अलविदा की पीड़ा है तो संग्रामी मज़दूर आंदोलन को आगे ले जाने की चुनौती भी

मासा के सहयात्रियों की याद में श्रद्धांजलि सभा

एक कठिन समय में, जब मज़दूर आंदोलन नए प्रयोगों के साथ आगे बढ़ने की जद्दोजहद में है, तब कोविड के हत्यारे दौर ने अनेक हमसफर साथियों को छीन लिया, इनमें मासा के चार कर्मठ सहयात्री साथी भी हैं। ऐसे में मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने उनकी याद को ताजा किया और शोक की घड़ी को परिवर्तनकामी संघर्ष की ताकत में बदलने का संकल्प लिया।

मासा ने बीते एक वर्ष के दौरान अलविदा हुए संघर्षशील मज़दूर वर्गीय आंदोलन के सहयात्रियों कॉमरेड मुख़्तार पाशा (आईएफटीयू), कॉमरेड शिवराम (टीयूसीआई), कॉमरेड नगेन्द्र (आईएमके) व कॉमरेड शर्मिष्ठा (टीयूसीआई) की याद में बीते 28 जून को ऑनलाइन श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया, जो मासा के फ़ेसबुक पेज से लाइव हुआ।

उल्लेखनीय है कि कोविड, सत्ता द्वारा पैदा दुर्व्यवस्थाओं और अराजकता के दौर में मासा के घटक संगठनों आईएफटीयू के राष्ट्रीय महासचिव कॉमरेड मुख़्तार पाशा की पीड़ादायी मौत बीते साल 24 अगस्त 2020 को कोविड संक्रमण से हुआ था। इस वर्ष 2021 में महज 15 दिनों के बीच टीयूसीआई के उड़ीसा राज्य सचिव कॉमरेड शिवराम का 28 मई, आईएमके के उपाध्यक्ष कॉमरेड नगेन्द्र का 10 जून व टीयूसीआई की केन्द्रीय समिति सदस्य कॉमरेड शर्मिष्ठा का 13 जून को दुखद निधन हो गया था।

श्रद्धांजलि कार्यक्रम की शुरुआत में आईएफटीयू, तेलंगाना के साथियों ने ‘लाल झंडा लेकर कॉमरेड आगे बढ़ते जाएंगे…’ गीत के साथ संकल्प व्यक्त किया। इसके बाद दिवंगत साथियों से संबंधित संगठनों के साथियों के साथ अन्य संगठनों के प्रतिनिधियों ने विचार साझा किया।

आईएफटीयू के अध्यक्ष कॉमरेड एस बी राव ने साथी मुख्तार पाशा की जिंदगी व संघर्ष का सफरनामा बताया। उन्होंने कहा कि आईएफटीयू के राष्ट्रीय महासचिव रहे कॉम पाशा 70 के दशक में अपने छात्र जीवन में ही मज़दूर पक्षीय क्रांतिकारी राजनीति से जुड़ गए थे और उन्होंने पूर्णकालिक कार्यकर्ता के तौर पर आजीवन अपना संघर्ष जारी रखा। कॉम पाशा की खासियत बताते हुए उन्होंने कहा कि जब वे छात्र थे तभी टाइल्स फैक्ट्री के मज़दूरों को संगठित करने का एक कठिन काम शुरू किया।  महिला मज़दूरों पर बर्बर अत्याचार के खिलाफ आंदोलन को आगे बढ़ाया और शुरुआती दौर में ही मज़दूरों की एक जीत के साथ यूनियन बनाने के काम में जुट गए।

कॉम राव ने कहा कि उसके बाद से कॉम पाशा लगातार मज़दूर आंदोलन में ही सक्रिय रहे। उन्होंने अन्य कॉमरेडों के साथ मिलकर बीड़ी बनाने वाले मज़दूरों, सिंगरेनी कोल क्षेत्र के ट्रांसपोर्ट वर्कर्स, राइस मिल वर्कर्स, सिनेमा वर्कर्स आदि की यूनियन बनाने के साथ कोल माइंस में भी यूनियन बनाने और मज़दूरों के संघर्ष को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दौरान सत्ता का दमन झेला व जेल भी गए।

इंकलाबी मज़दूर केंद्र के कॉमरेड रोहित ने स्मृतियों को ताजा करते हुए बताया कि साथी नगेंद्र ने अपने क्रांतिकारी जीवन के 28 साल मज़दूर वर्ग के समाज की स्थापना के संघर्ष में लगा दिया था। वे छात्र जीवन से ही क्रांतिकारी संघर्षों से जुड़ गए थे। परिवर्तनकामी छात्र संगठन के स्थापना सम्मेलन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उसके महत्वपूर्ण पदों पर भी रहे। छात्रों की पत्रिका परचम का लंबे समय तक संपादन किया।

नैनीताल में फाड़-खोखा वालों का आंदोलन रहा हो, छात्रों की फीस वृद्धि का आंदोलन या 2005 में ईस्टर फैक्ट्री खटीमा का जुझारू मज़दूर आंदोलन या बाद के दौर में फरीदाबाद-दिल्ली-एनसीआर में मज़दूरों के विभिन्न आंदोलन रहे हों, कॉम नगेंद्र लगातार सक्रिय रहे। वे वैचारिक, सैद्धांतिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सभी मोर्चों के बहुआयामी प्रतिभा के व्यक्तित्व थे। कैंसर की असाध्य बीमारी से पिछले 10 जून को उनका दुखद निधन हुआ, लेकिन वे अपने कामों की विरासत हम सबके बीच छोड़कर गए हैं, जिसे आगे बढ़ाना हम सबका कार्यभार है।

टीयूसीआई के राष्ट्रीय महासचिव कॉमरेड संजय सिंघवी ने टीयूसीआई से ही जुड़े कॉमरेड शिवराम और कॉमरेड शर्मिष्ठा के दुखद निधन पर अपनी बातें रखते हुए कहा कि दोनों ही ऊर्जावान युवा साथी थे। उन्होंने कहा कि दिवंगत साथियों को सही अर्थों में इसलिए भी याद करने की जरूरत है कि उन्होंने पूरी जिंदगी मेहनतकश जन को समर्पित की थी। उन्होंने स्पष्टतौर पर कहा यह कोरोना से नहीं बल्कि सरकार की जनद्रोही नीतियों के कारण सत्ता द्वारा हत्या का शिकार हुए हैं, इसलिए इन्हें शहीद का दर्जा दिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि टीयूसीआई के राज्य सचिव कॉमरेड शिवराम ने छात्र जीवन में ही मेहनतकश वर्ग को संगठित करने की दिशा में कदम उठाया। जब उड़ीसा में लंबे समय से ट्रेड यूनियन आंदोलन पस्तहिम्मती के दौर से गुजर रहा था उन्होंने झुग्गी झोपड़ी बस्तियों के लोगों को संगठित करने का महत्वपूर्ण काम किया और बस्ती सुरक्षा मंच बनाया। बस्तियां उजड़ने के खिलाफ तीखा व जुझारू संघर्ष चलाया। इसी के साथ औद्योगिक क्षेत्र में भी उनकी सक्रियता बनी रही, उड़ीसा के हर जनपक्षीय आंदोलन में वे सक्रिय रहे। कॉम शिवराम की पत्नी कॉमरेड प्रमिला व पुत्र सोनू भी इसी परिवर्तनकामी संघर्ष से जुड़े हुए हैं और उनकी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए संकल्पबद्ध हैं।

टीयूसीआई से जुड़ी कॉमरेड शर्मिष्ठा के बारे में बात करते हुए संजय ने कहा कि उनकी जिंदगी उम्मीद और आशाओं से इतनी भरी हुई थी की मौत असंभव लगती थी। वे कोविड संक्रमण से तो उबर गई लेकिन कोविडजनित बीमारी से जिंदगी की जंग हार गईं। अपने छात्र जीवन से ही कॉम शर्मिष्ठा बेहद सक्रिय रहीं। कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में एसएफआई के वर्चस्व को तोड़ते हुए उन्होंने जीत हासिल की थी। वे महिला आंदोलन से भी काफी सक्रियता से जुड़ी रहीं और पश्चिम बंगाल के भांगर जनआंदोलन में प्रमुख नेतृत्वकारी भूमिका अदा करते हुए जेल भी गईं।

मज़दूर सहयोग केंद्र के कॉमरेड मुकुल ने कहा कि एक ऐसे समय में जब पूरी दुनिया का पूँजीपति वर्ग मेहनतकश अवाम के ऊपर हमलावर है और मज़दूरों के लंबे संघर्षों के दौरान हासिल हक हकूक को खत्म कर रहा है, तब मेहनतकश मज़दूर वर्ग के वास्तविक संघर्ष को आगे बढ़ाने वाले सहयात्रियों का जाना बेहद दुखदाई है। लेकिन दुख और शोक की इस घड़ी को जज़्ब करके मज़दूर वर्ग के मुक्तिकामी संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प लेना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

आइएफटीयू (सर्वहारा) की कॉमरेड आकांक्षा ने कहा कि पस्तहिम्मती और निराशा के इस दौर में चार साथियों को खो देना एक बड़ी क्षति है, इसकी पूर्ति के लिए हम सबको मिलकर खड़ा होना होगा। उस रास्ते पर चलने का संकल्प लेना होगा जिसकी भूमिका इन कॉमरेडों ने निभाई।

जन संघर्ष मंच हरियाणा की कॉमरेड सुदेश कुमारी ने कहा कि कोरोना सत्ताधारियों द्वारा सुनियोजित तौर पर फैलाया गया था। महामारी फैलने की आशंका के बीच वे कुंभ का आयोजन कर रहे थे, पांच राज्यों में चुनाव के जश्न में लगे हुए थे और पूरे देश में त्राहि-त्राहि का माहौल पैदा कर दिया। तमाम मेहनतकश जनता इस हत्यारी व्यवस्था द्वारा लील ली गई और चार कॉमरेड इसी के शिकार हुए।

ग्रामीण मज़दूर यूनियन बिहार के कॉमरेड अशोक ने कहा कि इन कॉमरेडों के व्यक्तित्व और कृतित्व से हमें सीख लेने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह सामान्य मौतें नहीं है बल्कि सत्ता द्वारा प्रायोजित हत्याएं हैं। उन्होंने प्रस्ताव रखा की इन कॉमरेडों के व्यक्तित्व और कृतित्व को मासा लिपिबद्ध करके प्रकाशित करे, ताकि आमजन तक इसे ले जाया जा सके।

एसडब्ल्यूसीसी पश्चिम बंगाल से कॉमरेड अमिताभ भट्टाचार्य ने कहा कि कहा कि मासा बनने से अब तक के 5 साल के सफर के दौरान चारों कॉमरेडों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने पूरी जिंदगी मज़दूर वर्ग की मुक्ति के लिए लगा दी, लेकिन उनके संघर्षशील जीवन का यह पहलू मज़दूर वर्ग के बीच कम पहुंच सका है, जिसके लिए हमें प्रयास करना चाहिए। आज जो दौर चल रहा है वह बेहद पीड़ित रूप से उपस्थित है। संघर्षशील मज़दूर आंदोलन को कैसे आगे ले जा सकते हैं, ये चुनौतियां हमारे सामने उपस्थित हैं।

ऑल इंडिया वर्कर्स काउंसिल के कॉमरेड ओ पी सिन्हा ने कहा कि चारों दिवंगत कॉमरेड साझा आंदोलन के प्रतीक और अगुआ थे। कहा कि हमें ऐसे निजाम के निर्माण का संघर्ष तेज करना होगा जहां ऐसी मौतें ना हो जैसा कि पिछले एक-सवा साल के दौरान हुई हैं। आज चीजों पर नए तरीके से विचार करने की जरूरत है, वैकल्पिक व्यवस्था और विकल्प की तैयारी को आगे बढ़ाने की जरूरत है।

श्रद्धांजलि सभा में कर्नाटक श्रमिक शक्ति के कॉमरेड वरदा राजेन्द्र, मुक्तिमार्ग पंजाब के कॉमरेड लखविंदर सहित विभिन्न संगठनों के कई कॉमरेड उपस्थित रहे। संचालन मासा कोऑर्डिनेशन कमेटी की ओर से कॉमरेड संतोष ने किया।

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