संयुक्त राष्ट्र: खोरी गांव के लाखों निवासियों की अवैध बेदखली तुरन्त रोकी जाए


संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार विशेषज्ञ समिति ने बयान जारी कर कहा कि भारत को खोरी गांव, फरीदाबाद से लाखों लोगों को बेघर करने वाली इस सामूहिक बेदखली की अमानवीय प्रक्रिया पर तुरंत रोक लगानी चाहिए।

इस महामारी के दौरान और मानसून के मौसम में इस बड़े पैमाने पर लाखों लोगों की हिंसक और अवैध बेदखली के खिलाफ निवासियों और जन संगठनों के संघर्ष के साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अपनी एकजुटता जाहिर की है।

जिनेवा संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में 16 जुलाई को हुई एक बैठक में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भारत से 20 हज़ार बच्चों सहित लगभग एक लाख़ लोगों की बेदखली की अमानवीय प्रक्रिया को रोकने का आह्वान किया, जो इस सप्ताह मानसून की बारिश के बीच शुरू हुआ था।

बुधवार, 14 जुलाई को भारत के हरियाणा राज्य के एक गांव में संरक्षित वन भूमि पर बने घरों को तोड़ना शुरू हो गया। सरकार वन भूमि और पर्यावरण के नाम पर इन घरों को तोड़ रही है जबकि हकीकत यह है कि दशकों पहले इस इलाक़े में भारी खनन की वजह से वन भूमि पर मौजूद जंगल बर्बाद हो गया था।

भारत सरकार को कम से कम अपने बनाए गए कानूनों का सम्मान करना चाहिए और 2022 तक सबको आवास प्रदान करने की अपने लक्ष्य को ध्यान में रखना चाहिए इसके विपरीत भारत सरकार लाखों लोगों के छत से किस सर से छत छीन रही है इस महामारी के समय लोगों को सुरक्षित रखना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। यहां जिन लोगों के घर छीने जा रहे हैं उनमें से ज्यादातर समाज के पिछड़े और अल्पसंख्यक तबके के मेहनत मजदूरी करने वाले लोग हैं।

विशेषज्ञों ने कहा कि यहां के निवासी “पहले से कोविड 19 महामारी की चपेट में आ चुके हैं, और अब घरों से बेदखली का आदेश उन्हें और अधिक जोखिम में डाल देगा और कुछ 20,000 बच्चों और 5,000 गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए जिंदगी और कठिन हो जाएगी, कई बच्चों का स्कूल छूट जाएगा है। ”

भारत के उत्तर-मध्य हरियाणा राज्य में फरीदाबाद के खोरी गांव, उस भूमि पर बसा है जिसे 1992 में संरक्षित वन घोषित किया गया था, जबकि उस समय वहां पर कोई जंगल नहीं था।

बेदखली की मौजूदा कार्रवाई के अलावा इससे पहले सितंबर 2020 और इस साल अप्रैल में दो बार में लगभग 2,000 घरों को ध्वस्त कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट में  बेदखली की प्रक्रिया को चुनौती देने वाले निवासियों को तब बड़ा झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने 19 जुलाई तक सारा अतिक्रमण हटाने का आदेश दे दिया।

विशेषज्ञों ने सुप्रीम कोर्ट के रवैए की भी आलोचना करते हुए कहा कि, “यह बेहद चिंताजनक है कि भारत की सर्वोच्च अदालत, जिसने अतीत में आवास अधिकारों की सुरक्षा की है, अब लोगों को आंतरिक विस्थापन और यहां तक ​​कि बेघर होने के खतरे में डाल रही है, जैसा कि खोरी गांव में हुआ है।” 

“सुप्रीम कोर्ट की भूमिका कानूनों को बनाए रखने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानवाधिकार मानकों के आलोक में उनकी व्याख्या करने की है, न कि उन्हें कमजोर करने की। इस मामले में, अन्य घरेलू कानूनी आवश्यकताओं के साथ-साथ भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 की भावना और उद्देश्य को नजरंदाज किया गया है।”

“महामारी के दौरान लगाए गए लॉकडाउन ने बस्ती के निवासियों के लिए जीविकोपार्जन करना मुश्किल बना दिया है, और वे बेदखली के खतरे के कारण मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ रहा है।”

खोरी गांव में कई सप्ताह पहले पानी और बिजली की आपूर्ति काट दी गई थी।  मानवाधिकार कार्यकर्ता और विरोध प्रदर्शन में शामिल निवासियों का कहना है कि पुलिस ने उनके साथ मारपीट की है और कई लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया है।  विशेषज्ञों ने कहा कि शांतिपूर्ण सभा के अधिकार के खिलाफ मनमाने आदेश भी दिए गए हैं।

विशेषज्ञों ने कहा, “हम भारत से खोरी गांव को ढहाने की अपनी योजनाओं की तत्काल समीक्षा करने और बस्ती को नियमित करने पर विचार करने का आह्वान करते हैं ताकि कोई भी बेघर न हो।” 

” समय पर पर्याप्त मुआवजे और दूसरी जगह उचित आवास मुहैया कराए बिना किसी को भी जबरन बेदखल नहीं किया जाना चाहिए।”

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने वर्तमान में मानवाधिकार परिषद के सदस्य होने के नाते भारत की सरकार से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि उसकी नीतियां और योजनाएं विशेष रूप से सरकारी भूमि पर स्थानांतरण, बेदखली और आंतरिक विस्थापन से जुड़ी योजनाएं अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का पूरी तरह से अनुपालन करती हों।

“बेदखली की यह घटना इसलिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि आमतौर पर महामारी के दौरान इस तरह बड़े पैमाने पर विस्थापन की कार्यवाही नहीं की जाती है।”

संयुक्त राष्ट्र मावाधिकार विषेशज्ञों की बैठक की मूल रिपोर्ट https://www.ohchr.org/EN/NewsEvents/Pages/DisplayNews.aspx?NewsID=27317&LangID=E

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