अब एचपी इंडिया के पंतनगर प्लांट में लगा बंदी का नोटिस, 31 अक्टूबर से होगा बंद

कंपनियों की यह एक परंपरा बन चुकी है कि सब्सिडी और रियायतों की अवधि खत्म हो तो मजदूरों के पेट पर लात मारकर पलायन कर जायो! माइक्रोमैक्स, आमूल के बाद एचपी भी इसी रह पर है।

पंतनगर में बंद कर चेन्नई में लगा प्लांट

पंतनगर (उत्तराखंड)। उत्तराखंड में एक और फैक्ट्री मज़दूरों के पेट पर लात मारकर राज्य से पलायन कर रही है। अमेरिका की प्रख्यात एचपी कंपनी की बंदी का नोटिस चस्पा हो गया है। कंपनी प्रबंधन की ओर से उत्पादन नहीं होने का हवाला देते हुए राज्य के श्रम सचिव को बुधवार को बंदी का नोटिस दे दिया गया। नोटिस कंपनी गेट पर भी चस्पा है।

लैपटॉप-डेस्कटॉप, कंप्यूटर पार्ट्स और प्रिंटर बनाने वाली अमेरिकी कंपनी हैवलैट पैकर्ड (एचपी) पंतनगर औद्योगिक क्षेत्र सिडकुल के सेक्टर 5 में स्थित है। सजिशन प्लांट में छँटनी के लिए वीसएस स्कीम लागू हुई, फिर कुछ श्रमिकों को चेन्नई स्थित नए प्लांट में भेजा गया। स्थाई श्रमिकों को सवैतनिक अवकाश देकर लगातार बैठाया गया। इस बीच करीब 250 ठेका श्रमिकों को निकाला गया और अंततः बंदी का नोटिस चस्पा हो गया।

राज्य सरकार को दी बंदी की सूचना

कंपनी द्वारा 1 सितंबर, 2021 को उत्तराखंड के श्रम सचिव को भेजे गए नोटिस में लिखा है कि एचपी इंडिया सेल्स प्राइवेट लिमिटेड एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है। कंपनी में 31/10/2021 से औद्योगिक प्रतिष्ठान को बंद करने का निर्णय लिया है।

नोटिस के अनुसार यह निर्णय वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की उभरती स्थिति एवं प्रतिस्पर्धी कारोबारी माहौल के परिपेक्ष में लिया गया है, जिसमें एचपी प्रबंधन अपने निर्माण संचालन का सर्वोत्तम उपयोग एवं सुदृढ़ीकरण करके लॉजिस्टिक एवं कीमतों में दक्षता को सक्रियता के साथ उपयोग करने को बाध्य हुआ है।

साजिश : पहले संख्या घटाया, फिर किया बंद

यह नोटिस पिछले दिनों कंपनी द्वारा रचित एक साजिश के परिणाम के रूप में देखा जा सकता है। क्योंकि उत्तराखंड में लागू उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के तहत 300 श्रम शक्ति से कम वाले प्रतिष्ठानों को बंदी के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

इसका फायदा उठाने के लिए कंपनी ने पिछले एक डेढ़ वर्षों के दौरान श्रम शक्ति को तरह-तरह से कम करने का काम किया। इस बीच कंपनी द्वारा छँटनी के लिए स्किम जारी करने से लेकर लगातार सवेतन अवकाश, स्थानांतरण, ठेका श्रमिकों की छँटनी की प्रक्रिया चलाया गया। इधर कोरोना वायरस की दूसरी लहर आने पर श्रमिकों की छुट्टी पर में भेज दिया था।

अब इस नोटिस के जरिए उसने बताया कि कंपनी द्वारा नियोजित कामगारों की संख्या इस नोटिस की तारीख से पिछले 12 महीनों में औसत कार्य दिवस पर 198 है। इस नोटिस की तारीख से पिछले 12 महीने में आवश्यक कार्य दिवस पर कंपनी के औद्योगिक प्रतिष्ठान में तैनात ठेकेदारों के द्वारा तैनात कामगारों की संख्या 86 है। बंद होने से कंपनी के प्रभावित कामगारों की संख्या 185 है।

इस तरीके से उसने 300 से कम श्रम शक्ति की संख्या दिखलाकर बंद करने के कानूनी औपचारिकता से भी अपने आप को मुक्त कर लिया। नोटिस में कर्मचारियों को 2 सितंबर से 31 अक्टूबर तक के वेतन के साथ अवकाश देने की जानकारी दी गई है। इस दौरान कंपनी का संचालन पूरी तरह बंद रहेगा। औपचारिक रूप से 31 अक्तूबर से प्लांट बंद हो जाएगा।

श्रम विभाग द्वारा नोटिस जारी

श्रम विभाग की ओर से फैक्ट्री को एक नोटिस जारी किया गया है इसमें फैक्ट्री के सभी अभिलेखों की जांच की जाएगी। जांच में कर्मचारियों को वैधानिक भुगतान दिया गया या नहीं, कितने कर्मचारी कार्यरत थे, कंपनी को नियमानुसार बंद कर रहे हैं या नहीं, इन दिनों पर जांच की जाएगी। यानी बंदी की औपचारिकता पूरी होगी।

सब्सिडी व टैक्स रियायतें खत्म, राज्य से पलायन शुरू

बहुराष्ट्रीय कंपनी एचपी इंडिया सेल्स प्राइवेट लिमिटेड सिड़कुल, पंतनगर (उत्तराखंड) प्लांट भारी सरकारी सब्सिडी और टैक्स सहित अन्य रियायतों के साथ 2006 में स्थापित हुआ और मार्च 2007 में यहाँ उत्पादन शुरू हुआ था। एक समय इस प्लांट में हर माह तीन लाख डेस्कटॉप और लैपटॉप तैयार होते थे।

शुरुआती सालों में यहाँ रिकार्ड उत्पादन हुआ। पिछले सालों में एक साजिश के तहत इस प्लांट का उत्पादन गिरता गया। पिछले साल अक्टूबर से कथित रूप से मांग कम होने के कारण उत्पादन कम होता चला गया। हालांकि कोविड/लॉकडाउन के बीच कंप्यूटर-लैपटॉप की माँग काफी बढ़ी है और इसका बाजार पूरी तरह फल-फूल रहा है। यहाँ तक कि लैपटॉप की कीमतें काफी बढ़ी हैं।

भारत में यह कंपनी का एकमात्र प्लांट था। अपनी स्थापना से अबतक कंपनी ने यहाँ से भारी मुनाफा कमाया। इस बीच टैक्स की रियायतों की अवधि समाप्त हो गई तो सिड़कुल की तमाम कंपनियों की तरह नई सब्सिडी और टैक्स की रियायतों के लिए एचपी भी यहाँ से पलायन का रुख करने लगी।

चेन्नई में लगा नया प्लांट, पंतनगर में छँटनी-बंदी

पिछले साल (अगस्त, 2020) एचपी इंडिया का चेन्नई के निकट श्रीपेरंबदूर में नया प्लांट शुरू हुआ। चेन्नई प्लांट शुरू करते हुए एचपी प्रबंधन ने कहा था कि कोरोना महामारी के बाद वर्क फ्रॉम होम और ऑनलाइन पढ़ाई के कारण पीसी माँग काफी बढ़ी है और इस प्लांट की महत्ता इसी पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण है।

इस सजिशपूर्ण बंदी को ऐसे समझ जा सकता है कि जिस वक़्त चेन्नई में प्लांट लगाते हुए प्रबंधन माँग काफी बढ़ने की बात कर रहा है, उसी दौरान स्थानीय प्रबंधन का कहना है कि हमारे पास वर्तमान में मांग नहीं है, इसलिए उत्पादन गिर गया है।

इसी दौरान एचपी प्रबंधन ने 1 दिसंबर, 2020 को “स्वैच्छिक सेवा त्याग योजना” (वीएसएस) लागू की, जिसमें कर्मचारियों ने कोई रुचि नहीं दिखलाई थी। फिर कोरोना के बहाने उत्पादन ठप किया गया। इससे उत्पादन में लगे करीब 50 श्रमिकों सहित करीब 250 अस्थाई श्रमिकों की सेवा समाप्त कर दी गई और 220 स्थाई श्रमिकों को सवेतन अवकाश देकर घर बैठा दिया गया। इस बीच कुछ श्रमिकों का चेन्नई स्थानांतरण किया गया।

खायो-पियो फिर प्लांट बंद करके दूसरी जगह लगाओ

आज के दौर में कंपनियों की यह एक परंपरा बन चुकी है कि सब्सिडी और टैक्स की छूटें लेकर प्लांट लगाओ, मुनाफा कमाओ और रियायतों की अवधि खत्म हो तो मजदूरों के पेट पर लात मारकर प्लांट बंद करो और नई रियायतों के साथ दूसरी जगह प्लांट लगाओ!

राज्य में सरकारी रियायतों की अवधि समाप्त होने के बाद से भास्कर, एस्कॉर्ट से लेकर ब्रुशमैन, एमकोर, आमूल ऑटो सहित तमाम कंपनियाँ यहाँ से पलायन कर चुकी हैं। माइक्रोमैक्स उत्पाद बनाने वाली भगवती प्रॉडक्ट्स भी इसी दिशा में सक्रिय है और पिछली 32 महिनें से 351 श्रमिक गैरकानूनी छँटनी/ले ऑफ के शिकार बन संघर्षरत हैं।

एक बड़े संघर्ष की जरूरत

अब एचपी के मजदूरों की गर्दन पर बंदी की तलवार चल गई। ऐसे में एचपी के मजदूरों व यूनियन को क़ानूनी तौर पर 300 से अधिक श्रम शक्ति वाला प्लांट साबित करके छँटनी को अवैध करवाना होगा और जमीनी स्तर पर भी अपने आंदोलन को मजबूत करना होगा। जरूरत है कि लाभ कमकर पलायन की इस नीति के खिलाफ बड़ा संघर्ष किया जाए!

यह ध्यान रहे कि मोदी सरकार की नई श्रम संहिताएं मालिकों की इस मनमानी को और बेलगाम कर देंगी!

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