असम : गुवाहाटी हवाई अड्डा अडाणी समूह को सौंपने के खिलाफ प्रदर्शन

केंद्र सरकार ने अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे को 50 वर्षों के लिए अडाणी को सौंपा है

गुवाहाटी/हैलाकांडी/ शिलॉन्ग/ इम्फाल: असम के बोरझार के गोपीनाथ बोरदोलोई अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे को अडाणी समूह को सौंपने के फैसले को वापस लेने की मांग के लिए शुरू किया गया सप्ताह भर का सामूहिक हस्ताक्षर अभियान शनिवार को समाप्त हो गया.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस सामूहिक हस्ताक्षर अभियान के तहत 500 से अधिक लोगों ने हवाईअड्डे को निजी कंपनी को सौंपने के सरकार के फैसले के विरोध में पत्र पर हस्ताक्षर किए.यह विरोध अभियान नौ अगस्त को शुरू किया गया था. केंद्र सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे असम जातीय परिषद (एजेपी) के कई कार्यकर्ताओं को पुलिस ने 11 अगस्त को हिरासत में ले लिया था. हालांकि बाद में इन प्रदर्शनकारियों को छोड़ दिया गया.

एजेपी के अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई ने कहा कि यह पार्टी द्वारा शुरू किए गए व्यापक जागरूकता अभियान की शुरुआत है.गोगोई ने कहा, ‘पार्टी देश के लाभप्रद उद्यमों को बड़ी-बड़ी निजी कंपनियों को सौंपने के भाजपा के कदमों का विरोध करना जारी रखेगी.’हवाईअड्डे को निजी कंपनी को सौंपने के फैसले को लेकर जनता की राय लेने के लिए पार्टी एक ऑनलाइन सार्वजनिक हस्ताक्षर अभियान शुरू करेगी.

केंद्र सरकार ने गोपीनाथ बोरदोलोई अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे को पचास वर्षों के लिए अडाणी समूह को सौंपने का फैसला किया था. अक्टूबर से निजी कंपनी हवाईअड्डे के संचालन, विकास और प्रबंधन संभालेगी. अडाणी समूह ने नौ अगस्त को हवाई अड्डे की निगरानी का जिम्मा संभाला था.उन्होंने कहा, ‘आधिकारिक रूप से जिम्मेदारी संभालने से पहले अडाणी समूह ने कथित तौर पर हवाईअड्डे पर काम करने वाले कर्मचारियों को उनके आवास खाली करने का निर्देश दिया और कारोबारियों को उनकी दुकानें हवाईअड्डे परिसर से बाहर बंद करने का निर्देश दिया था.’

असम जातीय परिषद हवाईअड्डे का जिम्मा अडाणी समूह को सौंपे जाने से ही इसका विरोध कर रही है. इससे पहले केंद्र सरकार और भारतीय हवाईअड्डा प्राधिकरण (एएआई) को ज्ञापन भेजकर इस फैसले को पलटने का अनुरोध किया गया था.एजेपी ने इस मामले को लेकर नौ अगस्त को एयरपोर्ट परिसर के बाहर सार्वजनिक हस्ताक्षर अभियान शुरू किया था लेकिन सार्वजनिक तौर पर व्यवधान उत्पन्न होने की वजह से उस दिन इसे स्थगित कर दिया गया था.

इसके बाद कोविड-19 प्रोटोकॉल के तहत मंजूरी मांगी गई, जिससे इनकार कर दिया गया. एजेपी के कार्यकर्ताओं ने 10 अगस्त को हस्ताक्षर जुटाना शुरू कर दिया लेकिन पुलिस ने उन्हें हिरासत में लेकर देर शाम तक उनसे पूछताछ की.

सप्ताह भर तक चले इस अभियान के आखिरी दिन शनिवार को लुरिनज्योति गोगोई ने इसकी अगुवाई की. हस्ताक्षर समारोह में लगभग 100 नेताओं और कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया.गोगोई ने कहा कि हवाईअड्डे का नाम लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई के नाम पर है. यह सबसे अग्रणी और सर्वाधिक लाभ कमाने वाले हवाईअड्डों में से एक है. इसे किसी भी कीमत पर निजी कंपनी के हाथों में नहीं जाने दिया जाएगा.

गोगोई और पार्टी के महासचिव जगदीश भुइयां ने अलग प्रेस बयान में कहा कि हवाईअड्डे के अत्याधुनिक टर्मिनल का निर्माण 1,232 करोड़ की लागत से किया गया.एजीपी प्रमुख ने कहा कि यह स्पष्ट है कि अडाणी समूह ने हवाईअड्डे के जरिए व्यापक तौर पर लूट की तैयारियां पूरी कर ली है. समूह ने हवाईअड्डे पर ग्राउंड हैंडलिंग और पार्किंग से अधिक दर पर कमाई करने की तैयारियां पहले से ही शुरू कर दी है.गोगोई और भुइयां ने कहा कि इस फैसले का समर्थन करना लोगों के खिलाफ जाना है.

असम-मिजोरम सीमा पर बीते कुछ दिनों की शांति के बाद शनिवार को तनाव उस समय फिर बढ़ गया जब अज्ञात उपद्रवियों ने असम के हैलाकांडी जिले स्थित सरकारी स्कूल पर बमबारी की. इससे स्थानीय लोगों में डर फैला हुआ है.असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा कि घटना की जांच की जाएगी.हैलाकांडी के पुलिस अधीक्षक (एसपी) गौरव उपाध्याय ने संवाददाताओं को बताया कि धमाका शुक्रवार लगभग मध्यरात्रि में साहेबमारा इलाके में हुआ, जिससे सीमा के पास स्थित प्राथमिक स्कूल का बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया.उन्होंने बताया कि अब तक घटना में किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है.

आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि स्थानीय लोगों ने आशंका जताई है कि घटना को अंजाम देने वाले संदिग्ध उपद्रवी राज्य की सीमा की दूसरी ओर से आए थे.हालांकि, हैलाकांडी से लगे मिजोरम के कोलासिब जिले के पुलिस अधिकारी ने कहा कि किसी के साहेबमारा में बम धमाका करने का कोई कारण नहीं है क्योंकि वह विवादित क्षेत्र नहीं है.कोलासिब के पुलिस अधीक्षक (एपी) वनलालफका राल्ते ने कहा, क्यों मिजोरम के लोग जाएंगे और उस जगह पर धमाका करेंगे जो असम के अंतर्गत आता है. वह विवादित क्षेत्र नहीं है.वहीं, उपाध्याय ने कहा कि घटना की विस्तृत जानकारी जांच के बाद ही हो सकेगी.

हिमंता बिस्वा शर्मा  ने कहा कि वह मिजोरम के अपने समकक्ष को पत्र लिखकर धमाके की जांच करने का आग्रह करेंगे. उन्होंने कहा कि घटना हमारे इलाके में हुई है और असम पुलिस मामले की जांच करेगी.मुख्यमंत्री ने कहा, ‘खुफिया जानकारी से पता चलता है कि सीमा पर छिटपुट घटनाएं हो सकती है और मैंने इसका उल्लेख शुक्रवार को विधानसभा में भी किया था. मिजोरम से लगती सीमा पर पूर्ण शांति बहाल होने में कुछ समय लग सकता है.’

इस बीच कत्लीछेरा से एआईयूडीएफ विधायक सुज़ामउद्दीन लश्कर ने आरोप लगाया कि मिजोरम के लोगों ने हैलाकांडी के चुन्नीनाला इलाके में सड़क निर्माण का कार्य शुरू किया है. उन्होंने असम सरकार से इस मामले में तत्काल कदम उठाने की मांग की है.बता दें कि असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद 26 जुलाई को हिंसक हो गया था जिसमें असम पुलिस के छह जवानों सहित कुल सात लोगों की मौत कछार जिले में झड़प के दौरान हो गई थी.

इसके बाद दोनों राज्यों में एक दूसरे के शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई थी. मिजोरम पुलिस ने यहां तक असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा के खिलाफ भी मामला दर्ज किया था.बीते 13 अगस्त को असम विधानसभा में मवेशियों के वध, उपभोग और परिवहन को विनियमित करने के प्रावधान वाला विधेयक पारित किया गया. हालांकि, इस विधेयक को सरकार द्वारा प्रवर समिति के पास भेजने से इनकार के बाद इसके विरोध में विपक्षी दलों ने सदन से वॉकआउट किया.

विधानसभा अध्यक्ष बिश्वजीत दैमरी द्वारा असम मवेशी संरक्षण विधेयक, 2021 को पारित करने की घोषणा करते ही सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यों ने भारत माता की जय और जय श्रीराम के नारे लगाए और मेज थपथपाई.जब सदन में विधेयक पर चर्चा हो रही थी तब एकमात्र निर्दलीय विधायक अखिल गोगोई सदन से बहिर्गमन कर गए.

इस विधेयक के तहत हिंदुओं, जैन, सिख बहुल्य इलाकों और गोमांस नहीं खाने वाले अन्य समुदायों वाले क्षेत्रों में गोमांस की खरीद और बिक्री पर प्रतिबंध का प्रावधान है.इसके तहत मंदिर या वैष्णव मठ के पांच किलोमीटर के दायरे में भी गोमांस की खरीद एवं बिक्री पर मनाही है.विपक्षी कांग्रेस, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने सरकार से विधेयक को विधानसभा की प्रवर समिति को समीक्षा के लिए भेजने का आग्रह किया था लेकिन मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने इसे खारिज कर दिया.

शर्मा ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि विधेयक के पीछे कोई गलत मंशा नहीं है और दावा किया कि यह सांप्रदायिक सद्भाव को मजबूत करेगा.मुख्यमंत्री ने कहा कि कानून किसी को भी बीफ  खाने से रोकने का इरादा नहीं रखता है लेकिन जो व्यक्ति यह खाता है, उसे दूसरों की धार्मिक भावनाओं का भी सम्मान करना चाहिए.उन्होंने कहा, ‘मैं इसे और अधिक पसंद करूंगा यदि आप (सदन में मुस्लिम विधायकों का जिक्र करते हुए) गोमांस बिल्कुल नहीं खाते हैं. हालांकि मैं आपको इससे नहीं रोक सकता. मैं आपके अधिकार का सम्मान करता हूं. संघर्ष तब शुरू होता है जब हम दूसरे के धर्म का सम्मान करना बंद कर देते हैं.’

उन्होंने एआईयूडीएफ विधायकों को संबोधित करते हुए कहा कि उन्हें यह सुनिश्चित करने की पहल करनी चाहिए कि उनके गोमांस खाने से हिंदुओं या किसी अन्य समुदाय की भावनाएं आहत न हों.उन्होंने कहा, ‘ऐसा नहीं हो सकता कि सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए केवल हिंदू ही जिम्मेदार हों, मुसलमानों को भी इसमें सहयोग करना चाहिए.’गायों के वध को रोकने के निर्णय का बचाव करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, हम (हिंदू) गायों की पूजा करते हैं. यही मूल बात है. मुख्यमंत्री ने कहा कि कमाई के लिए गोहत्या की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

उन्होंने हिंदू धर्म और भारत में गाय के महत्व और सम्मान पर जोर देने के लिए महात्मा गांधी के कई लेखों का हवाला दिया.नया कानून के तहत किसी व्यक्ति के मवेशियों का वध करने पर रोक होगी, जब तक कि उसने किसी विशेष क्षेत्र के पंजीकृत पशु चिकित्सा अधिकारी द्वारा जारी आवश्यक प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं किया हो.नये कानून के तहत यदि अधिकारियों को वैध दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं तो राज्य के भीतर या बाहर गोवंश के परिवहन की जांच होगी. हालांकि, किसी जिले के भीतर कृषि उद्देश्यों के लिए मवेशियों को ले जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा.इस नए कानून के तहत सभी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होंगे.

इससे पहले, विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने कहा कि इस पर अधिकधिक विशेषज्ञों की राय ली जानी चाहिए और प्रस्तावित कानून पर परामर्श किया जाना चाहिए.कांग्रेस नेता ने सरकार से इसे आगे के विश्लेषण के लिए एक प्रवर समिति के पास भेजने का आग्रह किया और इसका एआईयूडीएफ और माकपा ने भी समर्थन दिया.मेघालय में विपक्षी कांग्रेस ने पुलिस के साथ मुठभेड़ में उग्रवादी की मौत के मामले में मेघालय मानवाधिकार आयोग (एमएचआरसी) से जांच कराए जाने की मांग की है.

प्रतिबंधित संगठन हाइनीवट्रेप नेशनल लिबरेशन काउंसिल (एचएनएलसी) के पूर्व महासचिव चेरिस्टरफाइड थंगख्यू ने 2018  में आत्मसमर्पण किया था और शुक्रवार तड़के शिलॉन्ग के मवलाई में थंगख्यू के घर के बाहर पुलिस के साथ मुठभेड़ में उन्हें मार गिराया गया.इससे तीन दिन पहले एचएनएलससी ने शहर के व्यस्त बाजार वाले इलाके में आईईडी विस्फोट किया था.कांग्रेस सचिव एवं पूर्व मंत्री अम्परीन लिंगदोह ने बयान में कहा, ‘स्थानीय नागरिकों ने पुलिस की कार्रवाई को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं. पुलिस और पीड़ित परिवार दोनों से वास्तविक जरूरी तथ्य की पुष्टि के लिए मेघालय मानवाधिकार आयोग को इस संबंध में स्वतंत्र जांच करनी चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘आमजन के मद्देनजर यह पक्षपात रहित नहीं हो सकता है.’ उन्होंने कहा कि मुठभेड़ की शैली में हत्या से जनता में आक्रोश है और इस संदिग्ध मामले से निपटने के तरीकों को लेकर बहस चल रही है.इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कांग्रेस नेता ने कहा, ‘यह घटना हमें एचएनएलसी द्वारा नागरिकों पर किए गए जघन्य हमलों से भ्रमित नहीं कर सकती और मेघालय पुलिस को निश्चित रूप से कानून के मुताबिक किसी आरोपी को गिरफ्तार करना चाहिए.’

बता दें कि एनएलएलसी ने शहर में 10 अगस्त को आईईडी विस्फोट किया था, जिसमें एक महिला समेत दो लोग घायल हुए थे. इससे पहले पिछले महीने खलीहरियात में पुलिस के एक बैरक पर आईईडी विस्फोट में एक पुलिसकर्मी घायल हुआ था और भवन को नुकसान पहुंचा था.एक अधिकारी ने बताया कि थंगख्यू राजधानी में हुए हालिया आईईडी विस्फोट में शामिल थे और ऐसी आशंका है कि 2018 में आत्मसमर्पण करने के बाद वह आईईडी विस्फोट की कई घटनाओं में सरगना थे.

इस बीच मेघालय के पुलिस महानिदेशक आर. चंद्रनाथन ने बताया कि राज्य में सिलसिलेवार आईईडी विस्फोटों की जांच से पता चला है कि एचएनएलसी के नशेड़ी और जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ता नापाक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं.उन्होंने कहा कि पुलिस ने 30 से अधिक जमीनी कार्यकर्ताओं की पहचान की है जो विद्रोही संगठन की गतिविधियों के प्रति सहानुभूति रखते  हैं.

चंद्रनाथन ने शुक्रवार को पत्रकारों से कहा, ‘हमने पिछले महीने खलीहरियात (आईईडी विस्फोट) की घटना में देखा कि गिरफ्तार व्यक्तियों में से एक नशे का आदी था. और जिन लड़कों को उठाया गया और गिरफ्तार किया गया उनमें से अधिकतर जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ता थे.’डीजीपी ने बताया कि बांग्लादेश में उनके कुछ ठिकानों में केवल 16 कैडर हैं. वहीं पुलिस ने संगठन के 30 से अधिक कार्यकर्ताओं की पहचान की है.मणिपुर मानवाधिकार आयोग ने एन. बीरेन सिंह सरकार को राज्य के दो आरटीआई कार्यकर्ताओं को पुलिस सुरक्षा देने का निर्देश दिया है.

इन आरटीआई कार्यकर्ताओं ने स्थानीय मीडिया में कहा था कि उनकी जान को खतरा है. आयोग ने हाल की रिपोर्टों पर स्वत: संज्ञान लिया, जिसमें कहा गया था कि राज्य के सेनापति जिले से दो आरटीआई कार्यकर्ता पी. जॉनसन सामो और पीआर अमोस बीते एक साल से छिपकर रह रहे हैं.इन आरटीआई कार्यकर्ताओं ने स्वायत्त जिला परिषद से आरटीआई के जरिए जानकारी मांगी थी कि 2015 से केंद्र सरकार द्वारा आवंटित धनराशि का इस्तेमाल किस तरह किया जा रहा है.

रिपोर्टों के मुताबिक, दोनों कार्यकर्ताओं ने 17 जुलाई को खुला पत्र लिखकर कहा था कि वे केंद्र सरकार की ओर से आवंटित धनराशि के खर्च के ब्योरे की जानकारी मांगे जाने के बाद से नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-इसाक-मुईवाह (एनएससीएन-आईएम) के स्थानीय नेताओं से छिपते फिर रहे हैं.दरअसल, इन कार्यकर्ताओं ने आदिवासी परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और चार अन्य लोगों द्वारा धन का गबन करने के आरोपों के बाद आरटीआई दायर की थी.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों कार्यकर्ताओं ने कहा कि इलाके के एनएससीएन (आई-एम) के दो नेताओं केवी सौनी और पुनी माओ ने उनसे (कार्यकर्ताओं) अपना आरटीआई आवेदन वापस लेने या खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहने को कहा था. यह एक तरह से जान की धमकी थी.आरटीआई कार्यकर्ताओं ने इस पत्र में कहा कि एनएससीएन (आई-एम) के कार्यकर्ताओं ने एक जिले के उनके एक साथी आरटीआई कार्यकर्ता का अपहरण कर उसे प्रताड़ित किया था और पीड़ित परिवार द्वारा धनराशि दिए जाने के बाद उन्हें रिहा किया गया था.

दोनों आरटीआई कार्यकर्ताओं ने जिले से 28 अन्य लोगों के अलावा एक अन्य स्थानीय आरटीआई कार्यकर्ता दालोउनी का भी जिक्र किया, जिन पर भी इसी तरह की हिमाकत करने के लिए जुर्माना लगाया गया था.दोनों कार्यकर्ताओं ने पत्र में सरकार से मदद की गुहार लगाई और लोगों से यह सोचने को कहा कि आखिर उन्हें क्यों इस तरह ढूंढा जा रहा है.

दोनों का कहना है कि हो सकता है कि कोविड-19 प्रतिबंधों में ढील दिए जाने के बाद उनकी हत्या करवा दी जाए.बता दें कि मई महीने में इन कार्यकर्ताओं ने एक अन्य आरटीआई कार्यकर्ता एसपी बेंजामिन के साथ मिलकर पोउमई नगा यूनियन को पत्र लिखकर मामले में मदद मांगी थी.

मणिपुर मानवाधिकार आयोग ने 12 अग्सत को राज्य के पुलिस महानिदेशक और विशेष सचिव (गृह) को इन आरटीआई कार्यकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने और उन्हें सुरक्षा प्रदान कराए जाने को कहा थाइम्फाल फ्री प्रेस के मुताबिक, आयोग ने दोनों वरिष्ठ अधिकारियों से मामले पर अपने जवाब 16 अगस्त तक जमा कराने को कहा है.

द वायर से साभार

About Post Author

भूली-बिसरी ख़बरे