मारुति मज़दूर दमन के 9 साल : न्याय के लिए मारुति सुजुकी मजदूर संघ ने दिया ज्ञापन

कोविड के कारण विभिन्न यूनियनों के प्रतिनिधियों ने की भागीदारी

गुड़गांव। 18 जुलाई मारुति सुजुकी मनेसर के मजदूरों के संघर्ष और भयावह दमन का प्रतीक दिवस है। 9 साल पहले सन 2012 में 18 जुलाई को ही वह सजिशपूर्ण घटना घटित हुई थी, जिसके प्रकोप में अन्यायपूर्ण उम्र कैद से लेकर बर्खास्तगी झेलते हुए मज़दूर आज भी संघर्षरत हैं। इसी के प्रतिरोध के तौर पर मारुति सुजुकी मजदूर संघ द्वारा कोविड दिशा निर्देशों के तहत गुरुग्राम में प्रतिरोध व्यक्त किया गया।

18 जुलाई 2021 को मारुति सुजुकी मजदूर संघ द्वारा सिर्फ युनियन के नेताओं को ही ज्ञापन देने के लिए बुलाया गया क्योंकि गुरुग्राम में कोविड दिशा निर्देशों के कारण ज्यादा भीड़ जुटाना मना था। इस अवसर पर सजिशपूर्ण घटना और मजदूरों के दमन चक्र को याद किया गया और जेल में बंद साथियों की रिहाई और कार्यबहाली के लिए आवाज बुलंद करते हुए मुख्यमंत्री के नाम संबोधित ज्ञापन भेजा गया।

कार्यक्रम में मारुति सुजुकी वर्कर्स युनियन, मारुति उद्योग कामगार युनियन, सुज़ुकि पावरट्रेन एम्प्लाइज युनियन, सुज़ुकि बाईक एम्प्लाइज युनियन, बेलसोनिका ऑटोमेटिव एम्प्लाइज युनियन, AITUC व प्रोविजनल कमेटी के प्रतिनिधि उपस्थित थे।

इस अवसर पर मारुति के बर्खास्त साथी और मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन प्रोविजनल कमेटी के साथी राम निवास ने हालात का एक चित्रण प्रस्तुत किया है-

मारुति आंदोलन – तब और अब (18 जुलाई 2012-2021)

आज हमारे जीवन के (मारुति मजदूरों के) 9 साल पूरे हो गए हैं जो हमने कम्पनी की बर्खास्तगी के बाद बिताए। 18 जुलाई 2012 इस दिन को हम कभी नहीं भूल सकते और ना ही मजदूर वर्ग। मीडिया ने इस दिन को मारुति कांड का नाम दिया और हमारा कहना है एक षड्यंत्रबध तरीके से हमें फंसाया गया। एक मैनेजर की मौत के बाद लगभग 2500 मजदूरों को कंपनी से बाहर का रास्ता दिखाया गया। डेढ़ सौ मजदूरों को जेल के अंदर यातनाएं दी गई।

तीन साल बाद 117 को बाइज्जत बरी किया गया क्योंकि कोई गवाह उन्हें जानता ही नहीं था कि ये कौन हैं। युनियन पदाधिकारियों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई ताकि भविष्य में कोई नेता न बने, एक शबक देने के लिये ही 13 लोगों को उम्र कैद की सजा दी गयी।

लगातार 9 साल से मारुति मजदूर हर तरीके से न्याय की गुहार लगाते रहे हैं लेकिन अभी तक आशा की कोई किरण नजर नहीं आती। आज भी कुछ मजदूर नेताओं के पीछे घूमते हैं कि वो कुछ हल निकलवाएंगे। मारुति के साथ नाम जुड़ा होने के कारण कहीं पर भी काम तलाशना बहुत ही मुश्किल रहा है। छोटी दुकानों, पेट्रोल पंप, या खुद का कोई फल सब्जी का कारोबार करके ही गुजारा कर रहे हैं मारुति के बर्खास्त मजदूर।

आंदोलन से हमने बहुत कुछ सीखा, बहुत कुछ पाया और उससे ज्यादा खोया भी। हमारे आंदोलन का असर सिर्फ मारुति मजदूरों पर ही नहीं पड़ा बल्कि अन्य मजदूरों व पूंजीपतियों पर भी पड़ा। इसका मूल्यांकन भी दोनों वर्गों ने अपने अपने नजरिये से किया तथा उसको अपने अनुरूप पेश किया। इससे देश भर के मजदूरों ने काफी कुछ सीखा भी और इसकी आवाज़ विदेशों तक भी पहुंची।

मैनेजर बनाम मजदूर की मौत

18 जुलाई की घटना में अवनीश देव नाम के एक मैनेजर की मौत हो गई जिसका बहाना बनाकर कंपनी ने इतने सारे मजदूरों को काम से बाहर निकाल दिया और जेल की यातनाएं दी। हालांकि हमारा कहना है कि अवनीश देव एक मजदूर हितैषी मैनेजर थे। वह कंपनी से अपना त्यागपत्र भी दे चुके थे लेकिन कंपनी ने मंजूर नहीं किया और उसे निशाना बनाकर एक तीर से दो शिकार कर डालें।

अगर हम मान भी लें कि अवनीश देव की मृत्यु इस झगड़े में हुई तो भी एक व्यक्ति की मृत्यु को इतना बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया कि हरियाणा के सभी मजदूरों को आतंकी का नाम दिया गया। क्षेत्र विशेष के मजदूरों को काम पर ना रखने की प्रथा शुरू हुई जिसमें जींद, कैथल नरवाना आदि क्षेत्रों के मजदूर शामिल रहे। पूरे औद्योगिक क्षेत्र में कोई भी नया मजदूर अगर इन क्षेत्रों से संबंध रखता था तो उन्हें सिर्फ इसी आधार पर रिजेक्ट कर दिया जाता।

दूसरी ओर मजदूरों की जिंदगी को पूरे समाज में इस तरह से पेश किया गया है कि मजदूर मरते ही रहते हैं कभी गड्ढे की खुदाई करते वक्त,  कभी सीवरेज की गंदगी साफ करते वक्त तो कभी कंपनियों की मशीनों में फंसकर मजदूर अपनी जान दे देते हैं। उनके लिए समाज की संवेदनाएं अलग है।

एक मैनेजर की मौत को मीडिया द्वारा डंका बजा बजाकर पूरे विश्व में प्रचारित किया गया जबकि उसी कंपनी के निकाले गए मजदूरों में से 10 से ज्यादा मजदूर अलग-अलग तरीकों से अपनी जान गवा चुके हैं। उम्र कैद की सजा भुगत रहे 13 मजदूरों में से भी दो साथी अब नहीं रहे और यह कोई खबर ही नहीं है।

कुछ उम्मीद हारे तो कुछ संघर्षरत

9 साल के संघर्ष में बर्खास्त 546 मजदूरों में ज्यादातर मजदूर 2016-17 तक जमीनी आंदोलन से जुड़े रहे लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति के कारण जिंदगी की जद्दोजहद में लग गए और आंदोलन से टूट गए। कुछ मजदूर न्यायपालिका के लचर सिस्टम से हारकर घर बैठ गए और लेबर कोर्ट में अपना गैर कानूनी बर्खास्तगी का केस भी नहीं डाला। जो लगातार इस प्रक्रिया में शामिल थे कोरोना महामारी के कारण वो भी लाचार हो चुके हैं। अब लम्बी लड़ाई लड़ना उन्हें मुश्किल लग रहा है।

बहुत कम मात्रा में मजदूर बचे हैं जो अभी भी अंतिम चरण तक लड़ने का हौसला रखते हैं। प्रोविजनल कमेटी में भी जुझारू कामरेड पारिवारिक स्थिति के कारण मैदान छोड़ चुके हैं। जो लड़ रहे हैं उनके सम्मुख भी आर्थिक समस्या खड़ी हुई है। लेकिन लड़ने का जज़्बा अभी भी बरकरार है।

आर्थिक सहयोग बनाम संघर्ष

जो मजदूर इस समय कम्पनी में काम कर रहे हैं वो समय समय पर जेल में बंद मजदूरों के परिजनों की आर्थिक सहायता कर रहे हैं। जेल में उम्रकैद की सज़ा काट रहे 13 मजदूरों को हर प्रकार से सहयोग लगातार मारुति सुजुकी मजदूर संघ द्वारा दिया जा रहा है। उनकी बीमारी से लेकर वकील की फीस या परिवार की देखभाल के लिए हर साल मदद करने का प्रस्ताव MSWU द्वारा पारित किया गया है।

जो मजदूर नेता अब हमारे बीच नहीं है उनमें से एक साथी पवन दहिया के परिवार को 19 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी गयी है और दूसरे साथी जियालाल के परिवार को भी जल्द यह सहयोग राशि दी जाएगी।

लेकिन 2018 के बाद से कारखाने के मजदूर ज़मीनी संघर्ष से दूर हैं। कोरोना महामारी के कारण व अन्य कारणों से मजदूर आंदोलन में कम्पनी के मजदूरों की सक्रियता कम हो गयी है लेकिन यह कदापि नहीं है कि वो अपने इतिहास को भूल चुके हैं और संघर्ष के रास्ते से दूर चले गए हों। हो सकता है आगामी समय में फिर कोई बड़ा आंदोलन मारुति मजदूरों द्वारा लड़ा जाए।

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