कोरोना से 4 लाख नहीं 25 लाख भारतीयों के मारे जाने का अनुमान

रुक्मिणी एस, भारत की एक जानी मानी और विश्वस्नीय डेटा जर्नलिस्टों (आंकड़ों पर काम करने वाले पत्रकार) में से एक हैं, जिनके मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में अत्याधिक COVID-19 मौतों के आंकड़ों को लेकर किए गए मौलिक कार्य को व्यापक रूप से मान्यता दी गई है और रिपोर्ट की गई है, के अनुसार मार्च 2020 में कोविड19 महामारी की शुरुआत के बाद से देश में हुई मौतों का आंकड़ा 25 लाख हो सकता है। 

उनके अनुसार विभिन्न पद्धतियों से की गई गणना के आधार पर तीन अलग-अलग अनुमान मोटे तौर पर एक ही आंकड़े की ओर इशारा करते हैं।  रुक्मिणी एस का यह भी मानना है कि इस साल फरवरी-मार्च और मई-जून के बीच कोविड19 की दूसरी लहर के दौरान करीब 15 लाख लोग मारे गए हैं।

द वायर के लिए करण थापर को दिए 30 मिनट के साक्षात्कार में, रुक्मिणी ने अतिरिक्त मौतों की गणना के तीन अलग-अलग तरीकों के बारे में बताया, जो सभी 2.5 मिलियन के एक ही आंकड़े पर आते हैं।  पहला अलग अलग राज्यों में कोविड19 से हुई अत्याधिक मौतों को लेकर अलग-अलग लोगों द्वारा की गई विभिन्न मृत्यु गणनाओं का संकलन है।  दूसरा भारत के सीरो-सर्वेक्षणों और अनुमानित संक्रमण मृत्यु दर के एक्सट्रपलेशन पर आधारित है। तीसरा एक राष्ट्रीय घरेलू सर्वेक्षण के एक्सट्रपलेशन पर आधारित है।

मार्च 2020 के बाद से कोविड19 से हुई 25 लाख़ मौतों का यह आंकड़ा आधिकारिक मौतों के आंकड़े से छह गुना अधिक है।10 जुलाई तक कोविड19 से हुई आधिकारिक मौतों का आंकड़ा 407,145 है।

द वायर को दिए साक्षात्कार में, रुक्मिणी एस ने कहा कि भारत को तत्काल कोविड19 मृत्यु दर सर्वेक्षण करना चाहिए।  उसने कहा कि यह सर्वेक्षण “तेज़, करने में आसान और सस्ता है इसलिए बहुत अच्छी तरह से किया जा सकता है”।  उन्होंने कहा कि झारखंड ने 10 दिनों में एक सर्वेक्षण किया है।

रुक्मिणी ने कहा कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कोविड19 से हुई मौतों की ढंग से जांच, जिसमें इस बात की जांच हो कि सरकार ने अपने पक्ष में इस्तेमाल करने के लिए, आंकड़ों से छेड़छाड़ करते हुए किस तरह से मौत के आंकड़े पेश किए। जो लोग मारे गए हैं उनके प्रति हमारी इतनी तो जिम्मेदारी बनती है।

उन्होंने कहा कि कोविड19 से हुई मौतों के आंकड़ों को लेकर ईमानदारी और पारदर्शिता बरतना ही “लाखों” मरने वालों के प्रति हमारा वास्तविक सम्मान होगा और साथ ही पिछले 15-16 महीनों में भारत जिस तबाही से गुजरा है उसके खिलाफ़ इससे अच्छी प्रतिक्रिया भी नहीं हो सकती है।

रुक्मिणी सरल, पालन करने में आसान लेकिन विस्तृत शब्दों में मृत्यु के पंजीकरण और चिकित्सा प्रमाणन से संबंधित महत्वपूर्ण अवधारणाओं के बारे में बताती हैं और इस प्रक्रिया में यह भी बताती हैं कि भारत में यह कितने अच्छे या कितने खराब तरीके से किया गया है। वह सबसे पहले मौतों के पंजीकरण के बारे में बात करती है, जिसके बारे में सरकार का कहना है कि अब तक 92% मौतों का पंजीकरण किया जा चुका है। हालांकि, यूपी, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों में यह काफी कम है, यानी क्रमशः 63%, 59% और 52%।  इसके बाद वह एक डॉक्टर द्वारा मौतों के मेडिकल सर्टिफिकेशन की बात करती हैं, जो देश भर में केवल 22% है।  कुछ राज्यों में, यह आंकड़ा बहुत कम है।  उदाहरण के लिए, यह मध्य प्रदेश में 9%, यूपी में 7%, झारखंड में 6% और बिहार में 5% है।  इसलिए, इन राज्यों में, 90% से अधिक मामलों में मृत्यु का कोई निश्चित कारण मालूम नहीं होता है।

यहां तक कि केरल जैसे राज्य में भी जो अपनी प्रशासनिक दक्षता और अच्छी स्वास्थ्य प्रणाली के लिए माना जाता है, एक डॉक्टर द्वारा मृत्यु का चिकित्सा प्रमाणन केवल 12% है।

द वायर को दिए इंटरव्यू में, रुक्मिणी ने विस्तार से बताया कि उन्होंने कोविड 19 से हुई मौतों के सही आंकड़े की गणना करने के लिए किस प्रणाली का उपयोग किया है। 

इस प्रणाली में पहले अतिरिक्त मौतों की गणना की जाती है, और वह बताती है कि यह गणना कैसे की जाती है। अत्याधिक मौतों के इस आंकड़े से, आधिकारिक कोविड 19 मौत का आंकड़ा घटा दिया जाता है। उसके बाद जो भी आंकड़ें या संख्या बचती है उसे मोटे तौर पर कोविड 19 से हुई मौतों का गायब आंकड़ा कहा जा सकता है। इनमें से सभी तो नहीं हैं, लेकिन ज्यादातर कोविड 19 से हुई मौतें होने की संभावना है।

रुक्मिणी ने काफी विस्तार से बताया कि उन्होंने आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में इस मौलिक काम को कैसे किया और आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में कोविड 19 मृत्यु दर आधिकारिक मृत्यु दर से 34 और 42 गुना अधिक क्यों है, जबकि तमिलनाडु , कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों में कोविड 19 मृत्यु दर का आंकड़ा आधिकारिक आंकड़ों से क्रमशः 6.2 गुणा, 5.8 गुणा 1.6 गुणा ज्यादा है।

रुक्मिणी के साथ यह साक्षात्कार शायद कोविड 19 से हुई मौतों का सबसे व्यापक लेकिन समझने में सबसे आसान और सबसे स्पष्ट विश्लेषण है और यहां यह भी स्पष्ट होता है कि इन आंकड़ों की गणना कैसे की गई है। यहां अवधारणाओं के किसी शब्दजाल का उपयोग नहीं किया गया है जिनका अनुगमन करना और समझना कठिन होता है।

यह लेख रुक्मिणी एस के साथ 30 मिनट के साक्षात्कार का सार संचय जरूर है लेकिन सही है। साक्षात्कार में और भी बहुत सारी बातों पर चर्चा की गई है।

रुक्मिणी के तर्कों और उनके द्वारा प्रदान किए गए विवरणों की समग्रता की सराहना करने के लिए पूरा साक्षात्कार देखें।

द वायर के लेख का हिंदी अनुवाद

द वायर के मूल साक्षात्कार का लिंक

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