कविताएँ इस सप्ताह : माफ़ करना !

माफ करना / महेश केळुसकर

हिंदी अनुवाद : उषा वैरागकर आठले

हे आसमानी परमपिता!
माफ कर देना उस जाँच आयोग को
और न्यायालय को भी।
उन्हें भी माफ करना, जिन्होंने मुझ पर लगाया
देशद्रोह का आरोप –
अपने मनमाफिक सबूत रचकर।
जिन्होंने नकार दिया,
सत्य को बेल पर छोड़ने से –
उन्हें भी माफ कर देना।
जो डरते हैं अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनने से,
उनके लिए घृणाभक्ति ही है सिर्फ देशभक्ति,
वे सोचते हैं कि,
देह को क़ैद करने पर रोका जा सकता है आत्मप्रकाश,
ऐसे अतल अज्ञानियों को भी
माफ कर देना।

हे आसमानी परमपिता!
वे भी हैं मुझ जैसे मर्त्यलोकवासी।
“शाश्वत होता है सिर्फ सत्य और परस्पर प्रेम”,
तुम्हारे इन वचनों का मैं
करता रहा अनुसरण जीवनभर।
मैं आ रहा हूँ तुम्हारे पास
आसमानी परमपिता,
तुममें मिल जाने के लिए…
वहाँ से कूच करने से पहले
मैंने अपना ख़ून दिया उन्हें
पीने के लिए – वाइन की तरह,
उसके साथ डबलरोटी भी बाँटी उन्हें
अपनी देह के टुकड़ों की।
अंतिम भोज के समय
मेरे साथ ही थे वे सब,
जो मेरे शिष्य नहीं थे।

बस,
झारखंड के मेरे आदिवासियों को गले नहीं लगा पाया मैं
अंतिम समय में।
वे अभी भी तड़प रहे हैं भूख और प्यास से…
अभी भी हजारों क़ैदी सड़ रहे हैं ‘ट्रायल’ पर —
कानून के मनोरंजन की खातिर।

संभव हो तो मुझे फिर एक बार पैदा करना सचमुच में
किसी आदिवासी औरत के गर्भ से —
तुमने सौंपा हुआ काम
मैं पूरा नहीं कर पाया इस जन्म में
इसके लिए भी मुझे माफ करना!


ज़िंदांनों में सब बराबर हैं / फादर स्टेन

(फादर स्टेन की मूल कविता ‘प्रिज़न लाइफ – अ ग्रेट लेवलर’ का अनुवाद)

कैदखानों के अंदर
चंद रोज़मर्रा की
जरूरियातों के अलावा
हर छोटी से छोटी
चीज से महरूम
कर दिया जाता है

“तुम” को तरजीह दी जाने लगती है
और
“मैं” पसमंजर में
चला जाता है
सभी जन
“हम” की
खुली फ़िज़ा में
सांस लेने लगते हैं

ना कुछ मेरा
ना कुछ तेरा
सब कुछ
हमारा हो जाता है

जूठन का एक कौर तक
ज़ाया नही जाता
बल्कि
हवा में तैरते
पंछियों के साथ
साझा होता है
वे पंख फैलाए आते हैं
और
अपने पेट की आग
बुझाकर सुदूर गगन में
उड़ जाते हैं

कैदखाने में
इतने नौजवान चेहरों को
देखकर दिल अफसुर्दा होता है
मैं पूछता हूँ
“तुम्हारा कसूर?”
और
वे शब्दों का आडंबर रचाए बिना कहते हैं:
हरेक से
उसकी गुंजाईश
हरेक को
उसकी जरूरत
के मुताबिक
ही तो समाजवाद है

यूँ समझो कि विवशता ने
इस समानता को गढ़ दिया है

वो मंज़र
कितना खुशगवार होगा
जब इंसान
अपनी खुशी और मर्जी से
बराबरी को गले लगा पाएंगे
उस पल
हम
सही मायनों में
धरती के
लाल कहलायेंगे


यदि हम एक महान देश हैं / रमाकांत यादव

कौन थे स्टेन स्वामी
यह देश जानना चाहता है
अब जब कि उनकी मौत हो गई है
उस साजिश का खुलासा हो ही जाए
जो स्टेन स्वामी ने रची थी
देश के लोग उन प्रमाणों को
जांचना परखना चाहते हैं
जिनके कारण चौरासी साल के बूढ़े
पार्किंसन के रोगी स्टेन को अपनी जान गंवानी पड़ी
इतना तो जग जाहिर है
कि पढ़े लिखे स्टेन स्वामी
गरीबों, आदिवासियों के हक की लड़ाई
ताउम्र लड़ते रहे
मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ते हुए
कोई कैसे अमानवीय सिस्टम का शिकार हो जाता है
किसी हिंसक युद्ध में भाग लेने की
कोई भी तस्वीर अभी तक तो सामने नहीं आई
कोई गोली बम चलाते हुए
भला कब पकड़े गये स्टेन
अधिक से अधिक धरना प्रदर्शन
कोर्ट कचहरी के चक्कर
वो भी गरीबों के हक के लिए
गरीबों आदिवासियों के साथ
ज़मीन पर बैठे हुए स्टेन
की तस्वीरें ही हैं बहुतायत में
हम अपनी संस्कृति पर गर्व करने वाले लोग
चौरासी साल के बूढ़े और बीमार
स्टेन पर ज़रा भी नहीं सोचते
हम बिल्कुल नहीं सोचना चाहते
कि स्टेन कौन थे, कैसे थे
यदि हम एक महान देश हैं
तो यह देश जानना चाहता है
कि मानवाधिकारों के चैंपियन को
ऐसे क्यों मरना चाहिए


मैं नहीं गया / सुब्रतो चटर्जी

दुनिया के सबसे खूबसूरत
जगहों पर मैं नहीं गया
दुनिया के सबसे खूबसूरत लोगों से
मैं नहीं मिला
दुनिया के सबसे खूबसूरत वादे
नहीं रिझाते मुझे
दुनिया के सबसे खूबसूरत भोज में
नहीं बुलाता कोई मुझे

लेकिन
इतना सब काफ़ी नहीं था
मुझे गरीब रखने के लिए

मैं गरीब उस दिन बनाया गया
जब दुनिया की सबसे खूबसूरत किताबों को
जला दिया गया मेरी आँखों के सामने
और मैं कुछ नहीं कर सका

मैं और भी गरीब उस दिन हुआ
जिस दिन दुनिया के सबसे खूबसूरत बच्चों को
दफ़्न किया गया ईंट के भट्ठों में
और मैं कुछ नहीं कर सका उनके लिए

मैं उस दिन मर गया
जिस दिन मैं कुछ नहीं कर सका उनके लिए
जो ज़िम्मेदार थे मेरे होने के लिए
मसलन
कुछ कतरे आँसू के
कुछ हँसी के धूप
कोई बादल की छाँव
एक उम्मीद की किरण
जो प्रचंड व्यथा में भी जाग जाती थी
तुम्हारी आँखों में
मुझे सामने पा कर।



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