उपग्रह प्रक्षेपण संस्थान इसरो का भी निजीकरण, विरोध पर वैज्ञानिक की हुई थी हत्या की कोशिश
जब रेलवे प्राइवेट हो रही है,सरकारी हाइवे ओर पोर्ट्स निजी कंपनियों को चलाने के लिए दिए जा रहे तो स्पेस क्यो अछूता रह जाए वहाँ भी निजीकरण होगा!…
मोदी सरकार देश की प्रतिष्ठित और उपग्रह प्रक्षेपण की रीढ़ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का भी निजीकरण करने जा रही है। उल्लेखनीय है कि इसरो में निजीकरण का विरोध करने वाले एक बड़े वैज्ञानिक तपन मिश्रा को जहर देकर मारने की कोशिश की गयी थी, जिसका खुलासा उन्होंने खुद किया था।
इस पूरे मामले पर वरिष्ठ विश्लेषक गिरीश मालवीय के दो पोस्ट महत्वपूर्ण हैं-
अब निजीकरण की राह पर इसरो, अदानी की बल्ले-बल्ले
धरा बेच देंगे, गगन बेच देंगे’ ये तो आपने सुना ही होगा
तो दिल थाम के बैठिए क्योंकि मोदी सरकार अब गगन भी बेच रही है! …मोदी सरकार नेहरू जी के द्वारा स्थापित इसरो के बजाए पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) का ठेका प्राइवेट कंपनियों को दे रही है।
वैसे सही भी है जब रेलवे प्राइवेट हो रही है, सरकारी हाइवे और पोर्ट्स निजी कंपनियों को चलाने के लिए दिए जा रहे तो स्पेस क्यो अछूता रह जाए वहाँ भी प्राइवेटाइजेशन किया जाएगा!…
भारत सरकार अब इसरो से बाहर के किसी व्यक्ति/कंपनी को उपग्रह प्रक्षेपण यान बनाने का ठेका दे रही है। यह ठेका एनएसआईएल के माध्यम से दिया जा रहा है।
दरअसल एनएसआईएल इसरो का ही पार्ट था और शुरू में इसरो का कार्यकारी निकाय माना जाता था। फिर मोदी जी प्रधानमंत्री बने उसके बाद इसे धीरे से इसरो से अलग कर के लॉन्च वाहनों, उपग्रहों और अन्य मालिकाना उत्पादों के उत्पादन के लिए को जिम्मेदार बनाया गया।
अब इसने स्वतंत्र रूप में कार्य करते हुए पीएसएलवी की बोलियां मंगाई है। शुरुआत में 5 पीएसएलवी के लिए बोलियां आमंत्रित की गयी है,
अब मोदी राज में किसी क्षेत्र का निजीकरण हो ओर उसमे अडानी जी या अम्बानी जी का रोल न हो ऐसा संभव ही नही है, इसलिए पीएसएलवी बनाने के इस कॉन्ट्रेक्ट को पाने की होड़ में अडानी ग्रुप सबसे आगे है और नाम के लिए भेल व लार्सन एंड टर्बो (एलएंडटी) को भी शामिल किया गया है। ये कुल तीन कम्पनिया ही इस कांट्रेक्ट के लिये आगे आयी है।….
ये मत सोचिएगा कि इसरो जैसे संस्थान के निजीकरण की शुरुआत अभी हुई है। ….दरअसल गेम तो सालो पहले सेट किया जा चुका था। 2017 में इतिहास में पहली बार इसरो ने दो प्राइवेट कंपनियों और एक सार्वजनिक उपक्रम के साथ 27 सेटेलाइट बनाने का करार किया। इसके तहत इसरो ने बैंगलोर स्थित अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज के नेतृत्व में एक निजी क्षेत्र के साथ तीन साल के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसरो ने अल्फा डिजाइन कंसोर्टियम को इन उपग्रहों को असेंबल करने के लिए चुना था।
यह अल्फा डिजाइन कंपनी अडानी की फंडिंग से खड़ी हुई थी। अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज उस इतालवी डिफेंस फर्म इलेटट्रॉनिका की मुख्य भारतीय साझेदार भी है, जिसका नाम भारत में कथित तौर पर कमीशन खिलाने के लिए ‘पनामा पेपर्स’ में सामने आया था।
साफ है कि अडानी की आमद के लिए दस्तरख्वान बिछा हुआ है ठेका तो उन्ही को मिलना है।
निजीकरण का विरोध करने वाले इसरो के एक बड़े वैज्ञानिक को मारने की हुई थी साजिश
इसरो में निजीकरण का विरोध करने वाले एक बड़े वैज्ञानिक को जहर देकर मारने की कोशिश की गयी, …..यह तथ्य पता है आपको!
यह खुलासा स्वंय उसी वैज्ञानिक ने जनवरी 2021 में किया, जब उनके रिटायरमेंट में कुछ ही दिन बचे हुए थे। हम बात कर रहे हैं अहमदाबाद स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के पूर्व निदेशक तपन मिश्रा की जो एक जाने माने वैज्ञानिक रहे हैं।
सीनियोरिटी के हिसाब से तपन मिश्रा वह व्यक्ति थे जिनका सिवन के बाद इसरो का अगला प्रमुख बनाया जाना लगभग तय था, लेकिन उनके द्वारा निजीकरण का विरोध किये जाने से उनका डिमोशन कर दिया गया, उनको पद से हटाकर इसरो का सलाहकार बना दिया गया।
जनवरी 2021 में उन्होंने एक फेसबुक पोस्ट में यह खुलासा किया कि मुझे शक है कि मुझे नाश्ते में जहर दिया गया था। मैं चाहता हूं कि इसकी जांच की जाए।
तपन मिश्रा ने फेसबुक पोस्ट पर लिखा है कि 23 मई 2017 को उन्हें जानलेवा आर्सेनिक ट्राइऑक्साइड दिया गया था। यह उन्हें उनके प्रमोशन इंटरव्यू के दौरान इसरो हेडक्वार्टर बेंगलुरु में चटनी और दोसाई में मिलाकर दिया गया था। जिसे उन्होंने लंच के कुछ देर बाद हुए नाश्ते में खाया था। इसके बाद से वे पिछले दो साल से लगातार बुरी हालत में हैं।
तपन मिश्रा ने पोस्ट में लिखा है कि देश के प्रसिद्ध फोरेंसिक स्पेश्लिस्ट डॉ सुधीर गुप्ता ने उन्हें बताया कि उन्होंने अपने जीवन में जहर के जीवित स्पेसीमेन को पहली बार देखा है।
तपन मिश्रा को जहर दिए जाने के बहुत दिनों के बाद उन्हें पता लगा कि जहर दिया गया है, बाद में निजीकरण को लेकर उनकी असहमति की खबरे भी मीडिया में आई।
टाइम्स आफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, इसरो के उपक्रमों के निजीकरण को लेकर तपन मिश्रा और मौजूदा चेयरमैन के. सिवन के बीच सहमति नहीं थी। मिश्रा को उनके पद से हटाने से एक दिन पहले ही भारतीय अतंरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने दो प्राइवेट कंपनियों और एक सार्वजनिक उपक्रम के साथ 27 सेटेलाइट बनाने का करार किया था।
इस करार से तपन मिश्रा सहमत नहीं थे और उन्होंने इसका विरोध किया। डॉ तपन का कहना था कि निजी क्षेत्र अभी स्पेस टेक्नॉलजी के मामले में परिपक्व नहीं है। उसे सैटलाइट्स और पीएसएलवी बनाने की जिम्मेदारी दी गई, तो इसरो की वर्षों से बनी साख पर बट्टा लग जाएगा। इसके साथ ही गोपनीय स्पेस कार्यक्रमों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ेगी !
लेकिन अगले ही दिन इसरो के चेयरपर्सन के. सिवन ने एक आदेश जारी कर कहा, ‘तपन मिश्रा को सभी जिम्मेदारियों से मुक्त किया जाता है। उन्हें इसरो मुख्यालय में वरिष्ठ सलाहकार नियुक्त किया जाता है और वो चेयरमैन को रिपोर्ट करेंगे।
बाद में इसरो के कामकाज में निजी क्षेत्रों की भूमिका बढ़ाने के लिए एक और बड़ा कदम उठाया गया है। इसरो ने न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) के नाम से एक कंपनी बनाई गयी।
जिसने अभी पीएसएलवी बनाने की एक नयी निविदा निकाली है, जिसमें अडानी ओर L&T जैसी कम्पनी ने हिस्सा लिया है। सेटेलाइट बनाने में निजी क्षेत्र की एंट्री 2017 में ही हो चुकी है। अब पीएसएलवी को निजी क्षेत्र को सौपने के जरिए अब लॉन्च व्हीकल की सुविधा भी निजी हाथों में जा रही है।….
–गिरीश मालवीय के फ़ेसबुक वाल से साभार