महिलाओं के श्रम का सेवा के नाम पर शोषण : उत्तराखंड में आशाओं की हड़ताल जारी

उत्तराखंड में आशाओं को मासिक वेतन और अन्य समस्याओं के समाधान के लिए चल रहा आंदोलन राज्य की भाजपा सरकार की उदासीनता और असंवेदनशील रवैये के चलते अभी भी जारी है।

आखिर क्यों करें फोक़ट की मज़दूरी

2 अगस्त से पूरे उत्तराखण्ड राज्य में आशा वर्कर्स का अनिश्चितकालीन कार्यबहिष्कार चल रहा है। यह हड़ताल सेवा के नाम मुफ्त के कार्यकर्ता बनाकर आशाओं के शोषण के खिलाफ चल रही है। हड़ताल को चलते हुए एक महीना होने को है लेकिन अभी तक सरकार ने आशाओं के सवालों पर कोई निर्णय नहीं लिया है।

यह तब है जबकि आशाओं का प्रतिनिधिमंडल दो बार राज्य के मुख्यमंत्री से मिल चुका है, स्वास्थ्य सचिव, स्वास्थ्य महानिदेशक और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की निदेशक से कई दौर की बातचीत हो चुकी है। मजे की बात है कि उक्त सभी ने आशाओं की मांगों को जायज ठहराया है और कहा कि कोविड महामारी रोकने में आशा वर्कर्स का योगदान उल्लेखनीय रहा है। लेकिन फिर भी आशाओं के मासिक वेतन पर फैसला न लिया जाना क्या दिखाता है?

आशाओं को मासिक वेतन और अन्य समस्याओं का समाधान करने के लिए चल रहा आंदोलन राज्य की भाजपा सरकार की उदासीनता और असंवेदनशील रवैये के चलते अभी भी जारी है।

गौरतलब है कि 23 जुलाई 2021 को आशाओं ने राज्य भर में ब्लॉकों में प्रदर्शन मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा था लेकिन सरकार ने एक नहीं सुनी, 30 जुलाई को जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन किया गया तब भी सरकार के कानों में तेल डालकर बैठ गई है। इसलिए आशाओं को कार्यबहिष्कार करने पर मजबूर होना पड़ा।

इससे पहले भी लगातार आशाएँ अपनी समस्याओं से भाजपा की राज्य सरकार को 2017 में सरकार बनने के बाद से ही अवगत करा रही हैं लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई। ‘ऐक्टू’ से संबद्ध ‘उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन’ के व ‘सीटू’ से संबद्ध ‘उत्तराखण्ड आशा स्वास्थ्य कार्यकत्री यूनियन’ के संयुक्त आह्वान पर 2 अगस्त से पूर्ण कार्यबहिष्कार कर पूरे राज्य में प्रदर्शन हो रहा है।

श्रम के शोषण के खिलाफ 'आशा' एक आवाज

24 अगस्त को उत्तराखण्ड की धामी सरकार ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के प्रथम अनुपूरक बजट के अन्तर्गत राज्य के लिए कुल बजट घनराशि 5720.78 करोड़ का प्रावधान किया गया है, जिसमें सभी क्षेत्रों के लिए बजट का प्रावधान किया गया है लेकिन आशा वर्कर्स के मासिक वेतन/मानदेय के लिए कोई बजट नहीं रखा गया है।

भाजपा सरकार द्वारा आशाओं की उपेक्षा लगातार जारी है। यदि सरकार का यही रवैया जारी रहा और आशाओं के मासिक वेतन पर विधानसभा सत्र के दौरान कोई फैसला न लिया गया तो आशाएँ मुख्यमंत्री आवास खटीमा कूच करेंगी।

asha workers started statewide three day strike in support of pending  demands in uttarakhand - आशा कार्यकत्रियों की 11 सूत्रीय मांगों को लेकर 03  दिवसीय हड़ताल शुरू

प्राथमिक रूप से मातृ शिशु सुरक्षा के लिए तैनात की गई आशाओं को आज कोविड से लेकर पल्स पोलियो, टीकाकरण, परिवार नियोजन, डेंगू, मलेरिया, ओआरएस बांटने और तमाम सर्वे व अभियानों में लगाया जा रहा है। आशाओं के पास अपने परिवार तक के लिए फुर्सत नहीं है लेकिन सरकार एक रुपया भी मासिक वेतन के नाम पर नहीं दे रही है। वेतन के बदले उनके कामों का कुछ कुछ पारिश्रमिक देकर, प्रोत्साहन राशि देकर इतिश्री कर ली जाती है।

पंद्रह सालों से आशाएँ घर घर गाँव गाँव पैदल चलकर स्वास्थ्य विभाग के अभियानों और सर्वे को चला रही हैं। जर्जर हो चुकी सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था को आशाएँ अपने कंधों पर ढो रही हैं लेकिन सरकार उन्हें वर्कर या कर्मचारी मानने के बजाय ‘स्वैच्छिक कार्यकर्ता’ मानती है।

यह महिला श्रम का खुला शोषण है। आशाओं पर काम का बोझ बढ़ाकर उनको कोई मासिक वेतन तो छोड़िए कोई फिक्स मासिक मानदेय तक न देना स्पष्ट रूप से दिखाता है कि यह सरकार आशाओं समेत सभी महिला कामगारों को मुफ्त का कार्यकर्ता समझती है।

महिलाओं के श्रम का सेवा के नाम पर शोषण किया जा रहा है। इसके पीछे सरकार की साफ अवधारणा है कि महिलाएं घर-परिवार से लेकर समाज तक में सेवा भाव से काम करती हैं इसलिए सरकार का काम भी सेवा भाव से करें और काम के एवज में न्यूनतम वेतन की अपेक्षा न करें।

यानी जमकर लेंगे पूरा काम, पर नहीं मिलेगा पूरा दाम। आशाओं की यह लड़ाई अपने मासिक वेतन, पेंशन, सामाजिक सुरक्षा के साथ साथ महिला श्रम के शोषण की इस मानसिकता के भी खिलाफ है।

आशा कार्यकर्ताओं की मांगें-

  1. आशा वर्करों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा और न्यूनतम 21 हजार वेतन लागू किया जाय।
  2. जब तक मासिक वेतन और कर्मचारी का दर्जा नहीं मिलता तब तक आशाओं को भी आंगनबाड़ी जैसी अन्य स्कीम वर्कर्स की तरह मासिक मानदेय फिक्स किया जाय।
  3. सभी आशाओं को सेवानिवृत्त होने पर पेंशन का प्रावधान किया जाय और जिन आशाओं की पैदल ड्यूटी करते करते घुटनों में दिक्कतें आ गई हैं उनके लिए एक मुश्त पैकेज की घोषणा की जाय।
  4. पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा घोषित कोरोना भत्ता तत्काल आशाओं के खाते में डाला जाय और कोविड कार्य में लगी सभी आशा वर्करों कोरोना ड्यूटी की शुरुआत से 10 हजार रू० मासिक कोरोना-भत्ता भुगतान किया जाय।
  5. कोविड कार्य में लगी आशाओं वर्करों की 50 लाख का जीवन बीमा और 10 लाख का स्वास्थ्य बीमा लागू किया जाय ।
  6. कोरोना ड्यूटी के क्रम में मृत आशा वर्करों के आश्रितों को 50 लाख का बीमा और 4 लाख का अनुग्रह अनुदान भुगतान किया जाय. उड़ीसा की तरह ऐसे मृत कर्मियों के आश्रित को विशेष मासिक भुगतान किया जाय।
  7. सेवा(ड्यूटी) के समय दुर्घटना, हार्ट अटैक या बीमारी होने की स्थिति में आशाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए नियम बनाया जाय और न्यूनतम दस लाख रुपये मुआवजे का प्रावधान किया जाय।
  8. देय मासिक राशि और सभी मदों का बकाया सहित समय से भुगतान किया जाय।
  9. आशाओं के विविध भुगतानों में नीचले स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार व कमीशनखोरी पर लगाम लगायी जाय।
  10. सभी सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति तत्काल की जाय।
  11. आशाओं के साथ अस्पतालों में सम्मानजनक व्यवहार किया जाय।
  12. जब तक कोरोना ड्यूटी के लिए अलग से मासिक भत्ते का प्रावधान नहीं किया जाता तब तक आशाओं की कोरोना ड्यूटी न लगायी जाय।

कैलाश पाण्डेय (महामंत्री, उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन)

नैनीताल समाचार से साभार

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