक्की व एसोचैम जैसे संगठनों की मांगों व इच्छाओं का भरपूर ख्याल रखा है।

मोदी सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करने की  मुहिम को तेज कर इन्हें पूंजीपतियों पर कौड़ियों के मोल पर लुटाया जा रहा है। जुमले गढ़ने में माहिर मोदी सरकार द्वारा अपने इस पाप पर पर्दा डालने को अब ‘निजीकरण’ के स्थान पर ‘विमुद्रीकरण ‘का जुमला उछाला जा रहा है। हद तो यहां तक हो चुकी है कि देश की सुरक्षा के लिये अति महत्वपूर्ण व अति संवेदनशील रक्षा क्षेत्र के उपक्रमों के भी निजीकरण का रोडमैप तैयार कर देश की सुरक्षा संग खिलवाड़ किया जा रहा है।

इसके विरोध में आयुध क्षेत्र के कर्मचारियों की यूनियनों द्वारा घोषित हड़ताल को प्रतिबन्धित करते हुए मोदी सरकार ने जून 2021 में आवश्यक रक्षा सेवा अध्यादेश 2021 लाकर हड़तालियों व हड़ताल समर्थकों पर भारी जुर्माने व एक साल से लेकर दो साल तक की जेल की सजा का प्रावधान कर कर्मचारियों से हड़ताल करने के मौलिक अधिकार को ही छीन लिया। फिर इसी मानसून सत्र में इस सन्दर्भ में विधेयक को लोकसभा से भी जोर जबरदस्ती पारित करवा लिया।

इसी तरह से मोदी सरकार द्वारा साधारण बीमा कारोबार (राष्ट्रीयकरण)संशोधन विधेयक 2021को छल कपट व ताकत का सहारा लेकर संसद से पारित कराकर बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को एक झटके में 49 %,से बढ़ाकर 74% कर दिया गया है। ऊर्जा क्षेत्र की सरकारी कंपनियों का निजीकरण करने को मोदी सरकार बिजली संशोधन विधेयक 2021 को संसद से पारित कराने की साजिश रच रही है।

अंबानी -अडाणी के इशारों पर मोदी सरकार द्वारा पिछले साल किसानों के खिलाफ तीन काले कृषि कानूनों को पूरी बेशर्मी के साथ संसद से पारित कराने के दृश्य को पूरी दुनियां देख चुकी है। देश की राजधानी दिल्ली के विभिन्न बॉर्डरों पर व देश भर में पिछले 9 माह से लाखों किसान अपने 650 से अधिक साथियों का बलिदान देने के बावजूद आंदोलन में मजबूती से डटे हुये हैं। इसी तरह से मजदूर ,कर्मचारी व छात्र भी विरोध कर रहे हैं ,परंतु  तमाम विरोध के बावजूद भी मोदी सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं है और अंबानी अडाणी के हितों को साधने को कृतसंकल्प है।

साथियों ,आज मोदी सरकार व गोरे अंग्रेजों की सरकार की नीति रीति में कोई भी फर्क महसूस नहीं होता है। आजादी से पूर्व भी अंग्रेज सरकार द्वारा मजदूरों, किसानों आदि के खिलाफ दमनकारी काले कानून बनाये जाते थे, आज भी मोदी सरकार द्वारा यही सब किया जा रहा है। आज मोदी सरकार द्वारा गोरे अग्रेंज शासकों की ही तर्ज पर संघर्षरत मजदूरों,किसानों कर्मचारियो, छात्रों, दलितों, अल्पसंख्यकों आदि पर राजद्रोह, आतंकवाद निरोधक अधिनियम जैसे काले कानून लगाकर उन्हें जेलों में ठूंसा जा रहा है, लाठी गोली के बल पर कुचला जा रहा है। 

ऐसे में हमें शहीदे आजम भगतसिंह जैसे अपने प्यारे क्रांतिकारी शहीदों के मार्ग का अनुसरण कर अडाणी अंबानी जैसे पूँजीपतियों के हित में देश व समाज के विरुद्ध रची जा रही इस साजिश के खिलाफ निर्यायक संघर्ष छेड़ने को आगे आना होगा। हमें अपनी उस क्रांतिकारी विरासत को याद रखना है कि  जब 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज शासकों ने मजदूरों  की  हड़तालों को प्रतिबंधित करने और भारत की आजादी की लड़ाई लड़ रही जनता के खिलाफ काला कानून बनाने को तत्कालीन असेंबली में ट्रेड डिस्प्यूट बिल व पब्लिक सेफ्टी बिल प्रस्तुत किया था, ठीक उसी दिन व उसी समय पर शहीदे आजम भगतसिंह व बटुकेश्वर दत्त ने उसी एसेंबली में बम विस्फोट कर नारा दिया था कि “बहरे कानों को सुनाने के लिये धमाकों की जरूरत होती है”।

हमें याद रखना होगा कि उस समय का वायसराय भी नरेंद्र मोदी व अमित शाह की तरह ही दंभी व तानाशाह था और उक्त काले कानूनों को हर हाल मे ,हर प्रतिरोध को कुचलकर बनाने की हठ किये हुये था । हम मजदूरों को अपने पूर्वज मजदूरों द्वारा बाल गंगाधर तिलक की गिरफ्तारी के विरोध में 1908 में क़ी गई आम राजनीतिक हड़ताल, 1930 में कायम शोलापुर कम्यून, 1946 में नौसेना विद्रोह के समर्थन में मजदूर वर्ग द्वारा निभाई गई क्रांतिकारी भूमिका को याद करना होगा जिसने अंग्रेज सरकार की चूलें हिला दी थी।हमें याद करना होगा कि यह हमारे महान  मजदूर पूर्वज  ही थे जिन्होंने 1929 में अपने झरिया (वर्तमान झारखंड) सम्मेलन के दौरान भारत में सबसे पहले पूर्ण स्वराज का नारा बुलंद कर अग्रेंजों को भारत से पूरी तरह से खदेड़ने का संकल्प लिया था।

साथियों ,हमें अपने बहादुर पूर्वजों की क्रांतिकारी विरासत से प्रेरणा ग्रहण कर मजदूरों के विरुद्ध लाये गई चारों श्रम संहिताओं को निरस्त कराने को निर्णायक संघर्ष करने को उठ खड़ा होना होगा ।किसानों के आंदोलन में सक्रिय एकजुटता कायम कर मोदी सरकार को निर्णायक शिकस्त देने की राह पर बढ़ने की जरूरत है।

मज़दूर वर्ग को मजदूरों,किसानों, कर्मचारियों, छात्रों, दलितों, अल्पसंख्यको व महिलाओं आदि के संघर्षों को एकसूत्र में पिरोकर नेतृत्वकारी भूमिका का निर्वाह करना है। सबसे बढ़कर शहीदे आजम भगतसिंह के सपनों केनये भारत मजदूर -मेहनतकश राज की स्थापना करने को जी जान से जुट जाना है जिसमें मजदूरों, किसानों व आम जनता पर सरकार द्वारा अडाणी-अम्बानी जैसे देसी-विदेशी पूंजीपतियों के इशारों पर काले कानून न थोपे जाते हों, बल्कि मजदूरों, किसानों व आम जनता के फैसले को सर्वोपरि मानते हुए कानून बनाये जाते हों, मेहनतकशों का पूर्ण स्वामित्व व नियंत्रण हो।

आइये हमारे प्यारे भारत देश व मजदूरों ,किसानों ,कर्मचारियों आदि को पूंजीपतियों का गुलाम बनाने की इस साजिश  के खिलाफ निर्णायक संघर्ष करें। श्रम संहिताओं के विरोध में 23 सितंबर 2021 को काले दिवस (BLACK DAY) के रूप में मनाएं और इसे सफल बनाने हेतु जी जान से जुट जाएं। साथ ही किसान आंदोलन के समर्थन में 25 सितंबर 2021 को आयोजित भारत बंद को सफल बनाने को जी जान से जुट जाएं

मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) द्वारा जारी

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